ये कहना है निर्भया कांड के आरोपी का..जिसका तिहाड़ जेल में बीबीसी के लिए इंटरव्यू लिया गया। सरकार अब ढोल पीट रही है। जेल में इंटरव्यू कैसे लिए गया..किसने इसकी अनुमति दी..इंटरव्यू पर रोक लगा दी गई है। न्यूज चैनलों से इस इंटरव्यू को न चलाने को कहा गया है..गृह मंत्रालय से लेकर देश के तमाम राजनेता अपने-अपने हिसाब से बयान दे रहे हैं..दिल्ली पुलिस अपने तरीके से जांच-पड़ताल में जुट गई है। निर्भया कांड के बहाने एक बार फिर बहस का दौर शुरू हो गया है।
ऐसी घिनौनी हरकत..वो भी दिल्ली में...वो भी सरेराह...सारा दिल्ली दहल गया..पूरा देश सकते में आ गया..विदेशों तक इस शर्मनाक वारदात की गूंज हो गई..सभी का ये कहना था कि जब राजधानी दिल्ली में ऐसा हो सकता है..तो पूरे देश का क्या हाल होगा...ये सच भी है कि दिल्ली हो मुंबई..हर खबर चर्चा का विषय बनती है..कानून बदलने की बात होती है..संसद में शोरगुल होता है..बड़े-बड़े विद्वान अपनी अपनी राय रखते हैं और फिर अगली वारदात के बाद पुरानी वारदात को भूल जाते हैं..निर्भया कांड को भी लोग भूल चुके थे..अब फिर वो दर्दनाक घटना ताजा हुई है। फिर वहीं बहस..आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है..और चंद दिनों बाद अगली बड़ी खबर के बाद ये भी शांत हो जाएगा।
आरोपी का इंटरव्यू तो नहीं चलेगा...चलना भी नहीं चाहिए..लेकिन एक लाइन जो अखबारों में छपी है..मन को अंदर तक हिला गई..एक दरिंदा कितने अच्छी तरह से खौफनाक हरकत को बाजिव ठहरा सकता है..इसका ज्वलंत उदाहरण है..और ये कोई नई बात नहीं...पुरुष हो महिला..जब कोई गलती करता है..तो उसे हालात वश..भूल से और न जाने-जाने कितने बहानों से सही सिद्ध करने की कोशिश करता है। जब आप किसी गंदगी को हटा नहीं पाते..तो उसमें ही चलने का अभ्यास कर लेते हो...ऐसे कई इलाके हैं जहां से आपको गुजरने में नाक पर रूमाल रखना पड़ता है..लेकिन हजारों लोग मजे से वहां रहते हैं और चौबीस घंटे सांस लेते हैं। यही हाल पुरुष के वहशीपन का है..बड़े ही निर्लज्ज तरीके से लोग खुद को सही और लड़कियों को दोषी ठहराते हैं...अगर लड़कियां कोई ड्रेस पहने हैं तो उस पर फब्तियां कसना तो हमारी फितरत में हैं..आलोचना करने में सेकंड का समय नहीं लगता। एक तरफ हम लड़कियों को बराबरी का दर्जा देने की बात करते हैं...बेटी बचाओ अभियान चलाते हैं...सेना में भर्ती की बात करते हैं..हवाई जहाज चलाने की वकालत करते हैं लेकिन वहशीपन का कोई इलाज नहीं करते..और कर भी नहीं सकते। जब कोई घटना हमारे साथ होती है तो हम आरोपी को जिम्मेदार ठहराते हैं और जब किसी और के साथ होती है तो लड़की को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। लड़की देर रात क्यों निकलती है..क्या जरूरत थी रात के नौ बजे निकलने की..क्या जरूरत थी ऐसी ड्रेस पहनने की..क्या जरूरत थी ऐसे संस्थान में काम करने की..यही नहीं..माता-पिता भी निशाने पर आ जाते हैं..कैसे मां-बाप हैं जो लड़की को ऐसा घूमने देते हैं..क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं...लेकिन ये कभी नहीं सोचते कि इन दरिंदों का क्या किया जाए..जो वहशीपन का हम अपने भीतर लेकर चल रहे हैं..ये कैसे रुकेगा..जो मानसिक दिवालियापन हमारे दिल और दिमाग में पल रहा है..उससे छुटकारा कैसे मिलेगा।
