Sunday, March 29, 2015

दिखा-दिखा कर छिपाते हैं..छिपा-छिपा कर दिखाते हैं

लड़कियों की फितरत होती है कि वो अपनी खूबसूरत काया..अपनी हेयर स्टायल..अपनी ड्रेसेस दिखाना चाहती हैं लेकिन जब लगता है कि कोई उसे घूर रहा है..सामने वाले की आंखों में शैतान लड़की को नजर आता है तो वो उसी ड्रेस को और लंबा खींचने का असफल प्रयास करती है..जो लड़कियां ज्यादा हिम्मत वाली होती हैं और जब उन्हें कोई नोटिस नहीं करता है तो वो जबरन अपने ऊपर नजर डालने के लिए अपनी हेयर स्टायल झटकने या फिर ड्रेस को ऊपर नीचे खींचने की एक्टिंग करती हैं...


दरअसल LIFE का ये फलसफा है कि जब हम अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हैं और हमारे पास शरीर..और कपड़ों के अलावा कुछ नहीं होता है तो हम उसी के जरिए अपने नंबर बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए तरह-तरह के जतन करते हैं..कई तो इस हद तक उतर जाती हैं कि ड्रेस की लंबाई और चौड़ाई का ध्यान ही नहीं रहता..या फिर ध्यान रहकर भी अनजान बनने की कोशिश होती है..और जब लगता है कि लोग उसे कुछ ज्यादा ही नोटिस कर रहे हैं..तो उसी ड्रेस को खींच-खींच कर उसकी लंबाई बढ़ाने की जद्दोजहद होती है। जाहिर है कि सरेराह चलते..या फिर दफ्तर में..या फिर पार्टी-समारोह में...दो तरह के लोग होते हैं..एक तो हम जिन्हें जानते हैं और दूसरे वो जिन्हें हम नहीं जानते हैं...जिन्हें जानते हैं..उनका आकलन हम ड्रेस से कम..खूबसूरती से कम..उसके ओहदे..उसकी प्रतिष्ठा...उसकी हैसियत...से करते हैं...जिन्हें हम नहीं जानते हैं..तो उन पर तभी नजर पड़ती है जबकि या तो उनकी काया चमक रही हो..या फिर पहनावा ऐसा हो..जिसे देखने के लिए हमारी आंखें..बार-बार उसकी ओर जाएं..आंखें भी दिल-दिमाग से इशारा पाती हैं..और उसी ओर जाती हैं..जहां दिल करता है...दिमाग अगर इजाजत नहीं भी देता है तो दिल कभी-कभी भारी पड़ जाता है..और नजर बचाकर आंखों को उस ओर ले ही जाता है..भले ही दिमाग के कहने पर जल्दी ही निगाह को हटा लें..

जिस तरह आंखें बार-बार किसी को निहारने लगती हैं उसी तरह उन बालाओं के साथ भी होता है जो आकर्षण का केंद्र बनने के लिए तरह-तरह की अदाएं अपनाती हैं और जब उन्हें लगता है कि सामने वाला जरूरत से ज्यादा उस पर ध्यान दे रहा है तो फिर उसी अदा को बैक करने की कोशिश करती हैं...ये शार्टकट कुछ वक्त के लिए जरूर फायदेमंद रहता है..तात्कालिक रूप से हम इस कोशिश के जरिए कुछ लोगों को प्रभावित कर सकते हैं लेकिन जो प्रभावित हो रहे हैं..उनका मकसद अगर आप समझ लेंगे तो ऐसी कोशिश से तौबा कर लेंगे..उनका मकसद वही होता है जो उन्हें सामने दिख रहा है..इससे ज्यादा कुछ नहीं..क्योंकि उन्हें मालूम है कि आपके भीतर खालीपन है..इसलिए आप बाहर से उसे भरने का प्रयास कर रहे हैं...एक समय होता है..एक उम्र होती है...तब तक हम काया के जरिए अपने को ढो सकते हैं..लेकिन जब काया का पीरियड खत्म हो जाएगा तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा..क्योंकि भीतर से तो हम पहले ही खोखले थे..बाहर भी खोखलापन आएगा तो जीवन में निराशा के अलावा कुछ नहीं बचेगा।

जब हम दिमाग से खाली होते हैं तो ऐसी कोशिश करते हैं...जब हमारे भीतर खालीपन होता है तो हम उसे शरीर के जरिए भरने की कोशिश करते हैं..जिन महिलाओं ने देश का नाम रौशन किया..उन्हें शरीर को दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती..उनका नाम ही काफी होता है..नाम लेते ही एक रिसपेक्ट हमारे मन में आता है तो कुछ ऐसी भी महिलाएं होती हैं जिनका नाम लेते ही..आप किन शब्दों का उच्चारण करते हैं..ये यहां लिखने की जरूरत नहीं...इसलिए कहते हैं कि कुछ दिखा-दिखा कर छिपाते हैं..कुछ छिपा-छिपा कर दिखाते हैं...यही है जीवन दर्शन..बाकी फिर......
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स्वयंभू से जो टकराएगा..चूर-चूर हो जाएगा

हर यूनिट का जो भी मुखिया है..हैड है..प्रमुख है..बास है..उससे टकराने का मतलब ही है कि आप खुद को नष्ट करने जा रहे हैं...जी हां..या तो आप में उतना माद्दा होना चाहिए कि आप तख्ता पलट कर दें..यानि जो मुखिया है..उसे पद से हटाकर खुद मुखिया बन जाएं..ऐसा करते वक्त आपको याद रखना चाहिए कि आप अगर फेल हो गए तो आप धूल में मिल जाएंगे...आप पार्टी हो या बीजेपी..या कांग्रेस..बसपा हो या सपा..डीएमके हो या एआईडीएमके..या फिर जेडीयू हो या बीजेडी..कोई भी राजनीतिक दल देख लो..कोई भी संस्थान देख लो..जहां आप काम करते हो..ये समय की रीति चली आई है क्योंकि जो प्रमुख हैं..वो अपने हिसाब से अपनी संस्था को चला रहा है..इसे आप गलत कहें या सही..लेकिन जो प्रमुख है..उसके नजरिए से देखें तो अच्छा हो या बुरा..कहानी उससे ही शुरू होती है और उसी से खत्म होती है..ये बात अलग है कि टीम वर्क के बिना कोई काम संभव नहीं..कोई सफलता मुमकिन नहीं..लेकिन टीम भी वही बनाता है..टीम को वो अपने हिसाब से चलाता है..

मोदी को देख लो..या राहुल-सोनिया को..या फिर केजरीवाल को...सबसे उत्तम उदाहरण तो बसपा का है जहां पार्टी में फैसले लेने की क्षमता केवल मायावती रखती हैं..यही हाल केजरीवाल का हो रहा है..बीजेपी में मोदी ही फैसले लेने के लिए सक्षम हैं..और कांग्रेस में राहुल..सोनिया गांधी...हमारे जीवन में यही फलसफा लागू होता है..आपके हमारे घर का जो मुखिया है..चाहे वो दादा जी हों या पिता जी...या आप खुद..जो भी यूनिट का हैड है वो तय करेगा कि घर कैसे चलेगा..रीति-रिवाज कैसे चलेंगे...खर्च कैसे चलेगा..स्टंडर्ड कैसा रहेगा..पढ़ाई-लिखाई कैसे चलेगी...पहनावा कैसा चलेगा...यानि घर से लेकर बाहर तक मुखिया के फैसले की छाप रहेगी..

