आप में ऐसे-ऐसे लोग जुड़े..जिनका राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं था..कोई किसी क्षेत्र का महारथी..कोई किसी क्षेत्र का विशेषज्ञ..कोई कलाकार..कोई फिल्मी हस्ती..आईआईटी..आईआईएम के लोग...अलग-अलग फील्ड से आए लोग जब इकट्ठे हुए तो ज्यादा बेहतर विचार-मंथन..प्लानिंग और उसे फील्ड पर ले जाने की रणनीति अमल में आने में मदद मिली जो किसी राजनीतिक दल से अच्छी होनी ही थी..चाहे मैनिफेस्टो हो..चाहे प्रचार का तरीका हो..चाहे सोशल मीडिया हो..हर मोर्चे पर एक कसी हुई रणनीति आप ने दिखाई।
जब ऐसे लोग एक पाजिटिव सोच लेकर चलते हैं..संगठित होते हैं तो उतना ही फायदा होता है जितना इनके टूटने और बिखरने पर नुकसान...कभी भी कोई प्लानिंग पचास सालों बाद की नहीं होती..दिल्ली चुनाव की प्लानिंग थी जिसमें केजरीवाल हीरो बन गए..बड़े नेता बन गए..लेकिन जिनका पर्दे के पीछे रोल था..उसमें उनकी भी मेहनत थी..जाहिर है चाहे मोदी हों या सोनिया या फिर केजरीवाल..अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता..एक टीम होती है जो एक दिशा में चलती है..एक साथ चलती है तो नतीजे में कामयाबी मिलनी है लेकिन जब बिखरती है तो सारी मेहनत बेकार साबित हो जाती है। आप का जो भी हो..हमें पहले अपना सोचना है...
कहते हैं कि सत्ता का नशा होता है..जब किसी को नई-नई कुर्सी मिलती है तो बड़ा विनम्र..सबको साथ लेकर चलने की कवायद..टीम वर्क से प्लानिंग..और महत्व मिलता है लेकिन जैसे-जैसे हमें अनुभव होता जाता है...हमारा कान्फीडेंस बढ़ता जाता है..तो हम ऐसे लोगों को सबसे पहले किनारे लगाते हैं..जिनसे हमें खतरा महूसस होता है या फिर लगता है कि वो हमारी बराबरी का है या फिर हमें चैलेंज कर सकता है..ये एक के साथ भी हो सकता है और कई लोगों के साथ..यानि जब आप कुर्सी पकड़ते हैं तो दो चिंताएं होती है..पहले कुर्सी को थामे रखने की और दूसरी उससे बड़ी कुर्सी हथियाने की...जब आप एक सीढ़ी चढ़ लेते हो तो दूसरी सीढ़ी की चिंता करते हो..और पहली सीढ़ी को अपनी मानकर उसे पीछे छोड़ देते हो...जो आप पा लेते हो..उस पर तो हक हो जाता है..लेकिन जो पाना है उसकी कोशिश में जुट जाते हो...ये हर कुर्सी के साथ होता है चाहे वो सरकार की हो..दफ्तर की हो..कंपनी की हो..सामाजिक हो..दिल मांगे मोर के लिए..उस दुश्मन की नली काटनी जरूरी है जो या तो उससे बड़ी कुर्सी पर विराजमान है या जिसके हमारी कुर्सी हथियाने का खतरा है.....
और फिर लोग कहते हैं कि आप तो ऐसे न थे..जब आप कोई बिजनेस शुरू करते हो..लोगों से सहयोग मांगते हो..दुआएं मांगते हैं..पैसा मांगते हो..जब आप अपनी प्रतिष्ठा बना लेते हो..पैसा बना लेते हो..तो गुरू बन जाते हो और अपने ही साथियों को ज्ञान देने लगते हो..कमजोरियां बताने लगते हो..ये तब तक होता है जब तक आपके पास सत्ता है..क्योंकि सत्ता है तो उसका नशा तो चढ़ेगा और जिस दिन कुर्सी नहीं रहेगी..नशा हिरन हो जाएगा..फिर उसी स्थिति में आ जाओगे जैसा कि कुर्सी पाने के पहले थे। उदाहरण के लिए आप कांग्रेस को देख सकते हो..जितने मंत्री थे..जितने बड़े-बड़े नेता थे..दस साल देश पर लगातार राज करने के बाद भी अब अपनी कमियां गिनाने लगे हैं..एक-दूसरे को कोसने लगे हैं...अब खामियां नजर आने लगी हैं पहले ज्ञान देने की स्थिति में थे...आज बीजेपी और आप के साथ यही स्थिति है..दोनों दूसरों को ज्ञान दे रहे हैं...ये हमें तय करना है कि टीम वर्क के साथ चलना है..या फिर अकेले को महत्व देना है..ज्यादा दिन ज्ञान देना है या ज्यादा दिन देना है..सत्ता का ज्यादा नशा चढ़ाओगे तो लड़खड़ा के गिरना ही है...जितना धीरे-धीरे नशा चढ़ाओगे..उतना लंबा चलोगे....बाकी फिर.......
