Wednesday, March 11, 2015

जरा दूसरों का भी ख्याल करो

कल रात भर सो नहीं पाया..अपने कारण नहीं..दूसरों के कारण...कालोनी में अचानक आधी रात को शोरगुल शुरू हुआ...काफी देर तक सब्र करता रहा...नींद में उलट-पलट होता रहा..नींद डिस्टर्ब हो चुकी थी..शोरगुल थमने का नाम नहीं ले रहा था..दरवाजा खोलकर देखा कि पास के फ्लैट में बाहर किसी के शादी की रस्म चल रही है..आधी रात के बाद एक कुर्सी पर कपड़े उतार कर बैठा नौजवान..उसके इर्द-गिर्द महिलाएं और पुरुष..पता नहीं कौन सी रस्म हो रही थी...मेरी दिलचस्पी रस्म नहीं..बल्कि अपनी नींद डिस्टर्ब होने से थी..अगर नींद पूरी नहीं हो तो पूरा दिन बेकार जाता है..आलस आएगा..चिड़चिड़ापन रहेगा..सुबह घूमने का कार्यक्रम टालना पड़ेगा..ऐसे लगेगा कि आज का दिन बाकी दिनों की तरह नहीं..जो आपकी मजबूती है..उत्साह है..मन है..वो सब अधूरे-अधूरे से हैं..हम तो अपने तय वक्त के अनुसार चल रहे थे लेकिन दूसरों को इसकी परवाह नहीं..वो अपने तय वक्त के अनुसार चल रहे हैं...उन्हें इससे मतलब नहीं कि आस-पड़ोस में किसी बच्चे की कल परीक्षा है..कोई बीमार..दवा लेकर सो रहा होगा..किसी को सुबह दफ्तर के लिए जाना होगा...



हर परिवार के घर के अपने अनुशासन हैं...किसी को सुबह जल्दी उठना है तो किसी को रात को देर से सोना है..इसके बीच हम अपने रहन-सहन..भोजन..सोने..पढ़ाई...लिखाई तमाम हिसाब-किताब बिठाते हैं...सबका अपना-अपना राग है लेकिन जब हमारे घर का जश्न होता है तो हमें अपना जश्न दिखाई देता है..हमारे कालोनी में चला जश्न रात को दो बजे से ज्यादा देर तक चला.महिलाएं घूम-घूम कर जोर-जोर से गाना गाती रहीं..उन्हें जितना मजा आएगा..मुझे उतना भी गुस्सा...जब मैं डिस्टर्ब था..जाहिर है पूरी कालोनी रही होगी..किसी ने किसी से शिकायत भी नहीं की होगी लेकिन कालोनी के दर्जनों परिवारों के बच्चों..बड़ों..महिलाओं...बुजुर्गों की दिनचर्या पर आज बुरा असर पड़ेगा। वो महिलाएं तो आज दिन में सो रही होंगी..डिस्टर्ब होने वाले लोग अपने-अपने काम पर गए होंगे।

हर किसी को जश्न मनाने का हक है..जब हम जश्न मनाते हैं तो ढिंढोरा क्यों पीटते हैं...लाउडस्पीकर क्यों चलाते हैं..जोर-जोर से क्यों चिल्लाते हैं..जश्न हमारी खुशी है..तो दूसरों को क्यों बताने चाहते हैं...शादी हो..बच्चे का बर्थडे हो..कोई भी सेलिब्रेशन हो...कोई धार्मिक कार्यक्रम हो..दूसरों को क्यों शामिल करना चाहते हैं...क्या कहीं लिखा है कि आप जो भी करो..उसे दूसरों को बताओ..जताओ..या फिर जबर्दस्ती उसे भागीदार बनाओ...

लाउडस्पीकर..म्यूजिक सिस्टम..या फिर जोर-जोर से चिल्लाने का प्रावधान तो मुझे नहीं लगता कि किसी शास्त्र में लिखा है..अगर आपको खुशी मनाना है..अगर आपको धर्म लाभ लेना है तो लो..जिसकी इच्छा हो..उसे भी जरूर शामिल करो..लेकिन जबर्दस्ती नहीं...अगर ऐसा करोगे..जो आपको लाभ मिल रहा है..वो भी नहीं मिलेगा...बल्कि बद दुआएं जरूर मिलेंगी और लाभ कम हो जाएगा..जब हम ये सब करते हैं तो दूसरों की परेशानी भूल जाते हैं..जब दूसरे करते हैं तब हमें एहसास होता है..आप खुद देखते हैं कि कहीं जुलूस निकल रहा है..बारात में बीच रास्ते पर डांस हो रहा है..उसके शोरगुल से दूसरों को कितना कष्ट होता है..कोई बीमार एंबुलेंस में जा रहा है..उस पर क्या बीत रही होगी...इसलिए खुशी मनाओ..दूसरों को परेशान करके नहीं...बाकी फिर...