मोदी जी ने संसदीय बोर्ड की बैठक में उन सांसदों को खड़ा होने को कहा..जो संसद में उस वक्त गैरहाजिर रहे..जब महत्वपूर्ण बिल पास होने थे..गैर हाजिर रहने का कारण पूछा..ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जबकि मोदी जी अपने मंत्रियों और सांसदों को वक्त का पाबंद रहने की हिदायत दे चुके हैं..लेकिन सांसदों का दिल है कि मानता नहीं...दरअसल मोदी जी सख्ती से काम चलाना चाह रहे हैं पर मंत्री और सांसदों को उनका रवैया पसंद नहीं..वो इसलिए क्योंकि मोदी जी कमान पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लिए हैं..उन्हें बच्चों जैसे ट्रीट कर रहे हैं..और मंत्री..सांसद बच्चे बनने नहीं आए हैं..क्योंकि बच्चे होते तो..मंत्री-सांसद कैसे बनते..यही टकराव पूरी सरकार पर झलक रहा है..इसलिए मोदी जी कितना ही चाह लें...उनकी पूरी कैबिनेट सक्रिय नजर नहीं आ रही..जितना मोदी जी सख्त होते हैं..मंत्री उतना ही कोने में दुबक जा रहे हैं.दखलंदाजी के चलते..वो अपने मंत्रालय में भी दिलचस्पी नहीं ले रहे। चाहे स्वच्छता अभियान हो..या फिर आदर्श ग्राम योजना...कई-कई महीने तक न तो सांसदों ने सफाई अभियान की औपचारिकता निभाने की जरूरत समझी..और न ही आदर्श ग्राम को गोद लेने की..अगर ग्राम गोद भी ले लिए..तो उनमें क्या हो रहा है...कोई भी जाकर देख सकता है...बड़ी हैरानी होती है कि आम आदमी..चाय-पान की दुकान पर मंत्रियों के रवैए..और मोदी जी की सख्ती की बात करता नजर आता है..अगर ये सब गलत है तो सरकार इस इमेज को क्यों नहीं तोड़ पा रही..यदि ये अफवाहें हैं तो सरकार की उदासीनता ही कहलाएगी..कि अफवाहें घटने के बजाए बढ़ती जा रही हैं।
इससे बुरा हाल आप का है जहां दिल्ली की सत्ता मिलते ही संघर्ष तेज हो गया..कौन संयोजक बनेगा...पार्टी कहां चुनाव लड़ेगी..इसको लेकर तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई..यहां तक की संस्थापक सदस्य भी लड़ गए..यहां भी आलम ये है कि अरविंद केजरीवाल के इर्द-गिर्द सारे फैसले घूम रहे हैं..बाकी को लग रहा है कि हमारी मेहनत का कोई मतलब नहीं..जब फायदे की बात आई तो केजरीवाल एंड पार्टी की ही चल रही है...कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं..राहुल गांंधी नदारद हैं..छुट्टियों पर हैं..सोनिया सड़क पर संघर्ष करने निकली हैं..और पार्टी के तमाम नेता..संगठन को लेकर अपनी-अपनी राय जाहिर कर रहे हैं...
ये तो हो गई पार्टियों की बात..उधर शरद यादव राज्यसभा में महिलाओं के शरीर पर टिप्पणी कर रहे हैं..तो यूपी की एक साध्वी जी लगातार कभी गांधी को..कभी मुस्लिमों को..अपनी जुबानी जंग की धार तेज किए जा रही हैं..सुब्रमण्यम स्वामी भी पीछे क्यों रहें..वो भी मस्जिदों पर टिप्पणी कर खुद को सुर्खियों में बनाए रखे हैं...
एक तरफ पार्टियों का अंदरूनी संघर्ष है..तो दूसरी ओर व्यक्तिगत अहम और सुर्खियों में बने रहने की कश्मकश..इसमें जिसको जो समझ में आ रहा है..वो कर रहा है..चाहे आपस में लड़कर..या फिर विवादों को जन्म देकर...
