Saturday, January 31, 2015

जो जीता वही सिकंदर

जो जीत जाता है, उसकी हम जय-जयकार करते हैं..जो हार जाता है..उसे भूल जाते हैं..ऐसे कई कलाकार हैं..खिलाड़ी हैं..राजनेता हैं...पत्रकार हैं..साहित्यकार हैं..कवि हैं...समाजसेवी हैं..जो कभी प्रसिद्ध हुआ करते थे..हमारी जुबां पर रहते थे...अब गुमनाम हो गए...अगर आप अपनी यादों के पन्ने पलटेंगे तो ऐसी कई तस्वीरें आपके मानस पटल पर उभरेगीं लेकिन वक्त के साथ ये तस्वीरें धुंधली हो गईं.जो आज हैं वो कल नहीं...इसी चक्र से हम भी गुजरते हैं..या गुजर रहे हैं...जो ये पढ़ रहे हैं..उनमें से कई अपने जमाने में नामी-गिरामी रहे होंगे..और कई ऐसे होंगे जो आगे जाकर अपनी जीत का परचम लहराएंगे..दुनिया उन्हें जानेगी। जब तक आपकी अहमियत है..आपका प्रभाव है..आपकी हैसियत है...तब तक लोग आपको जानेंगे..आप आज कितने ही दमदार हों...एक वक्त ऐसा आएगा जब आप न केवल समाज में बल्कि अपने ही परिवार में गुमनाम होते चले जाएंगे...खासकर एक उम्र के बाद..जब आपकी काम करने की क्षमता..आपकी जरूरत..आपका ओहदा...खत्म हो जाएगा..फिर समाज तो क्या आपने परिवार के लिए जिंदा लाश से कम नहीं होंगे..जब कोई लाईलाज बीमारी का शिकार होता है...जब किसी की शारीरिक क्षमता शून्य हो जाती है...तो लोग उसके परलोक सिधारने का इंतजार करने लगते हैं...आपके अजीज भी कहेंगे कि अब सहा नहीं जाता..भगवान उसे उठा ले..तो उसका और उसके परिवार का भला हो...ये उसी तरह है जिस तरह कोई कीमती वस्तु जब काम की नहीं रहती तो कुछ दिन कबाड़ में फेंक दी जाएगी और फिर या तो नष्ट कर दी जाएगी या फिर उसे आप घर से बाहर कर देंगे। साफ है कि जब तक आप जीत रहे हैं..चाहे अपने शरीर से..अपने कर्म से...अपने मन से..अपनी वाणी से..तब तक आप सिकंदर हैं..जब आप इन सबसे हारने लगेंगे...गुमनामी की ओर बढ़ते जाएंगे और फिर सब कुछ खत्म हो जाएगा...ये आप पर है कि आप कब तक जीतते हैं....बाकी फिर.....

Friday, January 30, 2015

हमें सिर्फ अपनी चिंता है

जी हां..कोई कितना भी कहे कि मैं समाज सेवा करने आया हूं..मैं तो आपके लिए कर रहा हूं..मैं तो परिवार के लिए कर रहा हूं..मैं तो संस्थान के लिए कर रहा हूं..तो वो बिलकुल झूठ बोल रहा है...सबसे पहले आप अपने लिए कर रहे हैं...अपने नाम के लिए..अपने ओहदे के लिए...अपने स्टेटस के लिए..अपनी संपन्नता के लिए..दरअसल हम से पहले मैं आता है जो कड़वा सच है..पीएम से लेकर सीएम तक..मंत्री से लेकर संत्री तक..अफसर से लेकर कर्मचारी तक..फिल्म..खेल..उद्योगपतियों से लेकर रिक्शे चलाने वाले और चाय बेचने वाले तक..सब कुछ मैं के लिए लगा है हम के लिए बाद में....कोई देश चलाने की बात करता है जबकि घर नहीं चला पाता है...एक विचार धारा के लोग कुछ सालों में अलग क्यों हो जाते हैं..कोई अपना संस्थान क्यों छोड़ देता है..कोई अपनी पत्नी को क्यों छोड़ देता है..कोई पत्नी अपने पति को क्यों छोड़ देती है..बच्चे अपने मां-बाप को बेसहारा क्यों छोड़ देते हैं...जो पहले आपसे जुड़ा था..छोड़ने के बाद आपका दुश्मन क्यों बन जाता है। बीजेपी से लोग कांग्रेस में जाते हैं..कांग्रेस से बीजेपी में आते हैं..आप से कई लोग छोड़कर चले जाते हैं..कोई सालों बाद कहता है कि मेरा शोषण हो रहा है..मैं घुट-घुट कर जी रहा था..तब क्यों नहीं बोला जब शुरूआत हुई...कोई पूर्व मंत्री कहता है कि मेरे से गलत काम कराया गया..तब क्यों नहीं बोला...संस्थान ने मुझे कुछ नहीं दिया..तो इतने साल क्यों डटे रहे..आज जब कहीं मौका मिल गया तो संस्थान को इतना कोस डाला..कि उससे बड़ा पापी नहीं...पार्टी छोड़ी तो सालों के बाद इतनी बुराईयां नजर आईं कि पूछो मत..जब किसी को छोड़ता है तो जी भर के कोसता है..जब किसी से जुड़ता है तो जी भर के तारीफ करता है..दरअसल जिसे छोड़ रहे हो..जिससे जुड़ रहे हो..उससे हमें मतलब नहीं..मतलब खुद से...जरा भीतर झांककर देखो...मैं ही मैं नजर आएगा..बाहर हम दिखाई देता है  ये मुझे मालूम है..आपको मालूम है...मन में आप स्वीकार भी करते हैं..बाकी फिर..........

Thursday, January 29, 2015

Whats your future?

मुझे नहीं मालूम कि मेरा आगे भविष्य क्या है..आपको मालूम है... नहीं..ज्योतिषियों को मालूम है...ये बात अलग है कि उन्हें अपना भविष्य नहीं मालूम...निर्मल बाबा को नहीं मालूम था कि वो इतने ऊपर जाकर धड़ाम से नीचे गिरेंगे...बाबा आसाराम और नारायण साईं को नहीं मालूम था कि वो इतने दिन जेल में रहेंगे..ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जो दूसरे का भविष्य तय कर रहे थे..आत्मा-परमात्मा का मिलन करा रहे थे..जीवन में तरक्की के उपाय सुझा रहे थे लेकिन आज उन्हें किसी दूसरे बाबा के पास जाने की जरूरत है..

अगर कोई माला या अंगूठी पहनने से हम वो पा लें जो पाना चाहते हैं तो इससे उत्तम क्या है..क्यों जीवन में इतनी मशक्कत करें..दस-बीस हजार में बिना मेहनत..बिना समय दिए काम बन जाए तो उससे बेहतर क्या...जीवन में कोई झूठ बोलता है तो उसे हम नीचा दिखाते हैं या उसे गिरा हुआ शख्स मानते हैं..हम किसी को बरगलाते हैं तो धोखेबाज माने जाते हैं..लेकिन ज्योतिषी की बात गलत हो जाने पर भी हम उसका पीछा नहीं छोड़ना चाहते। वो दूसरा उपाय बता देता है तो हम उसे करने लग जाते हैं कि शायद ये सही हो जाए।
दरअसल ज्योतिषी हो या डाक्टर..या वकील..या पुलिस..या मीडिया..जब हम उसके पास जाते हैं तो ये साफ जाहिर है कि हमें उससे काम हैं और उसी से संबंधित है। जब हमारा वक्त बहुत अच्छा चल रहा है तो क्या आप ज्योतिषी के पास जाएंगे...बिलकुल नहीं...जब आप सेहतमंद हैं तो डाक्टर के पास जाएंगे..बिलकुल नहीं...तो जब आप जाएंगे तो आपको देखकर वो समझ सकता है कि जीवन में कोई न कोई दिक्कत है। अगर वो कहता है कि आप परेशान हैं..आप हां में सिर हिलाएंगे..साथ ये भी कहेंगे कि बाबा जी आपको कैसे पता..बाबा जी बोलेंगे..बच्चा सब जानता हूं...जब किसी ज्योतिषी की बात सच निकलती है तो आप उसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं जब गलत निकलती है तो कोई नहीं बोलता...आजकल ज्योतिषी देश और प्रधानमंत्री की भी कुंडली बनाते हैं..और देश को अच्छे से चलाने के लिए उनके पास उपाय भी हैं...देश लाखों..करोड़ों का बजट खर्च कर रहा है..लोगों पर जानलेवा इनकम टैक्स..सेल्स टैक्स लग रहा है..तो क्यों न ज्योतिषी की एक कैबिनेट बनाई जाए और प्रधानमंत्री उससे सलाह लें..देश को सर्व शक्तिशाली बनाएं..सब कुछ मुफ्त में हो जाएगा..लोग धन धान्य से भरपूर हो जाएंगे..जीवन में चैन ही चैन होगा..आनंद ही आनंद होगा....बाकी फिर...