यही हाल आपके और हमारे दफ्तर का है...जो हमारा बास है..वो डिसाइड करेगा कि आपके दफ्तर का माहौल कैसा रहेगा...वहां काम करने का तरीका कैसा होगा...आपको सुविधाएं कैसी मिलेंगी...पूरा सिस्टम उसी पर निर्भर रहता है..जो विरोध करता है..वो या तो अलग-थलग पड़ जाएगा या फिर उसे छोड़ने पर मजबूर होना पड़ेगा। हजारों में एक-दो ऐसे होते हैं जो अपने घर...दफ्तर..पार्टी से अलग विचार लेकर क्रांति की ठानते हैं..और वो अपने मुखिया को चुनौती देते हैं...चुनौती तभी देना चाहिए जब आप अपने मुखिया से ज्यादा खुद को ताकतवर समझते हैं..बल्कि समझने से काम नहीं चलेगा..उस ताकत को पहले तौलना पड़ेगा..और फिर आजमाना पड़ेगा..और उसके बुरे नतीजे के लिए भी तैयार रहना होगा...पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ ने तख्तापलट किया और राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली..इसे आप किसी भी रूप में लें लेकिन मैं यहां उनकी ताकत और सफलता की बात कर रहा हूं...इसलिए चुनौती तभी देने की सोचो..जब आप उस लायक हो जाओ..नहीं तो सामने वाले को नुकसान पहुंचाने के बजाए खुद के लिए गडढा खोद लोगे..या शुरू से रीति चली आई है कि जिसके के पास ताकत है वो आपके लोगों को भी तोड़ लेगा...इसलिए जिसकी लाठी होगी उसकी ही भैंस होगी।
LIFE में कभी भी आवेश में आकर..जोश में आकर..बिना सोचे-समझे कदम उठाओगे..तो परेशानी का सामना करोगे..और जो आप मौजूदा वक्त में हो..वो भी खो दोगे। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं कि लोगों ने चुनौती दी...और गुमनामी में खो गए..या फिर मन मसोस कर लौट आए..उमाभारती हों या फिर स्व.माधवराव सिंधिया..नारायण दत्त तिवारी...ऐसे बहुत से लोग हैं जो जीवन भर चुनौती देने की सोचते रहे..लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए..और खुद को घसीटते रहे।

इसलिए LIFE को बेहतर बनाना है तो पहले अपनी ताकत को विकसित करो..और यदि ताकत पैदा करने की क्षमता नहीं है तो चुपचाप मुखिया को सहन करना सीखो..क्योंकि आप उसके फालोअर हो..और वो जो कर रहा है सही कर रहा है..यही आपकी नियति है...बाकी फिर.......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Saturday, March 28, 2015

सपने देखो मगर शेखचिल्ली जैसे नहीं

सपने देखने में कोई बुराई नहीं..अच्छा सोचने में बुराई नहीं..मन है..कहीं तक जा सकता है..आप बैठे-बैठे अमेरिका की सैर कर आएं..व्हाइट हाउस में ओबामा की जगह ले लें...ख्यालों में तो बड़ा अच्छा लगता है लेकिन अपने सपनों से दूसरों को प्रभावित न करें..दूसरों से वायदे न करें..दूसरों को भरोसा न दिलाएं..हमारे राजनेता कुछ ऐसे ही सपने दिखा रहे हैं..आज से नहीं..आजादी के वक्त से ही...न जाने कितने चुनाव लड़े गए..अलग-अलग सपनों को दिखाकर..हर पांच साल जनता जान पाती है कि वो ठगी गई...


बात कर रहा हूं बुलेट ट्रेन की..आज इसलिए इसकी याद आ गई..क्योंकि ट्रेन से सफर कर लौटा हूं..ऐसा सफर..जिसकी कड़वी याद जीवन भर रहेगी। ये वो डाटा है जो स्टोर होने के बाद डिलीट होने वाला नहीं..एक साल बाद अपने घर गया था..जिस रात लौट रहा था..ट्रेन आने के आधा घंटे पहले रेलवे इनक्वायरी से पता किया तो बताया गया कि ट्रेन आधा घंटा लेट है..कोई बात नहीं...स्टेशन पहुंचा तो अलग ही नजारा था..करीब दो घंटे पहले दिल्ली-मुंबई रूट पर ललितपुर-झांसी के बीच एक मालगाड़ी पलट गई थी...मालगाड़ी क्या थी..भारी-भरकम विस्फोट भरी गाड़ी थी..पेट्रोल टैंकर लेकर जा रही थी...मालगाड़ी की दुर्घटना इतनी जबर्दस्त थी कि पटरी बीच से टूट चुकी थी...टेंकरों के पलटने से पेट्रोल बड़ी मात्रा में नीचे फैल चुका था...रात आठ बजे दुर्घटना हुई थी..अब आगे का किस्सा सुनिए...कोई बात नहीं..ट्रेन है तो दुर्घटना भी होगी...लेकिन बुलेट ट्रेन चलाने वाले रेलवे की कार्यप्रणाली देखिए...रात साढ़े आठ बजे मालवा एक्सप्रेस ललितपुर स्टेशन पर पहुंच चुकी थी...यात्री ठसाठस भरे हुए थे..जब काफी देर तक ट्रेन नहीं चली..तो यात्रियों ने स्टेशन की इनक्वायरी पर पता करने की कोशिश की...रेलवे कर्मचारी का जवाब था..मुझे कुछ नहीं मालूम..मेरे पास कोई जानकारी नहीं..कब ट्रेन चलेगी..मेरी ट्रेन जबलपुर-निजामुद्दीन एक्सप्रेस का समय निकल चुका था लेकिन कोई पता नहीं था कि ट्रेन कब आएगी..कब जाएगी..स्टेशन पर सैकड़ों यात्री इधर से उधर हैरान-परेशान..बच्चे-बूढ़े..महिलाएं..लेकिन स्टेशन मास्टर से लेकर पूछताछ सेवा तक कोई कुछ बताने को तैयार नहीं..दरअसल वो भी अपने आला अफसरों के फोन का इंतजार कर रहे थे..आगे के निर्देश के लिए....रात के दस बजे..बारह बजे..दो बजे...कुछ पता नहीं..मालवा एक्सप्रेस जस की तस स्टेशन पर टस से मस नहीं हुई...कई घंटों की इस प्रताड़ना के बीच किसी ने स्टेशन पर नींद ले ली..किसी ने रात का खाना खा लिया...लेकिन जिन्हें एक्जाम देने जाना था..वो हैरान-परेशान...

रात के दो बजे...पता चला कि जो ट्रेन आनी थी..वो बीना से ही दूसरे रूट से रवाना हो गई..कोई एनाउंसमेंट नहीं...कोई डिस्पले नहीं...रात तीन बजे स्टेशन पर छह घंटे से खड़ी मालवा एक्सप्रेस चली..तो ज्यादातर यात्री बिना सोचे-समझे उसी में सवार हो गए...ट्रेन चली तो लेकिन आधा घंटे बाद अंधेरे में जंगल में खड़ी हो गई..एक घंटे का सफर चार घंटे में तय कर झांसी पहुंची..बीच में दुर्घटना का नजारा देखा तो दिल कांप गया...पेट्रोल के टैंकर जस के तस खड़े थे..एक क्रेन लगी हुई थी..कुछ कर्मचारी मौजूद थे..लेकिन एक चिंगारी पूरे इलाके तो तबाह कर सकती थी...कैसी पटरी थी..जो टूट गई..कैसा प्रबंधन है कि 10 घंटे में मालगाड़ी को नहीं हटा पाया..कैसा प्रबंधन है कि पेट्रोल के टैंकर और फैला हुआ पेट्रोल को अलग नहीं किया जा सका...रात भर दिल्ली से मुंबई और मुंबई से दिल्ली के लाखों यात्री या तो किसी स्टेशन या जंगल में  भूखे प्यासे तड़पते रहे..मैने भोगा इसलिए मुझे बुरा लगा...मैं एक सामान्य यात्री था..यदि इस सफर में कोई वीवीआईपी होता..या फिर मध्यप्रदेश के मंत्री होते तो कम से कम दस सांसद रेल मंत्री प्रभु से मिलने चले जाते..लाखों यात्रियों की परेशानी का कोई मोल नहीं...

