पश्चिम बंगाल में 72 साल की बुजुर्ग नन के साथ गैंग रेप....ऐसी खबरों को देखकर..सुनकर दिल दहल जाता है..कभी छोटी सी बच्ची के साथ..कभी बुजुर्ग महिला के साथ..आखिर ऐसा क्यों करते हैं लोग..क्या वजह है इसके पीछे..दिमागी फितूर..मानसिक दिवालियापन..क्यों छा जाता है..इतनी गिरी हुई हरकत तक लोग कैसे चले जाते हैं...इतनी वीभत्सता..इतना दुस्साहस..क्या ये दिमागी डिसबैलेंस की निशानी नहीं...दिमाग में ऐसा कौन सा कीड़ा है जो आदमी को सारी हद पार करने की ताकत दे देता है...क्या इसका इलाज है..या नहीं..या फिर इससे बचने का क्या तरीका है..इसे रोकने का क्या तरीका है..शायद डाक्टर भी न बता पाएं...
हम जिस तरीके से तरक्की कर रहे हैं..नए-नए आविष्कार...नई-नई तकनीक..उससे कहीं ज्यादा रसातल में जाने की हिमाकत भी करने लगे हैं..एक पाजिटिव और एक निगेटिव..दोनों में दिमाग इतना ऊपर चला गया है कि पहले के लोग सोच भी नहीं सकते थे। जितने तेजी से पाजिटिव जा रहे हैं..कुछ लोग उतनी ही तेजी से निगेटिव भी...मेरे पास अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि सोच भी नहीं पाता..कि इन्हें चलाऊं..या न चलाऊं...खबर कैसी भी हो..खबर होती है..कभी लगता है कि समाज को बताना जरूरी है ताकि लोग अवेयर हो सकें..कभी लगता है कि खबर देने से गलत इंपेक्ट भी पड़ सकता है। आखिर में लगता है कि खबर दिखाना जरूर चाहिए..ताकि लोग अपने तरीके से उससे बचने की कोशिश तो कर सकें..या फिर सतर्क रहें। शायद ही ऐसा कोई दिन जाता है जब बुजुर्ग और बच्चों के साथ ऐसी घटनाएं न हों...जमाना बदलने के साथ मानसिकता भी बदली है..और मानसिक तेजी भी आई है...जैसे..इबोला..स्वाइन फ्लू..डेंगू..और न जाने क्या-क्या बीमारियां सामने आईं हैं तो निर्भया कांड..दीमापुर कांड...उबर कैब कांड..जैसी घटनाएं हमें देखने को मिली हैं..और अब प.बंगाल का ये केस...
आगे बढ़ने की ललक...पैसा पाने की हवस...शार्टकट से शार्टकट अपनाने के लिए जब हम तैयार रहते हैं..तो कुछ भी कर बैठते हैं...न तो अब किसी को परिवार की परवाह है..न ही अपने आसपास की..तो फिर समाज और देश की परवाह कौन करता है...इसलिए झूठ बोलना..भ्रष्टाचार करना..चापलूसी करना..साजिश-षडयंत्र करना तो हमारे सामान्य जीवन में पल-बढ़ रहे हैं.लेकिन इन सबसे ऊपर ये लोग हैं जिन्हें बच्चों की मासूमियत..और बुजुर्गों से दया की परवाह नहीं...वैज्ञानिकों को जरूर इस दिशा में सोचना चाहिए कि वो कौन से कारण हैं..वो कौन से तत्व हैं..क्या केमिकल लोचा है जिसकी वजह से कोई व्यक्ति सारी सीमाएं तोड़ देता है और ऐसी अनहोनी कर बैठता है जिससे उसे कुछ नहीं मिलने वाला..जिससे न तो उसका जीवन सुखी और बेहतर होने वाला है..न ही परिवार का भला होने वाला..बल्कि जो उसके पास है..उसे और खो देने वाला है...ये तय है कि आप अगर गलत करते हैं तो क्रिया की प्रतिक्रिया की तरह उससे ज्यादा आपको वापस जरूर मिलता है..आप समझ भी नहीं पाओगे कि ये प्रतिक्रिया उसे क्यों मिली..लेकिन उससे ज्यादा भयानक अंजाम के लिए ऐसे लोगों को तैयार रहना चाहिए..लेकिन जो अंजाम नहीं सोचता है वो ऐसा कर बैठता है...और उसके बाद जब भुगतता है तो एक पल का दुस्साहस..जिंदगी भर की तबाही के रूप में झेलता है....इसलिए पछताना नहीं है तो करने के पहले एक पल के जरूर सोच लो...बाकी फिर.....
