Friday, September 11, 2015

हिंदी चिंदी-चिंदी

भोपाल के विश्व हिंदी सम्मेलन को लेकर लोगों को उतनी चिंता नहीं थी..जितनी बिग बी के आने को लेकर थी और हिंदी पर बोलने को लेकर थी...क्या अमिताभ बच्चन हिंदी के मर्मज्ञ हैं..या उनके पिता जी थे..इस तरह के सवाल साहित्य जगत ने उठाए..मीडिया ने उठाए...उधर भोपाल जितना हिंदी को लेकर उत्सुक नहीं था..उतना बिग बी लेकर था..और जब ये खबर आई कि बिग बी नहीं आएंगे तो लोग मायूस हो गए..मीडिया भी मायूस हो गया कि हिंदी खत्म हो या न हो...ग्लैमर जरूर खत्म हो गया...बहस का अच्छा खासा मुद्दा खत्म हो गया..उनके आने की खबर से बढ़िया मुद्दा तैयार हो गया था..इस पर कई घंटों की बहस की सामग्री तैयार हो गई थी..अब लोग ये कह रहे हैं..कि दांतों की समस्या को लेकर अमिताभ बच्चन ने हिंदी को त्याग दिया..उन्हें दांत दर्द को छोड़कर हिंदी के लिए जरूर आना चाहिए था। कुछ पत्रकार खुश हैं कि उन्हें हिंदी सम्मेलन में बुलाया गया..साहित्यकार खुश हैं..दनादन सेल्फी डाल रहे हैं...जिन्हें नहीं बुलाया गया..वो नाराज हैं..कोस रहे हैं...और कह रहे हैं कि वो तो खुद ऐसे कार्यक्रमों में शामिल नहीं होना चाहते..

सवाल कई हैं..जिस देश में बच्चा पैदा होते ही हिंदी बोलता हो..उस देश में हिंदी को बचाने के लिए..उसे समृद्ध करने के लिए..उसे सरंक्षित करने के लिए..उसके प्रचार-प्रसार के लिए..जब हिंदी दिवस मनाया जाने लगे..जब सम्मेलन किए जाएं..जब कार्यशालाएं हों..जब प्रचार-प्रसार समिति बनाईं जाएं...जब हिंदी अधिकारी रखे जाएं..तब समझ लो...कि हिंदी चिंदी-चिंदी हो गई है। जैसे कोई मां अपने बेटे को बचाने के लिए प्रार्थना करती है..गुहार लगाती है..डाक्टर के पास जाती है...कुछ ऐसा ही आज हिंदी के साथ हो रहा है। जैसे हम रोज भोजन करते हैं...कपड़े पहनते हैं...सोते हैं..दैनिक क्रियाएं करते हैं..वैसे ही हिंदी हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। भारत की अदालत में हिंदी नहीं चलती...कई सरकारी कार्यालयों में हिंदी में काम नहीं होता..कई आवेदन हिंदी में नहीं भरे जाते..कंप्यूटर पर बहुत सारे काम हिंदी में नहीं हो सकते। ये धारणा..ये परंपराएं..या अनिवार्यता बना दी गई..लेकिन जब मौका पड़ता है..जब माहौल बनता है तो मोबाइल में भी हिंदी भाषा आ जाती है...कंप्यूटर पर भी हिंदी में काम होने लगता है..और कंपनियां भी हिंदी में काम करने का अवसर देने लगती हैं।
इसके बावजूद  हिंदी को हमने ही जिस उपेक्षा का..जिस हीन भावना का..दूसरे दर्जे का..शिकार बना दिया और अब उसे बचाने के लिए कोशिश कर रहे हैं..उसे समृद्ध करने की बात कर रहे हैं। जैसे कोई बेटा..अपनी मां को धक्के मारकर बाहर निकाल दे..और बाद में उसे शर्म आए..या फिर समाज का लोकलाज लगे तो कहें कि नहीं मां के साथ गलत हुआ है..मां को बचाना है..मां को संरक्षित करना है..मां को समृद्ध करना है।
सोशल मीडिया पर हिंदी को लेकर जितनी बहस चल रही है..मीडिया में जितने चर्चे हो रहे हैं..उनमें फोकस इस बात पर है कि कौन आ रहा है..क्यों आ रहा है..किसको बुलाया..किसको नहीं बुलाया..और हिंदी की चिंदी किस तरह हो रही है इसके लिए हिंदी सम्मेलन के आसपास लगे अंग्रेजी के पोस्टर...सम्मेलन स्थल पर गलत लिखी हिंदी की तस्वीरें चस्पां हैं। अच्छा ये होता है कि एक हिंदी की प्रतियोगिता रख ली जाती..जिसमें ऊपर से लेकर नीचे तक सभी से हिंदी भाषा पर एक निबंध लिखवा लेते...और फिर तय करते..कि कितने लोग हैं जिन्हें हिंदी आती है या नहीं...बचपन से हिंदी में पढ़ रहा हूं..लिख रहा हूं...पर मैं सच्चाई के साथ स्वीकार करता हूं कि मैं हिंदी का मर्मज्ञ नहीं..मैं ये दावा नहीं कर सकता कि मुझे हिंदी सही से लिखनी आती है। हां..हिंदी शुरू से लिखने-पढ़ने-बोलने की कोशिश जरूर कर रहा हूं और आज भी जब किसी शब्द पर अटकता हूं तो दूसरों से पूछ लेता हूं कि ये सही हिंदी है या नहीं..ये तो मेरा हाल है जब मुझे इस भाषा में काम करते-करते 45 साल हो गए..और तो और हिंदी के शब्द कम बचे हैं..उसमें हम उर्दू..फारसी और अंग्रेजी के इतने शब्द शामिल कर चुके हैं..कि आने वाले दिनों में वैसे ही कुछ प्रतिशत ही शब्द हिंदी के बच पाएंगे...अब तो आने वाली पीढ़ी पूछती है कि 7 को हिंदी में कितना बोलते हैं...बाकी फिर......

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