जब ऐसे लोग एक पाजिटिव सोच लेकर चलते हैं..संगठित होते हैं तो उतना ही फायदा होता है जितना इनके टूटने और बिखरने पर नुकसान...कभी भी कोई प्लानिंग पचास सालों बाद की नहीं होती..दिल्ली चुनाव की प्लानिंग थी जिसमें केजरीवाल हीरो बन गए..बड़े नेता बन गए..लेकिन जिनका पर्दे के पीछे रोल था..उसमें उनकी भी मेहनत थी..जाहिर है चाहे मोदी हों या सोनिया या फिर केजरीवाल..अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता..एक टीम होती है जो एक दिशा में चलती है..एक साथ चलती है तो नतीजे में कामयाबी मिलनी है लेकिन जब बिखरती है तो सारी मेहनत बेकार साबित हो जाती है। आप का जो भी हो..हमें पहले अपना सोचना है...
कहते हैं कि सत्ता का नशा होता है..जब किसी को नई-नई कुर्सी मिलती है तो बड़ा विनम्र..सबको साथ लेकर चलने की कवायद..टीम वर्क से प्लानिंग..और महत्व मिलता है लेकिन जैसे-जैसे हमें अनुभव होता जाता है...हमारा कान्फीडेंस बढ़ता जाता है..तो हम ऐसे लोगों को सबसे पहले किनारे लगाते हैं..जिनसे हमें खतरा महूसस होता है या फिर लगता है कि वो हमारी बराबरी का है या फिर हमें चैलेंज कर सकता है..ये एक के साथ भी हो सकता है और कई लोगों के साथ..यानि जब आप कुर्सी पकड़ते हैं तो दो चिंताएं होती है..पहले कुर्सी को थामे रखने की और दूसरी उससे बड़ी कुर्सी हथियाने की...जब आप एक सीढ़ी चढ़ लेते हो तो दूसरी सीढ़ी की चिंता करते हो..और पहली सीढ़ी को अपनी मानकर उसे पीछे छोड़ देते हो...जो आप पा लेते हो..उस पर तो हक हो जाता है..लेकिन जो पाना है उसकी कोशिश में जुट जाते हो...ये हर कुर्सी के साथ होता है चाहे वो सरकार की हो..दफ्तर की हो..कंपनी की हो..सामाजिक हो..दिल मांगे मोर के लिए..उस दुश्मन की नली काटनी जरूरी है जो या तो उससे बड़ी कुर्सी पर विराजमान है या जिसके हमारी कुर्सी हथियाने का खतरा है.....
और फिर लोग कहते हैं कि आप तो ऐसे न थे..जब आप कोई बिजनेस शुरू करते हो..लोगों से सहयोग मांगते हो..दुआएं मांगते हैं..पैसा मांगते हो..जब आप अपनी प्रतिष्ठा बना लेते हो..पैसा बना लेते हो..तो गुरू बन जाते हो और अपने ही साथियों को ज्ञान देने लगते हो..कमजोरियां बताने लगते हो..ये तब तक होता है जब तक आपके पास सत्ता है..क्योंकि सत्ता है तो उसका नशा तो चढ़ेगा और जिस दिन कुर्सी नहीं रहेगी..नशा हिरन हो जाएगा..फिर उसी स्थिति में आ जाओगे जैसा कि कुर्सी पाने के पहले थे। उदाहरण के लिए आप कांग्रेस को देख सकते हो..जितने मंत्री थे..जितने बड़े-बड़े नेता थे..दस साल देश पर लगातार राज करने के बाद भी अब अपनी कमियां गिनाने लगे हैं..एक-दूसरे को कोसने लगे हैं...अब खामियां नजर आने लगी हैं पहले ज्ञान देने की स्थिति में थे...आज बीजेपी और आप के साथ यही स्थिति है..दोनों दूसरों को ज्ञान दे रहे हैं...ये हमें तय करना है कि टीम वर्क के साथ चलना है..या फिर अकेले को महत्व देना है..ज्यादा दिन ज्ञान देना है या ज्यादा दिन देना है..सत्ता का ज्यादा नशा चढ़ाओगे तो लड़खड़ा के गिरना ही है...जितना धीरे-धीरे नशा चढ़ाओगे..उतना लंबा चलोगे....बाकी फिर.......