Wednesday, January 28, 2015

खुद के भरोसे या भगवान भरोसे

जब तक खुद पर भरोसा रहता है..हम अपना काम करते रहते हैं और दूसरों को बताते हैं कि हमने कामयाबी हासिल कर ली..वो तो मैं था जो ये संभव हो पाया..जब असफलता हाथ लगती है तो हम वक्त और ईश्वर को जिम्मेदार ठहराते हैं..कहते हैं कि हमारा समय खराब चल रहा है..ईश्वर साथ नहीं दे रहा है..किस्मत फूटी हुई है। जब हम संकट में होते हैं तो दिन-रात भगवान की शरण में होते हैं..उससे प्रार्थना करते हैं कि समस्या का हल निकालें...हमारी परेशानी दूर करें..हमारा स्वास्थ्य ठीक करें..हमारी नौकरी लगवा दें..हमारे आर्थिक हालात सुधार दें..हमारे बच्चे का भला करें..ये तमाम प्रार्थनाएं हैं जो हम ईश्वर से करते हैं और नहीं होता है तो फिर हम उसे जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। दरअसल हम पहले अपने सारे जतन करते हैं और जब लगता है कि बात बनने वाली नहीं है तो हम भगवान का सहारा ले लेते हैं। दो बच्चों में से एक साल भर मस्ती करता है..दूसरा पढ़ाई में ध्यान देता है..दोनों परीक्षा के पहले भगवान से विनती करते हैं..आप समझ सकते हैं कि विनती किसकी सुनी जाएगी। जाहिर है पढ़ने वाले के अच्छे नंबर आएंगे..दूसरे बच्चे की प्रार्थना क्यों नहीं सुनी..दोनों ने विनती की थी... पहले आप अपने लिए गडढा खोदते हैं..या दूसरे के लिए गडढा खोदते हैं और जब संकट से घिरते हैं तो भगवान से कहते हैं कि दूर कर दो। ये मानव की फितरत रही है कि जो काम बन जाए..उसका श्रेय खुद ले लो..नाकामी हाथ आए तो दूसरे पर थोप दो..कोई न मिले तो भगवान तो है ही...यही नहीं भगवान से ये भी कहते हैं कि मैं सौ..पांच सौ..हजार रुपए का प्रसाद चढ़ाऊंगा..कथा कराऊंगा..नैया पार लगा दो...यानि उन्हें भी हम पेशकश करते हैं कि कुछ ले लो..काम बना दो..जो अच्छा काम करते हैं..अपने कर्म को निभाते हैं..सदव्यवहार रखते हैं..उनकी भगवान अपने आप सुनते हैं..उन्हें कुछ पेशकश करने की जरूरत नहीं..जो गलत करते हैं उन्हें दंड मिलना तय है वो किसी भी रूप में मिले...ऐसे लोग भगवान को कितना ही मनाएं..मानने वाले नहीं...बाकी फिर......

Tuesday, January 27, 2015

दिल चाहता क्या है?

जीवन है तो हर वक्त दिल धड़कता है..कोई भी हो..छोटा या बड़ा..अमीर या गरीब..हर किसी के पास वही दिल है..उतना ही धड़कता है जितना सबका...और सवाल ये उठता है कि दिल चाहता क्या है?...दिल चाहता है सब कुछ अच्छा ही अच्छा हो..ज़िंदगी खूबसूरत हो..मान-सम्मान हो..हम लगातार ऊंचाईयों को छुएं...ओहदा हो..पैसा हो..हमारा बच्चा बाकी बच्चों से बेहतर हो..खूब नाम कमाए..पैसा कमाए..मनपसंद भोजन मिले..मनपसंद कपड़े पहने..मनपसंद गाड़ी हो, बंगला हो...ये तो वो ख्वाहिशें हैं जो हर किसी के दिल में बसती हैं..छोटी-छोटी ख्वाहिंशें भी होती हैं..जो हर रोज दिल में आती हैं..और चली जाती हैं..जाहिर है कि सारी की सारी पूरी नहीं हो पातीं। मसलन...आपने कोई गलती की है तो पकड़ी न जाए...कोई काम न किया हो..उसके लिए बहाना क्या बनाया जाए..कोई अच्छा लगता है तो उसे बार-बार कैसे देख लिया जाए..कोई बुरा है तो उस पर नजर न पड़े...कोई लजीज व्यंजन है तो पेट के न बोलने पर भी उसे ज्यादा से ज्यादा खा लिया जाए..भले ही बाद में दिक्कत हो जाए..हर अच्छी चीज के लिए दिल मांगे मोर...दिल और दिमाग में हमेशा जंग छिड़ी रहती है। दिल को दिमाग नियंत्रित करता है..अगर संतुलन है तो बात बन जाती है..अगर दिल हावी है तो बिगड़ जाती है। दिमाग हावी है तो दिली इच्छाओं का दमन हो जाता है। ऐसा नहीं कि दिल जो चाहता है वो गलत चाहता है लेकिन जब ज्यादा और ज्यादा चाहता है और बहकने लगता है तो दिमाग उसे रोकता है और रास्ते पर लाता है। जब हमारे दिल में जागी इच्छाएं दिमाग के कंट्रोल रूम में जाती हैं तो रिफाइन होती हैं और छनकर हमारे जज्बात बाहर निकलते हैं और वो सही भाव होते हैं। कहते हैं कि यार उसके पास तो दिल ही नहीं..यानि दिल की सुनो..और जो दिमाग कहे..उसे करो..केवल दिमाग को चलाओगे तो जीवन अशांत हो जाएगा..दिल कचोटने लगेगा..अंदर ही अंदर घुटन होने लगेगी...दोनों में जितना अदभुत संतुलन होगा जीवन भी उतना अदभुत रिजल्ट देगा। बाकी फिर.......

Monday, January 26, 2015

give and take

आजकल का जमाना कहता है..इस हाथ दो..उस हाथ लो..ये अच्छाईयों के लिए भी है..बुराईयों के लिए भी...अगर आप भी किसी को फायदा पहुंचाते हैं..तभी वो आपको फायदा दिलाने के लिए मशक्कत करेगा..क्रिया की प्रतिक्रिया होती है..अगर आप साजिश रचेंगे..वो भी आपके खिलाफ जुट जाएगा..आप उसे नीचा दिखाएंगे..वो भी आपको नीचा दिखाने के लिए अवसर की तलाश में रहेगा..कहते हैं खून का बदला खून से..यानि जो आप देते हैं..उसे लेने के लिए तैयार रहें..जो आप लेते हैं उसे देने के लिए तैयार रहें...अगर आप किसी को प्यार देंगे..बदले में प्यार मिलेगा..मान-सम्मान देंगे..वो भी वैसे ही भावना रखेगा..
दरअसल हम जैसा करते हैं..वैसा भरते हैं..हम जितने कठोर होंगे..सामने वाला आपसे भी कठोर बनने की कोशिश करेगा...हम जितने दरियादिल होंगे..दूसरे आपसे दरियादिली से पेश आएंगे। हम अपनी सोच जैसी बनाते हैं..सामने वाला भी वैसा ही नजर आता है..अगर आपके साथ किसी ने गलत किया तो आपकी नजर में वो खराब शख्स होगा..वो जो भी करेगा..आपको खराब नजर आएगा..जो शख्स आपकी नजर में अच्छा होगा..आपको उसकी अच्छाईयां ही नजर आएंगी..ऐसा ही नजरिया आपके बारे में बनता हैं..यदि आप लोकप्रिय हैं तो उसकी वजह होगी कि  ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ आप प्यार..सम्मान..भलाई के साथ रुबरू हुए होंगे..और यदि आपकी इमेज खराब है तो इसकी वजह आप ने बुराई ज्यादा बांटी है..
साफ है कि जो बांटते हैं..वो आप पाते हो...इसी से जुड़ा एक और पहलू है..आप जिस सोच के होंगे..जो आपकी शख्सियत होगी..वो ही आपका दायरा होगा..वही आपका संसार होगा..वैसे ही लोग आपसे जुड़े होंगे..मसलन मैं मीडिया से हूं तो मीडिया से जुड़ी खबरों में...उन खबरों से जुड़े लोगों में मेरी दिलचस्पी ज्यादा होगी..और मैं ऐसे ही लोगों से ज्यादा वास्ता रखूंगा..या फिर मीडिया से जुड़े ही लोग मेरे से ज्यादा वास्ता रखेगा..कोई खिलाड़ी है तो खेल से जुड़े लोगों से जुड़ेगा..फिल्म का है तो फिल्मवालों से जान-पहचान रखेगा..गुंडा-बदमाश होगा तो वो उस फील्ड के लोगों को खोज ही निकालेगा और अपना सर्किल बनाएगा। यदि आप साहित्यक हैं तो साहित्य जगत की गतिविधियों और उनसे जुड़े लोगों पर आपकी नजर होगी..आप उनसे जुड़ते जाते हैं...यानि अच्छाई के साथ अच्छाई जुड़ेगी..बुराई के साथ बुराई..प्यार से प्यार जुड़ेगा...हिंसा के बदले हिंसा मिलेगी। इसीलिए कहते हैं कि गिव एंड टेक..बाकी फिर.....


Sunday, January 25, 2015

हम क्या हैं?

हर शख्स की कोई न कोई कमजोरी होती है बल्कि कई कमजोरियां होती हैं लेकिन हम उसे या तो शौक का नाम दे देते हैं या फिर मजबूरी करार देते हैं। दरअसल एक पक्ष खूबियों का है तो दूसरा कमजोरियों का...वो नशे की आदत हो सकती है..गलत हरकतों की हो सकती है..झूठ बोलने की हो सकती है..उधार लेने की हो सकती है...दूसरों को नीचा दिखाने की हो सकती है...जो अच्छी आदतें हैं वो कमजोरी नहीं होती..खूबी होती है मसलन...स्पोर्टस..फिल्म..संगीत..समाज सेवा..अध्ययन..। कभी हम खुद का आकलन नहीं करते..दूसरों के बारे में बहुत बोलते हैं. अरे..वो तो नशेड़ी है..वो तो अश्लील है...वो तो मक्कार..कामचोर है...वो तो झूठ बोलता है...वो तो ठग है..वो तो बहुरूपिया है..कभी हमने सोचा कि हम क्या हैं...हम जितना अपने बारे में सोचेंगे...अपने जीवन को बेहतर कर पाएंगे..दूसरों को नसीहत देने से पहले खुद कमजोरी दूर करें..नहीं तो आपके माता-पिता..बच्चे ..पत्नी आपको नसीहत देंगे कि पहले अपनी आदत सुधार लो..हम भी सुधार लेंगे..दिक्कत बस यहीं हैं कि हम अपनी कमजोरी छिपाने के लिए..दूसरे को चुनौती देते हैं कि पहले तुम ऐसा करो..मैं भी कर लूंगा...दूसरों के बारे में बात करना आसान हैं..खुद के बारे में कठिन..आप किसी की बढ़ाई करते हो..गौर से सुनेगा..बुराई करोगे..दाएं-बाएं होने लगेगा..आंखें फेर लेगा..कोई दूसरी बात छेड़ देगा..दरअसल हम अपने बारे में अच्छा सुनना चाहते हैं..भले ही हम अच्छे न हों..हम दूसरों को आईना दिखाना चाहते हैं..खुद को नहीं..हम कहते हैं कि मोदी जी बस बोल ही रहे हैं...राहुल गांधी कुछ नहीं कर पाए...किरण बेदी अवसरवादी हैं..केजरीवाल अराजक है...हमारा बस नहीं चल रहा है अगर चलता तो न जाने क्या कर देते...अगर में प्रधानमंत्री होता..तो देश से भ्रष्टाचार खत्म कर देता..देश सुपर पावर बन जाता..चाय और पान की दुकान पर भी ये चर्चा आम है..लेकिन ये नहीं सोचते कि हम बन जाते तो..बन क्यों नहीं गए...कोई कहता है कि ये वक्त-वक्त की बात है..कोई कहता है कि मैं चांदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुआ..दरअसल हम अपने कर्म से अपना भाग्य लिखते हैं..देश में कई लोगों ने लिखा है..हम आज उनकी चर्चा करते हैं लेकिन खुद की नहीं...यही सबसे बड़ा संकट हैं..जब हम खुद तय करेंगे...जीवन में हम भी कुछ बन जाएंगे...बाकी फिर...

