हर यूनिट का जो भी मुखिया है..हैड है..प्रमुख है..बास है..उससे टकराने का मतलब ही है कि आप खुद को नष्ट करने जा रहे हैं...जी हां..या तो आप में उतना माद्दा होना चाहिए कि आप तख्ता पलट कर दें..यानि जो मुखिया है..उसे पद से हटाकर खुद मुखिया बन जाएं..ऐसा करते वक्त आपको याद रखना चाहिए कि आप अगर फेल हो गए तो आप धूल में मिल जाएंगे...आप पार्टी हो या बीजेपी..या कांग्रेस..बसपा हो या सपा..डीएमके हो या एआईडीएमके..या फिर जेडीयू हो या बीजेडी..कोई भी राजनीतिक दल देख लो..कोई भी संस्थान देख लो..जहां आप काम करते हो..ये समय की रीति चली आई है क्योंकि जो प्रमुख हैं..वो अपने हिसाब से अपनी संस्था को चला रहा है..इसे आप गलत कहें या सही..लेकिन जो प्रमुख है..उसके नजरिए से देखें तो अच्छा हो या बुरा..कहानी उससे ही शुरू होती है और उसी से खत्म होती है..ये बात अलग है कि टीम वर्क के बिना कोई काम संभव नहीं..कोई सफलता मुमकिन नहीं..लेकिन टीम भी वही बनाता है..टीम को वो अपने हिसाब से चलाता है..
मोदी को देख लो..या राहुल-सोनिया को..या फिर केजरीवाल को...सबसे उत्तम उदाहरण तो बसपा का है जहां पार्टी में फैसले लेने की क्षमता केवल मायावती रखती हैं..यही हाल केजरीवाल का हो रहा है..बीजेपी में मोदी ही फैसले लेने के लिए सक्षम हैं..और कांग्रेस में राहुल..सोनिया गांधी...हमारे जीवन में यही फलसफा लागू होता है..आपके हमारे घर का जो मुखिया है..चाहे वो दादा जी हों या पिता जी...या आप खुद..जो भी यूनिट का हैड है वो तय करेगा कि घर कैसे चलेगा..रीति-रिवाज कैसे चलेंगे...खर्च कैसे चलेगा..स्टंडर्ड कैसा रहेगा..पढ़ाई-लिखाई कैसे चलेगी...पहनावा कैसा चलेगा...यानि घर से लेकर बाहर तक मुखिया के फैसले की छाप रहेगी..
यही हाल आपके और हमारे दफ्तर का है...जो हमारा बास है..वो डिसाइड करेगा कि आपके दफ्तर का माहौल कैसा रहेगा...वहां काम करने का तरीका कैसा होगा...आपको सुविधाएं कैसी मिलेंगी...पूरा सिस्टम उसी पर निर्भर रहता है..जो विरोध करता है..वो या तो अलग-थलग पड़ जाएगा या फिर उसे छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा। हजारों में एक-दो ऐसे होते हैं जो अपने घर...दफ्तर..पार्टी से अलग विचार लेकर क्रांति की ठानते हैं..और वो अपने मुखिया को चुनौती देते हैं...चुनौती तभी देना चाहिए जब आप अपने मुखिया से ज्यादा खुद को ताकतवर समझते हैं..बल्कि समझने से काम नहीं चलेगा..उस ताकत को पहले तौलना पड़ेगा..और फिर आजमाना पड़ेगा..और उसके बुरे नतीजे के लिए भी तैयार रहना होगा...पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ ने तख्तापलट किया और राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली..इसे आप किसी भी रूप में लें लेकिन मैं यहां उनकी ताकत और सफलता की बात कर रहा हूं...इसलिए चुनौती तभी देने की सोचो..जब आप उस लायक हो जाओ..नहीं तो सामने वाले को नुकसान पहुंचाने के बजाए खुद के लिए गडढा खोद लोगे..या शुरू से रीति चली आई है कि जिसके के पास ताकत है वो आपके लोगों को भी तोड़ लेगा...इसलिए जिसकी लाठी होगी उसकी ही भैंस होगी।
LIFE में कभी भी आवेश में आकर..जोश में आकर..बिना सोचे-समझे कदम उठाओगे..तो परेशानी का सामना करोगे..और जो आप मौजूदा वक्त में हो..वो भी खो दोगे। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं कि लोगों ने चुनौती दी...और गुमनामी में खो गए..या फिर मन मसोस कर लौट आए..उमाभारती हों या फिर स्व.माधवराव सिंधिया..नारायण दत्त तिवारी...ऐसे बहुत से लोग हैं जो जीवन भर चुनौती देने की सोचते रहे..लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए..और खुद को घसीटते रहे।
