प्रधानमंत्री जब-जब अमेरिका के दौरे पर जाते हैं..वहां रहने वाले भारतीयों की चर्चा शुरू हो जाती है। इस बार बात हो रही है, सिलिकान वैली की..जो तकनीकी कंपनियों का हब है। जहां आधे से ज्यादा भारतीय काम कर रहे हैं और उनमें गूगल के सुंदर पिचाई, माइक्रोसाफ्ट के सत्या नडेला से लेकर सुंदर नारायण, अपूर्व खोसला और तमाम दिग्गज लोग हैं। ऐसे लोग जिन्होंने पूरी दुनिया में अपनी धाक जमाई है। भारत के प्रधानमंत्री भी उनसे मिलने की इच्छा रखते हैं। देश चाहता है कि वो भारत की तरफ देखें..यहां निवेश करें..और भारत के विकास में भागीदार बनें।
ये तो हम सोच रहे हैं लेकिन हमने ये कभी नहीं सोचा कि आखिर भारत के खड़गपुर, रुड़की, दिल्ली, कानपुर, मुंबई की आईआईटी और अहमदाबाद आईआईएम से निकले ये छात्र विदेश क्यों चले गए?..क्या हमने ये कभी सोचा कि आखिर उन्होंने देश की धरती पर ही रहना क्यों पसंद नहीं किया..सबसे पहले बात आती है कि भारत में क्या उन्हें पैसा मिलता...क्या भारत में उन्हें इतना सम्मान मिलता..क्या भारत में उनकी सोच इतनी तेजी से आगे बढ़ती..क्या भारत में उनके काम की राह आसान होती..अगर नहीं..तो हम किसी को भी आमंत्रित कर ले..आमंत्रित करने के बाद वो यहां आ भी जाए..लेकिन जब माहौल नहीं मिलेगा..सम्मान नहीं होगा..तरक्की नहीं होगा..तो किसी का भी मोह भंग हो जाएगा।
हमारे देश के ही लोग उन्हें कोसते हैं कि वो विदेशों के लिए काम कर रहे हैं..वो हमारे नहीं हैं..वो पैसों के लिए काम कर रहे हैं लेकिन उनसे तो भले हैं जिन्होंने आईआईटी और आईआईएम तो छोड़..ग्रेज्युएशन भी ठीक से नहीं किया और आज देश में करोड़ों-अरबों के मालिक हैं..ईमानदारी से नहीं..बल्कि बेईमानी से...जब राजस्थान के आईएएस के यहां रिश्वत के चार करोड़ नगद मिलते हैं...जब एक पुलिस वाला लखनऊ में 20 रुपए की रिश्वत के लिए एक गरीब बुजुर्ग का टाइपराइटर तोड़ देता है..जब मध्यप्रदेश में आईएएस दंपत्ति के यहां दो सौ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति मिलती है..जब नोएडा में एक इंजीनियर के यहां सैकड़ों करोड़ों की अवैध संपत्ति जब्त होती है..तो हमें ताज्जुब नहीं होता क्योंकि हमें पता है कि पूरे देश में चाहे नेता हों या अफसर हों..या बिजनेस मैन हो..ज्यादातर अवैध कमाई से फल-फूल रहे हैं..और इतना फल-फूल रहे हैं कि उनका पेट दिन दूना और रात चौगुना बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अगर गूगल के सुंदर पिचाई और माइक्रोसाफ्ट के सत्या नडेला विदेश जाकर पैसों के लिए काम करते हैं तो क्या गलत करते हैं।
हमने ये तो सोचा कि उन्होंने विदेशों की शरण ली..लेकिन ये नहीं सोचा कि क्या भारत में सिलिकान वैली नहीं बन सकती थी..बन सकती थी..यदि यहां वो माहौल होता..अनुशासन होता..कायदे-कानूनों का सही से पालन होता और ऐसे लोगों का सम्मान होता। हम प्रतिभा का सम्मान भी यहां तब करते हैं जब वो प्रसिद्धि पा लेता है..नहीं तो ऐसे न जाने कितने सुंदर पिचाई और सत्या नडेला अब भी भारत में होंगे...बाकी फिर.....
ये तो हम सोच रहे हैं लेकिन हमने ये कभी नहीं सोचा कि आखिर भारत के खड़गपुर, रुड़की, दिल्ली, कानपुर, मुंबई की आईआईटी और अहमदाबाद आईआईएम से निकले ये छात्र विदेश क्यों चले गए?..क्या हमने ये कभी सोचा कि आखिर उन्होंने देश की धरती पर ही रहना क्यों पसंद नहीं किया..सबसे पहले बात आती है कि भारत में क्या उन्हें पैसा मिलता...क्या भारत में उन्हें इतना सम्मान मिलता..क्या भारत में उनकी सोच इतनी तेजी से आगे बढ़ती..क्या भारत में उनके काम की राह आसान होती..अगर नहीं..तो हम किसी को भी आमंत्रित कर ले..आमंत्रित करने के बाद वो यहां आ भी जाए..लेकिन जब माहौल नहीं मिलेगा..सम्मान नहीं होगा..तरक्की नहीं होगा..तो किसी का भी मोह भंग हो जाएगा।
हमारे देश के ही लोग उन्हें कोसते हैं कि वो विदेशों के लिए काम कर रहे हैं..वो हमारे नहीं हैं..वो पैसों के लिए काम कर रहे हैं लेकिन उनसे तो भले हैं जिन्होंने आईआईटी और आईआईएम तो छोड़..ग्रेज्युएशन भी ठीक से नहीं किया और आज देश में करोड़ों-अरबों के मालिक हैं..ईमानदारी से नहीं..बल्कि बेईमानी से...जब राजस्थान के आईएएस के यहां रिश्वत के चार करोड़ नगद मिलते हैं...जब एक पुलिस वाला लखनऊ में 20 रुपए की रिश्वत के लिए एक गरीब बुजुर्ग का टाइपराइटर तोड़ देता है..जब मध्यप्रदेश में आईएएस दंपत्ति के यहां दो सौ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति मिलती है..जब नोएडा में एक इंजीनियर के यहां सैकड़ों करोड़ों की अवैध संपत्ति जब्त होती है..तो हमें ताज्जुब नहीं होता क्योंकि हमें पता है कि पूरे देश में चाहे नेता हों या अफसर हों..या बिजनेस मैन हो..ज्यादातर अवैध कमाई से फल-फूल रहे हैं..और इतना फल-फूल रहे हैं कि उनका पेट दिन दूना और रात चौगुना बढ़ता जा रहा है। ऐसे में अगर गूगल के सुंदर पिचाई और माइक्रोसाफ्ट के सत्या नडेला विदेश जाकर पैसों के लिए काम करते हैं तो क्या गलत करते हैं।
हमने ये तो सोचा कि उन्होंने विदेशों की शरण ली..लेकिन ये नहीं सोचा कि क्या भारत में सिलिकान वैली नहीं बन सकती थी..बन सकती थी..यदि यहां वो माहौल होता..अनुशासन होता..कायदे-कानूनों का सही से पालन होता और ऐसे लोगों का सम्मान होता। हम प्रतिभा का सम्मान भी यहां तब करते हैं जब वो प्रसिद्धि पा लेता है..नहीं तो ऐसे न जाने कितने सुंदर पिचाई और सत्या नडेला अब भी भारत में होंगे...बाकी फिर.....