बीबीसी ने तो सनसनीखेज एक्सक्लूसिव इंटरव्यू कर लिया...उसने जो किया सो किया..तिहाड़ जेल में परमीशन किसने दी..क्यों दी...भारत के किसी पत्रकार की बजाए विदेशी पत्रकार को तिहाड़ जेल में इंटरव्यू की अनुमति से ही जाहिर होता है कि अफसर किस मानसिकता में पल रहे हैं...अपना फायदा..अपनी सुविधा के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं...यही मानसिकता उस आरोपी की थी..जिसने निर्भया के साथ इस घटना को अंजाम दिया और बड़े घमंड के साथ कह रहा है कि ये घटना नहीं होती..अगर लड़की ऐसा नहीं करती..यानि समाज को संदेश देने का ठेका भी तिहाड़ जेल के जरिए पूरे विश्व को देने की हिमाकत कर रहा है।
हमारे आसपास भी यही घटता रहता है..किसी लड़की के साथ कोई घटना होती है तो पुलिस पहला सवाल ये पूछती है कि इतनी देर रात वो घर से निकली क्यों?...अकेली क्यों थी...ऐसी ड्रेस में क्यों थी?..पुरुष इतनी देर रात क्यों निकला..ये आज तक किसी ने नहीं पूछा...हम कहते हैं कि जमाना आगे बढ़ गया है..पुरुष महिला बराबर का दर्जा पा चुके हैं..बल्कि महिलाएं आगे निकल चुकी हैं..तो ये केवल पुरुष का दंभ है..श्रेय लेने के लिए हैं...सरकारी अभियान और राजनीति चमकाने के लिए..नहीं तो दिल्ली तो बहुत दूर है..उन ग्रामीणों इलाकों में जाकर देखिए..जहां आज भी महिलाओं के साथ कैसे-कैसे अत्याचार हो रहे हैं और पंचायतें महिलाओं को ही सजा देने का फरमान बड़ी निर्लज्जता के साथ दे रही हैं।
हमारे घर की महिलाएं भी कितनी ही आगे बढ़ जाएं..लेकिन निठल्ले बैठे पुरुष उन्हें अब भी संदेश देते हैं...सलाह देते हैं. सुरक्षा की चिंता करते हैं...कवर करने की कोशिश करते हैं..समस्या का हल ऐसे तो नहीं निकलेगा?....बाकी फिर......
ऐसी घिनौनी हरकत..वो भी दिल्ली में...वो भी सरेराह...सारा दिल्ली दहल गया..पूरा देश सकते में आ गया..विदेशों तक इस शर्मनाक वारदात की गूंज हो गई..सभी का ये कहना था कि जब राजधानी दिल्ली में ऐसा हो सकता है..तो पूरे देश का क्या हाल होगा...ये सच भी है कि दिल्ली हो मुंबई..हर खबर चर्चा का विषय बनती है..कानून बदलने की बात होती है..संसद में शोरगुल होता है..बड़े-बड़े विद्वान अपनी अपनी राय रखते हैं और फिर अगली वारदात के बाद पुरानी वारदात को भूल जाते हैं..निर्भया कांड को भी लोग भूल चुके थे..अब फिर वो दर्दनाक घटना ताजा हुई है। फिर वहीं बहस..आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है..और चंद दिनों बाद अगली बड़ी खबर के बाद ये भी शांत हो जाएगा।
आरोपी का इंटरव्यू तो नहीं चलेगा...चलना भी नहीं चाहिए..लेकिन एक लाइन जो अखबारों में छपी है..मन को अंदर तक हिला गई..एक दरिंदा कितने अच्छी तरह से खौफनाक हरकत को बाजिव ठहरा सकता है..इसका ज्वलंत उदाहरण है..और ये कोई नई बात नहीं...पुरुष हो महिला..जब कोई गलती करता है..तो उसे हालात वश..भूल से और न जाने-जाने कितने बहानों से सही सिद्ध करने की कोशिश करता है। जब आप किसी गंदगी को हटा नहीं पाते..तो उसमें ही चलने का अभ्यास कर लेते हो...