तो फिर बुलेट ट्रेन का सपना क्यों देख रहे हैं प्रधानमंत्री...ऐसा सपना जो यदि साकार भी हो जाए तो किसी मतलब का नहीं..एक मालगाड़ी बेहतर कैसे चले..एक पैसेंजर ट्रेन कैसे समय पर यात्रियों को एक-दो घंटे के रास्ता तय करा दे..कैसे हम दुर्घटनाओं से निपटने की प्रणाली विकसित कर लें..कैसे हम यात्रियों को सूचना देने की ईमानदारी दिखा दें..कैसे हम प्रबंधन को आपदा मैनेजमेंट सिखा दें..यदि ऐसा कर लें तो सबका साथ हो सबका विकास हो..नहीं तो चलाईए बुलेट ट्रेन...चलाईए मत..सपना ही देखिए...बाकी फिर.....इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Friday, March 27, 2015

घर का भेदी लंका ढाए

जी हां..श्रीराम के समय से चली आ रही ये कहावत आज भी हमारे आपके जीवन में असर कर रही है। केजरीवाल ने नसीहत दी पूरी दिल्लीवासियों को...स्टिंग कर डालो..उन सबका..जो आपको परेशान कर रहे हैं..भ्रष्टाचार कर रहे हैं..आपका काम नहीं कर रहे हैं..पता नहीं दिल्ली वासी कितना स्टिंग कर रहे हैं..लेकिन जब से दिल्ली सरकार बनी है..सबसे ज्यादा स्टिंग हो रहे हैं आप में..खुद उनकी ही पार्टी में..एक के बाद एक..धड़ाधड़..स्टिंग पर स्टिंग...मीडिया मजे ले रही है..विपक्ष मजे ले रहा है..और उनकी ही पार्टी में कुछ लोग मजे ले रहे हैं। कहते हैं कि जितना दुश्मन से खतरा नहीं होता है...उतना अपनों से होता है..जब अपने ही गडढा खोदते हैं..तो जल्दी खुद जाता है क्योंकि उन्हें मालूम है कि जमीन कितनी सख्त है..और कितनी गहराई है।


हमारे जीवन में भी यही होता है। जब आप पावर में आते हैं..चाहे वो राजनीतिक हो..सामाजिक हो..आर्थिक हों..तो आपके आसपास चापलूस..समर्थकों..की भीड़ खुद ब खुद उमड़ने लगती है..हर कोई आपका सगा-संबंधी बनने की कोशिश करता है..जो ज्यादा चालाक होते हैं वो अपने आप ही खुद को आपका खास आदमी..खास रिश्तेदार..खास दोस्त घोषित कर देते हैं..चाहे आप मानो या नहीं..लेकिन पब्लिक में अपनी मार्केटिंग कर अपना फायदा उठाने लगते हैं...और जब उनका काम अटकता है..आप उनके खास होने का लेबल उतार फेंकते हैं...तो फिर क्या होता है..फिर आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है...वही रिश्तेदार..वही दोस्त..वही समर्थक..आपका स्टिंग कर डालता है..आपकी रिकार्डिंग..आपके एसएमएस..आपके लिखे पत्र..जो भी मिलता है..वो उजागर कर भंडाफोड़ करता है..और इस तरह करता है कि वो तो इस जगत का सबसे बड़ा साधु-संत है..दूध की तरह धुला हुआ बिलकुल सफेद है..गंदगी उसमें भरी है जिससे वो नाराज होकर भंडाफोड़ कर रहा है। ऐसे-ऐसे लोग हैं जो दस-दस साल तक किसी के साथ रहे और जब किसी बात पर खटपट हुई और नाता टूटा तो दस साल की मन में भरी गंदगी उस पर उड़ेल दी।

सवाल ये नहीं है कि कौन दूध का धुला है और कौन नहीं..सवाल इसका है कि मौका परस्ती हमने खूब सीखी है..जब तक आपका किसी से काम बने..उसकी तारीफ के पुल बांधे जाओ..जब न बने तो उसको सबसे बड़ा पापी घोषित कर दो...दरअसल चाहे मोदी हों या केजरीवाल या फिर हम और आप..सभी एक ही हाड़-मांस के बने हैं..सभी के दिमाग का एक जैसा तंत्र है..सभी के दिल एक जैसे धड़कते हैं.. आपका कितना ही खास दोस्त क्यों न हो..आपका कितना प्रिय नेता क्यों न हो..आपकी कितनी ही प्रिय पति..या पत्नी हो..जीवन में हर दिन खटपट होती है...मोलभाव होता है..नफा-नुकसान होता है...गुस्सा और प्यार होता है...जब तक तालमेल होता है..हम उसे पीते जाते हैं..और दिल-दिमाग में स्टोर कर लेते हैं..जब रिश्ता दूसरे मोड़ पर जाता है..तो स्टोर किया गया डाटा हम बाहर निकालते हैं और बैकग्राउंड में पहले छोर से दूसरे छोर तक सब कुछ उड़ेल देते हैं..कोई एक पक्ष ऐसा नहीं करता..दूसरा पक्ष भी वही करता है...इसलिए जीवन का फलसफा ये है कि जब तक कोई आपका है..जब तक आप किसी के हैं..तब तक सब ठीक है...जिस दिन कोई आपसे अलग हुआ..तो सबसे ज्यादा नुकसान वही पहुंचाएगा..जो अब तक आपको फायदा पहुंचाता था...बाकी फिर.....

Friday, March 20, 2015

नकल से तो पूरा देश चल रहा है

ब्रिटेन..अमेरिका. और भारत के प्रतिनिधि बैठे हुए थे..अपने-अपने देश के बारे में चर्चा कर रहे थे..प्रशासन..तकनीक..सुरक्षा..सुविधाएं...इन सब पर मंथन चल रहा था। ब्रिटेन का प्रतिनिधि बोला..हमारे यहां कोई वारदात होती है तो 24 घंटे में अपराधी का पता लगा लिया जाता है..जापान का प्रतिनिधि बोला..आप पीछे हैं...हम तो दो घंटे में वारदात की जड़ में पहुंच जाते हैं..और उसका पूरा खुलासा कर देते हैं...भारत का प्रतिनिधि चुप बैठा हुआ था..बोला...आप लोग तो सदियों पीछे चल रहे हैं...हमारी पुलिस दुनिया की सबसे स्मार्ट पुलिस है...घटना होने के 24 घंटे पहले ही उसे पता होता है कि वारदात कहां होने वाली है..किससे होने वाली हैं..और कौन करने वाला है।

एक और बैठक चल रही थी...जापान..चीन और भारत के प्रतिनिधि शामिल थे...जापान का प्रतिनिधि बोला...हम सुई से लेकर हवाई जहाज तक बना रहे हैं...हम व्यापार..उद्योग में सबसे आगे हैं...चीन का शख्स बोला...ये तो हम भी बना रहे हैं....और जापान से सस्ता बना रहे हैं...भारत के प्रतिनिधि से रहा नहीं गया..गुस्से में बोला...अरे क्या फर्क पड़ता है...जापान...बनाए..या चीन बनाए....हम इस चक्कर में नहीं पड़ते...हम तो केवल मेड इन इंडिया लिखते हैं...जापान और चीन का माल हमारा हो जाता है।


