हम हर महीने कोई न कोई ड्रेस अपने लिए खरीदते हैं..परिवार के बाकी लोग भी खरीदते हैं। जो नई ड्रेस लाते हैं..उसे बार-बार पहनने का मन करता है..और पुरानी ड्रेस को हम हेय दृष्टि से देखने लगते हैं..मन ही मन कहते हैं कि अब तुमसे अच्छी और नई ड्रेस हमारी जिंदगी में आ गई है। ये बात अलग है कि उस ड्रेस को फेंकते नहीं। तब तक नहीं फेंकते..जब तक उस ड्रेस को घर में रखने की समस्या नहीं आती। हैंगर पर टंगी ड्रेस महीनों इंतजार करती रहती है लेकिन उसे बाहर निकलने का मौका नहीं मिलता। ये बात अलग है कि जिस दिन वो ड्रेस आई थी..उस दिन उसका घर में जोरदार स्वागत हुआ था..नई नवेली दुल्हन की तरह..उलट-पलट कर देखने के साथ ही..जब पहली बार पहना तो उसकी वजह से ही हमारी शान थी लेकिन पुरानी होते ही वो कबाड़ का हिस्सा बन गई। ऐसी ही दर्जनों ड्रेस अलमारी में टंगी हैं लेकिन उन्हें निकाल कर फेंकने का मोह नहीं छूटता।
ड्रेस का तो एक उदाहरण है..जीवन में ऐसी तमाम वस्तुएं हैं जिनका घर में भंडार होता है..हम नया टीवी ले आते हैं..नया म्युजिक सिस्टम ले आते हैं..नई क्राकरी ले आते हैं..नए मोबाइल ले आते हैं..नए जूते-चप्पल ले आते हैं लेकिन जब तक वो सही सलामत हैं..उन्हें फेंकने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। लगता है कि पैसे लगाए थे..इसलिए इन्हें क्यों फेंको..शायद कभी काम आ जाएं..हालांकि उन्हें कभी काम नहीं आना है..उन्हें हम तब ही फेंकने की जहमत उठाते हैं..जब जगह की दिक्कत होने लगती हैं या फिर टूट-फूट हो जाती है। नहीं तो सैकड़ों वस्तुएं हमारे घर में ऐसी होती हैं जिन्हें हम सालों से ढो रहे हैं और वो जस के तस अलमारी में पड़ी हुई है। अगर गौर से हम इन सारी वस्तुओं पर नजर डालें..तो आधी से ज्यादा ऐसी वस्तुएं हैं जिनका हम बिलकुल उपयोग नहीं कर रहे और न ही आगे करना है..क्योंकि आज जिनका उपयोग कर रहे हैं..उनकी जगह नई चीज आनी ही है। अगर हम कोई सामान बाहर निकालते भी हैं तो तब निकालते हैं जब एक जैसी कई वस्तुएं आपके पास हो जाती हैं और तब आप बड़ी मुश्किल में सबसे पुरानी वस्तु को किनारे लगाने की हिम्मत जुटा लेते हैं। ये सोच कर कि अब एक साथ इतनी सामग्री घर में कहां समाएगी।
यही है मोह..जो समय के साथ अपनी प्राथमिकता बदलता रहता है..जो हमारे लिए अनुपयोगी हो जाता है..उसे हम लंबे अरसे तक ठंडे बस्ते में डाले रहते हैं लेकिन उसे हम जीवन से इसलिए नहीं निकालते..कि कहीं काम आ गया तो.. जब बिलकुल निश्चिंत हो जाते हैं या फिर जब आपकी क्षमता से ज्यादा अनुपयोगी सामग्री इकट्ठी हो जाती है तो उसे त्याग देते हैं। जो पा लिया..उससे मोह कम हो जाता है..जो पाना है उससे ज्यादा मोह होता है..जो बरसों पहले पाया था..वो मोह किनारे लग जाता है..वो सामान्य श्रेणी में नहीं आता..जो हमसे जितना दूर है..उससे उतना ही ज्यादा मोह होता है। बाकी फिर......
ड्रेस का तो एक उदाहरण है..जीवन में ऐसी तमाम वस्तुएं हैं जिनका घर में भंडार होता है..हम नया टीवी ले आते हैं..नया म्युजिक सिस्टम ले आते हैं..नई क्राकरी ले आते हैं..नए मोबाइल ले आते हैं..नए जूते-चप्पल ले आते हैं लेकिन जब तक वो सही सलामत हैं..उन्हें फेंकने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। लगता है कि पैसे लगाए थे..इसलिए इन्हें क्यों फेंको..शायद कभी काम आ जाएं..हालांकि उन्हें कभी काम नहीं आना है..उन्हें हम तब ही फेंकने की जहमत उठाते हैं..जब जगह की दिक्कत होने लगती हैं या फिर टूट-फूट हो जाती है। नहीं तो सैकड़ों वस्तुएं हमारे घर में ऐसी होती हैं जिन्हें हम सालों से ढो रहे हैं और वो जस के तस अलमारी में पड़ी हुई है। अगर गौर से हम इन सारी वस्तुओं पर नजर डालें..तो आधी से ज्यादा ऐसी वस्तुएं हैं जिनका हम बिलकुल उपयोग नहीं कर रहे और न ही आगे करना है..क्योंकि आज जिनका उपयोग कर रहे हैं..उनकी जगह नई चीज आनी ही है। अगर हम कोई सामान बाहर निकालते भी हैं तो तब निकालते हैं जब एक जैसी कई वस्तुएं आपके पास हो जाती हैं और तब आप बड़ी मुश्किल में सबसे पुरानी वस्तु को किनारे लगाने की हिम्मत जुटा लेते हैं। ये सोच कर कि अब एक साथ इतनी सामग्री घर में कहां समाएगी।
यही है मोह..जो समय के साथ अपनी प्राथमिकता बदलता रहता है..जो हमारे लिए अनुपयोगी हो जाता है..उसे हम लंबे अरसे तक ठंडे बस्ते में डाले रहते हैं लेकिन उसे हम जीवन से इसलिए नहीं निकालते..कि कहीं काम आ गया तो.. जब बिलकुल निश्चिंत हो जाते हैं या फिर जब आपकी क्षमता से ज्यादा अनुपयोगी सामग्री इकट्ठी हो जाती है तो उसे त्याग देते हैं। जो पा लिया..उससे मोह कम हो जाता है..जो पाना है उससे ज्यादा मोह होता है..जो बरसों पहले पाया था..वो मोह किनारे लग जाता है..वो सामान्य श्रेणी में नहीं आता..जो हमसे जितना दूर है..उससे उतना ही ज्यादा मोह होता है। बाकी फिर......