एक पुराना किस्सा है, मेरे एक मित्र हैं, अपने दफ्तर में अपने व्यवहार और कामकाज को लेकर खासे लोकप्रिय हैं। कभी किसी से झगड़ा नहीं होता..सारे लोग उनकी तारीफ करते हैं। सबके दुख-सुख..घर आना-जाना होता है। एक दिन बड़े दुखी थे, बोले एक अधीनस्थ सहयोगी उन्हें सपोर्ट नहीं कर रहा था, काफी समझाया-बुझाया..नहीं समझ में आ रहा था, किसी बात को लेकर एक दिन तकरार हो गई। तकरार बहुत बड़ी नहीं थी लेकिन उस अधीनस्थ सहयोगी ने मेरे मित्र की शिकायत उच्च स्तर तक कर दी। मामला बड़ा हो गया..ऐसे-ऐसे गंभीर आरोप लगा दिए गए कि वे व्यथित हो गए..
इस शिकायत पर उनसे जवाब मांगा गया..शिकायत का जवाब लिखते गए..लिखते गए..लिखे जा रहे थे..जवाब खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था..सात पन्ने हो गए..इसके बाद भी जवाब जारी था..जिन साथी के सामने वे लिख रहे थे, उन्हें पढ़वाते भी जा रहे थे..जवाब देखकर वो मुस्कराए..बोले..इतना लिख दिया और कितना लिखोगे..ये जवाब ही बहुत लंबा हो गया...इसे और मत खींचो..पढ़ने के लिए भी तो सामने वाले को समय चाहिए..इस पर मित्र ने सात पन्नों में ही अपना जवाब खत्म कर दिया। उसकी आखिरी लाइन बड़ी खतरनाक थी..कि यदि इसमें लिखी एक बात भी गलत हो..तो मुझ पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए..और यदि सामने वाला गलत हो..तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए..ताकि कोई गलत शिकायत का शिकार न हो और उसकी छवि धूमिल न हो।
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस शिकायत और उस जवाब का रिजल्ट क्या निकला..दोनों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.. न तो मेरे मित्र पर कार्रवाई हुई और न ही उन पर..जिन्होंने शिकायत की थी। जाहिर है कि शिकायतकर्ता मन ही मन खुश था कि उसने झूठी शिकायत करके मेरे मित्र की छवि धूमिल कर दी..और उसके बाद भी उस शख्स का हौसला बुलंद रहा। इससे मेरे मित्र काफी खिन्न दिखे।
ये घटना आज इसलिए याद आ गई..कि प्याज खरीदने और उसे बेचने के मामले में जब दिल्ली सरकार पर आरोप लगता है तो दिल्ली सरकार कहती है कि केंद्र ने महंगे में दिए..हमने सस्ते में बेचा..केंद्र सरकार कहती है कि हमने सस्ते में दिए..दिल्ली सरकार ने महंगा बेचा..जाहिर है कि एक कोई झूठ बोल रहा है...या तो दिल्ली सरकार या फिर केंद्र सरकार..इस खबर को आज तक चैनल ने दिखाया..तो उस पर दिल्ली सरकार ने उसके खिलाफ अखबारों में विज्ञापन छपवा दिया। अब इंतजार इसी बात का है कि कौन सही है..कौन गलत..ऐसा न हो कि मेरे मित्र जैसी घटना ये बनकर रह जाए...बाकी फिर.....
इस शिकायत पर उनसे जवाब मांगा गया..शिकायत का जवाब लिखते गए..लिखते गए..लिखे जा रहे थे..जवाब खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था..सात पन्ने हो गए..इसके बाद भी जवाब जारी था..जिन साथी के सामने वे लिख रहे थे, उन्हें पढ़वाते भी जा रहे थे..जवाब देखकर वो मुस्कराए..बोले..इतना लिख दिया और कितना लिखोगे..ये जवाब ही बहुत लंबा हो गया...इसे और मत खींचो..पढ़ने के लिए भी तो सामने वाले को समय चाहिए..इस पर मित्र ने सात पन्नों में ही अपना जवाब खत्म कर दिया। उसकी आखिरी लाइन बड़ी खतरनाक थी..कि यदि इसमें लिखी एक बात भी गलत हो..तो मुझ पर सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए..और यदि सामने वाला गलत हो..तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए..ताकि कोई गलत शिकायत का शिकार न हो और उसकी छवि धूमिल न हो।
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ये घटना आज इसलिए याद आ गई..कि प्याज खरीदने और उसे बेचने के मामले में जब दिल्ली सरकार पर आरोप लगता है तो दिल्ली सरकार कहती है कि केंद्र ने महंगे में दिए..हमने सस्ते में बेचा..केंद्र सरकार कहती है कि हमने सस्ते में दिए..दिल्ली सरकार ने महंगा बेचा..जाहिर है कि एक कोई झूठ बोल रहा है...या तो दिल्ली सरकार या फिर केंद्र सरकार..इस खबर को आज तक चैनल ने दिखाया..तो उस पर दिल्ली सरकार ने उसके खिलाफ अखबारों में विज्ञापन छपवा दिया। अब इंतजार इसी बात का है कि कौन सही है..कौन गलत..ऐसा न हो कि मेरे मित्र जैसी घटना ये बनकर रह जाए...बाकी फिर.....