नागालैंड के दीमापुर में एक रेपिस्ट को दस हजार की भीड़ जेल से निकालती है...पूरे शहर में कपड़े उतारकर जुलूस निकालती है और पीट-पीट कर सरेआम चौराहे पर फांसी पर लटका देती है...अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये सही है..सरकार ने तीन पुलिस अफसरों को सस्पेंड कर दिया...जांच के आदेश दे दिए गए हैं...सांप्रदायिक हिंसा की आशंका बनी हुई है..केंद्र भी चिंतित है..तमाम अपडेट मीडिया में लगातार आ रहे हैं..और आते रहेंगे।
ये पहली घटना नहीं है..नागपुर में एक बदमाश मोहल्ले में आकर लड़कियों से छेड़खानी करता था...पुलिस-प्रशासन के तो नाक-कान-आंख बंद ही रहते हैं...मोहल्ले की महिलाओं ने एक दिन तय किया..जैसे ही बदमाश आया..लाठियों से पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी। मध्यप्रदेश के एक शहर में पुलिस ने ऐसे कुख्यात बदमाश को मार-मार कर अधमरा कर दिया..जो दर्जनों हत्या का आरोपी था..पुलिस कई सालों में नहीं खोज पाई थी..जनता ने खुद न्याय कर पुलिस को सौंप दिया।
ये वो घटनाएं हैं जो साबित करती हैं कि हम आटो मोड पर हैं..एक तो ये है कि जो हो रहा है..उसे सहते रहो..और तिल-तिल कर मर जाओ...या फिर उसका जवाब दो..तय आपको ही करना है कि क्या किया जाए..क्या नहीं..कोई न तो बताने आ रहा है और न ही रोकने आ रहा है। पुलिस दोनों में राजी है...अगर कोई रेप करता है तो कोई बात नहीं...करने के बाद अगर ज्यादा होगा तो जेल में डाल देंगे...पब्लिक अगर खुद बदला लेती है तो ले ले..कोई परेशानी नहीं...उसके बाद बदला लेने पर कार्रवाई कर देगी।
दीमापुर में रेपिस्ट को जेल से निकालने और मारने में करीब 10 हजार लोगों ने हिस्सा लिया और इनमें ज्यादातर वो स्कूली छात्राएं थीं जिनका हिंसा से कोई सरोकार नहीं। हम हमेशा कहते हैं कि गुस्सा नुकसान करता है..हिंसा ठीक नहीं..लेकिन आप इस घटना को क्या कहेंगे...लोगों की टिप्पणियां पढ़ रहा था सभी में उस रेपिस्ट के लिए गुस्सा झलक रहा था..दरअसल पूरा देश ही आटो मोड पर है...जो करना है आपको ही करना है..
जब दिल्ली में निर्भया कांड होता है तो हजारों की भीड़ विरोध में उमड़ उठती है. और जब भीड़ उमड़ती है तो सरकार-प्रशासन की आंख खुलती है..संसद में चिंतन होता है.नए कानून बनाने की कवायद होती है..दीमापुर में भी यही हुआ...सरकार कहती है कि जनता जनार्दन है...आपकी सरकार है..आपके लिए हैं..अगर जनता फैसला करती है तो दिक्कत क्या है..उसने फैसला ले लिया..निलंबित अफसर कह रहे हैं कि स्कूली छात्राएं ये सब कर रही थीं..यदि उस वक्त पुलिस कोई कदम उठाती तो कई की जानें जा सकती थीं...दरअसल उन पुलिस वालों में भी ऐसे लोग होंगे..जो ऐसा ही न्याय चाहते होंगे..हम इंसान पहले हैं..माता-पिता पहले हैं..उसके बाद हम कहीं के अफसर हैं या फिर कर्मचारी हैं..दिल्ली में एक लड़की से कैब का ड्राइवर अत्याचार करता है..स्कूल बस में ड्राइवर मासूमों के साथ खिलवाड़ करते हैं..तो फिर किसका खून नहीं खौलेगा..अगर किसी का खून फिर भी जमा रहता है तो वो जी ही क्यों रहा...
सरकार भी यही चाहती है..प्रशासन भी यही चाहता है..जब कोई शख्स शिकायत करने जाता है तो उसे ही डांट-फटकार कर भगा दिया जाता है..जब भीड़ जाकर बवाल करती है तो पुलिस अफसर उनकी डांट भी खाते हैं और उनसे हाथ भी जोड़ते हैं...ये हमारा ही देश है जहां एक रेपिस्ट को सबक सिखाने के लिए हजारों की भीड़ को उतरना पड़ता है...अगर रेपिस्ट गलत था तो भीड़ भी सही थी और अगर रेपिस्ट सही था तो भीड़ गलत थी...सरकार तय कर ले कि उसे किस साइड रहना है..कानून के ढकोसले तो आजादी के बाद से चले आ रहे हैं..मानने वाले मानते हैं और परेशान होते हैं जो नहीं मानते..उनसे भी सरकार को कोई परेशानी नहीं...दरअसल सरकार भी आटो मोड पर है और हम भी...बाकी फिर.....