Saturday, January 24, 2015

कौन है सच्चा दोस्त?

जीवन में हर कोई चमत्कार को नमस्कार करता है..लेकिन कभी हमने ये सोचा है कि आखिर क्यों?..जीतने वाले को हम याद रखते हैं..हारने वाले को भुला देते हैं...जिससे फायदा हो सकता है..उसके करीब जाने की कोशिश करते हैं..जिससे कुछ पाने की उम्मीद नहीं..उससे दूर जाने की कोशिश होती है...कोई कामयाबी के शिखर चूमता है तो हम रिश्तेदारी निकाल लेते हैं..कहते हैं कि अरे.उसके साथ तो हमने न जाने कितने दिन बिताए हैं..वो कैसा था..वो ऐसा था..वो वैसा था...अब बन गया तो क्या हुआ?..मैं वो जानता हूं.जो आप नहीं जानते..अगर आप कामयाब हैं तो परिवार वाले हों..दोस्त हों या जानने वाले हैं..आपकी कमियां भूल जाते हैं..जब आप नीचे जाते हैं तो आपकी कमियां ऊपर आती हैं...जब आप जीतते हैं तो आपकी खूबियां नजर आती हैं..जो जीतता है वो भी यही करता है..उन्हें भुला देने की कोशिश करता है जो अब उसके स्तर के नहीं..या जिनसे अब उसका भला होने वाला नहीं...दरअसल कोई भी हो..कितने ही कामयाबी के शिखर पर हो....स्वार्थ उसका पीछा नहीं छोड़ता..जहां हमारा फायदा है तो हम फोन नंबर तलाश लेते हैं और जहां मतलब नहीं तो फोन नंबर होते हुए भी डिलीट मार देते हैं..यानि हम जिसे पहचानना चाहते हैं..उसे ही पहचानते हैं नहीं तो इनकार कर देते हैं...जीवन के अलग-अलग पड़ाव में न जाने हम कितने ही दोस्तों को भूल गए होंगे..कितने ही मदद करने वालों को भूल गए होंगे..जहां आज हम खड़े हैं..जिनसे आज हमें लेना-देना है..हम उसी सर्किल में घूमते हैं..जिनसे अब काम नहीं..उनसे पहचान बनाकर भी क्या करेंगे? आज जो हमारा BOSS है..उससे हमारी करीबी जरूरी है..उसकी दस गलतियां माफ हैं..उसकी हर कमी खूबी है...जो दोस्त काम का है..उससे हम ऐसा अपनापन दिखाएंगे कि जैसे उसके बिना आपका जीवन अधूरा है..जो आपसे मदद मांगने आएगा..या तो आप उससे मिलेंगे नहीं..या फिर पीछा छुड़ाने की जुगत में भिड़ जाएंगे...गिव एंड टेक...इस हाथ दो..उस हाथ लो...जीवन में जब जैसा उचित है..वैसा ही करना है..इन सबसे अलग चंद लोग ऐसे भी मिलेंगे..जो कहीं भी हो..कितने ही नाम वाले हों...कितने ही पैसे वाले हों..पर आपके दुखदर्द में शामिल होंगे..बिना सोचे-समझे आपका साथ देंगे..सच्चे दोस्त वहीं हैं..ये आपको तय करना है कि आप ऐसे लोगों को पहचान लें..जीवन में वही काम आएंगे..नहीं तो स्वार्थ की दुनिया में लोग आपसे अपने आप जुड़ेंगे भी..अपने आप किनारा भी कर लेंगे..आप ऐसे लोगों को कोसते रह जाएंगे..अपने आपको को कोसते रह जाएंगे..बाकी फिर

Friday, January 23, 2015

इतना झूठ मत बोलो

क्या आप झूठ बोलते हैं..नहीं..यही जवाब मिलेगा लेकिन सच ये है कि अभी-अभी आपने या हमने झूठ बोला कि हम झूठ नहीं बोलते..दरअसल हम दूसरे का झूठ याद रखते हैं अपना झूठ नहीं..जो हम सुबह से रात तक कई बार बोलते हैं...ऐसे-ऐसे झूठ..कि आप और हम कल्पना नहीं कर सकते। मसलन..बच्चे को स्कूल नहीं जाना है तो पेट दर्द-सिर दर्द का बहाना करेगा..आप अपने घरवालों या दोस्तों से कहते हैं कि मैं बस पहुंच रहा हूं..जबकि आप चले ही नहीं हो..किसी का पैसा नहीं देना है तो कहोगे कि हमारे पास अभी है नहीं..कहीं से आना है..बस मिल जाएगा..

हकीकत ये नहीं होती..मेरे कई दोस्त आलीशान मकान में रह रहे हैं..महंगी कार मेंटेन कर रहे हैं..बच्चे नामी स्कूल में पढ़ रहे हैं..महंगे शौक फरमा रहे हैं...लाइफ स्टाइल से झलक रहा है कि आपको कोई दिक्कत नहीं..लेकिन जब बात करेंगे तो बोलेंगे कि बड़ी तंगी है..खर्चा चल नहीं रहा...एकाउंट में पैसा नहीं...अगर जल्दी ही इंतजाम नहीं हुआ तो जिंदगी मुश्किल हो जाएगी...मेरे कई दोस्तों का मुझे पता है कि वो बीमार हैं...किसी के हाथ में दिक्कत है..किसी की आंख में..लेकिन फेसबुक पर उनके दनादन पोस्ट हैरत में डाल देते हैं..किसी के माता-पिता बीमार हैं..लेकिन वाटस अप पर आप  गुल खिला रहे हैं..हम बहाना बनाते हैं...हम नाटक करते हैं...

अगर कोई ये कहता है कि मैंने कभी झूठ नहीं बोला..ये हो ही नहीं सकता..अगर एक दिन..अपने मन में झूठ बोलने का रिकार्ड रखने की कोशिश करोगे..तो समझ में आ जाएगा कि मैं कितना झूठ बोल रहा हूं...अपने झूठ को हम मजबूरी की आड़ भी बड़ी खूबसूरती से ले लेते हैं। जो गंदा काम कर रहे हैं..वो भी कहते हैं कि अरे साब..क्या करता...मजबूरी थी..इसलिए मैंने ऐसा किया..एक और छोटा सा उदाहरण देते हैं कि छोटे से बच्चे को बहलाने के लिए...आप क्या-क्या झूठ बोलते हैं...अपने सीनियर को एक छुट्टी के लिए तो आप गिर ही पड़ते हो..अगर थोड़ी ही देर हुई तो शायद आपका बचना मुश्किल हो जाए...किसी की शादी में नहीं पहुंचे..किसी के निधन पर नहीं पहुंचे...तो आप कितने झूठ बोलते हो..आपका झूठ तो आप ही जानते हो..पर जो नेता हैं..नामी-गिरामी शख्सियत हैं..उनके झूठ तो सबको दिखते  हैं. और हम भी कहते हैं कि देखो.कितना झूठ बोलता है....एक बार गिनने की कोशिश करो..कि हम कितने झूठ बोलते हैं..क्यों बोलते हैं और झूठ बोलना कितना कम कर सकते हो..ये आपको तय करना है बाकी फिर......

Thursday, January 22, 2015

हम जीते क्यों हो?

कभी आपने सोचा है कि हम जी क्यों रहे हैं..क्या उद्देश्य है..क्या लक्ष्य है..शायद नहीं...राजनीति में सोचें तो पीएम या राष्ट्रपति...कमाई में सोचें तो मुकेश अंबानी..या अनिल अंबानी...किक्रेट में सोचें तो सचिन तेंदुलकर..फिल्म में सोचें तो अमिताभ बच्चन...गायन में सोचें तो लता मंगेश्कर...कुख्यात होने का सोचें..तो दाऊद इब्राहिम..या फिर ISIS..कभी तालिबान था...नंबर वन कौन है..हम भी नंबर वन बनना चाहते हैं..बेटा-बेटी कहता है कि मैं क्लास में नंबर वन हूं...गंगनम स्टाइल कहता है कि यू ट्यूब के हमने सारे रिकार्ड तोड़ दिए...