मार्केट में बने रहना है तो कुछ तो करना है..अगर आप अच्छा करने की कोशिश करोगे तो मेहनत लगेगी...वक्त लगेगा..धैर्य रखना पड़ेगा...सबको साथ लेकर चलना है..आज के जमाने में इतनी देर कौन ठहरता है...सभी को शार्टकट चाहिए..चाहे वो तरीका सही हो या गलत..इसी उधेड़बुन में हर कोई लगा है...हम आप भी उसी तरह व्यवहार करते हैं...किसी को सेट करने में लगे हैं तो किसी की बखिया उधेड़ने में..जहां फायदा मिलने की संभावना है..जो हमारी बात मान रहा है..जो अपने गिरोह का..उसकी हर बात जायज है..हर काम अच्छा है...हर कदम स्वागत योग्य है..जो दूसरे खेमे का है..विरोधी है..जिसने हमारा काम नहीं किया..जो हमारा प्रतिद्वंदी है..जो हमारे रास्ते में रोड़ा है..उसकी ऐसी-तैसी करने में देर किस बात की...सही या गलत की अब बात ही कौन कर रहा है....बाकी फिर.....
इससे बुरा हाल आप का है जहां दिल्ली की सत्ता मिलते ही संघर्ष तेज हो गया..कौन संयोजक बनेगा...पार्टी कहां चुनाव लड़ेगी..इसको लेकर तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई..यहां तक की संस्थापक सदस्य भी लड़ गए..यहां भी आलम ये है कि अरविंद केजरीवाल के इर्द-गिर्द सारे फैसले घूम रहे हैं..बाकी को लग रहा है कि हमारी मेहनत का कोई मतलब नहीं..जब फायदे की बात आई तो केजरीवाल एंड पार्टी की ही चल रही है...कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं..राहुल गांंधी नदारद हैं..छुट्टियों पर हैं..सोनिया सड़क पर संघर्ष करने निकली हैं..और पार्टी के तमाम नेता..संगठन को लेकर अपनी-अपनी राय जाहिर कर रहे हैं...
ये तो हो गई पार्टियों की बात..उधर शरद यादव राज्यसभा में महिलाओं के शरीर पर टिप्पणी कर रहे हैं..तो यूपी की एक साध्वी जी लगातार कभी गांधी को..कभी मुस्लिमों को..अपनी जुबानी जंग की धार तेज किए जा रही हैं..सुब्रमण्यम स्वामी भी पीछे क्यों रहें..वो भी मस्जिदों पर टिप्पणी कर खुद को सुर्खियों में बनाए रखे हैं...
एक तरफ पार्टियों का अंदरूनी संघर्ष है..तो दूसरी ओर व्यक्तिगत अहम और सुर्खियों में बने रहने की कश्मकश..इसमें जिसको जो समझ में आ रहा है..वो कर रहा है..चाहे आपस में लड़कर..या फिर विवादों को जन्म देकर...
मार्केट में बने रहना है तो कुछ तो करना है..अगर आप अच्छा करने की कोशिश करोगे तो मेहनत लगेगी...वक्त लगेगा..धैर्य रखना पड़ेगा...सबको साथ लेकर चलना है..आज के जमाने में इतनी देर कौन ठहरता है...सभी को शार्टकट चाहिए..चाहे वो तरीका सही हो या गलत..इसी उधेड़बुन में हर कोई लगा है...हम आप भी उसी तरह व्यवहार करते हैं...किसी को सेट करने में लगे हैं तो किसी की बखिया उधेड़ने में..जहां फायदा मिलने की संभावना है..जो हमारी बात मान रहा है..जो अपने गिरोह का..उसकी हर बात जायज है..हर काम अच्छा है...हर कदम स्वागत योग्य है..जो दूसरे खेमे का है..विरोधी है..जिसने हमारा काम नहीं किया..जो हमारा प्रतिद्वंदी है..जो हमारे रास्ते में रोड़ा है..उसकी ऐसी-तैसी करने में देर किस बात की...सही या गलत की अब बात ही कौन कर रहा है....बाकी फिर.....