Monday, March 9, 2015

मन की selfie ली क्या?

मोदी जी ने सेल्फी क्या ली..भारत में सेल्फी की होड़ लग गई..संडे को मेट्रो में था..देखा कि दस में से आठ लोग मोबाइल पर चिपके हुए हैं। इनमें से एक खड़े-खड़े ही सेल्फी ले रहा था..लौट रहा था तो देखा कि एक मोहतरमा कभी मोबाइल को सीधा..कभी तिरछा..कभी आड़ा..कभी पास..कभी दूर..सेल्फी सेट करने में जुटी हुई हैं। किस्म-किस्म की सेल्फी..कोई चिढ़ाता हुआ..कोई मुस्कराता हुआ..कोई केवल अपनी आंखें ले रहा है..कोई केवल चेहरा..कोई आधे शरीर की सेल्फी बना रहा है..तो कोई पूरे परिवार के साथ..कोई पति-पत्नी के साथ..कोई बेटा-बेटी के साथ..कोई प्रेमी-प्रेमिका के साथ..अजब सेल्फी..गजब सेल्फी..कभी सोचा कि हम सेल्फी क्यों लेते हैं..और बाहर की सेल्फी ही क्यों लेते हैं..कभी भीतर की सेल्फी क्यों नहीं लेते?


क्या हम सेल्फी के जरिए अपनी खूबसूरती दिखाना चाहते हैं?..क्या अपनी स्मार्टनेस के कायल हैं? क्या हम अपनी मार्केटिंग करना चाहते हैं? क्या हम सेल्फी के जरिए दूसरों को इंप्रेस करना चाहते हैं?..फेसबुक पर अपने चहेतों की लाईक की दरकार है?...बड़ों की देखादेखी छोटे भी क्यों पीछे रहे...इधर मोबाइल..उधर मोबाइल..दनादन सेल्फी..उनसे पूछो कि सेल्फी क्यों ले रहे हो..तो बोलते हैं यूं ही..शौक है..फैशन है..पैशन है...जिसके मन में जो आया..बता रहा है..लेकिन असल में सेल्फी क्यों लेते हैं..ये समझ में नहीं आया..और तो और..कुछ लोग तो इसके चक्कर में जान से भी खिलवाड़ करने में नहीं चूक रहे..कोई चलती ट्रेन में बाहर लटककर खींच रहा है..तो कोई छत से लटककर...कोई बाईक पर सवार होकर...
यहां तक तो गनीमत है..कुछ बालाएं..बेजा सेल्फी ले रही हैं..कोई ऊपर से सेल्फी..कोई नीचे से सेल्फी..और ऊपर से कह रही हैं कि लाईक मी...शरीर का जो हिस्सा दूसरों के मन में वासना जगाता है..उसके एक-एक कोण को नापने की कोशिश चल रही है...यही नहीं उन्हें दनादन लाईक भी मिल रहे हैं...लाईक की पोटली लिए हम आखिर में गिनते हैं और खुश होते हैं कि कितनी कमाई हुई है।

अब सवाल ये है कि बाहर की सेल्फी तो हम रोज ले रहे हैं लेकिन कभी भीतर की सेल्फी ली..कभी मन की सेल्फी लेकर देखी है..दरअसल मन में झांकने की फुर्सत कहां है..बाहर से ही नहीं निपट पा रहे हैं तो भीतर देखने का वक्त कहां...जिस बेवकूफ को झांकना है वो झांके..हम तो बाहर से ही काम चला रहे हैं...भीतर की सेल्फी लेंगे तो खुद को ही बुरा लगेगा..बाहर वाले तो लाईक की जगह डिस लाईक ही करेंगे। जैसे मोदी जी ने कहा कि हमें स्वच्छता अभियान चलाना है...बाहर की सफाई करनी है..ऐसे ही हम भी बाहर ही बाहर जुटे हुए हैं..बाहर का ही नहीं समेट पा रहे हैं तो भीतर का क्या समेटेंगे। भीतर की सफाई होगी तभी तो हम अंदर की सेल्फी लेने की हिम्मत जुटा पाएंगे। भीतर का कचरा दिखता नहीं है इसलिए बिकता नहीं है..उसे भीतर ही पड़े रहने दो..अगर हमने झांक लिया तो दिक्कत हो जाएगी..हो सकता खुद से ही घिन आने लगे...इसलिए बाहर शानदार ड्रेसअप करो...क्रीम-पावडर लगाओ...कपड़े पहन कर सेल्फी लो..या फिर कपड़े उतार कर लो..दोनों ही बिकेंगे...लेकिन भीतर मत झांकना..अगर भीतर झांकोगे तो बहुत हिम्मत चाहिए..कड़वा घूंट निगलना पड़ेगा..देखोगे तो बहुत सारा कचरा निकलेगा..उसे साफ करने के लिए वक्त लगेगा..मेहनत करनी पड़ेगी...लेकिन सोचो..अगर ये कर लिया..तो कमाल हो जाएगा...जिस दिन मन की सेल्फी लेने की हिम्मत आ जाएगी..वो दिन आपके हमारे लिए कितना बड़ा होगा...मन की सेल्फी के लिए मोबाइल की जरूरत नहीं पड़ेगी..ये सेल्फी दूसरे के मन में लाईक होगी..गिनती भले ही नहीं कर पाओ..लेकिन महसूस जरूर होगा...वो सेल्फी अमिट होगी..स्क्रोल की तरह नीचे नहीं जाएगी..दूसरे के मन में अगर छप गई तो छपी ही रह जाएगी..जीवन भर.....बाकी फिर....