Thursday, September 17, 2015

कब किसको जाना है नहीं पता...

2005 की बात है, सुबह 4.30 बजे उठता था, उठते ही न्यूज शुरू हो जाती थी, छह बजे दफ्तर पहुंच जाता था और खबरों की दुनिया में पूरी तरह डूब जाता था, एक दिन सुबह सात बजे रिपोर्टरों और डेस्क के साथ फोन पर कान्फ्रेंस में था, दिन भर के कवरेज और खबरों की प्लानिंग हो रही थी, तभी घर से बड़े भाई का फोन आता है, मैंने सोचा कोई काम होगा, फोन काट दिया, सोचा कान्फ्रेंस के बाद बात कर लूंगा, एक-दो मिनट के बाद फिर फोन आया, एक फोन एक हाथ से पकड़े थे, दूसरे हाथ से मोबाइल उठाया, उधर से केवल रोने की आवाज सुनाई दी, फोन फिर कट गया।

ये वो क्षण था.जब मैंने महसूस किया कि एक क्षण में किसी भी आदमी का नशा कैसे हिरन होता है..चाहे वो नशा किसी भी चीज का हो..खबरों का ही क्यों न हो, साथ में बैठे साथी से मैंने कहा कि मैं कान्फ्रेंस से डिसकनेक्ट हो रहा हूं..और न्यूज रूम से बाहर जाकर मैंने छोटे भाई को फोन लगाया, उसने बताया कि मां नहीं रही, मैं समझ तो चुका था कि कुछ न कुछ गंभीर है लेकिन ये अंदाजा नहीं था, मां छोड़कर चली गई। वो भी इस तरह कि जैसे अचानक उनके जाने का मन हुआ हो, ब्लड प्रेशर था, कई सालों से..दवा खाती थीं, ठीक हो जाता था, एक हफ्ते पहले बीमार हुईं, बुखार आया, शहर के अच्छे डाक्टर घर आकर इलाज कर रहे थे, बुखार ठीक हो गया था, कमजोरी थी, तीन दिन पहले मेरी बात हुई थी, बोलीं..अब ठीक है, रात को उन्होंने मेरी बहन से बात की..एक-दूसरे के हाल-चाल लिए..थोड़ा सा भोजन भी किया..सुबह छह बजे बड़े भाई उनके पास ये देखने गए कि मां उठी या नहीं, कैसे हाल-चाल हैं..देखा कि वो निढाल थीं. डाक्टर को बुलाया, उनकी समझ में नहीं आया, बोले रात में तो बिलकुल ठीक थीं, जिस तरह वो गईं, उनके हिसाब से ब्लड प्रेशर हाई से लो हुआ, और संभव है कि इस वजह से वो शांत हो गईं।
इसके बाद एक और घटना से रुबरू हुआ, नामी पत्रकार थे, हंसमुख, बिंदास, स्मार्ट, मनमौजी, जब भी मिलते, हंसी-मजाक शुरू कर देते, कोई भी हो, चाहे छोटा या बड़ा, जिंदादिल, उस रोज शाम को आफिस की एक समारोह के लिए निकल रहे थे, जाने के पहले उनकी शानदार ड्रेस पर चर्चा हुई, अगली सुबह पता चला कि समारोह से देर रात लौटते वक्त एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल हो गए हैं, कई दिन तक जिंदगी से लड़ते रहे, आखिरकार हार गए।
तीसरी घटना..एक और साथी , दफ्तर से बाइक से निकले, घर नहीं पहुंच पाए, हादसे से कोमा में चले गए, फिर दम तोड़ दिया।
ऐसी कई घटनाएं और हैं, जो जिंदगी की हकीकत का एहसास कराती हैं। हम आए हैं तो जाना भी है.... कब, किसी को नहीं पता, कैसे जाना है, किसी को नहीं पता, मौत को हम तय नहीं कर सकते..बस ईश्वर ने ये तय किया है कि जब तक हो, जुटे रहो,कोशिश करो कि अच्छा सोचो, अच्छा देखो अच्छा सुनो, अच्छा करो....बाकी फिर....