इसलिए LIFE को बेहतर बनाना है तो पहले अपनी ताकत को विकसित करो..और यदि ताकत पैदा करने की क्षमता नहीं है तो चुपचाप मुखिया को सहन करना सीखो..क्योंकि आप उसके फालोअर हो..और वो जो कर रहा है सही कर रहा है..यही आपकी नियति है...बाकी फिर.......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com
मोदी को देख लो..या राहुल-सोनिया को..या फिर केजरीवाल को...सबसे उत्तम उदाहरण तो बसपा का है जहां पार्टी में फैसले लेने की क्षमता केवल मायावती रखती हैं..यही हाल केजरीवाल का हो रहा है..बीजेपी में मोदी ही फैसले लेने के लिए सक्षम हैं..और कांग्रेस में राहुल..सोनिया गांधी...हमारे जीवन में यही फलसफा लागू होता है..आपके हमारे घर का जो मुखिया है..चाहे वो दादा जी हों या पिता जी...या आप खुद..जो भी यूनिट का हैड है वो तय करेगा कि घर कैसे चलेगा..रीति-रिवाज कैसे चलेंगे...खर्च कैसे चलेगा..स्टंडर्ड कैसा रहेगा..पढ़ाई-लिखाई कैसे चलेगी...पहनावा कैसा चलेगा...यानि घर से लेकर बाहर तक मुखिया के फैसले की छाप रहेगी..
यही हाल आपके और हमारे दफ्तर का है...जो हमारा बास है..वो डिसाइड करेगा कि आपके दफ्तर का माहौल कैसा रहेगा...वहां काम करने का तरीका कैसा होगा...आपको सुविधाएं कैसी मिलेंगी...पूरा सिस्टम उसी पर निर्भर रहता है..जो विरोध करता है..वो या तो अलग-थलग पड़ जाएगा या फिर उसे छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा। हजारों में एक-दो ऐसे होते हैं जो अपने घर...दफ्तर..पार्टी से अलग विचार लेकर क्रांति की ठानते हैं..और वो अपने मुखिया को चुनौती देते हैं...चुनौती तभी देना चाहिए जब आप अपने मुखिया से ज्यादा खुद को ताकतवर समझते हैं..बल्कि समझने से काम नहीं चलेगा..उस ताकत को पहले तौलना पड़ेगा..और फिर आजमाना पड़ेगा..और उसके बुरे नतीजे के लिए भी तैयार रहना होगा...पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ ने तख्तापलट किया और राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली..इसे आप किसी भी रूप में लें लेकिन मैं यहां उनकी ताकत और सफलता की बात कर रहा हूं...इसलिए चुनौती तभी देने की सोचो..जब आप उस लायक हो जाओ..नहीं तो सामने वाले को नुकसान पहुंचाने के बजाए खुद के लिए गडढा खोद लोगे..या शुरू से रीति चली आई है कि जिसके के पास ताकत है वो आपके लोगों को भी तोड़ लेगा...इसलिए जिसकी लाठी होगी उसकी ही भैंस होगी।
LIFE में कभी भी आवेश में आकर..जोश में आकर..बिना सोचे-समझे कदम उठाओगे..तो परेशानी का सामना करोगे..और जो आप मौजूदा वक्त में हो..वो भी खो दोगे। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं कि लोगों ने चुनौती दी...और गुमनामी में खो गए..या फिर मन मसोस कर लौट आए..उमाभारती हों या फिर स्व.माधवराव सिंधिया..नारायण दत्त तिवारी...ऐसे बहुत से लोग हैं जो जीवन भर चुनौती देने की सोचते रहे..लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए..और खुद को घसीटते रहे।
इसलिए LIFE को बेहतर बनाना है तो पहले अपनी ताकत को विकसित करो..और यदि ताकत पैदा करने की क्षमता नहीं है तो चुपचाप मुखिया को सहन करना सीखो..क्योंकि आप उसके फालोअर हो..और वो जो कर रहा है सही कर रहा है..यही आपकी नियति है...बाकी फिर.......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com