Monday, March 2, 2015

इतना download मत करो

कंप्यूटर हो या मोबाइल..जितनी कैपेसिटी है..उसे जितनी तेजी से फुल कर लोगे..हैंग करने लगेगा..स्लो चलेगा और जब कोई महत्वपूर्ण जानकारी डाउनलोड करनी होगी तो कुछ डिलीट मारना होगा। बिलकुल कंप्यूटर की तरह हमारे दिमाग की भी क्षमता है। उसे जितनी तेजी से भरोगे..दिमाग की कैपेसिटी फुल हो जाएगी..ओवरलोड कर लोगे तो पता है कि हादसा होने की पूरी आशंका रहेगी। जो कंप्यूटर या मोबाइल एक्सपर्ट होते हैं..वो वक्त-वक्त पर उसे अपडेट करते रहते हैं। वायरस को हटाते रहते हैं..नीट एंड क्लीन रखते हैं तो कंप्यूटर और मोबाइल उतनी तेजी से काम करता है..व्यवस्थित होता है जो जानकारी चाहिए..आपको वक्त नहीं लगता..आपको पता है कि कौन सा ऐप कहां है..उसमें क्या है..क्या वीडियो है..क्या आडियो है क्या टेक्स्ट है। अगर उनके नाम लिखे हैं तो आप एक क्लिक मारते हैं और सामग्री हाजिर होती है। यदि कचरा भरा हुआ है तो उसे तलाशने में ही वक्त बर्बाद कर देते हैं..और होते हुए भी वो जानकारी कई बार हमें नहीं मिलती।


दिमागी कंप्यूटर का यही फलसफा है..उसकी एक कैपेसिटी है। जब बच्चा पैदा होता है तो दिमाग का कंप्यूटर लगभग खाली रहता है..नया दिमाग होता है..फुल स्पेस होता है..कोई वायरस नहीं होता..जैसे-जैसे वक्त बीतता है..जो देखता है..जो सुनता है..जो पढ़ता है..जो सोचता है..जो करता है...उसके दिमाग में फीड होना शुरू होते हैं। कहानी एक जीबी से शुरू होती है..और जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं...सैकड़ों जीबी तक मेमोरी बढ़ती जाती है। एक सीमा तक मेमोरी फुल होती है और फिर दिमाग उससे ज्यादा मेमोरी लेने की हालत में नहीं रहता। हर किसी की अलग-अलग क्षमता होती है..जो व्यवस्थित चलता है..कचरा साफ करता जाता है...फाइलें अलग-अलग बनाता है..केवल काम की सामग्री रखता है..वो अपनी क्षमता बढ़ा लेता है और जो लापरवाह रहता है..जो भी मिल रहा है..दिमाग में भरता जाता है..वायरस को दूर नहीं करता..उसकी मेमोरी जल्दी फुल हो जाती है..और कभी ज्यादा लोड न लेने के कारण दिमाग फेल हो जाता है..उसके बाद न तो आप सही सोच पाते हैं..सही कर पाते हैं..बेचैन रहने लगते हो..यदि वायरस की बीमारी लग गई तो उसका इलाज कराते हो..कई बार बीमारी ठीक हो जाती है लेकिन एक सीमा के बाद इलाज भी संभव नहीं।


आपने देखा होगा कि कई 80-90 साल के भी लोग हैं जिन्होंने दिमाग का प्रापर इस्तेमाल किया तो वो अब भी सेहतमंद दिखाई देंगे..उनकी सोच आपसे ज्यादा बेहतर होगी..उनकी काम करने की क्षमता बिलकुल दुरस्त होगी। कुछ लोग ऐसे भी देखे होंगे जिनकी उम्र केवल 25 से 30 साल ही है लेकिन शरीर बोल गया है..सोच मंद हो गई है..दिमाग में नए विचार आना बंद हो गए हैं और जिंदा लाश के तरह खुद को ढो रहे हैं..उन्हें देखकर हैरानी होती है कि अभी से जब उनकी ये हालत है जो जिंदगी के आखिरी पढ़ाव तक वो कैसे जिएंगे..जिएंगे भी तो मर-मर कर। ये वो लोग हैं जो जल्द से जल्द सब कुछ पा लेना चाहते हैं..सब कुछ कर लेना चाहते हैं..सब कुछ सोच लेना चाहते हैं..धैर्य नाम की चीज नहीं..तेजी इतनी की..गिर-गिर कर भी नहीं मान रहे। बीमार हैं..फिर भी दिमाग में डाउनलोड करते चले जा रहे हैं..और उसे कचरे के ढेर में तब्दील कर रहे हैं..किताब भी पढ़ रहे हैं..टीवी भी देख रहे हैं..सिनेमा भी देख रहे हैं..हर किसी को सुन भी रहे हैं..और उसे बीच में ही छोड़कर आगे बढ़ते चले जा रहे हैं।

पहले दिमाग की हालत समझो..उसकी क्षमता देखो.अगर ज्यादा करना है तो उसे खुराक दो..उसकी क्षमता बढ़ाओ..जो उपयोगी है उसे ही दिमाग में डाउनलोड करो..कचरे को हटाते जाओ...जानकारी को व्यवस्थित करते जाओ..दिमाग की बैटरी को चार्ज करते रहो...तो स्वाभाविक है कि ज्यादा वक्त तक चलेगा...अच्छा चलेगा......बाकी फिर.......