बुरा मत मानना....अपने देश की बुराई करते..मुझे भी अच्छा नहीं लगता है..इसका मतलब ये मत निकाल लेना कि मैं देशद्रोही हो गया...आतंकवादियों से मिला हो गया..सांप्रदायिक हो गया..गनीमत मैं मुस्लिम नहीं..यदि ये लिख देता तो शायद मेरे ऊपर मिसाईलें तन जातीं...ये सब लिख रहा हूं..बिहार की नकल को देखकर...मीडिया पिछले तीन दिन से चला रहा है...सबसे पहले हमने यानि समय बिहार चैनल ने दिखाया...इसके बाद नेशनल मीडिया दे दनादन नकल पर महाभारत छेड़े हुए हैं...पूरे बिहार में ही नहीं..राष्ट्रीय स्तर पर भूचाल आया हुआ है कि देखो..बिहार में किस तरह नकल हो रही है...मैं तो यूपी में 25 साल से देख रहा हूं...मध्यप्रदेश के भिंड..मुरैना..रीवा में चले जाईए...यूपी के बुंदलेखंड यूनिवर्सिटी से लेकर उरई-जालौन-बांदा चले जाईए..जहां तो मैंने खुद देखा है..ऐसा ही मंजर..जहां स्कूल की दीवारों से लेकर छतों तक नकल की सप्लाई न जाने कितने सालों से चल रही है....ये अकेले बिहार का नजारा नहीं..हां..जहां की तस्वीर छप जाए..वो स्कूल चोर हो गया..वो छात्र चोर हो गए..नकलची हो गए...नकल पर तो पूरा देश चल रहा है...कम से कम 90 प्रतिशत लोग ही नकल पर चल रहे हैं..बालीवुड में हालीवुड की फिल्मों की नकल हो रही है..गीत-संगीत से लेकर कहानी तक चुराई जा रही है...फिल्म बनाने वालों के जाकर देखिए...हालीबुड की पूरी लाइब्रेरी होगी..इतनी बड़ी की बालीवुड की नहीं होगी..क्योंकि हालीवुड से ही बालीवुड बन रहा है..भोपाल के बैरागढ़ चले जाईए..कौन सा कास्मेटिक ब्रांड चाहिए...कुछ ही दिनों में पूरी फैक्ट्री सप्लाई मिल जाएगी....हमारा उल्हासनगर तो पूरे देश में सक्रिय है....अगर दसवीं बारहवीं के बच्चे नकल कर रहे हैं तो क्या बड़ी बात हो गई..हमारे मध्यप्रदेश में तो सैकड़ों डाक्टर नकल करके ही नहीं...फर्जी तरीके से बन गए..क्या-क्या लिखूं..नकल कहां नहीं है...बाकी फिर

Thursday, March 19, 2015

धन्य हो 'प्रभु'

प्रभु अच्छे आदमी है..लेकिन प्रभु क्या करें..इतना बड़ा देश है..इतनी बड़ी रेल लाइन है..इतने यात्री हैं..प्रशासन करप्ट है..पुलिस वाले वसूली की ड्यूटी करते हैं..रेल अफसरों को कमाई से फुर्सत नहीं..तो बदमाश अपना काम कर रहे हैं...उन्हें नहीं मालूम था कि ट्रेन से माननीय मंत्री जयंत मलैया और उनकी पत्नी सुधा मलैया..जो खुद भी बीजेपी की वरिष्ठ नेता हैं...एसी फर्स्ट में सफर कर रहे हैं..पता होता तो शायद अपना प्लान बदल लेते..दूसरी ट्रेन को निशाना बनाते..तब कोई दिक्कत नहीं होती..लेकिन नहीं मालूम था..रूटीन लूटपाट में वो चढ़ गए..निजामुद्दीन-जबलपुर एक्सप्रेस में..


एसी फर्स्ट में सभी को मालूम है कि मालदार लोग सफर करते हैं..इसलिए स्वाभाविक रूप से लूटपाट के लिए उससे अच्छा डिब्बा कोई नहीं हो सकता..लूटपाट की..लूटपाट में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आई..माल लेकर चलते बने..मंत्री जी और उनकी पत्नी को पहले लगा होगा कि वो तो नेता हैं..सब उनसे डरते हैं लेकिन बदमाशों ने जब धमकाया..तो उन्हें समझ आया कि बदमाश किसी मंत्री या बीजेपी के नेता से नहीं डरते...सरकार के पास लोकतंत्र हैं..उनके पास गन तंत्र है..जाहिर है गन तंत्र से बड़ा कोई नहीं...इसलिए बदमाशों को कोई परेशानी नहीं...इससे अच्छा शार्टकर्ट नहीं...एक ट्रेन लूटो..महीने भर का तो खर्चा चल ही जाएगा...

लेकिन दिक्कत ये हो गई कि मंत्री जी थे..उनकी पत्नी थी..इसलिए सुबह से मीडिया पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ इस बड़ी खबर पर जुट गया...और उनके साथ ही मध्यप्रदेश के दस सांसद चिंतित हो गए..इसलिए नहीं कि ट्रेन में लूटपाट हो रही है..इसलिए कि मंत्री जी को ही लूट लिया...सो...रेल मंत्री प्रभु जी के पास विरोध जताने पहुंचे..चिंता जताने पहुंचे..दस सांसदों को इतना समय निकालना पड़ा..इतनी चिंता करनी पड़ी..इन सांसदों को शायद नहीं मालूम कि ट्रेनों में हर रोज ऐसा होता है..कल ये घटना हुई और कल ही दूसरी घटना हुई..जो शायद ही किसी को मालूम हो..बेतिया शहर में एक गरीब महिला ट्रेन से कूद गई..अस्पताल में भर्ती है...पता है क्यों..क्योंकि वो जनरल डिब्बे में थी..और तीन-चार बदमाशों ने उससे छेड़छाड़ की..वो क्या करती..उसे जान बचाने के लिए कूदना पड़ा..वो महिला मंत्री नहीं थी..सांसद नहीं थी...इसलिए उस पर किसी ने चिंता नहीं जताई....आप समझ सकते हैं कि इन दोनों में से बड़ी घटना कौन सी थी...जाहिर है कि महिला की थी..लेकिन महिला की खबर अखबारों में भीतर के पेज पर है..शायद ही कोई उसे पढ़े..शायद ही कोई प्रतिक्रिया जाहिर करे..क्योंकि रोज ही ऐसा होता है...उस महिला को हम नहीं जानते..न ही सरकार जानती हैं..न ही नेता जानते हैं..इसलिए मरे तो हमारा क्या..लेकिन मंत्री जी के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए..लेकिन क्या करें..
बदमाश भी धर्मनिरपेक्ष है..वो ऐसा नहीं सोचते..वो तो जज के यहां भी डकैती करने घुस जाते हैं...अगर पुलिस वाला दिक्कत करता है तो उसे भी गोली मार देते हैं...
अब आप भी बताए...क्या इसे ही सरकार राज कहते हैं..सरकार कौन है..सरकार वो है जो दबंग है..जिसके पास गन है..जिसके पास चाकू है..अच्छों-अच्छों की हवा खराब कर दे..चाहे पुलिस वाला हो या अफसर..ज्यादा हथियार हों..जैसे नक्सलियों के पास है तो वो छत्तीसगढ़ के सुकमा कलेक्टर को भी उठा ले जाते हैं..इसलिए ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं...प्रभु भी जानते हैं कि ये सब चलता रहेगा...पुलिस वाले भी जानते हैं..एक-दो दिन बड़े अफसर..मंत्री जी चिल्लाएंगे..फिर शांत हो जाएंगे क्योंकि तब तक दूसरी घटना हो जाएगी..

यहां हर ताजा घटना पर चिंता होती है..पुरानी हो गई तो बात खत्म हो गई...इसलिए केवल 24 घंटे की परेशानी है..उसके बाद सरकार राज अपने रुटीन पर चालू हो जाएगा..सरकार राज यानि दबंग राज...इसलिए मंत्री जी को भी ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए..जो होना था सो हो गया...हमें और आपको भी ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं..ट्रेन में जाओगे तो लूटपाट कभी भी हो सकती है..महिलाओं-बेटियों से छेड़छाड़ कभी भी हो सकती है..सेना के जवान और पुलिस वाले भी कर सकते हैं...इसलिए हमें ही उपाय करना है...हमें ही सोचना है...हमें ही सतर्क रहना है..सरकार के भरोसे में रहने से अच्छा है.. भगवान भरोसे रहिए...ज्यादा सुखी रहोगे...बाकी फिर.....