बड़ी कश्मकश है..बड़ी जद्दोजहद है...लड़ाई है..संघर्ष है..सेहत है..आर्थिक हालात हैं..जो रोना रोता है..वो कुछ नहीं कर सकता..जो सेहत नहीं बना सकता..वो कुछ नहीं कर सकता...जो अपने सीनियर से तालमेल नहीं बना सकता..वो कुछ नहीं कर सकता..जो अपने सहयोगी या मातहत से नहीं बना सकता..वो कुछ नहीं कर सकता...जब हम सोचते हैं कि हमें दुखी रहना है..तभी हम दुखी रहते हैं..जब हम खुश रहना चाहते हैं..तभी खुश रहना चाहते हैं...जब हम पर जिम्मेदारी आती है तो सर दुखने के बाद भी निभाते हैं..जब हमें कोई रास्ता नहीं दिखता तो हम शार्टकट निभाना चाहते हैं..गलत काम को अपना लेते हैं...दूसरों पर रौब जमाने के लिए..न तो पत्नी को बताते हैं..न बच्चों को..जितना चाहे गलत काम हो..जितने चाहे संकट हों..
.जब आप फतह हासिल करते हो तो खुद बताते हो..चाहे घर हो या फिर दफ्तर..नहीं तसल्ली होती है तो फोन करके बताते हो..वाटस अप करके बताते हो..फेसबुक या टिवटर से बताते हो...सवाल अब भी बरकरार है कि हम जीते क्यों हैं..अपने लिए..बच्चे के लिए..पत्नी के लिए..माता-पिता के लिए...कमाई के लिए..नाम के लिए....लाखों लोग ऐसे होंगे जिनसे ये सवाल कर लिया जाए..तो भौंचक रह जाएंगे। जो हिट है उनसे भी पूछ लीजिए...जो रिक्शे या चाय वाला है उससे भी पूछ लीजिए..दरअसल जीवन की कश्मकश में हम जीवन का उद्देश्य ही भूल गए हैं..ये आपको तय करना है कि हम जी क्यों रहे हैं...बाकी फिर....

Wednesday, January 21, 2015

चेहरे से जब नकाब हटेगा

दोस्तो..जीवन एक है लेकिन हम अनगिनत चेहरे लेकर चलते हैं..हर दिन..हर पल अपने चेहरे पर चेहरा लगाते हैं..जब हम इन चेहरों की परतें उघाड़ने बैठें तो न जाने कितने चेहरों को हम सामने देखेंगे। लोग कहते हैं कि ये सब रंगमंच पर होता है..फिल्मी दुनिया में होता है..राजनीति में होता है..जिसका जो काम है..उसी तरह का चेहरा सामने होता है..हम भले ही आम आदमी हो..पर चेहरे पर कई चेहरे हम भी लगाते हैं...दूसरों को भले ही पता न चले लेकिन जब थोड़ी देर के लिए अंतर्मन में झांकें तो एक दिन में ही अलग-अलग वक्त हम कितने चेहरे लेकर चलते हैं..कुछ की भूमिका जीवन में बार-बार आती है तो कोई वक्त के साथ खत्म हो जाते हैं..दफ्तर में अलग भूमिका..घर में अलग भूमिका..जैसा रिश्ता वैसी भूमिका..पत्नी के साथ अलग चेहरा..बेटा-बेटी के साथ अलग..माता-पिता के साथ अलग..चेहरों पर जो भाव आते हैं...अपनी भूमिका-अंदाज जिस तेजी से बदलते हैं..आपको खुद पता नहीं चलता...कोई आपको गुस्सैल समझता है..कोई भावुक शख्स..कोई लापरवाह..कोई ईमानदार..कोई भ्रष्ट..कोई सच्चा दोस्त..जिसको आपने जैसा चेहरा दिखाया...ताजा उदाहरण हम देख रहे हैं..अन्ना हजारे..अरविंद केजरीवाल..किरण बेदी और उनके साथियों को..सबकी अपनी-अपनी राय..पहले केजरीवाल का चेहरा बदला..अब किरण बेदी का..तो अन्ना हजारे भी बोले..राजनीति में गंदगी ही गंदगी है..आंदोलन के लिए मैं ही काफी हूं...वक्त और भूमिका के साथ बदलते चेहरे....हर कोई करता है...विचार बदलते हैं..जगह बदलती है..वक्त बदलता है..भूमिका बदलती है तो चेहरा खुद-ब-खुद बदलता है। जो आपके काम का है..उसके लिए अलग चेहरा...जो आपके लिए बेकार है उसके लिए अलग चेहरा...जब चेहरे से नकाब उतरता है तो असलियत सामने आती है..जीवन में ऐसे कई शख्स हैं जिन्हें पहले आप ईमानदार मानते थे..शालीन मानते थे...भरोसमंद मानते थे...सहयोग करने वाले मानते थे..लेकिन जब वक्त आया तो नया चेहरा देखा..यानि चेहरे बेनकाब होते हैं तो समझ में आता है कि नहीं इसका ये चेहरा असल नहीं..ये आपको तय करना है कि आप सामने वाले का असल चेहरा पढ़ लें..और अपना एक चेहरा कैसे रखें...बाकी फिर.....

(आत्मचिंतन और मंथन करना आसान नहीं..हम सबके लिए समय निकालते हैं लेकिन अपने जीवन की अच्छाईयों और बुराईयों को नहीं टटोलते..कड़वा लगता है लेकिन है दवाई की तरह..उसके बाद जब आप स्वच्छ जीवन जीते हैं तो पहले से ज्यादा सार्थक और सानंद होते हैं..यही प्रयास है..हम अपना अनुभव और सोच बांटें..बहुत ही भावुकता से कह रहा हूं कि तमाम ऐसे दोस्त हमसें जुड़ें हैं जो हमसे ज्यादा कामयाब..अनुभवी...और गंभीर नजर आते हैं...हम चाहते भी हैं कि जो भी पढ़ें..जो भी सोचें..जो भी देखें और अनुभव करें...उसको सार्थकता में कैसे बदलें..अगर शब्दों को भाव मिल जाए तो कहना ही क्या...सभी दोस्तों को साथ चलने के लिए धन्यवाद..)

Tuesday, January 20, 2015

हम करें तो लीला..आप करो तो पाप

दोस्तो..यहां आप भी हैं..आप यानि आम आदमी पार्टी भी है और बीजेपी भी..दिल्ली में जितनी सर्दी है..राजनीतिक पारा उतना ही गर्म..देर रात से आज दिन भर दिल्ली की राजनीति कितनी बदली...कितने लोगों की आस्थाएं बदलीं..अपने पराए हो गए..पराए अपने हो गए...इसे कहते हैं राजनीति.. राज की नीति को कहते थे राजनीति..पर अब हो गई सत्ता नीति...चाहे किरण बेदी हों या अरविंद केजरीवाल..या फिर बीजेपी के दिग्गज..सब उलट-पलट हो गए..एक-दूसरे से कह रहे हैं कि हम लीला कर रहे हैं..आप पाप कर रहे हो...एक-दूसरे की खामियां..एक दूसरे पर तोहमत..हर तरफ घमासान...हम सही है आप गलत...दरअसल कोई भी हो..आप या हम..जीवन बिना राजनीति के नहीं चलता...राजनीति हर जगह अलग-अलग किस्म की हो सकती है..हम अपने भीतर झांकेंगे..अपने रवैए को देखेंगे तो राजनीति की शुरूआत अपने ही परिवार से करते हैं..माता-पिता..भाई-बहन..बेटा-बेटी..पति-पत्नी.दोस्तों..आस-पड़ोस..दफ्तर...हर जगह राजनीति जबर्दस्त है..हम भले ही कहें..कि वो तो अपना है..आप तो हमारे सबसे करीबी हैं..अरे वो तो भाई है..आप तो दोस्त हैं..लेकिन सच ये है कि अपने स्वार्थ के लिए..अपने फायदे के लिए..अपनी मजबूरी के नाते..हम राजनीति खेलते हैं..कदम-कदम पर खेलते हैं और बड़ी ही तरीके से उसे वक्त और हालात के हवाले कर देते हैं...जैसे पीएम की कुर्सी है..सीएम की कुर्सी है..वैसे ही कहीं न कहीं आपकी भी कुर्सी है..ओहदा है...प्रतिस्पर्धा है...आगे बढ़ने की होड़ है..कमाई की ललक है...सम्मान की चाह है..इन सबके के लिए राजनीति जीवन भर चलती है...मानें या न मानें...लेकिन राज-नीति है तो ठीक है लेकिन सत्ता नीति है...तो आप भी ऐसे ही हैं..जैसे किरण बेदी या अरविंद केजरीवाल...दोनों अपने थे..पराए हो गए...दिल्ली की चिंता किसको कितनी है...जो सीएम नहीं बन पाए हैं..या नहीं बन पाएंगे..वो दिल्ली की चिंता कितनी कर रहे हैं या कितनी करेंगे..ये आपको भी पता है....जीवन में दोस्त बदल जाते हैं..विचार बदल जाते हैं..आस्थाएं बदल जाती हैं...वो भी इतनी तेजी से..कभी हम सोच कर देखेंगे तो हम भी अपने जीवन में किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल की भूमिका में नजर आएंगे...बाकी फिर....


Monday, January 19, 2015

fit हैं तो hit हैं...