हम जिस तरीके से तरक्की कर रहे हैं..नए-नए आविष्कार...नई-नई तकनीक..उससे कहीं ज्यादा रसातल में जाने की हिमाकत भी करने लगे हैं..एक पाजिटिव और एक निगेटिव..दोनों में दिमाग इतना ऊपर चला गया है कि पहले के लोग सोच भी नहीं सकते थे। जितने तेजी से पाजिटिव जा रहे हैं..कुछ लोग उतनी ही तेजी से निगेटिव भी...मेरे पास अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि सोच भी नहीं पाता..कि इन्हें चलाऊं..या न चलाऊं...खबर कैसी भी हो..खबर होती है..कभी लगता है कि समाज को बताना जरूरी है ताकि लोग अवेयर हो सकें..कभी लगता है कि खबर देने से गलत इंपेक्ट भी पड़ सकता है। आखिर में लगता है कि खबर दिखाना जरूर चाहिए..ताकि लोग अपने तरीके से उससे बचने की कोशिश तो कर सकें..या फिर सतर्क रहें। शायद ही ऐसा कोई दिन जाता है जब बुजुर्ग और बच्चों के साथ ऐसी घटनाएं न हों...जमाना बदलने के साथ मानसिकता भी बदली है..और मानसिक तेजी भी आई है...जैसे..इबोला..स्वाइन फ्लू..डेंगू..और न जाने क्या-क्या बीमारियां सामने आईं हैं तो निर्भया कांड..दीमापुर कांड...उबर कैब कांड..जैसी घटनाएं हमें देखने को मिली हैं..और अब प.बंगाल का ये केस...
आगे बढ़ने की ललक...पैसा पाने की हवस...शार्टकट से शार्टकट अपनाने के लिए जब हम तैयार रहते हैं..तो कुछ भी कर बैठते हैं...न तो अब किसी को परिवार की परवाह है..न ही अपने आसपास की..तो फिर समाज और देश की परवाह कौन करता है...इसलिए झूठ बोलना..भ्रष्टाचार करना..चापलूसी करना..साजिश-षडयंत्र करना तो हमारे सामान्य जीवन में पल-बढ़ रहे हैं.लेकिन इन सबसे ऊपर ये लोग हैं जिन्हें बच्चों की मासूमियत..और बुजुर्गों से दया की परवाह नहीं...वैज्ञानिकों को जरूर इस दिशा में सोचना चाहिए कि वो कौन से कारण हैं..वो कौन से तत्व हैं..क्या केमिकल लोचा है जिसकी वजह से कोई व्यक्ति सारी सीमाएं तोड़ देता है और ऐसी अनहोनी कर बैठता है जिससे उसे कुछ नहीं मिलने वाला..जिससे न तो उसका जीवन सुखी और बेहतर होने वाला है..न ही परिवार का भला होने वाला..बल्कि जो उसके पास है..उसे और खो देने वाला है...ये तय है कि आप अगर गलत करते हैं तो क्रिया की प्रतिक्रिया की तरह उससे ज्यादा आपको वापस जरूर मिलता है..आप समझ भी नहीं पाओगे कि ये प्रतिक्रिया उसे क्यों मिली..लेकिन उससे ज्यादा भयानक अंजाम के लिए ऐसे लोगों को तैयार रहना चाहिए..लेकिन जो अंजाम नहीं सोचता है वो ऐसा कर बैठता है...और उसके बाद जब भुगतता है तो एक पल का दुस्साहस..जिंदगी भर की तबाही के रूप में झेलता है....इसलिए पछताना नहीं है तो करने के पहले एक पल के जरूर सोच लो...बाकी फिर.....