Wednesday, March 18, 2015

हे भगवान ..कुछ तो रहम करो...

दिल्ली भारत की राजधानी..2011 के आंकड़ों के हिसाब से दिल्ली की आबादी 1.68 करोड़...मतदाता 1.33 करोड़..और आधार कार्ड कितने बने हैं अब तक..जानकर हैरान हो जाएंगे...1.68 करोड़...ये सरकार की तेजी है कि न तो आबादी बढ़ पाई..न मतदाता बढ़ पाए लेकिन आधार कार्ड बढ़ गए...करीब 35 लाख...क्यों बढ़े..इसकी वजह भी यूआईडीएआई बहुत ही साइंटिफिक तरीके से बता रही है...उसके मुताबिक ये सामान्य है..दिल्ली में बड़ी तादाद में दूसरे राज्यों और आसपास के शहरों के लोग आते-जाते रहते हैं लेकिन अपना आवासीय पता नहीं बदलवा पाते...और गुड़गांव का भी व्यक्ति दिल्ली में आधार का पंजीकरण करा सकता है। हैरानी की बात ये है कि यूआईडीएआई का इतना बड़े नेटवर्क को नहीं पता कि उनकी एजेंसियां और दलाल किस तरह से आधार कार्ड बनवा रहे है.आतंकी भी आसानी से ये कार्ड बनवा सकते हैं...बच्चे-बच्चे को मालूम है...झुग्गीवासियों को मालूम है कि आधार कार्ड कैसे बनता है..अगर चाहें तो यूआरडीएआई के परिवार के लोगों का आधार कार्ड आसानी से बनाया जा सकता है..महज तीन सौ रुपए में...


मोदी जी ने संसद में बताया कि हमने वो किया..जो यूपीए सरकार नहीं कर पाई..उसने आधार कार्ड की कवायद शुरू की थी..लेकिन उससे कई गुना आधार कार्ड हमने इतने कम समय में बनवा दिए..अब आपको बताते हैं कि एक छोटी सी गुमटी में के बाहर सरेआम बोर्ड लगा हुआ है कि यहां आधार कार्ड बनाया जाता है...वो पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस सब कुछ बना रहा है...आधार कार्ड का फार्म देगा..तीन सौ रुपए लेगा..जो भरना है..भर दो...कोई कागज नहीं..कोई वेरीफिकेशन नहीं...आपका आधार कार्ड जेनरेट हो जाएगा....नोएडा में ही कुछ स्टूडेंट पकड़े गए..जो ये काम कर रहे थे...वो भी उस लेपटाप से..जिसे अखिलेश सरकार ने पढ़ने के लिए दिया था....

आधार कार्ड बनने की प्रक्रिया जब शुरू होनी थी..तो बताया गया था कि ये बड़ा ही महत्वपूर्ण होगा..साइंसिटिफक तरीके से बनेगा...एक ही कार्ड से सब जगह आपकी पहचान हो जाएगी..लेकिन देश में जिस तरह दूसरी प्रक्रियाओं का हुआ..उससे बुरी गत इसकी हो गई। ड्राइविंग लाइसेंस आप किसी के नाम से बनवा लो..वोटर आईडी फर्जी बनवा लो..पेन कार्ड बनवा लो..कोई भी कार्ड बनवा लो..वो भी कुछ सौ रुपए में....हां ये जरूर है कि आप अगर पैसा खर्च नहीं करोगे तो चाहे कितने पहचान पत्र हों..एड्रेस प्रूफ हों..आयु प्रमाण पत्र हो..धक्के खाते रहोगे...महीनों..साल बीत जाएंगे लेकिन वो कार्ड नहीं बन पाएगा।

सबसे बड़ी हैरानी इस बात की है कि देश में जहां आई बी है..सीबीआई है...सरकारी तंत्र है..पुलिस है..प्रशासन है..फिर भी सरकार हो ये मालूम नहीं..प्रधानमंत्री जी को ये किसी ने नहीं बताया कि मात्र तीन सौ रुपए में आधार कार्ड बन रहा है..एजेंसी को सरकार से पैसा मिल रहा है..ऊपर से वो जनता से पैसा लूट रहे हैं..और फर्जी कार्ड बना कर सरकार वाह-वाही लूट रही है..दोनों खुश हैं..सरकार भी खुश है..एजेंसी भी खुश है....
गली-गली में शोर होता है..पर सरकार और उनके खुफिया तंत्र को ये पता नहीं होता..कि दिल्ली और एनसीआर में भी कुकुरमुत्तों की तरह हजारों दुकानें..गली-गली में खुली हुई हैं..जहां बाकायदा लिखा हुआ है..कि यहां पैन कार्ड..ड्राइविंग लाइसेंस...आधार कार्ड..पासपोर्ट बनवाए जाते हैं..हर किसी को मालूम है कि कितने पैसे लगेंगे..फिर भी देश में सुशासन है..राम राज्य है...सबका साथ..सबका विकास है...आम आदमी की सरकार है..हे..भगवान...कुछ तो रहम करो...बाकी फिर....


Tuesday, March 17, 2015

I am right, you are rong

मोदी जी ने संसदीय बोर्ड की बैठक में उन सांसदों को खड़ा होने को कहा..जो संसद में उस वक्त गैरहाजिर रहे..जब महत्वपूर्ण बिल पास होने थे..गैर हाजिर रहने का कारण पूछा..ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जबकि मोदी जी अपने मंत्रियों और सांसदों को वक्त का पाबंद रहने की हिदायत दे चुके हैं..लेकिन सांसदों का दिल है कि मानता नहीं...दरअसल मोदी जी सख्ती से काम चलाना चाह रहे हैं पर मंत्री और सांसदों को उनका रवैया पसंद नहीं..वो इसलिए क्योंकि मोदी जी कमान पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लिए हैं..उन्हें बच्चों जैसे ट्रीट कर रहे हैं..और मंत्री..सांसद बच्चे बनने नहीं आए हैं..क्योंकि बच्चे होते तो..मंत्री-सांसद कैसे बनते..यही टकराव पूरी सरकार पर झलक रहा है..इसलिए मोदी जी कितना ही चाह लें...उनकी पूरी कैबिनेट सक्रिय नजर नहीं आ रही..जितना मोदी जी सख्त होते हैं..मंत्री उतना ही कोने में दुबक जा रहे हैं.दखलंदाजी के चलते..वो अपने मंत्रालय में भी दिलचस्पी नहीं ले रहे। चाहे स्वच्छता अभियान हो..या फिर आदर्श ग्राम योजना...कई-कई महीने तक न तो सांसदों ने सफाई अभियान की औपचारिकता निभाने की जरूरत समझी..और न ही आदर्श ग्राम को गोद लेने की..अगर ग्राम गोद भी ले लिए..तो उनमें क्या हो रहा है...कोई भी जाकर देख सकता है...बड़ी हैरानी होती है कि आम आदमी..चाय-पान की दुकान पर मंत्रियों के रवैए..और मोदी जी की सख्ती की बात करता नजर आता है..अगर ये सब गलत है तो सरकार इस इमेज को क्यों नहीं तोड़ पा रही..यदि ये अफवाहें हैं तो सरकार की उदासीनता ही कहलाएगी..कि अफवाहें घटने के बजाए बढ़ती जा रही हैं।

इससे बुरा हाल आप का है जहां दिल्ली की सत्ता मिलते ही संघर्ष तेज हो गया..कौन संयोजक बनेगा...पार्टी कहां चुनाव लड़ेगी..इसको लेकर तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई..यहां तक की संस्थापक सदस्य भी लड़ गए..यहां भी आलम ये है कि अरविंद केजरीवाल के इर्द-गिर्द सारे फैसले घूम रहे हैं..बाकी को लग रहा है कि हमारी मेहनत का कोई मतलब नहीं..जब फायदे की बात आई तो केजरीवाल एंड पार्टी की ही चल रही है...कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं..राहुल गांंधी नदारद हैं..छुट्टियों पर हैं..सोनिया सड़क पर संघर्ष करने निकली हैं..और पार्टी के तमाम नेता..संगठन को लेकर अपनी-अपनी राय जाहिर कर रहे हैं...