सोशल मीडिया पर आजकल जुनून छाया हुआ है लाईक और हिट का..कौन कितने हिट ले पा रहा है..किसको कितने लाईक मिल रहे हैं..हर तरफ होड़ है..चाहे वो राजनीतिक हो..सामाजिक हो..फिल्मी हो..खिलाड़ी हो..मीडिया हो या फिर वो..जिसे आजकल हिट होने का शौक चढ़ा हुआ है..इसके लिए लोग किसी भी स्तर पर चले जा रहे हैं..इतना खराब बोलो..कि लोग सुनने को मजबूर हो जाएं..लाईक न करें तो डिस लाईक ही कर दें..कम से कम विख्यात न हों तो कुख्यात ही हो जाएं..लोगों की नजर में तो चढ़ें..कुछ समझ में नहीं आ रहा है तो नंगी तस्वीरों की बदौलत ही नैया पार हो जाए..किसी का चेहरा बिगाड़ दो..किसी के कपड़े उतार दो...देश में सोच की कमी नहीं..ऐसे-ऐसे जोक..ऐसी-ऐसी ही तस्वीरें..ऐसे-ऐसे बयान कि लोग चर्चा किए बिना रह न पाएं....मीडिया भी उसे अपने ऐजेंडे ले ले..कम से कम 24 घंटे तो चैनलों पर छाए रहें...शुरू करना हमारा काम हैं..रायता फैलाने या समेटेने के लिए बाकी जनता जनार्दन खुद ही कूद पड़ेगी। दिन भर छाने के बाद शाम को माफी मांग लेंगे..किस्सा खत्म..अगले कदम के लिए फिर नई सोच के साथ उतरेंगे। कुल मिलाकर हिट होने के लिए कुछ भी करेगा..इस आपाधापी में नौजवान भी पीछे नहीं..खुद को भूल कर..सोशल मीडिया पर 24 घंटे बने हुए हैं..देर रात तक..सो नहीं पा रहे हैं..वक्त पर भोजन नहीं कर पा रहे हैं..कामकाज को भूल जा रहे हैं..पढ़ाई-लिखाई तो बाद में होती रहेगी..खुद की हीरो वाली तस्वीर के कितने लाईक मिले ये ज्यादा महत्वपूर्ण है...सब कुछ पीछे छूटा जा रहा है..वक्त भी....उनका तो समझ में जाता है जो पहले फिट हुए हैं..फिर हिट हुए हैं..लेकिन लोग बिना हिट हुए..हिट की चाहत में दिन-रात घुले जा रहे हैं..पूरी क्षमता...सोच..समय... काबिलियत वाटसअप में उड़ेल दे रहे हैं..फेसबुक पर बिछा रहे हैं..लेकिन फिट नहीं हो रहे हैं..दरअसल हिट को हिट मिलते हैं...तो उन्हें छोड़िए ..खुद को देखिए कि इसमें आप कितने फिट हैं..आप अपने जीवन में कितने फिट हैं...जितनी नींद जरूरी है..उतना जरूर सोईए...जितनी पढ़ाई जरूरी है..उतना जरूर पढ़िए..जितना कामकाज जरूरी है..उतना जरूर करिए..यानि जीवन में पहले फिट हो जाईए..हिट भी हो जाएंगे...नहीं तो जब वक्त निकल जाएगा..तो केवल हिट..लाईक ही गिनते रह जाएंगे...ये ऐसी दौड़ है जिसमें जीतने के बाद भी कुछ हाथ नहीं आएगा..जीवन की बाजी जरूर हार जाएंगे..ये आपको ही तय करना है कि पहले फिट होना है बाद में हिट...बाकी फिर...

Sunday, January 18, 2015

मन की सफाई कौन करेगा?

प्रधानमंत्री जी ने स्वच्छता अभियान चलाया.  बड़े-बड़े दिग्गज जुड़े..या जोड़े गए..साफ-सफाई के लिए फोटो खिंचीं..तस्वीरें छपीं..वीडियो चले और सफाई खत्म हो गई..दरअसल ये सारे लोग महान हैं..इन्होंने भी पीएम की बात को सिर-हाथों पर लिया और पीएम की इच्छा पूरी कर दी..लेकिन इसके बाद क्या हुआ..दरअसल एक कानून होता है..एक अभियान होता है..कानून का पालन अनुशासन और सजा से होता है..जिसमें भय होता है..भय बिन प्रीत न होई..दूसरा अभियान होता है..जैसे अन्ना हजारे का आंदोलन था..अभियान या आंदोलन मन से होता है..दिल से होता है...प्रधानमंत्री जी ने इसे अभियान बनाया..लेकिन नहीं बन पाया..हम अपने घर में रोज सफाई रखते हैं..अपने आसपास भी सफाई की कोशिश करते हैं...लेकिन जिसे हम अपना नहीं मानते..उसकी सफाई करने की जरूरत नहीं समझते। हमारा घर है तो सफाई होगी..सड़क को हम क्यों साफ रखेंगे..जहां से हमें एक बार भी ही गुजरना है...जो लोग जुड़े..वो भी एक संदेश देकर बैठ गए..सफाई एक दिन का संदेश नहीं..जब हमारा मन साफ होगा..तो सफाई भीतर भी होगी..और बाहर भी...दरअसल जब भीतर ही गंदगी होगी तो बाहर हम कैसे साफ रख पाएंगे...दिल्ली और एनसीआर के ही सरकारी दफ्तरों...अस्पतालों..स्कूलों में जाकर कोई देख ले कि वहां कितनी सफाई है..करोड़ों का बजट हर साल बंटता है..बजट साफ हो जाता है लेकिन सफाई नहीं हो पाती...वहीं प्राइवेट दफ्तरों..अस्पतालों..स्कूलों में जाएंगे तो लगेगा कि अस्पताल में नहीं हम किसी किसी फाइव स्टार होटल में हैं..ऐसा क्यों हैं..दरअसल हम भीतर की सफाई की सोच ही नहीं पाएं हैं..यदि मन की सफाई हर मंत्री..सरकारी अफसर-कर्मचारी में हो जाएगी..तो बाहर की सफाई शीशे की तरह चमकने लगेगी..हमारे जो दोस्त सरकारी अफसर या कर्मचारी होंगे..उन्हें शायद बुरा लगे..लेकिन हकीकत है..हजारों में एक-दो ऐसे निकल आएंगे जिनका मन साफ हो..नहीं तो सारे ऐसे हैं जिनके मन में टनों गंदगी भरी है जो चाकू-पिस्तौल लेकर नहीं..अपने पद से न केवल सरकार को बल्कि आम लोगों को लूट रहे हैं..और जेबें भरने की तृष्णा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है..सबसे ज्यादा भ्रष्ट वो हैं जिन्हें भ्रष्ट लोगों को पकड़ना हैं..जब जीवन में ऐसे लोग ही गंदे नालों में लोट रहे हैं तो बाहर अगर कचरा पड़ा भी है तो कितना नुकसान करेगा....बाकी फिर


Saturday, January 17, 2015

don't worry

हमारे जन्म लेते ही चिंता शुरू हो जाती है...और चिता के राख होने तक..इसके बाद सब कुछ खत्म..स्कूल में एडमीशन की चिंता..कोचिंग की चिंता..नंबर की चिंता..कंपटीशन की चिंता..नौकरी की चिंता..शादी की चिंता..बच्चा होने की चिंता..फिर उसकी पढ़ाई की चिंता..ये तो हैं ही..लोग हर रोज कई चिंता पैदा कर करते हैं और अगली सुबह कुछ और चिंता..पानी नहीं भर पाए..मेड काम पर नहीं आई...कोई मेहमान आ रहा है...बच्चे की फीस भरनी है..बिजली,मोबाइल,नेट का बिल भरना है..आदि-आदि...कुछ चिंताएं लगातार बनी रहती हैं..कुछ काम निपट हो जाने के बाद खत्म हो जाती हैं...दरअसल अपने दिल-दिमाग में हम जिसे बोझ बना कर बसा लेते हैं..वहीं चिंता का सबब बनती हैं..जिसमें हमें आनंद आता है..जिसमें हम कोई उलझन और परेशानी नहीं मानते..वो चिंता का कारण नहीं बनती..हर व्यक्ति का एक अलग स्तर होता है और उसी हिसाब से उसके मन में चिंताएं घर बनाती हैं..कुछ लोग होते हैं जो बड़े-बड़े से काम का बोझ अपने सिर पर नहीं रखते हैं..और उसे जीवन का अनिवार्य अंग मानकर उसे पूरा करते हैं..उसमें उत्साह महसूस करते हैं..उसमें आनंद भी उठाते हैं तो बड़ा से बड़ा बोझ भी चिंता में नहीं बदलता। फर्क केवल सोच का है कि हम अपने जीवन के कामकाज को किस ढंग से लेते हैं..नहीं तो सुबह जल्दी उठना..नहाना..और बस-मेट्रो पकड़ना भी चिंता बन जाती है..दफ्तर का कामकाज तो ज्यादातर बोझ मानकर करते हैं..बोझ की जितनी गठरियां अपने दिमाग पर लेकर चलेंगे..चिंता से दुबले होते चले जाएंगे..बीमार होते जाएंगे..तनाव और ब्लड प्रेशर साथ में ढोएंगे..दरअसल जीवन जीने को सरल बनाना है तो वक्त के पाबंद बनिए...कामकाज में उत्साह पैदा करिए और कठिन से कठिन काम को अंजाम देने में सोचने या डरने के बजाए..उसे निपटाने की तरकीब या मेहनत करिए तो चिंताओं से पीछा छूटेगा..जब-जब चिंता घेरेगी..काम सलीके से नहीं होगा..देर से होगा और मुश्किल भी होता जाएगा। जब तक जीवन हैं..मशक्कत चलती रहेगी चाहे वो आर्थिक हो..सामाजिक हो..पारिवारिक हो या व्यक्तिगत हो..अगर उससे दो-दो हाथ करेंगे तो ज्यादा मजा आएगा..चिंता का बोझ लादेंगे..तो जीवन बोझ से दब जाएगा.खुद को कष्ट देंगे..और अपने साथ वालों को....बाकी फिर....