ऐसे कई इलाके हैं जहां से आपको गुजरने में नाक पर रूमाल रखना पड़ता है..लेकिन हजारों लोग मजे से वहां रहते हैं और चौबीस घंटे सांस लेते हैं। यही हाल पुरुष के वहशीपन का है..बड़े ही निर्लज्ज तरीके से लोग खुद को सही और लड़कियों को दोषी ठहराते हैं...अगर लड़कियां कोई ड्रेस पहने हैं तो उस पर फब्तियां कसना तो हमारी फितरत में हैं..आलोचना करने में सेकंड का समय नहीं लगता। एक तरफ हम लड़कियों को बराबरी का दर्जा देने की बात करते हैं...बेटी बचाओ अभियान चलाते हैं...सेना में भर्ती की बात करते हैं..हवाई जहाज चलाने की वकालत करते हैं लेकिन वहशीपन का कोई इलाज नहीं करते..और कर भी नहीं सकते। जब कोई घटना हमारे साथ होती है तो हम आरोपी को जिम्मेदार ठहराते हैं और जब किसी और के साथ होती है तो लड़की को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। लड़की देर रात क्यों निकलती है..क्या जरूरत थी रात के नौ बजे निकलने की..क्या जरूरत थी ऐसी ड्रेस पहनने की..क्या जरूरत थी ऐसे संस्थान में काम करने की..यही नहीं..माता-पिता भी निशाने पर आ जाते हैं..कैसे मां-बाप हैं जो लड़की को ऐसा घूमने देते हैं..क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं...लेकिन ये कभी नहीं सोचते कि इन दरिंदों का क्या किया जाए..जो वहशीपन का हम अपने भीतर लेकर चल रहे हैं..ये कैसे रुकेगा..जो मानसिक दिवालियापन हमारे दिल और दिमाग में पल रहा है..उससे छुटकारा कैसे मिलेगा।
बीबीसी ने तो सनसनीखेज एक्सक्लूसिव इंटरव्यू कर लिया...उसने जो किया सो किया..तिहाड़ जेल में परमीशन किसने दी..क्यों दी...भारत के किसी पत्रकार की बजाए विदेशी पत्रकार को तिहाड़ जेल में इंटरव्यू की अनुमति से ही जाहिर होता है कि अफसर किस मानसिकता में पल रहे हैं...अपना फायदा..अपनी सुविधा के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं...यही मानसिकता उस आरोपी की थी..जिसने निर्भया के साथ इस घटना को अंजाम दिया और बड़े घमंड के साथ कह रहा है कि ये घटना नहीं होती..अगर लड़की ऐसा नहीं करती..यानि समाज को संदेश देने का ठेका भी तिहाड़ जेल के जरिए पूरे विश्व को देने की हिमाकत कर रहा है।
हमारे आसपास भी यही घटता रहता है..किसी लड़की के साथ कोई घटना होती है तो पुलिस पहला सवाल ये पूछती है कि इतनी देर रात वो घर से निकली क्यों?...अकेली क्यों थी...ऐसी ड्रेस में क्यों थी?..पुरुष इतनी देर रात क्यों निकला..ये आज तक किसी ने नहीं पूछा...हम कहते हैं कि जमाना आगे बढ़ गया है..पुरुष महिला बराबर का दर्जा पा चुके हैं..बल्कि महिलाएं आगे निकल चुकी हैं..तो ये केवल पुरुष का दंभ है..श्रेय लेने के लिए हैं...सरकारी अभियान और राजनीति चमकाने के लिए..नहीं तो दिल्ली तो बहुत दूर है..उन ग्रामीणों इलाकों में जाकर देखिए..जहां आज भी महिलाओं के साथ कैसे-कैसे अत्याचार हो रहे हैं और पंचायतें महिलाओं को ही सजा देने का फरमान बड़ी निर्लज्जता के साथ दे रही हैं।
हमारे घर की महिलाएं भी कितनी ही आगे बढ़ जाएं..लेकिन निठल्ले बैठे पुरुष उन्हें अब भी संदेश देते हैं...सलाह देते हैं. सुरक्षा की चिंता करते हैं...कवर करने की कोशिश करते हैं..समस्या का हल ऐसे तो नहीं निकलेगा?....बाकी फिर......