ईश्वर से हम यूं हर रोज कुछ न कुछ मांगते हैं...कभी सुख..कभी शांति..कभी समृद्धि..कभी धन..कभी सेहत..कभी बच्चे का कैरियर..कभी नौकरी में तरक्की..सबकी अपनी-अपनी जरूरतें हैं..इच्छाएं हैं..इसलिए ये क्रम कभी जीवन भर रुकता नहीं..चाहे राजा हो या रंक..सब मांगते हैं..टाटा-बिड़ला..अंबानी सब मांगते हैं। चाहे कोई कितनी ही ऊंचाई पर हो..वो और मांगते हैं। हमेशा हम मानते हैं कि हमारे पास कम है..हमें और ज्यादा चाहिए। जैसे पेड़ एक ऊंचाई तक जाता है..जब तक उसकी क्षमता होती है वो ऊंचा होता जाता है और जब ऊंचाई रुक जाती है तो वो शाखाओं में फैलने लगता है..और चारों और फैलता जाता है..ऐसा ही हमारा जीवन है..हम लगातार तरक्की चाहते हैं..जब तरक्की रुक जाती है तो हम चिंतित होने लगते हैं..कुछ मन ही मन सोचते हैं...कुछ गुस्सा और चिड़चिड़ाहट में उजागर करने लगते हैं और ईश्वर से कहते हैं कि वो हमारी क्यों नहीं सुन रहे।
ईश्वर हमारी क्यों नहीं सुनते..वो इसलिए नहीं सुनते..क्योंकि कमी हममें ही होती है। हम कभी अपने मन में नहीं झांकते..सिर्फ ईश्वर के पास फरियाद लेकर पहुंच जाते हैं कि हमारा जीवन सुधार दें..आपको हमें लगता है कि ईश्वर केवल इसीलिए बैठे हैं कि वो आपके आवेदन लेते जाएं..और उस पर अमल करते जाएं। ऐसे में ईश्वर को हम अपने से नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं..मानो वो हमारी अपील पर अमल करने के लिए ही बैठे हैं। दरअसल कितनी ही पूजा करें हम..कितनी ही मन्नतें मानें हम..पूरी जब ही होती हैं जब हम उसके लिए कमर कसते हैं..जब हम कुछ आगे बढ़ते हैं..कुछ सोच पैदा करते हैं..कुछ विचार पैदा करते हैं..कुछ मेहनत करते हैं..और कुछ संघर्ष करते हैं..तो ईश्वर जरूर उस आवेदन पर विचार करते हैं। कोई बच्चा चाहे..साल भर पढ़ाई न करे..और हर रोज पूजा-पाठ कर अव्वल आने की मनोकामना करे तो आप जानते हैं कि रिजल्ट में उसका क्या हश्र होगा। हम चाहें कि मन ही मन कुछ भी सोचे..और ईश्वर के पास जाकर उसे पूरा करने की मन्नत मांगें तो क्या वो पूरी हो जाएगी।
हम चाहें कि एक दिन और एक रात में चमत्कार हो जाए तो ये मुमकिन नहीं...एक दिन में न तो पूजा पूरी होती है..न ही सोच पैदा होती है..न ही विचार बनते हैं..न ही एक दिन में मेहनत और संघर्ष पूरा हो जाता है..ये प्रक्रिया जीवन भर चलती है..जब ये प्रक्रिया लगातार चलती है तो हमारी मनोकामनाएं भी पूरी होने लगती हैं..और ये मनोकामनाएं जीवन भर पूरी होंगी..जब हम लगातार चलते जाएंगे..मेहनत करते जाएंगे..जब हम थक जाएंगे..रुक जाएंगे..या मनोकामनाएं भी रुक जाएंगी। गिव एंड टेक..न प्यार एक तरफा होता है न ही पूजा..जब आप भगवान को कुछ देते हैं वो हमें उससे ज्यादा रिटर्न करते हैं। जैसे आप बैंक में अपनी बचत जमा करते हैं तो उस पर ब्याज मिलता है..उसी तरफ भगवान को हम जितना देंगे..वो हमें मय ब्याज के रिटर्न करेंगे लेकिन यहां बात पैसे की नहीं हो रही..कि आप सौ रुपए चढ़ाएं तो वो आपको एक सौ दस वापस करेंगे। यहां बात हो रही हमारे काम की..मेहनत की..सोच की..व्यवहार की..इसलिए भगवान से तभी मांगिए..जब आप उन्हें कुछ देने की स्थिति में हों..पैसा छोड़कर...बाकी फिर....
ईश्वर हमारी क्यों नहीं सुनते..वो इसलिए नहीं सुनते..क्योंकि कमी हममें ही होती है। हम कभी अपने मन में नहीं झांकते..सिर्फ ईश्वर के पास फरियाद लेकर पहुंच जाते हैं कि हमारा जीवन सुधार दें..आपको हमें लगता है कि ईश्वर केवल इसीलिए बैठे हैं कि वो आपके आवेदन लेते जाएं..और उस पर अमल करते जाएं। ऐसे में ईश्वर को हम अपने से नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं..मानो वो हमारी अपील पर अमल करने के लिए ही बैठे हैं। दरअसल कितनी ही पूजा करें हम..कितनी ही मन्नतें मानें हम..पूरी जब ही होती हैं जब हम उसके लिए कमर कसते हैं..जब हम कुछ आगे बढ़ते हैं..कुछ सोच पैदा करते हैं..कुछ विचार पैदा करते हैं..कुछ मेहनत करते हैं..और कुछ संघर्ष करते हैं..तो ईश्वर जरूर उस आवेदन पर विचार करते हैं। कोई बच्चा चाहे..साल भर पढ़ाई न करे..और हर रोज पूजा-पाठ कर अव्वल आने की मनोकामना करे तो आप जानते हैं कि रिजल्ट में उसका क्या हश्र होगा। हम चाहें कि मन ही मन कुछ भी सोचे..और ईश्वर के पास जाकर उसे पूरा करने की मन्नत मांगें तो क्या वो पूरी हो जाएगी।
हम चाहें कि एक दिन और एक रात में चमत्कार हो जाए तो ये मुमकिन नहीं...एक दिन में न तो पूजा पूरी होती है..न ही सोच पैदा होती है..न ही विचार बनते हैं..न ही एक दिन में मेहनत और संघर्ष पूरा हो जाता है..ये प्रक्रिया जीवन भर चलती है..जब ये प्रक्रिया लगातार चलती है तो हमारी मनोकामनाएं भी पूरी होने लगती हैं..और ये मनोकामनाएं जीवन भर पूरी होंगी..जब हम लगातार चलते जाएंगे..मेहनत करते जाएंगे..जब हम थक जाएंगे..रुक जाएंगे..या मनोकामनाएं भी रुक जाएंगी। गिव एंड टेक..न प्यार एक तरफा होता है न ही पूजा..जब आप भगवान को कुछ देते हैं वो हमें उससे ज्यादा रिटर्न करते हैं। जैसे आप बैंक में अपनी बचत जमा करते हैं तो उस पर ब्याज मिलता है..उसी तरफ भगवान को हम जितना देंगे..वो हमें मय ब्याज के रिटर्न करेंगे लेकिन यहां बात पैसे की नहीं हो रही..कि आप सौ रुपए चढ़ाएं तो वो आपको एक सौ दस वापस करेंगे। यहां बात हो रही हमारे काम की..मेहनत की..सोच की..व्यवहार की..इसलिए भगवान से तभी मांगिए..जब आप उन्हें कुछ देने की स्थिति में हों..पैसा छोड़कर...बाकी फिर....