Friday, January 16, 2015

ताली एक हाथ से नहीं बजती

कभी सोचा है कि आपको कोई क्यों नुकसान पहुंचा रहा है..क्यों आपके खिलाफ साजिश रची जा रही है..कोई आपके खिलाफ झूठा प्रचार कर रहा है..क्यों आपके खिलाफ अफवाह फैला रहा है..कहीं न कहीं उसमें कुछ न कुछ हमारा दोष भी है...इस संसार में भांति-भांति के लोग है..कोई किसी को काटकर आगे बढ़ना चाहता है..कोई झूठ के सहारे बढ़ना चाहता है..कोई अपनी गलतियों को छिपाना चाहता है..और यदि आप उसके सामने होते हो..आपकी जानकारी में कोई गलत करता है...किसी को आपसे जलन होती है..तो आपको जरूर नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा। कहते हैं कि ताली एक हाथ से नहीं बजती..और दोनों हाथ जितनी ताकत से टकराते हैं..ताली की आवाज उतनी ही तेजी से गूंजती है..उसका असर ज्यादा दूर तक होता है..ज्यादा लोगों तक ये ध्वनि पहुंचती है। यदि हम कोशिश करें कि जबरन किसी के काम में टांग न अड़ाएं..किसी को बेवजह परेशान न करें..साजिश-षडयंत्र करते हैं तो और भी बुरा है...जब आप क्रिया नहीं करते हैं तो प्रतिक्रिया नहीं होती है। जब आप एक हाथ उठाते हो..तो एक हाथ आप पर भी उठता है..आपके सामने भी उठ सकता है..पीठे पीछे भी आप पर वार हो सकता है..कई बार तो आपको पता नहीं चलेगा कि कब आपके खिलाफ षडयंत्र रचा गया और आप धराशायी हो गए। यदि आप अपने काम से मतलब रखते हैं..अपने व्यवहार पर नियंत्रण रखते हैं..दूसरों के कंधे पर रख कर बंदूक नहीं चलते हैं..जो कहते हैं स्पष्ट करते हैं..ताल से ताल मिलाते हैं..अपने ही सुर में नहीं चलते हैं तो लोगों के चहेते बनते हैं..अपने जीवन में लोकतंत्र का पालन करते हैं..लोगों की सुनते हैं..राय-मशविरा करते हैं..समझाने की कोशिश करते हैं तो ताली सुर में बजती है..और उसकी ध्वनि आपके जीवन को आनंदमय करती है लेकिन अपनी ही धुन में हाथ मारते हैं तो सामने वाले के हाथ से हाथ नहीं टकराएगा बल्कि जीवन में टकराव पैदा होगा..साफ है कि ताली दोनों हाथों से बजती है तालमेल से बजती है..एक-दूसरे के हाथ की रजामंदी से बजती है और वो आपके जीवन को ऊंचाईयों पर ले जाती है...बाकी फिर......

Thursday, January 15, 2015

सुनो,गुनो और चुनो

जो भी आवाज हमारे कानों तक पहुंचती है..हम उसे सुनते हैं..जो संवाद हमसे है..उसे तो सुनते ही है जो आवाज हमारे आसपास गूंज रही है..वो भी हम सुनते हैं...हम जो भी सुनते हैं..वो कच्चे माल की तरह है..उसमें से कुछ अच्छा हो सकता है..कुछ खराब..हो सकता है पूरी बात ही खराब हो..हो सकता है पूरी बात ही अच्छी हो...पूरी ध्वनि हमारे भीतर जाती है..कोई पूरी बस जाती है..तो कोई पल भर में हम भूल जाते हैं...हम सुनते सबकी हैं...ध्वनि के मन तक छूने के बाद होता है आत्म मंथन...जो हमारे लायक है..हम ग्रहण कर लेते हैं..बाकी को भुला देते हैं...छोटा बच्चा हो..या फिर कोई बड़ा व्यक्ति...प्रवचन देने वाला हो या फिर राजनीतिक..सामाजिक हो या सांस्कृतिक..हम सुनते हैं..पढ़ते हैं...देखते हैं..और फिर हमारा मन उसे मथता है..समुद्र मंथन की तरह जो सार निकलता है..जो अच्छा होता है..जो काम का होता है..उसे हम चुनते हैं और आत्मसात कर लेते हैं..और फिर उसका उपयोग करते हैं...कहने का मतलब है कि पहले सुनो...फिर उसे मन में गुनो..और फिर चुनो...इन तीनों में तालमेल होना बहुत जरूरी है..यदि हम किसी की नहीं सुनते...केवल हम अपनी कहते हैं तो हम जहां है..वहीं ठहर जाएंगे और आपके भीतर जो क्षमता है..वो धीरे-धीरे खत्म होती जाएगी...सीखने की प्रक्रिया जीवन भर जारी रहती है तो हम लगातार आगे बढ़ते रहते हैं। एक तो वो शख्स है जो किसी के नहीं सुनते..दूसरे वो शख्स होते हैं जो केवल सुनते हैं और उसी पर अमल करते..यानि उसे गुनते नहीं और चुनते नहीं...तीसरे वो शख्स होते हैं जो सुनते हैं..गुनते हैं लेकिन चुन नहीं पाते...और यदि चुनते भी हैं तो उसे दूसरों तक नहीं पहुंचाते। जो इन तीनों में संतुलन बनाए रखते हैं..उनका व्यक्तित्व निखरता जाता है। कोई बड़ा नहीं होता..कोई छोटा नहीं होता..ये सब हम बनाते हैं..उसके व्यक्तित्व के आधार पर....बाकी फिर...

( साथियो जो हमारे भीतर है वो आपके नहीं..जो आपके भीतर है वो हमारे नहीं..लंबे अरसे तक लेखनी से दूर रहने के बाद नए साल में अचानक लिखने का विचार आया..जीवन में जो देखा है..समझा है..महसूस किया है...सोचा कुछ आत्ममंथन कर लिया जाए..इसे न तो प्रवचन समझे..न ज्ञान गंगा..ये मेरे लिए भी है आपके लिए भी...सोशल साइट पर तमाम टाइम पास की जगह अगर दो मिनट हम अपना आत्म मंथन कर लें तो शायद अगला दिन बेहतर हो....हम दूसरों के बजाए पहले खुद में झांकें..तो शायद हम अपना भी भला करें.और दूसरों का भी.. )


Wednesday, January 14, 2015

खुद की गिरेबां में झांक कर तो देखो...

प्रधानमंत्री ठीक नहीं कर रहे हैं..सीएम खाली बोल रहा है...मंत्री अपनी जेबें भरने में लगे हैं..अफसर चांदी काट कर रहे हैं..हमारा सीनियर खूब फायदा कमा रहा है..अरे वो तो नाकारा है..वो तो चापलूस है..वो किसी काम नहीं...उससे तो बात करना बेकार है..उसका कुछ नहीं हो सकता...लंबी लिस्ट है जो हम दिन भर में कई बार बोलते हैं और भूल जाते हैं...किसी के बारे में आकलन करना हो तो हमसे अच्छा समीक्षक नहीं सकता..पीएम से लेकर सीएम तक..फिल्मी हस्ती हो..या क्रिकेटर..उद्योगपति हो या समाजसेवी..अपने दफ्तर..अपने पड़ोस..अपने दोस्तों..जिन्हें हम जानते भर हैं..उनके जीवन का सत्यानाश करने में हमें चंद मिनट नहीं लगते..ये बात अलग है कि हजारों-लाखों आलोचकों के बीच आगे बढ़ने वाले..आगे बढ़ते जाते हैं...लेकिन हम कभी अपनी गिरेबां में झांकने का कष्ट नहीं करते..हम जहां भी हैं..जिस स्तर पर हैं..जो मान-सम्मान है..जो हैसियत हैं उसके लिए हम ही तो जिम्मेदार हैं...चंद मिनट निकालकर खुद की आलोचना करने की हिम्मत तो जुटाएं..सोचें..कि हममें ऐसी कौन सी खूबियां हैं जिनकी बदौलत हम यहां पहुंचे हैं..या हमारी कौन सी ऐसी खामियां हैं जिनकी बदौलत हम इतने नीचे गिरे हैं...हर कामयाबी में हमारी सोच..व्यवहार..काबिलियत...का हिस्सा है तो जहां हम चोट खाए हैं..जहां हमारा मान-सम्मान गिरा है..उनके भीतर रहते हमें नुकसान उठाना पड़ा है..जो लोग अपने पाजिटिव को आगे ले जाते हैं..वो आगे बढ़ते जाते हैं जो निगेटिव को साथ लेकर चलते हैं..उतने ही पीछे होते जाते हैं...बदमाश होते हैं उनका दिमाग कम नहीं चलता..चोरी करने के लिए भी कई शातिर कदम उठाने पड़ते हैं..चंबल के डाकुओं को भी बहुत संघर्ष करना पड़ा तब कहीं जाकर वो कुख्यात हुए..साफ है कि कुख्यात हो या विख्यात..दोनों के लिए मशक्कत बराबर की है..अब हमें तय करना है कि हम किस रास्ते पर चलें...कभी-कभी जब भी फुर्सत के दो पल हों..अकेले में मंथन करेंगे तो पता चल जाएगा कि
आखिर क्या है जो हमें आगे बढ़ने नहीं दे रहा..या फिर हममें ऐसा क्या है जो हमें इस स्थान पर ले आया है..जिंदगी का यही फलसफा है...बाकी फिर.....

Tuesday, January 13, 2015

गिरगिट की तरह रंग न बदलो

गिरगिट अपने दुश्मन से बचने के लिए पलक झपकते ही रंग बदल लेता है वो भी ऐसा कि जिस रंग में हो वैसा ही नजर आए...इस श्रेणी में कौन आता है..जो अपने फायदे के लिए अपने दुश्मन के भी पैर पकड़ ले..अपने विरोधी को भी गले लगा ले..और जिससे काम निकल चुका है.. या फिर जो काम का नहीं रहा..उसे लात मार दे..या फिर नए आका के साथ मिलकर पुराने को पटखनी के लिए पहलवानी शुरू कर दे। दरअसल हमारा लालच हम पर इतना हावी हो चुका है कि हम थोड़े से फायदे के लिए किसी को भारी नुकसान पहुंचाने से नहीं चूकते। जीवन के इस संघर्ष में बहुत थोड़े ही कम लोग बचे हैं जिनकी रीढ़ की हड्डी बची हो..जो सामने भी दोस्त मानते हों..और पीठ पीछे भी..नहीं तो सुबह से लेकर रात तक हम एक संस्थान और एक व्यक्ति के बारे में दस अलग-अलग राय बनाते हैं..कभी उसे महान बताते हैं तो कभी गिरा हुआ...हम ये भी नहीं देखते हैं कि कल फिर हमें अपना स्टेटमेंट बदलना पड़ सकता है..दरअसल जमाना इंस्टेंट का है दो मिनट में नूडल्स बनते हैं इसी तरह दो मिनट में राय भी बनती-बिगड़ती है..यदि आपका काम कर दिया..आपको सपोर्ट कर दिया तो दुनिया में उससे भला कोई आदमी नहीं...नहीं किया तो उससे निकृष्ट भी कोई नहीं...एक तो लालच..दूसरा डर..तीसरा मजबूरी...लाखों में एक-दो ही होंगे जिनकी इतने खराब हालात हों कि उनकी मजबूरी हो..नहीं तो ये शब्द हम खुद अपने भीतर से तैयार करते हैं और इन्हें ही जीवन ढोने की वैशाखी बना लेते हैं...यदि हम उसकी न मानें तो क्या करें..वो मुझे ये कर देगा..वो कर देगा..अगर उसके कहने पर दिन को रात नहीं कहेंगे तो हमारा नुकसान हो जाएगा..अरे भाई..आगे बढ़ना है तो इतना तो चलता है..थोड़ी-बहुत चापलूसी कर भी दी..तो हमारे पिता जी का क्या गया..अपना तो फायदा कर देगा..बाकी तो बता कि वो भी कितना...हरा....है..लेकिन एक बात तय है कि आप जितना रंग बदलते हो..खुद की नजरों में लगातार गिरते जाते हो...आपका खुद का वजूद खोखला नजर आता है...जिसके पीछे बिना सोचे-समझे चलते हो..वजूद उसका नजर आता है..भले ही ऊपर से आप साफ-सुथरे..सूट-बूट में नजर आते हैं लेकिन लोगों के दिल-दिमाग में आप बदबू छोड़ते हो...जो आपका नाम है..आपको उसी से पहचाना जाना है.. या फिर गिरगिट का खोल पहनना है..ये आपको तय करना है...बाकी फिर......


