Saturday, September 19, 2015

इसे कहते हैं सोशल मीडिया

लखनऊ में एक बुजुर्ग कृष्ण कुमार..35 साल से पुराने से टाइपराइटर के जरिए सड़क किनारे बैठकर अपनी रोजी-रोटी चलाते थे, पुलिस वाले उससे 20 रुपए रोज वहां बैठने के वसूलते थे..हो सकता है आपको ताज्जुब हो कि 20 रुपए की रिश्वत भी कोई लेता है..तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं है..दो रुपए से लेकर 5 रुपए तक हर रोज की वसूली रिश्वत के रूप में होती है और जब सैकड़ों लोगों से हर रोज होती है तो ये छोटी सी रकम महीने में लाखों में पहुंचती है।

 उस रोज शायद उसका धंधा ही नहीं हुआ..धंधा भी कितना होता होगा..मुश्किल से हर रोज सौ रुपए..उसमें से 20 रुपए पुलिसवाले के..उस जगह बैठने के एवज में..जो शख्स हर रोज कमाता हो..और शाम को जाकर उसे दिन भर की कमाई से रोटी नसीब होती हो..वो बिना धंधे के 20 रुपए कैसे दे सकता था..बस क्या था..उसे बुजुर्ग की कमाई से क्या मतलब..उसे अपनी कमाई से मतलब था..वीवीआईपी सिक्योरिटी का हवाला दिया..और टाइपराइटर में लात मारनी शुरू कीं..दनादन लातों से उसका टाइपराइटर तहस-नहस कर दिया..ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर छा गईं। सरकार को लगा कि थू-थू हो रही है..एसएसपी ने जाकर उसे नया टाइपराइटर दिया और तस्वीर खिंचाई।
वाकई..ये है सोशल मीडिया का सदुपयोग..जिसने भी सोशल मीडिया पर इसे पोस्ट किया..जिन्होंने भी इसे शेयर किया..वो जानते हैं कि सोशल मीडिया का सही उपयोग क्या है..जब हम किसी की मदद करते हैं..किसी को दिशा देते हैं तो हम दूसरों को भी सीख देते हैं। हम अपने लिए तो हमेशा करते हैं. और खुद खुश होते हैं .लेकिन जब दूसरों के लिए करते हैं..और उनके चेहरे पर मुस्कराहट देखते हैं..तो खुशी दुगनी होती है।
हमारे-आपके लिए भले ही सौ रुपए कोई बड़ी बात न हो..लेकिन जिसकी हर रोज की कमाई सौ रुपए की हो..उसके लिए बहुत बड़ी बात होती है..उस सौ रुपए में ही दिन भर का खर्च चलाना..उसकी मजबूरी है...और अगर किसी दिन वो सौ रुपए भी न मिले..तो उसके जीवन में कितना कष्ट होता होगा..हम आप नहीं समझ सकते।
 जिसकी जितनी कमाई होती है..उसी हिसाब से हम अपना आकलन करते हैं..यदि हमें एक हजार रुपए रोज मिलते हैं..तो एक हजार का महत्व हमारे लिए उतना ही होता है जितना सौ रुपए हर रोज कमाने वाले को सौ रुपए का होता है। कोई बुजुर्ग फुटपाथ पर पुराने से टाइपराइटर लेकर दिन भर क्यों बैठता होगा..हम सोच सकते हैं..कि आखिर उसके लिए उस टाइपराइटर का क्या महत्व था..जिसके जरिए वो अपनी आजीविका जैसे-तैसे चलाता होगा..उस पर भी पुलिस वालों की नजर...ये तो एक बानगी थी..जिस पर किसी की नजर चली गई..उस भले आदमी ने सोशल मीडिया पर डाल दिया..नहीं तो ऐसी घटनाएं हर रोज होती हैं..हर जगह होती हैं...लेकिन किसी को परवाह नहीं। जब हम परवाह करते हैं..तो ऐसा असर होता है...बाकी फिर...