Tuesday, September 1, 2015

दिल न मांगे मोर...

पहले साइकिल, फिर बाईक, फिर छोटी कार..उसके बाद और बड़ी कार..और फिर हर साल लेटेस्ट कार..कार के बाद हैलीकाप्टर..हवाई जहाज और उसमें भी लेटेस्ट...पहले किराए का एक कमरे का मकान..फिर दो कमरे का..फिर तीन कमरे का..फिर खुद का छोटा सा मकान..फिर उससे बड़ा..फिर उससे और बड़ा..फिर बंगला..बच्चे का स्कूल..पहले छोटा स्कूल..फिर बड़ा स्कूल..फिर और नामी स्कूल...चाहे रहन-सहन हो खान-पान हो..पहनावा हो..जो हम पा लेते हैं..वो बेकार लगने लगता है..बेस्वाद हो जाता है..सामान्य हो जाता है..जो नहीं पाया है वो अच्छा लगता है।

दिमाग भले ही इजाजत न दे लेकिन दिल है कि मानता नहीं..दिल हमेशा कहता है कि और चाहिए..ज्यादा चाहिए..जो पा लिया वो हमारा हो गया..ये तो हमने भोग लिया..जो नहीं भोगा है..उसे भोगना है...जब लालच..घृणा..साजिश..धोखाधड़ी से बात नहीं बनती तो दिल काबू में नहीं रहता और हम अनर्थ कर बैठते हैं..शीना मर्डर केस उसका उदाहरण है। ये तो बड़ा केस था..दिल्ली और आसपास ऐसे हर रोज उदाहरण देखने को मिलते हैं..दूसरे शहरों से आए लड़केज-लड़कियां...कोई एमबीए करने आता है..कोई इंजीनियरिंग करता है..कोई और कंपटीशन की तैयारी करता है..दूसरों का देखा-देखी खर्चा नहीं चलता..माता-पिता पढ़ाई के लिए सीमित खर्च देते हैं...बेटा-बेटी यहां चमक-दमक में खो जाता है..पहले तो नौकरी मिलती नहीं..और मिल भी गई तो 10-20 हजार की...एक कमरा ही 10 हजार में नहीं मिलता..सिगरेट..शराब..माल..मूवी..पार्टी..प्रेमिका को गिफ्ट..खर्चा कैसे चलेगा..क्या करें...दिमाग साफ कहता है कि अब बस में नहीं..दिल कहता है कि नहीं और चाहिए...आखिर एक ही उपाय बचता है...या तो धोखाधड़ी करो..या फिर सीधे क्राइम में उतर जाओ..सबसे आसान महिलाओं की चैन छीन लेना..पर्स छीन लेना..एटीएम कार्ड लूट लेना..जब इससे भी पेट नहीं भरता तो और बड़ा क्राइम...
फिर लगता है कि महीने के 50 हजार..एक लाख में क्या होता है कोई बड़ा करो..एक झटके में सब कुछ आ जाए..एटीएम की कैश वैन लूट लो..किडनेप कर लो...किसी बडे़ आदमी का मर्डर कर दो..गाड़ी लूट लो...
दिल मांगे मोर..ये कभी रुकने वाला नहीं..क्राइम से 10-20 लाख कमा लिए..लेकिन खर्चा और बढ़ गया..फाइव स्टार होटल में पार्टी...फ्लाइट से सफर..महंगी गाड़ी का शौक..सब कुछ खर्च हो जाता है..इसलिए एक क्राइम से कैसे काम चलेगा..ये भी नौकरी जैसा ही हो गया..हर महीने करो..ताकि खर्चा चले..डिमांड तो पूरी हो...

जीवन में ये इच्छा हर किसी की है..हमारी भी है..आपकी है..दिल हमेशा मोर कहता है..जो पा लेते हैं..वो व्यर्थ हो जाता है..जो नहीं पाया है निगाहें उसी ओर रहती हैं..अगर हमने काबू रख लिया तो ठीक है..नहीं रख पाए..तो जीवन को खोने की ओर बढ़ेंगे...मेहनत से कोई चीज तत्काल नहीं मिलती है..ईमानदारी से तो और भी नहीं मिलती है..अगर संतोष नहीं रखा..काबू नहीं रखा..धैर्य नहीं रखा...तो समझ लो..हम अपने लिए गडढा खोदने जा रहे हैं...कोशिश करो..कि हर वक्त सोचो..दिल न मांगे मोर....बाकी फिर.....