ये तो हो गई पार्टियों की बात..उधर शरद यादव राज्यसभा में महिलाओं के शरीर पर टिप्पणी कर रहे हैं..तो यूपी की एक साध्वी जी लगातार कभी गांधी को..कभी मुस्लिमों को..अपनी जुबानी जंग की धार तेज किए जा रही हैं..सुब्रमण्यम स्वामी भी पीछे क्यों रहें..वो भी मस्जिदों पर टिप्पणी कर खुद को सुर्खियों में बनाए रखे हैं...
एक तरफ पार्टियों का अंदरूनी संघर्ष है..तो दूसरी ओर व्यक्तिगत अहम और सुर्खियों में बने रहने की कश्मकश..इसमें जिसको जो समझ में आ रहा है..वो कर रहा है..चाहे आपस में लड़कर..या फिर विवादों को जन्म देकर...

मार्केट में बने रहना है तो कुछ तो करना है..अगर आप अच्छा करने की कोशिश करोगे तो मेहनत लगेगी...वक्त लगेगा..धैर्य रखना पड़ेगा...सबको साथ लेकर चलना है..आज के जमाने में इतनी देर कौन ठहरता है...सभी को शार्टकट चाहिए..चाहे वो तरीका सही हो या गलत..इसी उधेड़बुन में हर कोई लगा है...हम आप भी उसी तरह व्यवहार करते हैं...किसी को सेट करने में लगे हैं तो किसी की बखिया उधेड़ने में..जहां फायदा मिलने की संभावना है..जो हमारी बात मान रहा है..जो अपने गिरोह का..उसकी हर बात जायज है..हर काम अच्छा है...हर कदम स्वागत योग्य है..जो दूसरे खेमे का है..विरोधी है..जिसने हमारा काम नहीं किया..जो हमारा प्रतिद्वंदी है..जो हमारे रास्ते में रोड़ा है..उसकी ऐसी-तैसी करने में देर किस बात की...सही या गलत की अब बात ही कौन कर रहा है....बाकी फिर.....

Sunday, March 15, 2015

power है पर planing नहीं

जब लाईफ में प्लानिंग नहीं होती तो अस्तव्यस्त हो जाती है...आजकल वो जमाना नहीं रहा..जब ज्यादातर लोग गांवों में रहते थे..खेती-किसानी करते थे..उनके बेटे..उनके बेटे..और पीढ़ी दर पीढ़ी यही कहानी..ज्यादा सोचने-समझने की जरूरत नहीं..केवल..आपको अपने खानदान को आगे बढ़ाते जाना है..अगर आपका परिवार व्यापारी वर्ग से ताल्लुक रहता था तो..आपको अपनी दुकान अपने बेटे को सौंपना है..और उसके बाद बेटा अपने बेटों को सौंप देता था..लेकिन अब ऐसा नहीं है...


जमाना लगातार तेजी से बदलता जा रहा है..परिवार माईक्रो यूनिट में तब्दील हो गए..यानि लड़के की नौकरी लगी..शादी हुई और उसका युनिट अलग..लड़की की नौकरी लगी..शादी हुई..वो अपने पति के साथ अलग युनिट में...पहले मां-बाप का ही नहीं...दादा-दादी का जलवा मरने तक कायम रहता था..क्योंकि संयुक्त परिवार होता था और उनकी बात का मान होता था..अब ऐसा नहीं...चंद ऐसे परिवार बचे होंगे..जो संयुक्त होंगे..यानि इस तरह के परिवारों की प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। जब सब कुछ साझा होता था..तो इनकम साझा होती थी..स्टेटस साझा होता था...और सोच भी साझा होती थी..आगे की रणनीति भी साझा बनती थी..अब ऐसा नहीं है...

अब ये है कि सिंगल युनिट को खुद करना है..लगातार प्लानिंग करनी है..और अपने जीवन को आगे बढ़ाना है..जिसमें पति-पत्नी हैं और उनके एक या दो बच्चे हैं। पति-पत्नी दोनों जीवन भर अपनी बेहतरी के लिए अलग-अलग जंग लड़ते हैं और जहां तालमेल होता है..वहां विचार साझा करते हैं...अब बचे बच्चे..तो वो भी स्कूल जाने की शुरूआत से ही जंग लड़ना शुरू करते हैं..कुछ सालों तक बच्चों को माता-पिता का गाइडेंस जरूर मिलता है..पर एक सीमा तक..एक आयु तक..14-15 साल के बच्चे अब खुद तय करते हैं कि उन्हें क्या पढ़ना है..क्या बनना है..और कैसे करना है...चाहे अच्छा हो या बुरा..माता-पिता को उनके दवाब में उनका साथ देना पड़ता है..जहां जबर्दस्ती होती है वहां मनमुटाव होता है और न मां-बाप को कुछ मिलता है और न ही बच्चों को...

सवाल ये है कि आप जिस क्षेत्र में जाना चाहते हैं..या जिस क्षेत्र में काम कर रहे हैं..उसमें आपको किस तरह आगे बढ़ना है..उसके लिए क्या जरूरी प्रयास करने हैं..कितनी मेहनत-संघर्ष करना है और फिर उस कामयाबी को हासिल करना है..इस तरह की प्लानिंग लोग करते हैं..कुछ कामयाब होते हैं..कुछ नहीं...लेकिन इतना तय है कि बिना प्लानिंग के अगर आप चलते हैं तो जीवन वहीं का वहीं रहता है..आगे नहीं बढ़ सकता..बेहतर नहीं हो सकता..इसलिए जीवन के किसी भी पड़ाव में हैं..प्लानिंग आपकी जरूर होने चाहिए..वो भी ऐसी जिसे आप अमल में ला सकें...लेकिन केवल प्लानिंग से ही काम नहीं बनता..उसे अमल में लाने के लिए पावर जरूरी है..जब तक आप अपनी ताकत उसमें नहीं उड़ेलेंगे..तब तक प्लानिंग केवल या तो कागजों पर सिमट पर रह जाएगी..या फिर आपके दिमाग में निष्क्रिय खाते में जमा पूंजी की तरह पड़ी रहेगी..न तो उस पर आप ब्याज कमाएंगे और न ही उसे आगे इन्वेस्ट करेंगे। जितनी अच्छी प्लानिंग होगी..उतनी अच्छी तरह से जीवन को आगे बढ़ा पाएंगे लेकिन साथ-साथ पावर का इस्तेमाल करना होगा..दिमाग की ताकत..शारीरिक ताकत..मन की ताकत के बिना कामयाबी संभव नहीं...यदि पावर है और प्लानिंग नहीं..तो भी बेकार है क्योंकि पावर आपका बेवजह खर्च होगा..उसका फायदा आपको नहीं मिलेगा..और एक वक्त के बाद पावर का बेजा इस्तेमाल करते-करते आप भी इतने इस्तेमाल हो जाएंगे कि बहुत दूर तक जीवन को नहीं ले जा पाएंगे। चाहे शरीर की पावर हो..या दिमागी पावर...उसका सही इस्तेमाल..सोच-समझ कर इस्तेमाल करते हैं तो उसका लाभ आपको मिलता रहेगा। 


कुल मिलाकर ये है कि यदि पावर है और प्लानिंग नहीं... तो बेकार है..और प्लानिंग है पर पावर नहीं... तो भी बेकार है..दोनों का काम्बीनेशन ही आपको..
हमें आगे ले जा पाएगा। दोनों को सोच-समझकर इस्तेमाल करना है..एक संतुलन के साथ करना है...जहां जितनी पावर की जरूरत है जहां जितनी प्लानिंग की जरूरत है..चाहे वो बच्चा हो...बूढ़ा हो..महिला हो या पुरुष..जीवन के किसी भी पढ़ाव पर हों..यदि आप इन दोनों के साथ आगे बढ़ते हैं तो लाईफ का रिजल्ट बेहतर आएगा..जो सोचा..जो अनुभव किया..वो लिख दिया..ये आपको तय करना है कि पावर और प्लानिंग को कैसे बेहतर किया जाए और कैसे अमल में लाया जाए...बाकी फिर...