Monday, January 12, 2015

अकेले आए हो..अकेले जाना है

जीवन में अकेले आए हो..अकेले जाओगे..न किसी ने साथ दिया है न ही देगा..हो सकता है आपको बात कुछ समझ में न आ रही हो..लेकिन ये जिंदगी का कड़वा सच है। बच्चे को पढ़ाने-लिखाने के बाद जैसे ही वो नौकरी पर जाता है और उसकी शादी हो जाती है..यानि वो खुद अपना परिवार बनाता है..समझ लो कि आपका काम खत्म हो गया..चाहे लड़का हो लड़की..खुद की फैमिली यूनिट बनने के बाद उसे अपनी चिंता होती है...और यदि उसे आपकी चिंता भी होती है तो कुछ नहीं कर सकती। हजारों में दो-चार शायद ऐसे हों जो आजकल की आपाधापी में अपने मां-बाप का साथ दे रहे हों..नहीं तो सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर उसका खुद का परिवार है..मोबाइल..नेट पर हाय-हैलो होती है..सुख-दुख पूछे जाते हैं..साल-दो साल में मेल-मुलाकात भी होती है..बिलकुल मेहमानों की तरह..खाना-पीना..गपशप..और हफ्ते भर के बाद आप जीवन अकेले जीते हो..और आपका बेटा-बेटी अपनी दुनिया में खो जाते हैं। आपने बेटे-बेटी की भले ही रोज चिंता करें..अपने माता-पिता की चिंता करें..लेकिन ये कड़वा सच है कि हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। सब कुछ अच्छा होने के बाद भी सबकी अपनी-अपनी जिम्मेदारी हैं..और उनसे पार पाना आसान नहीं...ज्यादा होगा तो आर्थिक मदद एक-दूसरे की कर देंगे..लेकिन रोज की जूझती जिंदगी में हर पल आपको ही जीना-मरना है। परिवार तक तो फिर भी गनीमत है..जो नाते-रिश्तेदार हैं..दोस्त..जान-पहचान वाले हैं..उनसे मोह पाला..या फिर कुछ पाने की इच्छा की तो समझ लो बड़ी भूल कर रहे हो..एक-दो ही दोस्त जीवन में ऐसे में होते हैं..जो आपके सुख-दुख में शामिल हो जाते हैं..जबकि वो आपके करीब हों......कहने का मतलब साफ है कि खुद पर भरोसा रखो..खुद निर्णय लेने की क्षमता रखो..दुख भोगने का साहस रखो...एकला चलो रे...यानि आगे बढ़ना है तो किसी के कंधे के इस्तेमाल की जरूरत न समझो...एक वक्त आएगा..खासकर बुढ़ापा..तो सब कुछ शीशे की तरह साफ हो जाएगा..कि वक्त के साथ जीवन कितना बदल गया। जब तक आपकी की किसी को जरूरत है आपके करीब है..जब आपको जरूरत है तो वो पकड़ में नहीं आएगा...रोज दुआ सलाम करने वाला भी आपसे नजर फेर कर चला जाएगा। ओहदा होगा..मधुमक्खी की तरह लोग आपसे चिपकने लगे हैं..पैसा होगा तो चापलूसों का अंबार लग जाएगा..ताकत होगी..लोग डर के मारे आपकी खिदमत में जुट जाएंगे..जब कुछ नहीं होगा तो गधे के सिर से सींग की तरह लोग गायब हो जाएंगे..इसलिए जो करना है खुद करना है..जीवन की लड़ाई अकेले लड़ने के लिए तैयार रहो...उत्साह के साथ...जूझने की क्षमता के साथ..जीवन सुधर जाएगा...बाकी फिर.......


Saturday, January 10, 2015

समय लौटकर नहीं आता

जीवन में हर पल हम समय गंवाते जा रहे हैं..इसलिए समय की महिमा हमें समझनी होगी..वक्त लौटकर नहीं आता...पता नहीं हमें कब तक जीना है लेकिन जब तक जीना है..आनंद से जीना है रो-रो कर नहीं...यदि हम वक्त की कीमत समझते हैं तो हम जीवन का पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं और उसे बेहतर बना सकते हैं। हर पल महत्वपूर्ण है जितना वक्त हम फालतू गंवाएंगे..उतना ही हम पीछे होते जाएंगे...जो भी काम करना है उसे अगर वक्त पर करते हैं तो हम उसे सफलतापूर्वक कर लेते हैं और लेट होने के कितने नुकसान हैं..उससे हम हर दिन रुबरू होते रहते हैं। जो सोने का वक्त है..जो खाने का वक्त है..जो पढ़ाई का वक्त है..जो फेसबुक-ट्विटर का वक्त है उसी वक्त उसका उपयोग करें तो बेहतर..यहां भी अगर संतुलन गड़बड़ाएगा तो दिक्कत होगी। कई लोग दिन भर सोशल साइट पर रहते हैं..यदि उस पर वो रचनात्मक काम कर रहे हैं तो ठीक हैं लेकिन फालतू समय गंवा रहे हैं..तो आपका जो मूल काम है..वो पीछे छूट जाएगा। कहते हैं कि वक्त से पहले कुछ नहीं मिलता..तो वक्त के बाद भी कुछ नहीं मिलता...यदि आप रात भर जागेंगे तो अगली दिनचर्या बिगड़ जाएगी। टाइम मैनेजमेंट से बड़े-बड़े से काम आसान होते हैं और तय वक्त पर होते हैं..सफलतापूर्वक होते हैं। सुबह से लेकर रात तक अगर आप एक सिस्टम में चलते हैं..समय पर भोजन..समय पर सोना..समय पर कामकाज..समय पर मनोरंजन..तो जीवन को तेजी से आगे ले जाएंगे..यदि वक्त के पाबंद नहीं तो...जीवन का सदुपयोग कम कर पाएंगे। एक काम में देरी से हर काम देरी से होगा..हड़बड़ाहट में होगा..बेहतर नहीं होगा....इसीलिए कहते हैं कि समय लौटकर नहीं आता..चलिए समय के साथ...बाकी फिर.....

जीवन किसके लिए?

हर रोज आप किसी को भी ये कहते हुए सुनते हैं कि जीवन किसके लिए जी रहे हैं..बच्चों के लिए..परिवार के लिए...ये कतई सच नहीं...जीवन आप अपने लिए जी रहे हैं...जरा सोचिए..मनन कीजिए...सुबह से लेकर देर रात तक कमाने और नाम के चक्कर में आपको फुर्सत नहीं पत्नी और बच्चों के लिए...आज की आपाधापी में आधे से ज्यादा पति-पत्नी दोनों कमाने में जुटे हैं..जिन्हें दस हजार मिल रहे हैं..वो कहते हैं इतने में खर्च नहीं चलता..बच्चे का जीवन बनाना है..कम से कम बीस हजार मिल जाए तो कुछ काम बने..जो एक लाख कमा रहे हैं..वो भी कहते हैं कि किस लिए कमा रहे..बच्चों के लिए...कमाई में कोई हर्ज नहीं..जितना कमाएं..उतना अच्छा..लेकिन कभी हम ये नहीं सोचते..कि जिस बच्चे के लिए हम कमा रहे..उसके लिए धन की कमाई तो कर रहे हैं..लेकिन उसकी परवरिश में कितना वक्त दे रहे..उसकी परवरिश आप नहीं कर रहे..बल्कि आपके यहां काम कर रही मेड कर रही है। हो सकता है कुछ लोगों को बुरा लगे..लेकिन ये कड़वा सच है। कभी ये सोचा कि उस बच्चे की पढ़ाई में हमने कितना ध्यान दिया..कभी ये सोचा कि हमने उसके सुख-दुख में कितना वक्त दिया..कभी हमने सोचा कि उसके साथ कोई खेल खेले..उसके साथ कितना हंसी-मजाक किया। कभी ये सोचा कि हमने उसे कितने संस्कार दिए। आप कहेंगे कि उसके लिए ही तो करने में जुटे हैं तो उसे कितना वक्त देंगे। बच्चों के नाम पर आप दूसरों को धोखा दे रहे हैं और सबसे ज्यादा खुद को धोखा दे रहे हैं..दरअसल आपको खुद के स्टेटस की चिंता है..खुद के आर्थिक स्थिति की चिंता है। खुद के नाम और शोहरत की चिंता है। आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारी जितनी बड़ी हैसियत होगी..जितना बड़ा नाम होगा..बच्चे भी उसका लाभ उठाएंगे...हैसियत, नाम, कमाई किसी में भी बुराई नहीं..बुराई है तो असंतुलन खो देने में...बच्चें हो या पत्नी...माता-पिता हों भाई-बहन..जीवन में अगर केवल आपाधापी में ही लगे रहे..अपनों का ख्याल न रख पाए तो सब बेकार..जीवन दर्शन यही है कि रात जब गहराती है तो सोना जरूरी है...जब घर में कष्ट है तो साथ देना जरूरी है..जब बच्चे को आपकी जरूरत है तो करोड़ों का कोई मोल नहीं...जैसे सुबह नाशता, दोपहर लंच और रात डिनर का वक्त तय है..ऐसे ही जीवन के अलग-अलग पढ़ाव और वक्त में जो संतुलन है उसे बनाये रखना जरूरी है। जीयो और जीने दो..ये हम दूसरों से कहते हैं..और अपने हम से कहते हैं..इसीलिए जीयो और आनंद के साथ जीयो..खुद को या परिवार को कष्ट देकर नहीं...बाकी फिर.....

