Saturday, March 7, 2015

हमाम में सब नंगे क्यों हैं ?

जब हम नहाने जाते हैं तो हम अपने सारे कपड़े उतारते हैं..कोई कितना बड़ा या छोटा इंसान हो...हमाम में सब नंगे होते हैं और एक से नजर आते हैं...जब कपड़े उतर जाते हैं तो अमीर-गरीब में फर्क नहीं रह जाता...लेकिन जैसे ही हम हमाम से बाहर निकलते हैं..तो बेहतरीन ड्रैस पहनते हैं...क्रीम-पावडर लगाते हैं..बालों को संवारते हैं..परफ्यूम छिड़कते हैं..जूते-सैंडिल पहनते हैं..सूटेड-बूटेड साहब बनकर दूसरे इंसानों से अलग दिखने की..अलग रहने की कोशिश करते हैं...





ऐसा ही कुछ जीवन में होता है..सामना अखबार छापता है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद गीदड़ है...पाकिस्तान परस्त है...तो मुफ्ती जी मशरत आलम को छोड़ते हैं जिस पर घाटी में हिंसा फैलाने का आरोप है...एक तरफ शिवसेना.. बीजेपी कोकोसती है..तो दूसरी ओर बीजेपी मुफ्ती सईद के साथ सरकार चलाती है...बीजेपी की साध्वी किसी को हरामजादे बोलती है...और उनकी संतानों को पिल्ले कहती है..हिंदुओं से कहा जाता है कि चार बच्चे पैदा करो..तादाद बढ़ाओ..एक हिंदू संगठन को दे दो..एक को फौज में भेज दो..बाकी दो को अपने पास अपने परिवार के लिए रखो....भगवान ने एक मुंह सबको दिया है..उसका बेजा इस्तेमाल कैसे किया जाता है वो आप इन नेताओं से सीखिए...जो देश चलाने का ठेका लेते हैं..हम उन्हें ये ठेका देते हैं..वो कहते हैं कि सबका साथ लेंगे..सबका विकास करेंगे...एक को दिल्ली चलाने का ठेका मिला..तो ठेका मिलते ही उनकी पार्टी में घमासान शुरू हो गया...वो अपनों का साथ ही नहीं ले पाए..दूसरों को क्या लेंगे। कुल मिलाकर ये हैं कि जो जितनी अच्छी तरह से मुंह चलाएगा..उतनी ही अच्छी तरह से उसे हम अपने सिर-आंखों पर बिठाएंगे...जब वो हमारे सिर पर बैठ जाएंगे तो फिर हम अपना मुंह चलाएंगे कि सत्यानाश कर दिया..बेड़ा गर्क दिया...हमें नहीं मालूम था कि ये खाली मुंह चलाने वाला था..ये तो खुद का घर नहीं संभाल पा रहा..देश क्या संभालेगा..राज्य क्या संभालेगा..





दरअसल मार्केटिंग जुबान से ही होती है..पहले खुद को बेचने के लिए जुबान मीठी रखी जाती है..अगर बिक गई तो ठीक है..जब जुबान नहीं बिकती..तो जुबान पर छुरी रखी जाती है..तब तो बिकेगी ही..कम से कम मीडिया तो खरीद ही लेगी और अपने चैनल पर बेचेगी..मीडिया को पाजिटिव जुबान में मजा नहीं आता..निगेटिव में ज्यादा आता है..मीडिया दरअसल मार्केटिंग जुबान से ही होती है..पहले खुद को बेचने के लिए जुबान मीठी रखी जाती है..अगर बिक गई तो ठीक है..जब जुबान नहीं बिकती..तो जुबान पर छुरी रखी जाती है..तब तो बिकेगी ही..कम से कम मीडिया तो खरीद ही लेगी और अपने चैनल पर बेचेगी..मीडिया को पाजिटिव जुबान में मजा नहीं आता..निगेटिव में ज्यादा आता है..मीडिया भी क्या करे...लोग पसंद ही यही करते हैं..कोई अच्छा बोल रहा है तो कहेंगे..साला मुंहजोरी कर रहा है...बुरा बोलेगा..तो कहेंगे..इसके भाई-बहन नहीं..माता-पिता नहीं..इसकी जुबान तो देखो..काली क्यों नहीं पड़ रही...आप हो या बीजेपी..शिवसेना हो या कांग्रेस..सबने जनता की ठेकेदारी के अपने-अपने टेंडर पास करा रखे हैं..जनता ने ही पास करके दिए हैं..जब कोई दूसरा ठेकेदार उसमें सेंध लगाता है तो जुबान के चाकू-छुरे निकल आते हैं...तुम अपने एरिया में रहो..हम अपने एरिया में...हिंदुओं की ठेकदारी अलग..मुस्लिम की अलग..सिख और ईसाई की ठेकेदारी अलग...इस ठेकेदारी में पूंजी कुछ नहीं लगानी..इसलिए हर कोई हथियाने की कोशिश में जुटा रहता है..ठेकेदारी की फ्रेजाइजी भी बंटती है..छोटे-छोटे समाज के ठेकदार..यहां तक की गली-मुहल्ले तक ठेके बंटे हुए हैं..सब इतने चुपचाप बंट जाते हैं कि पता ही नहीं चलता...जब ठेकेदार हक जताता है तब जनता समझती है कि अरे..ये तो हमारा ठेकेदार है...

सबकी मंजिल एक ही है..सबको हमाम में जाकर नंगे होना है..और फिर कपड़े पहनकर साहब बनकर ठेकेदारी करनी है...अब ये आपको तय करना है कि आपको इनके ठेके पर जाना है या नहीं..बाकी फिर.....