Saturday, March 14, 2015

दिमागी पागलपन से कैसे निपटोगे?

पश्चिम बंगाल में 72 साल की बुजुर्ग नन के साथ गैंग रेप....ऐसी खबरों को देखकर..सुनकर दिल दहल जाता है..कभी छोटी सी बच्ची के साथ..कभी बुजुर्ग महिला के साथ..आखिर ऐसा क्यों करते हैं लोग..क्या वजह है इसके पीछे..दिमागी फितूर..मानसिक दिवालियापन..क्यों छा जाता है..इतनी गिरी हुई हरकत तक लोग कैसे चले जाते हैं...इतनी वीभत्सता..इतना दुस्साहस..क्या ये दिमागी डिसबैलेंस की निशानी नहीं...दिमाग में ऐसा कौन सा कीड़ा है जो आदमी को सारी हद पार करने की ताकत दे देता है...क्या इसका इलाज है..या नहीं..या फिर इससे बचने का क्या तरीका है..इसे रोकने का क्या तरीका है..शायद डाक्टर भी न बता पाएं...


हम जिस तरीके से तरक्की कर रहे हैं..नए-नए आविष्कार...नई-नई तकनीक..उससे कहीं ज्यादा रसातल में जाने की हिमाकत भी करने लगे हैं..एक पाजिटिव और एक निगेटिव..दोनों में दिमाग इतना ऊपर चला गया है कि पहले के लोग सोच भी नहीं सकते थे। जितने तेजी से पाजिटिव जा रहे हैं..कुछ लोग उतनी ही तेजी से निगेटिव भी...मेरे पास अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि सोच भी नहीं पाता..कि इन्हें चलाऊं..या न चलाऊं...खबर कैसी भी हो..खबर होती है..कभी लगता है कि समाज को बताना जरूरी है ताकि लोग अवेयर हो सकें..कभी लगता है कि खबर देने से गलत इंपेक्ट भी पड़ सकता है। आखिर में लगता है कि खबर दिखाना जरूर चाहिए..ताकि लोग अपने तरीके से उससे बचने की कोशिश तो कर सकें..या फिर सतर्क रहें। शायद ही ऐसा कोई दिन जाता है जब बुजुर्ग और बच्चों के साथ ऐसी घटनाएं न हों...जमाना बदलने के साथ मानसिकता भी बदली है..और मानसिक तेजी भी आई है...जैसे..इबोला..स्वाइन फ्लू..डेंगू..और न जाने क्या-क्या बीमारियां सामने आईं हैं तो निर्भया कांड..दीमापुर कांड...उबर कैब कांड..जैसी घटनाएं हमें देखने को मिली हैं..और अब प.बंगाल का ये केस...

आगे बढ़ने की ललक...पैसा पाने की हवस...शार्टकट से शार्टकट अपनाने के लिए जब हम तैयार रहते हैं..तो कुछ भी कर बैठते हैं...न तो अब किसी को परिवार की परवाह है..न ही अपने आसपास की..तो फिर समाज और देश की परवाह कौन करता है...इसलिए झूठ बोलना..भ्रष्टाचार करना..चापलूसी करना..साजिश-षडयंत्र करना तो हमारे सामान्य जीवन में पल-बढ़ रहे हैं.लेकिन इन सबसे ऊपर ये लोग हैं जिन्हें बच्चों की मासूमियत..और बुजुर्गों से दया की परवाह नहीं...वैज्ञानिकों को जरूर इस दिशा में सोचना चाहिए कि वो कौन से कारण हैं..वो कौन से तत्व हैं..क्या केमिकल लोचा है जिसकी वजह से कोई व्यक्ति सारी सीमाएं तोड़ देता है और ऐसी अनहोनी कर बैठता है जिससे उसे कुछ नहीं मिलने वाला..जिससे न तो उसका जीवन सुखी और बेहतर होने वाला है..न ही परिवार का भला होने वाला..बल्कि जो उसके पास है..उसे और खो देने वाला है...ये तय है कि आप अगर गलत करते हैं तो क्रिया की प्रतिक्रिया की तरह उससे ज्यादा आपको वापस जरूर मिलता है..आप समझ भी नहीं पाओगे कि ये प्रतिक्रिया उसे क्यों मिली..लेकिन उससे ज्यादा भयानक अंजाम के लिए ऐसे लोगों को तैयार रहना चाहिए..लेकिन जो अंजाम नहीं सोचता है वो ऐसा कर बैठता है...और उसके बाद जब भुगतता है तो एक पल का दुस्साहस..जिंदगी भर की तबाही के रूप में झेलता है....इसलिए पछताना नहीं है तो करने के पहले एक पल के जरूर सोच लो...बाकी फिर.....


Friday, March 13, 2015

छोटे दबंग..बड़े दबंग


वीवीआईपी...बड़ा ही चमकदार शब्द है..जैसे ही कहीं वीवीआईपी की बात होती है..तो हमारे कान चौकन्ना हो जाते हैं..वीवीआईपी सुनकर हम उस शख्स की गाड़ी को रास्ता दे देते हैं..पुलिस वाले सहम जाते हैं..दफ्तर में उसकी आवभगत होती है...स्वागत-सत्कार में कोई कमी नहीं होती..अगर कोई वीवीआईपी जा रहा है तो उसके लिए ट्रैफिक रूल मायने नहीं रखते..नो पार्किंग में गाड़ी करने की मनाही नहीं...जहां हथियार ले जाने की मनाही है..उनके गनर पूरे दबंगई के साथ आगे-पीछे चलते हैं..वो भी कम वीवीआईपी नहीं होते...साधारण आदमी को धकियाने में उन्हें बड़ा मजा आता है...गाली देकर बात करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं..यानि जो व्यक्ति जितना बड़ा वीवीआईपी है..उसके लिए उतने ही रूल तोड़े जाते हैं..जैसे उमा भारती के लिए ट्रेन रोकी गई..नितिन गडकरी बिना हेलमेट के स्कूटर पर नागपुर की सड़कों पर निकले. और कई तो हवाई जहाज तक रुकवा लेते हैं..ये तो बड़े दबंग हैं।


अब बात करते हैं छोटे दबंगों की..छोटे दबंगों की तादाद भी बढ़ती जा रही है...चौराहे पर रेड लाइट का इंतजार कौन करे..भले ही कोई काम नहीं हो..लेकिन रेड लाइट क्रास करने का मजा कुछ और ही है..जहां लिखा होगा कि टायलेट करना मना है वहां का नजारा देखकर आप समझ जाएंगे कि कितने दबंगों ने अपनी मौजूदगी दर्शायी है...सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों में..जहां पान-गुटखा थूकने की मनाही होगी..वहीं आपको लाल..लाल निशान दीवारों पर चित्रकारी करते नजर आएंगे। कूड़ेदान खाली होगा..लेकिन कचरा जमीन पर इधर-उधर बिखरा जरूर मिलेगा। मेट्रो हो..रेलवे स्टेशन हो..बस स्टैंड हो..अस्पताल हो..जहां भी लाइन होगी..वहां छोटे-छोटे दबंग लाइन तोड़कर सीधे खिड़की में हाथ डालेंगे..पीछे से कोई मना करेगा तो उसे बंदर घुड़की से चुप कराने की कोशिश करेंगे..बहुत छोटा दबंग होगा तो थोड़ा दब जाएगा..बड़ा दबंग होगा तो मारपीट पर उतर आएगा...

