Sunday, March 8, 2015

न खाता न बही..हम जो कहें वही सही

तीन घटनाएं...जम्मू-कश्मीर में मसरत को छोड़ने का मामला हो..या फिर आप के केजरीवाल के रोने की घटना.और नागालैंड के दीमापुर में रेपिस्ट को फांसी पर लटकाना..आप दूसरों से अलग कहां हैं...पहले बात करते हैं जम्मू-कश्मीर की....तोगड़िया कह रहे हैं कि मुफ्ती को कान पकड़ कर सरकार से हटा देना चाहिए..बीजेपी कह रही है कि हमसे नहीं पूछा गया..हम इसकी निंदा करते हैं. हमें सरकार की चिंता नहीं..पीडीपी भी कह रही है कि हमें सत्ता का मोह नहीं....केंद्र के गृह मंत्रालय ने राज्य से रिपोर्ट मांगी है...सामना ने कहा है कि मसरत कांड पर तीखी टिप्पणी की है और नागालैंड की घटना को सही ठहराया है।



कुल मिलाकर ये है कि मुफ्ती को मुस्लिम वोट की चिंता...बीजेपी और शिवसेना को हिंदू वोट की...दोनों मिलकर सरकार चला रहे हैं..दोनों एक दूसरे के विरोधी है...दोनों ही सत्ता के लालची नहीं..ये आपको तय करना है कि लालची हैं या नहीं...दोनों ही बड़ी मासूमियत से कह रहे हैं कि उन्हें जनता की चिंता है..जनता से कोई पूछ नहीं रहा है कि कौन सही है..कौन गलत है..एक बार आपने वोट दे दिया है तो फिर उन्हें ही तय करना है कि खाता न बही..जो वो कहें वही सही...जनता बेचारी क्या करे..उसके पास प्लेटफार्म फेसबुक..टविटर का है तो वो उस पर कोस रहे हैं। ये बात अलग है कि कोई कितना भी कोसता रहे..किसी भी पार्टी पर फर्क पड़ने वाला नहीं..ये भी मान लीजिए कि बीजेपी-पीडपी के बीच ये रस्साकसी अगले विधानसभा चुनाव तक चलेगी..पीडीपी को जो करना होगा वो करेगी..बीजेपी को भी ये पता है..बीजेपी को जब तक विरोध करना होगा..विरोध करेगी..जिस दिन समर्थन वापस लेना होगा ले लेगी..नहीं लेना होगा तो मासूम बन कर विरोध जताती रहेगी..निंदा करेगी..बयान बाजी होगी..चेतावनी होगी..और फिर शांत हो जाएगी। ऐसे व्यवहार करेगी कि हम क्या करें...पीडीपी है कि मानती नहीं।

यही हाल आप का है..नया खुलासा हुआ है कि लोकसभा चुनाव में आप की हार के बाद हुई बैठक में केजरीवाल तीन बार रोए थे क्योंकि उन पर योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने हार का ठीकरा फोड़ दिया था..तब किसी ने नहीं बताया..अब क्यों बता रहे हैं...जब पार्टी ने दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस को साफ कर दिया तो योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को उनकी हैसियत बता दी गई..पहले वे दोनों केजरीवाल को बता रहे थे...यानि जिसका मौका आया..चौका मार दिया...अब बड़ी मासूमियत से बताया जा रहा है कि केजरीवाल की आंखों में आंसू तक आ गए..ऐसी हरकत की उनके विरोधियों ने...विरोधी क्या..अपनों ने ही की...योगेंद्र यादव भी मासूमियत से कह रहे हैं कि हमें पार्टी को आगे बढ़ाना है..विचारधारा में टकराव चलता रहता है..मयंक गांधी कह रहे हैं कि उन्हें हटाने की तैयारी है..पहले से बता कर शहीद होने से थोड़ा लाभ तो मिलेगा।


तीसरा मसला है नागालैंड के दीमापुर का...सामना ने कहा है कि दिल्ली के निर्भया कांड में भी ऐसा ही होना चाहिए था...जब सामना ये लिख रहा था तभी मुंबई में एक महिला सिपाही ने कहा कि उस पर एक पुलिस अफसर ने शारीरिक शोषण के लिए दबाव डाला..सामना बताए कि उस पुलिस अफसर का क्या करना चाहिए...एक टीवी चैनल ने इस घटना को 5000 किलर नाम दिया है..गिनती किसी ने अब तक की नहीं है..कोई दस हजार बता रहा है..कोई पांच हजार...कोई कह रहा है कि ठीक किया..कोई कह रहा है कि आईएसआईएस और नागालैंड की भीड़ में कोई फर्क नहीं..ये कोई नहीं देख रहा कि उसमें ज्यादातर स्कूल की बच्चियां थीं...यदि वो अपने मन से आईं थीं..तो वो आईएसआईएस की तरह कैसे हो गईं...अगर कोई उन्हें लाया था..तो वो कौन थे...जांच तो होती रहेगी..हजारों जांचें हुईं है..लेकिन ये कोई क्यों नहीं बता रहा कि आखिर ऐसी नौबत क्यों आईं..सही हो या गलत...

बीजेपी के सत्ता में आने में अहम रोल सोशल मीडिया का भी कहा जाता है..अब यही सरकार सोशल मीडिया पर फुटेज को रोकने की असफल कोशिश कर रही है...पहले बीबीसी पर निर्भया कांड के दोषी के इंटरव्यू को रोकने की कवायद..केंद्र जब तक रोक लगाती तब तक यू टयूब पर लोग मजे से उस इंटरव्यू को देख चुके थे..एक कापी से लाखों-करोड़ों कापी बना लो..ऐसा ही दीमापुर कांड में हो रहा है...वीडियो..एसएमएस पर रोक लगाई गई है..जो तीर निकलने से वो उसी वक्त निकल गए..जब ये कांड हुआ..एक मोबाइल की रिकार्डिंग कहां-कहां तक गई होगी..कोई माई का लाल पता नहीं लगा सकता...ढोल पीटना है तो पीटते रहो...बयान देना है तो देते रहो...न तो घटनाएं रुकने वाली हैं..न ही सोशल मीडिया पर कंट्रोल हो सकता है..न ही ईमानदारी आनी है...क्योंकि हमें अपनी सुविधा और स्वार्थ के हिसाब से चलना है..इसलिए हम जो कहें वहीं सही...बाकी फिर