Saturday, March 28, 2015

सपने देखो मगर शेखचिल्ली जैसे नहीं

सपने देखने में कोई बुराई नहीं..अच्छा सोचने में बुराई नहीं..मन है..कहीं तक जा सकता है..आप बैठे-बैठे अमेरिका की सैर कर आएं..व्हाइट हाउस में ओबामा की जगह ले लें...ख्यालों में तो बड़ा अच्छा लगता है लेकिन अपने सपनों से दूसरों को प्रभावित न करें..दूसरों से वायदे न करें..दूसरों को भरोसा न दिलाएं..हमारे राजनेता कुछ ऐसे ही सपने दिखा रहे हैं..आज से नहीं..आजादी के वक्त से ही...न जाने कितने चुनाव लड़े गए..अलग-अलग सपनों को दिखाकर..हर पांच साल जनता जान पाती है कि वो ठगी गई...


बात कर रहा हूं बुलेट ट्रेन की..आज इसलिए इसकी याद आ गई..क्योंकि ट्रेन से सफर कर लौटा हूं..ऐसा सफर..जिसकी कड़वी याद जीवन भर रहेगी। ये वो डाटा है जो स्टोर होने के बाद डिलीट होने वाला नहीं..एक साल बाद अपने घर गया था..जिस रात लौट रहा था..ट्रेन आने के आधा घंटे पहले रेलवे इनक्वायरी से पता किया तो बताया गया कि ट्रेन आधा घंटा लेट है..कोई बात नहीं...स्टेशन पहुंचा तो अलग ही नजारा था..करीब दो घंटे पहले दिल्ली-मुंबई रूट पर ललितपुर-झांसी के बीच एक मालगाड़ी पलट गई थी...मालगाड़ी क्या थी..भारी-भरकम विस्फोट भरी गाड़ी थी..पेट्रोल टैंकर लेकर जा रही थी...मालगाड़ी की दुर्घटना इतनी जबर्दस्त थी कि पटरी बीच से टूट चुकी थी...टेंकरों के पलटने से पेट्रोल बड़ी मात्रा में नीचे फैल चुका था...रात आठ बजे दुर्घटना हुई थी..अब आगे का किस्सा सुनिए...कोई बात नहीं..ट्रेन है तो दुर्घटना भी होगी...लेकिन बुलेट ट्रेन चलाने वाले रेलवे की कार्यप्रणाली देखिए...रात साढ़े आठ बजे मालवा एक्सप्रेस ललितपुर स्टेशन पर पहुंच चुकी थी...यात्री ठसाठस भरे हुए थे..जब काफी देर तक ट्रेन नहीं चली..तो यात्रियों ने स्टेशन की इनक्वायरी पर पता करने की कोशिश की...रेलवे कर्मचारी का जवाब था..मुझे कुछ नहीं मालूम..मेरे पास कोई जानकारी नहीं..कब ट्रेन चलेगी..मेरी ट्रेन जबलपुर-निजामुद्दीन एक्सप्रेस का समय निकल चुका था लेकिन कोई पता नहीं था कि ट्रेन कब आएगी..कब जाएगी..स्टेशन पर सैकड़ों यात्री इधर से उधर हैरान-परेशान..बच्चे-बूढ़े..महिलाएं..लेकिन स्टेशन मास्टर से लेकर पूछताछ सेवा तक कोई कुछ बताने को तैयार नहीं..दरअसल वो भी अपने आला अफसरों के फोन का इंतजार कर रहे थे..आगे के निर्देश के लिए....रात के दस बजे..बारह बजे..दो बजे...कुछ पता नहीं..मालवा एक्सप्रेस जस की तस स्टेशन पर टस से मस नहीं हुई...कई घंटों की इस प्रताड़ना के बीच किसी ने स्टेशन पर नींद ले ली..किसी ने रात का खाना खा लिया...लेकिन जिन्हें एक्जाम देने जाना था..वो हैरान-परेशान...

रात के दो बजे...पता चला कि जो ट्रेन आनी थी..वो बीना से ही दूसरे रूट से रवाना हो गई..कोई एनाउंसमेंट नहीं...कोई डिस्पले नहीं...रात तीन बजे स्टेशन पर छह घंटे से खड़ी मालवा एक्सप्रेस चली..तो ज्यादातर यात्री बिना सोचे-समझे उसी में सवार हो गए...ट्रेन चली तो लेकिन आधा घंटे बाद अंधेरे में जंगल में खड़ी हो गई..एक घंटे का सफर चार घंटे में तय कर झांसी पहुंची..बीच में दुर्घटना का नजारा देखा तो दिल कांप गया...पेट्रोल के टैंकर जस के तस खड़े थे..एक क्रेन लगी हुई थी..कुछ कर्मचारी मौजूद थे..लेकिन एक चिंगारी पूरे इलाके तो तबाह कर सकती थी...कैसी पटरी थी..जो टूट गई..कैसा प्रबंधन है कि 10 घंटे में मालगाड़ी को नहीं हटा पाया..कैसा प्रबंधन है कि पेट्रोल के टैंकर और फैला हुआ पेट्रोल को अलग नहीं किया जा सका...रात भर दिल्ली से मुंबई और मुंबई से दिल्ली के लाखों यात्री या तो किसी स्टेशन या जंगल में  भूखे प्यासे तड़पते रहे..मैने भोगा इसलिए मुझे बुरा लगा...मैं एक सामान्य यात्री था..यदि इस सफर में कोई वीवीआईपी होता..या फिर मध्यप्रदेश के मंत्री होते तो कम से कम दस सांसद रेल मंत्री प्रभु से मिलने चले जाते..लाखों यात्रियों की परेशानी का कोई मोल नहीं...

तो फिर बुलेट ट्रेन का सपना क्यों देख रहे हैं प्रधानमंत्री...ऐसा सपना जो यदि साकार भी हो जाए तो किसी मतलब का नहीं..एक मालगाड़ी बेहतर कैसे चले..एक पैसेंजर ट्रेन कैसे समय पर यात्रियों को एक-दो घंटे के रास्ता तय करा दे..कैसे हम दुर्घटनाओं से निपटने की प्रणाली विकसित कर लें..कैसे हम यात्रियों को सूचना देने की ईमानदारी दिखा दें..कैसे हम प्रबंधन को आपदा मैनेजमेंट सिखा दें..यदि ऐसा कर लें तो सबका साथ हो सबका विकास हो..नहीं तो चलाईए बुलेट ट्रेन...चलाईए मत..सपना ही देखिए...बाकी फिर.....इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com