Friday, January 9, 2015

सेहत है तो जीवन है

आप कितनी ही धन-दौलत कमा लें..कितने ही बड़े आदमी बन जाएं..कितना ही जलवा कायम कर लें..लेकिन स्वस्थ नहीं तो सब बेकार है..जीवन की आपाधापी में...अपनी सेहत से खिलवाड़ न करें...इससे बड़ी पूंजी कोई नहीं...ये आपके लिए ही नहीं आपके परिवार के लिए भी जरूरी है..यदि आप या आपके परिवार में एक भी अस्वस्थ व्यक्ति है तो आप जीवन का आनंद नहीं उठा सकते..लेकिन जीवन का कड़वा सच ये भी है कि हजारों कमाने के चक्कर में हम लाखों की सेहत गंवा बैठते हैं। ब्लड प्रैशर, डायबिटीज, थायराइड..एसिडिटी जैसी बीमारी तो हम फैशन की तरह ओढ़ कर चल रहे हैं। सौ में से एक-दो शख्स यदि ऐसे निकल आएं जो इनसे दूर हों तो वे बहुत ही सौभाग्यशाली होंगे।
 न तो समय पर सोना..न तो समय पर खाना.. हर पल तनाव..चाहे दफ्तर का हो..घर का हो..बच्चे का हो..अपने सीनियर का हो..आस-पड़ोस का हो...नाते-रिश्तेदार का हो...और इस तनाव के चक्कर में हम दफ्तर के बाद यदि किसी के चक्कर लगाते हैं तो अस्पताल का...जहां आप एक रुपए भी मोलभाव नहीं करते...फल या सब्जी को पांच-दस रुपए कम करने में हम पूरी ताकत लगा देते हैं और समय बर्बाद कर देते हैं लेकिन इलाज के नाम पर मांगी गई फीस..हजारों की जांच और बिल में एक रुपए कम करने की हिम्मत नहीं जुटा सकते। पांच-दस हजार का बिल चुपचाप अदा कर आ जाते हैं लेकिन सेहत के लिए खान-पान के लिए एक-दो रुपए का मोह अपना लेते हैं। आप भले ही अरबपति हों..अगर डायबिटीज है तो जीवन भर मनपसंद खान-पान को छोड़ना पड़ेगा...नींद नहीं आती तो गोलियां पर गोलियां बढ़ानी पड़ेगी...डाक्टर के लिए कई घंटों का इंतजार कर सकते हैं लेकिन व्यायाम या घूमने के लिए 15 मिनट का समय हमारे पास नहीं रहता। जिंदगी में जब मजबूरी आती है तो आप हर कुछ करने को तैयार रहते हैं..दवाब पड़ता है तो दफ्तर में कई घंटे तक रुक सकते हैं लेकिन खुद के जीवन के लिए 5-10 मिनट निकालने में मुश्किल समझते हैं।
हर शख्स अपने ताकत बताने के लिए इससे पीछे नहीं हटता कि मेरे पास इतने मकान हैं..इतनी जमीन है..इतना बैंक बैलेंस हैं...सोना-चांदी हैं लेकिन ये नहीं सोचता कि इसके पीछे आपने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी है...किसी को नहीं मालूम कि वो कितने दिन तक जीएगा..और सारी माया यहीं रह जाएगी..इसलिए जीवन में उतना  कमाओ..जितना जरूरी है..और उस माया-मोह को जी भी लो..आनंद उठा भी लो..नहीं तो कमाते रह जाओगे..और आखिर में लोग यही कहेंगे..कि जीवन भर लगा रहा लेकिन सुकून के दो पल उसे नहीं मिल पाए। जीवन में अर्थ जरूरी है तो जीवन का अर्थ जानना भी जरूरी है। कमाने के चक्कर में पति-पत्नी कई दिनों बाद कुछ पल साथ बिता पाएं..बच्चे भले ही विलासिता का जीवन जी रहे हैं लेकिन माता-पिता के साथ अपने सुख-दुख न बांट पाएं तो कोई फायदा नहीं...जीवन दर्शन यही है कि कमाओ तो उसका लुत्फ भी लो..यदि सेहत है तो जीवन आसान होगा..ज्यादा आनंद आएगा..और उससे भी आपका खर्च बचेगा। हो सकता है कि ये पढ़कर डाक्टर बुरा माने..लेकिन सेहत का पहला पाठ तो वो ही लोगों को पढ़ाते हैं..और उसके बाद भी लोग नहीं मानते हैं तो उन्हीं से अपने महल तैयार करते हैं..इसलिए ये तय कर लें..कि सेहत ही जीवन है....बाकी फिर...


Thursday, January 8, 2015

तोल-मोल के बोल

जीवन में बोली मीठी तो होनी ही चाहिए..शब्दों का चयन कैसा हो..ये भी काफी मायने रखता है..जैसे बंदूक से निकली गोली वापस नहीं आती..वैसे ही शब्द वापस नहीं आते..एक बार जो लिख दिया..वो कभी मिट नहीं सकता..ऐसे ही आपने जो बोला है..वो दूसरे के दिमाग में ऐसा छपता है कि पूरी जिंदगी नहीं मिटता..इसीलिए कहते हैं कि तोल-मोल के बोल...हर शब्द की अपनी ताकत है..अपना संदेश है और मारक क्षमता है...अक्सर कई लोगों के लिए कहा जाता है..अरे..उससे क्या बात करना..खराब ही बोलेगा..फालतू है....बकवास करता है..ऐसे लोगों के सामने जाने से लोग कतराते हैं...और जिसकी बोली अच्छी है..उसका लोग बोलने से पहले ही इंतजार करने लगते हैं..अटल जी की संवाद शैली एक उदाहरण हैं...और भी दूसरे उदाहरण हैं जैसे..मायावती...लालू प्रसाद यादव...उमाभारती..दिग्विजय सिंह...निरंजन ज्योति..याकूब मोहम्मद कुरैशी...ऋतभरा...प्रवीण तोगड़िया..आचार्य धर्मेंद्र..आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि आप इनकी बोली..इनके शब्दों के चयन को किस स्तर पर रखते हैं...किस अंदाज में लेते हैं...और इनके कहे कौन-कौन से शब्द अपने दिमाग में रखे रहते हैं...रोजमर्रा के जीवन में हम हजारों शब्दों का आदान-प्रदान करते हैं...और उनमें से ज्यादातर को भूल जाते हैं लेकिन कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो जीवन भर नहीं भूलते...चाहे वो नजदीकी हो या आप उसे जानते भी न हो..शब्द आपको किसी से दूर ले जाते हैं और किसी को बिलकुल नजदीक ले आते हैं। शब्द ही आपकी बोली की गोली है जो दनादन निकलती है और दूसरे के दिमाग में आपके व्यक्तित्व की छाप छोड़ते जाते हैं..पाजिटिव या निगेटिव...इसीलिए कहते हैं कि जब भी बोल..तोल-मोल के बोल..बाकी फिर.....

Wednesday, January 7, 2015

बोली और गोली


गोली तो एक बार में जीवन को खत्म कर देती है..बोली जीवन भर एक-दूसरे को आगे बढ़ाती है या फिर नष्ट करती रहती है। हम जैसा बोते हैं..वैसा काटते हैं..वैसे ही जैसा बोलते हैं..हमें वैसा ही रिटर्न मिलता है। सोच-समझकर बोलते हैं तो जीवन को बेहतर ढंग से आगे बढ़ाते हैं..कुछ भी बोलते हैं..न तो समय देखते हैं..न तो जगह देखते हैं..न तो व्यक्ति देखते हैं बस अपनी धुन में बोलते हैं न ही शब्दों की कीमत और ताकत समझते हैं तो हम जीवन के ऐसे हथियार का दुरुपयोग कर रहे हैं जो आपके जीवन का कष्ट और बढ़ा रहा है और यदि बोली को हम ताकतवर और सार्थक बनाते हैं हम अपने जीवन के साथ ही दूसरों के जीवन को बेहतर बनाते हैं...घर हो या बाहर...दफ्तर हो या दोस्त...या फिर सार्वजनिक स्थल..आपकी बोली..आपके बारे में राय बनाती है। नवजात शिशु भी बोली के मन से समझता है..आपकी जैसी बोली होती है..आपको वैसी ही प्रतिक्रिया मिलती है। खराब बोलते हैं तो अपने जीवन को नरक बनाते हो...बने हुए काम को बिगाड़ देते हैं..बच्चों की जिंदगी में कड़वाहट घोल देते हो..उनके उत्साह को धीमा कर देते हैं..दफ्तर में अपने सहयोगियों की कार्य क्षमता को घटा देते हो..कुछ पल के लिए आप खुद को भले ही शाबासी दे लो कि आज मैंने उसे डांट-डपट कर निपटा दिया लेकिन वही व्यक्ति जीवन भर मन में जख्म पालकर आपको या आपके कामकाज को कितना नुकसान पहुंचा रहा है ये आप हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते। इसलिए जब भी बोलें तोलमोल कर बोलें..तो शायद जीवन बेहतर हो..बाकी फिर....


जीयो और जीने दो