लड़कियों की फितरत होती है कि वो अपनी खूबसूरत काया..अपनी हेयर स्टायल..अपनी ड्रेसेस दिखाना चाहती हैं लेकिन जब लगता है कि कोई उसे घूर रहा है..सामने वाले की आंखों में शैतान लड़की को नजर आता है तो वो उसी ड्रेस को और लंबा खींचने का असफल प्रयास करती है..जो लड़कियां ज्यादा हिम्मत वाली होती हैं और जब उन्हें कोई नोटिस नहीं करता है तो वो जबरन अपने ऊपर नजर डालने के लिए अपनी हेयर स्टायल झटकने या फिर ड्रेस को ऊपर नीचे खींचने की एक्टिंग करती हैं...
दरअसल LIFE का ये फलसफा है कि जब हम अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हैं और हमारे पास शरीर..और कपड़ों के अलावा कुछ नहीं होता है तो हम उसी के जरिए अपने नंबर बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए तरह-तरह के जतन करते हैं..कई तो इस हद तक उतर जाती हैं कि ड्रेस की लंबाई और चौड़ाई का ध्यान ही नहीं रहता..या फिर ध्यान रहकर भी अनजान बनने की कोशिश होती है..और जब लगता है कि लोग उसे कुछ ज्यादा ही नोटिस कर रहे हैं..तो उसी ड्रेस को खींच-खींच कर उसकी लंबाई बढ़ाने की जद्दोजहद होती है। जाहिर है कि सरेराह चलते..या फिर दफ्तर में..या फिर पार्टी-समारोह में...दो तरह के लोग होते हैं..एक तो हम जिन्हें जानते हैं और दूसरे वो जिन्हें हम नहीं जानते हैं...जिन्हें जानते हैं..उनका आकलन हम ड्रेस से कम..खूबसूरती से कम..उसके ओहदे..उसकी प्रतिष्ठा...उसकी हैसियत...से करते हैं...जिन्हें हम नहीं जानते हैं..तो उन पर तभी नजर पड़ती है जबकि या तो उनकी काया चमक रही हो..या फिर पहनावा ऐसा हो..जिसे देखने के लिए हमारी आंखें..बार-बार उसकी ओर जाएं..आंखें भी दिल-दिमाग से इशारा पाती हैं..और उसी ओर जाती हैं..जहां दिल करता है...दिमाग अगर इजाजत नहीं भी देता है तो दिल कभी-कभी भारी पड़ जाता है..और नजर बचाकर आंखों को उस ओर ले ही जाता है..भले ही दिमाग के कहने पर जल्दी ही निगाह को हटा लें..
जिस तरह आंखें बार-बार किसी को निहारने लगती हैं उसी तरह उन बालाओं के साथ भी होता है जो आकर्षण का केंद्र बनने के लिए तरह-तरह की अदाएं अपनाती हैं और जब उन्हें लगता है कि सामने वाला जरूरत से ज्यादा उस पर ध्यान दे रहा है तो फिर उसी अदा को बैक करने की कोशिश करती हैं...ये शार्टकट कुछ वक्त के लिए जरूर फायदेमंद रहता है..तात्कालिक रूप से हम इस कोशिश के जरिए कुछ लोगों को प्रभावित कर सकते हैं लेकिन जो प्रभावित हो रहे हैं..उनका मकसद अगर आप समझ लेंगे तो ऐसी कोशिश से तौबा कर लेंगे..उनका मकसद वही होता है जो उन्हें सामने दिख रहा है..इससे ज्यादा कुछ नहीं..क्योंकि उन्हें मालूम है कि आपके भीतर खालीपन है..इसलिए आप बाहर से उसे भरने का प्रयास कर रहे हैं...एक समय होता है..एक उम्र होती है...तब तक हम काया के जरिए अपने को ढो सकते हैं..लेकिन जब काया का पीरियड खत्म हो जाएगा तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा..क्योंकि भीतर से तो हम पहले ही खोखले थे..बाहर भी खोखलापन आएगा तो जीवन में निराशा के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
जब हम दिमाग से खाली होते हैं तो ऐसी कोशिश करते हैं...जब हमारे भीतर खालीपन होता है तो हम उसे शरीर के जरिए भरने की कोशिश करते हैं..जिन महिलाओं ने देश का नाम रौशन किया..उन्हें शरीर को दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती..उनका नाम ही काफी होता है..नाम लेते ही एक रिसपेक्ट हमारे मन में आता है तो कुछ ऐसी भी महिलाएं होती हैं जिनका नाम लेते ही..आप किन शब्दों का उच्चारण करते हैं..ये यहां लिखने की जरूरत नहीं...इसलिए कहते हैं कि कुछ दिखा-दिखा कर छिपाते हैं..कुछ छिपा-छिपा कर दिखाते हैं...यही है जीवन दर्शन..बाकी फिर......
इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com whatsappup.blogspot.com
दरअसल LIFE का ये फलसफा है कि जब हम अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हैं और हमारे पास शरीर..और कपड़ों के अलावा कुछ नहीं होता है तो हम उसी के जरिए अपने नंबर बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए तरह-तरह के जतन करते हैं..कई तो इस हद तक उतर जाती हैं कि ड्रेस की लंबाई और चौड़ाई का ध्यान ही नहीं रहता..या फिर ध्यान रहकर भी अनजान बनने की कोशिश होती है..और जब लगता है कि लोग उसे कुछ ज्यादा ही नोटिस कर रहे हैं..तो उसी ड्रेस को खींच-खींच कर उसकी लंबाई बढ़ाने की जद्दोजहद होती है। जाहिर है कि सरेराह चलते..या फिर दफ्तर में..या फिर पार्टी-समारोह में...दो तरह के लोग होते हैं..एक तो हम जिन्हें जानते हैं और दूसरे वो जिन्हें हम नहीं जानते हैं...जिन्हें जानते हैं..उनका आकलन हम ड्रेस से कम..खूबसूरती से कम..उसके ओहदे..उसकी प्रतिष्ठा...उसकी हैसियत...से करते हैं...जिन्हें हम नहीं जानते हैं..तो उन पर तभी नजर पड़ती है जबकि या तो उनकी काया चमक रही हो..या फिर पहनावा ऐसा हो..जिसे देखने के लिए हमारी आंखें..बार-बार उसकी ओर जाएं..आंखें भी दिल-दिमाग से इशारा पाती हैं..और उसी ओर जाती हैं..जहां दिल करता है...दिमाग अगर इजाजत नहीं भी देता है तो दिल कभी-कभी भारी पड़ जाता है..और नजर बचाकर आंखों को उस ओर ले ही जाता है..भले ही दिमाग के कहने पर जल्दी ही निगाह को हटा लें..
जिस तरह आंखें बार-बार किसी को निहारने लगती हैं उसी तरह उन बालाओं के साथ भी होता है जो आकर्षण का केंद्र बनने के लिए तरह-तरह की अदाएं अपनाती हैं और जब उन्हें लगता है कि सामने वाला जरूरत से ज्यादा उस पर ध्यान दे रहा है तो फिर उसी अदा को बैक करने की कोशिश करती हैं...ये शार्टकट कुछ वक्त के लिए जरूर फायदेमंद रहता है..तात्कालिक रूप से हम इस कोशिश के जरिए कुछ लोगों को प्रभावित कर सकते हैं लेकिन जो प्रभावित हो रहे हैं..उनका मकसद अगर आप समझ लेंगे तो ऐसी कोशिश से तौबा कर लेंगे..उनका मकसद वही होता है जो उन्हें सामने दिख रहा है..इससे ज्यादा कुछ नहीं..क्योंकि उन्हें मालूम है कि आपके भीतर खालीपन है..इसलिए आप बाहर से उसे भरने का प्रयास कर रहे हैं...एक समय होता है..एक उम्र होती है...तब तक हम काया के जरिए अपने को ढो सकते हैं..लेकिन जब काया का पीरियड खत्म हो जाएगा तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा..क्योंकि भीतर से तो हम पहले ही खोखले थे..बाहर भी खोखलापन आएगा तो जीवन में निराशा के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
जब हम दिमाग से खाली होते हैं तो ऐसी कोशिश करते हैं...जब हमारे भीतर खालीपन होता है तो हम उसे शरीर के जरिए भरने की कोशिश करते हैं..जिन महिलाओं ने देश का नाम रौशन किया..उन्हें शरीर को दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती..उनका नाम ही काफी होता है..नाम लेते ही एक रिसपेक्ट हमारे मन में आता है तो कुछ ऐसी भी महिलाएं होती हैं जिनका नाम लेते ही..आप किन शब्दों का उच्चारण करते हैं..ये यहां लिखने की जरूरत नहीं...इसलिए कहते हैं कि कुछ दिखा-दिखा कर छिपाते हैं..कुछ छिपा-छिपा कर दिखाते हैं...यही है जीवन दर्शन..बाकी फिर......
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