जब हम किसी से मिलते हैं..पहली दफा बात करते हैं..मुलाकात करते हैं..तो हम सामने वाले को इंप्रेस करना चाहते हैं..हम उसे जताना चाहते हैं कि हम दुनिया में सबसे बुद्धिमान, होशियार, समझदार, काबिल, जानकार, मेहनती, ईमानदार..संघर्षशील इंसान हैं..और हमारे अलावा दुनिया में कोई विकल्प नहीं। हम ये भूल जाते हैं कि हम जिसके सामने बैठे हैं..वो खुद के बारे में भी यही समझता है..और वो भी जीवन के बारे में बहुत कुछ जानता है..और हो सकता है कि आपके बारे में भी पहले से बहुत कुछ जानकारी रखता हो..या आप उससे मिलने जा रहे हो..तो वो आपके बारे में पहले से पता कर चुका हो।
एक मित्र बता रहे थे कि किसी बड़ी शख्सियत से उनकी मुलाकात हो रही थी..वो इसी मुगालते में थे कि मेरे बारे में कुछ नहीं जानता है..ये सही भी था लेकिन वो तब तक नहीं जानता था..जब तक कि उसे मित्र से लेना-देना नहीं था..जब मुलाकात तय हो हुई तो मिलने वाली शख्सियत ने उनके बारे में कुछ ही घंटों में सारी जानकारी खंगाल ली। मुलाकात हुई..मुलाकात अच्छी रही..और उसके बाद रिजल्ट भी अच्छा आया लेकिन रिजल्ट आने के बाद मित्र को पता चला कि वो उनके बारे में पहले ही जानकारी जुटा चुके थे..तब उन्हें एहसास हुआ कि हम किसी को अंधेरे में रखने की कोशिश करें..या बढ़-चढ़ कर खुद को पेश करें..उससे सामने वाला प्रभावित होने वाला नहीं..हां ये जरूर हो सकता है कि यदि हमने शेखचिल्ली के हसीन सपने दिखाए..या फिर बड़ी-बड़ी डीगें मारी तो सामने वाला समझ जाएगा कि आप फेंकू हो..और जब एक बार में इतनी फेंक रहे हो..तो पूरे जीवन में न जाने कितनी फेंकी होगी..और किस-किस को फेंकी होगी। जाहिर है कि इसका रिजल्ट उलटा होगा..सामने वाला शख्स आपसे किनारा कर लेगा और आपसे आगे बचने की कोशिश करेगा।
ऐसा हमारे जीवन में हर रोज होता है और सैकड़ों बार होता है..रोज हम नए-नए लोगों से मिलते हैं..कई से जीवन में एक दफा ही मिलते हैं और कई से लगभग हर रोज या अक्सर मिलते हैं। जिनसे हम एक बार मिलते हैं उन्हें या तो हम इंप्रेस नहीं कर पाते हैं या फिर उससे हम इंप्रेस नहीं होते हैं। जिन्हें हम समझ पाते हैं..जान पाते हैं..और उसकी बातों में..उसकी व्यवहार में या फिर उसके कामकाज में एक संतुलन पाते हैं तो हम उससे रिश्ता बना लेते हैं वो रिश्ता दोस्ती का हो सकता है..वो रिश्ता अच्छे इंसान को जानने के स्तर पर हो सकता है। जिन्हें अच्छा समझते हैं..हम उनसे जुड़ना चाहते हैं और जिन्हें अच्छा नहीं समझते..उनसे दूर रहना चाहते हैं। आप अपने को जितना कम बताते हैं..आप अपने को जितना विनम्र रखते हैं और आप अपने को जितना व्यवहारिक बनाते हैं..उससे आपकी लोकप्रियता बढ़ती है और आपसे लोगों के रिश्ते मजबूत होते हैं। हम किसी को बेवकूफ बनाते हैं तो हो सकता है कि सामने वाला बन भी जाए..लेकिन वो भी अपने जीवन में सबक लेता है और आगे उस दोहराव से बचने की कोशिश करता है और आपकी इमेज जो बिगड़ती है तो दूर तक जाती है। जीवन दर्शन यही है कि जो हम सोचते हैं..उतना ही सामने वाला भी सोचता है इसलिए धरातल पर रहते हैं तो जमीन पकड़े रहते हैं..हवा में उड़ने की कोशिश करते हैं तो भले ही कुछ ऊंचाई तक उड़ जाए..लेकिन ज्यादा दिन तक नहीं..और जब नीचे गिरते हैं तो कुछ नहीं बचता है...बाकी फिर......
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ऐसा हमारे जीवन में हर रोज होता है और सैकड़ों बार होता है..रोज हम नए-नए लोगों से मिलते हैं..कई से जीवन में एक दफा ही मिलते हैं और कई से लगभग हर रोज या अक्सर मिलते हैं। जिनसे हम एक बार मिलते हैं उन्हें या तो हम इंप्रेस नहीं कर पाते हैं या फिर उससे हम इंप्रेस नहीं होते हैं। जिन्हें हम समझ पाते हैं..जान पाते हैं..और उसकी बातों में..उसकी व्यवहार में या फिर उसके कामकाज में एक संतुलन पाते हैं तो हम उससे रिश्ता बना लेते हैं वो रिश्ता दोस्ती का हो सकता है..वो रिश्ता अच्छे इंसान को जानने के स्तर पर हो सकता है। जिन्हें अच्छा समझते हैं..हम उनसे जुड़ना चाहते हैं और जिन्हें अच्छा नहीं समझते..उनसे दूर रहना चाहते हैं। आप अपने को जितना कम बताते हैं..आप अपने को जितना विनम्र रखते हैं और आप अपने को जितना व्यवहारिक बनाते हैं..उससे आपकी लोकप्रियता बढ़ती है और आपसे लोगों के रिश्ते मजबूत होते हैं। हम किसी को बेवकूफ बनाते हैं तो हो सकता है कि सामने वाला बन भी जाए..लेकिन वो भी अपने जीवन में सबक लेता है और आगे उस दोहराव से बचने की कोशिश करता है और आपकी इमेज जो बिगड़ती है तो दूर तक जाती है। जीवन दर्शन यही है कि जो हम सोचते हैं..उतना ही सामने वाला भी सोचता है इसलिए धरातल पर रहते हैं तो जमीन पकड़े रहते हैं..हवा में उड़ने की कोशिश करते हैं तो भले ही कुछ ऊंचाई तक उड़ जाए..लेकिन ज्यादा दिन तक नहीं..और जब नीचे गिरते हैं तो कुछ नहीं बचता है...बाकी फिर......