जब लाईफ में प्लानिंग नहीं होती तो अस्तव्यस्त हो जाती है...आजकल वो जमाना नहीं रहा..जब ज्यादातर लोग गांवों में रहते थे..खेती-किसानी करते थे..उनके बेटे..उनके बेटे..और पीढ़ी दर पीढ़ी यही कहानी..ज्यादा सोचने-समझने की जरूरत नहीं..केवल..आपको अपने खानदान को आगे बढ़ाते जाना है..अगर आपका परिवार व्यापारी वर्ग से ताल्लुक रहता था तो..आपको अपनी दुकान अपने बेटे को सौंपना है..और उसके बाद बेटा अपने बेटों को सौंप देता था..लेकिन अब ऐसा नहीं है...
जमाना लगातार तेजी से बदलता जा रहा है..परिवार माईक्रो यूनिट में तब्दील हो गए..यानि लड़के की नौकरी लगी..शादी हुई और उसका युनिट अलग..लड़की की नौकरी लगी..शादी हुई..वो अपने पति के साथ अलग युनिट में...पहले मां-बाप का ही नहीं...दादा-दादी का जलवा मरने तक कायम रहता था..क्योंकि संयुक्त परिवार होता था और उनकी बात का मान होता था..अब ऐसा नहीं...चंद ऐसे परिवार बचे होंगे..जो संयुक्त होंगे..यानि इस तरह के परिवारों की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। जब सब कुछ साझा होता था..तो इनकम साझा होती थी..स्टेटस साझा होता था...और सोच भी साझा होती थी..आगे की रणनीति भी साझा बनती थी..अब ऐसा नहीं है...
अब ये है कि सिंगल युनिट को खुद करना है..लगातार प्लानिंग करनी है..और अपने जीवन को आगे बढ़ाना है..जिसमें पति-पत्नी हैं और उनके एक या दो बच्चे हैं। पति-पत्नी दोनों जीवन भर अपनी बेहतरी के लिए अलग-अलग जंग लड़ते हैं और जहां तालमेल होता है..वहां विचार साझा करते हैं...अब बचे बच्चे..तो वो भी स्कूल जाने की शुरूआत से ही जंग लड़ना शुरू करते हैं..कुछ सालों तक बच्चों को माता-पिता का गाइडेंस जरूर मिलता है..पर एक सीमा तक..एक आयु तक..14-15 साल के बच्चे अब खुद तय करते हैं कि उन्हें क्या पढ़ना है..क्या बनना है..और कैसे करना है...चाहे अच्छा हो या बुरा..माता-पिता को उनके दवाब में उनका साथ देना पड़ता है..जहां जबर्दस्ती होती है वहां मनमुटाव होता है और न मां-बाप को कुछ मिलता है और न ही बच्चों को...
सवाल ये है कि आप जिस क्षेत्र में जाना चाहते हैं..या जिस क्षेत्र में काम कर रहे हैं..उसमें आपको किस तरह आगे बढ़ना है..उसके लिए क्या जरूरी प्रयास करने हैं..कितनी मेहनत-संघर्ष करना है और फिर उस कामयाबी को हासिल करना है..इस तरह की प्लानिंग लोग करते हैं..कुछ कामयाब होते हैं..कुछ नहीं...लेकिन इतना तय है कि बिना प्लानिंग के अगर आप चलते हैं तो जीवन वहीं का वहीं रहता है..आगे नहीं बढ़ सकता..बेहतर नहीं हो सकता..इसलिए जीवन के किसी भी पड़ाव में हैं..प्लानिंग आपकी जरूर होने चाहिए..वो भी ऐसी जिसे आप अमल में ला सकें...लेकिन केवल प्लानिंग से ही काम नहीं बनता..उसे अमल में लाने के लिए पावर जरूरी है..जब तक आप अपनी ताकत उसमें नहीं उड़ेलेंगे..तब तक प्लानिंग केवल या तो कागजों पर सिमट पर रह जाएगी..या फिर आपके दिमाग में निष्क्रिय खाते में जमा पूंजी की तरह पड़ी रहेगी..न तो उस पर आप ब्याज कमाएंगे और न ही उसे आगे इन्वेस्ट करेंगे। जितनी अच्छी प्लानिंग होगी..उतनी अच्छी तरह से जीवन को आगे बढ़ा पाएंगे लेकिन साथ-साथ पावर का इस्तेमाल करना होगा..दिमाग की ताकत..शारीरिक ताकत..मन की ताकत के बिना कामयाबी संभव नहीं...यदि पावर है और प्लानिंग नहीं..तो भी बेकार है क्योंकि पावर आपका बेवजह खर्च होगा..उसका फायदा आपको नहीं मिलेगा..और एक वक्त के बाद पावर का बेजा इस्तेमाल करते-करते आप भी इतने इस्तेमाल हो जाएंगे कि बहुत दूर तक जीवन को नहीं ले जा पाएंगे। चाहे शरीर की पावर हो..या दिमागी पावर...उसका सही इस्तेमाल..सोच-समझ कर इस्तेमाल करते हैं तो उसका लाभ आपको मिलता रहेगा।
कुल मिलाकर ये है कि यदि पावर है और प्लानिंग नहीं... तो बेकार है..और प्लानिंग है पर पावर नहीं... तो भी बेकार है..दोनों का काम्बीनेशन ही आपको..
हमें आगे ले जा पाएगा। दोनों को सोच-समझकर इस्तेमाल करना है..एक संतुलन के साथ करना है...जहां जितनी पावर की जरूरत है जहां जितनी प्लानिंग की जरूरत है..चाहे वो बच्चा हो...बूढ़ा हो..महिला हो या पुरुष..जीवन के किसी भी पढ़ाव पर हों..यदि आप इन दोनों के साथ आगे बढ़ते हैं तो लाईफ का रिजल्ट बेहतर आएगा..जो सोचा..जो अनुभव किया..वो लिख दिया..ये आपको तय करना है कि पावर और प्लानिंग को कैसे बेहतर किया जाए और कैसे अमल में लाया जाए...बाकी फिर...