ये पहली घटना नहीं है..नागपुर में एक बदमाश मोहल्ले में आकर लड़कियों से छेड़खानी करता था...पुलिस-प्रशासन के तो नाक-कान-आंख बंद ही रहते हैं...मोहल्ले की महिलाओं ने एक दिन तय किया..जैसे ही बदमाश आया..लाठियों से पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी। मध्यप्रदेश के एक शहर में पुलिस ने ऐसे कुख्यात बदमाश को मार-मार कर अधमरा कर दिया..जो दर्जनों हत्या का आरोपी था..पुलिस कई सालों में नहीं खोज पाई थी..जनता ने खुद न्याय कर पुलिस को सौंप दिया।
ये वो घटनाएं हैं जो साबित करती हैं कि हम आटो मोड पर हैं..एक तो ये है कि जो हो रहा है..उसे सहते रहो..और तिल-तिल कर मर जाओ...या फिर उसका जवाब दो..तय आपको ही करना है कि क्या किया जाए..क्या नहीं..कोई न तो बताने आ रहा है और न ही रोकने आ रहा है। पुलिस दोनों में राजी है...अगर कोई रेप करता है तो कोई बात नहीं...करने के बाद अगर ज्यादा होगा तो जेल में डाल देंगे...पब्लिक अगर खुद बदला लेती है तो ले ले..कोई परेशानी नहीं...उसके बाद बदला लेने पर कार्रवाई कर देगी।
दीमापुर में रेपिस्ट को जेल से निकालने और मारने में करीब 10 हजार लोगों ने हिस्सा लिया और इनमें ज्यादातर वो स्कूली छात्राएं थीं जिनका हिंसा से कोई सरोकार नहीं। हम हमेशा कहते हैं कि गुस्सा नुकसान करता है..हिंसा ठीक नहीं..लेकिन आप इस घटना को क्या कहेंगे...लोगों की टिप्पणियां पढ़ रहा था सभी में उस रेपिस्ट के लिए गुस्सा झलक रहा था..दरअसल पूरा देश ही आटो मोड पर है...जो करना है आपको ही करना है..
जब दिल्ली में निर्भया कांड होता है तो हजारों की भीड़ विरोध में उमड़ उठती है. और जब भीड़ उमड़ती है तो सरकार-प्रशासन की आंख खुलती है..संसद में चिंतन होता है.नए कानून बनाने की कवायद होती है..दीमापुर में भी यही हुआ...सरकार कहती है कि जनता जनार्दन है...आपकी सरकार है..आपके लिए हैं..अगर जनता फैसला करती है तो दिक्कत क्या है..उसने फैसला ले लिया..निलंबित अफसर कह रहे हैं कि स्कूली छात्राएं ये सब कर रही थीं..यदि उस वक्त पुलिस कोई कदम उठाती तो कई की जानें जा सकती थीं...दरअसल उन पुलिस वालों में भी ऐसे लोग होंगे..जो ऐसा ही न्याय चाहते होंगे..हम इंसान पहले हैं..माता-पिता पहले हैं..उसके बाद हम कहीं के अफसर हैं या फिर कर्मचारी हैं..दिल्ली में एक लड़की से कैब का ड्राइवर अत्याचार करता है..स्कूल बस में ड्राइवर मासूमों के साथ खिलवाड़ करते हैं..तो फिर किसका खून नहीं खौलेगा..अगर किसी का खून फिर भी जमा रहता है तो वो जी ही क्यों रहा...
सरकार भी यही चाहती है..प्रशासन भी यही चाहता है..जब कोई शख्स शिकायत करने जाता है तो उसे ही डांट-फटकार कर भगा दिया जाता है..जब भीड़ जाकर बवाल करती है तो पुलिस अफसर उनकी डांट भी खाते हैं और उनसे हाथ भी जोड़ते हैं...ये हमारा ही देश है जहां एक रेपिस्ट को सबक सिखाने के लिए हजारों की भीड़ को उतरना पड़ता है...अगर रेपिस्ट गलत था तो भीड़ भी सही थी और अगर रेपिस्ट सही था तो भीड़ गलत थी...सरकार तय कर ले कि उसे किस साइड रहना है..कानून के ढकोसले तो आजादी के बाद से चले आ रहे हैं..मानने वाले मानते हैं और परेशान होते हैं जो नहीं मानते..उनसे भी सरकार को कोई परेशानी नहीं...दरअसल सरकार भी आटो मोड पर है और हम भी...बाकी फिर.....