सबसे गरीब आदमी..सबसे निचले तबके का आदमी..सबसे शोषित आदमी..सबसे पीड़ित आदमी..ये शब्द सुनते हैं बड़ी ही दया सी मन में आती है..और ये वो शख्स हैं..ये वो तबका है जो नियमों का..कानून का सबसे ज्यादा पालन करता है...जिसकी जितनी हैसियत बढ़ती जाती है..उतनी ही नियम तोड़ने की आदत बढ़ती जाती है...सबसे ज्यादा नियम का पालन करने वाला..सबसे ज्यादा मार खाता है..जीवन भर कतारों में खड़ा होकर अपना समय गंवाता है...हैरान-परेशान होता है और आम आदमी कहलाता है...मजाक का पात्र भी खूब बनाया जाता है..अरे..देखो..लाइन में खड़ा है...थैला लेकर चक्कर काट रहा है..इसका काम होने वाला नहीं..काम तो दबंगई से होता है..पत्रकार होता है तो बोलता है..कि मैं मीडिया से हूं..नेता होता है तो बोलता है..कि मैं फलां पार्टी का अध्यक्ष हूं..महासचिव हूं..विधायक जी..सांसद जी..मंत्री जी का भाई हूं..चाचा..मामा..फूफा न जाने क्या-क्या हूं...पुलिस वाला है तो उसे सब जगह का आटोमेटिक लाइसेंस मिला हुआ है..चाहे रिजर्व बर्थ हो..चाहे कोई लाइन हो..चाहे कोई ट्रैफिक रूल हो..चाहे कोई भी नियम हो..नियम पुलिस से बड़ा नहीं होता...

नियम-कानून..दबंग के हिसाब से बनता-बिगड़ता है..जो जितना बड़ा दबंग है उसके लिए नियम ठेंगे पर है..जो गरीब है..साधारण है..बिना पैरवी वाला है..उसके लिए नियम कठोर है..उस पर पूरी ताकत से कानून लागू होता है...आपको गाली देने पर थाने में बंद किया जा सकता है..आपको मारपीट करने पर बंद किया जा सकता है..लेकिन महात्मा गांधी को ब्रिटिश एजेंट करने पर नहीं..ये तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहलाती है...आप को हेलमेट न पहनने पर चालान काटा जा सकता है..गाड़ी जब्त की जा सकती है..लेकिन अगर कोई नेता..या उनकी फौज वाहन रैली में सैकड़ों की तादाद में बिना हेलमेट की निकलती है तो ये प्रदर्शन कहलाता है...अगर आप किसी ट्रेन को रोकते हो तो जुर्माना और सजा हो सकती है..लेकिन वीवीआईपी के लिए ट्रेन रोकना जरूरी हो जाता है। क्या आप भी नियम तोड़ते हैं तो पैमाना लेकर नाप लीजिए..जितना ज्यादा नियम तोड़ते होंगे..आप उतने ही बड़े ही दबंग होंगे..अगर बिलकुल नियम नहीं तोड़ते हैं..पूरे अनुशासन में हैं तो आप दबंग है ही नहीं...ये आपको तय करना है कि आप छोटे दबंग ही रहना चाहते हैं या बड़े दबंग में शुमार होना चाहते हैं..या फिर गरीब की श्रेणी में जिंदगी भर दबे-कुचले..हैरान परेशान होकर नियम का पालन करना चाहते हैं...बाकी फिर.....

Thursday, March 12, 2015

Sting तो 'आप' के पास भी है !

झूठ मत बोलना...स्टिंग तो आपके पास भी बहुत हैं..फिर क्यों 'आप' के मजे ले रहो हो...केजरीवाल जी ने पूरी दिल्ली को सिखाया कि कोई भी गड़बड़ करे..उसका स्टिंग कर लो..और मुझे बताओ..मैं उस अफसर को जेल भिजवाऊंगा...लगता कि सबसे ज्यादा असर उनकी ही पार्टी पर असर हुआ है..अफसरों के स्टिंग तो अब तक नहीं निकले हैं लेकिन उनकी ही पार्टी के लोगों ने अपने ही नेताओं के स्टिंग कर लिए..और तो और..आप से सबसे ज्यादा कांग्रेस और उनकी ही पार्टी से गए लोगों ने सीखा है..इसलिए वो भी मार्केट में दनादन स्टिंग फेंके चले जा रहे हैं। एक कांग्रेस विधायक बड़ी ही मासूमियत से कह रहे हैं कि संजय सिंह ने उनका मोबाइल रखवा लिया तो उन्होंने हाथ में घड़ी लगाकर स्टिंग कर लिया। एक मित्र बता रहे थे...कि एक सांसद मिले..देखा कि उनकी जेब में पेन लगा हुआ है..उसमें एक प्वाइंट सा नजर आ रहा है..शक हुआ तो उनसे पूछा कि ये पैन कुछ अलग है..पैन उनकी जेब से निकाला..देखा तो उसमें कैमरा था..बोले..पता नहीं...बेटे ने दिया था...इतने मासूम सांसद आपको कहां मिलेंगे...



दरअसल हर कोई स्टिंग में लगा है..आप भी लगे होंगे..झूठ मत बोलना..मन ही मन में हामी तो आप भर ही रहे हो..और मुस्करा भी रहे हो..सबसे बड़ा स्टिंग तो आजकल आपका मोबाइल फोन ही कर रहा है..उसका नाम ही स्मार्ट है..बड़ा ही स्मार्ट है। जो भी बात कर रहे हो..रिकार्डिंग चल रही है...कोई मीटिंग की रिकार्डिंग कर ले रहा है कोई फोन पर अपने अधिकारी की बात रिकार्ड कर ले रहा है..सबसे ज्यादा स्मार्ट आजकल के युवा हैं..प्रेमी-प्रेमिका जीने-मरने की कसम खा रहे हैं लेकिन रिकार्डिंग के साथ..जो भी मुकरेगा..उससे निपट लिया जाएगा..बर्बाद कर दिया जाएगा..मुझे कहना तो नहीं चाहिए..ऐसी कई जानी-मानी शख्सियत बर्बाद हो गईं वो भी रिकार्डिंग के कारण..किसी के फोन की रिकार्डिंग सार्वजनिक कर दी गई..कोई सीसीटीवी में कैद हो गया। कोई लिफ्ट में ही हरकत कर रहा था तो कोई अपने ही दफ्तर से कुछ चुरा रहा था..रिकार्डिंग भी आजकल तत्काल इस्तेमाल नहीं की जाती..जब मौका लगता है...आपको नीचा दिखा दिया जाता है..आपका काम नहीं बनता है..आपकी हां में हां नहीं मिलाता है तो आपकी रिकार्डिंग का हथियार निकाल कर दिखा देता हैं..सारी पब्लिक मजा लेती है..और कहती है कि देखो..यार..मैं तो इसे बड़ा शरीफ समझ रहा था..ये तो बड़ा बदमाश निकला..कैसी हरकत कर रहा है..अपने बास के बारे में ऐसा बोल रहा है...उस लड़की के बारे में ऐसी गंदी-गंदी बात कर रहा है..

रिकार्डिंग का विस्फोट..आजकल कौन-कौन लेकर चल रहा है..आपको पता नहीं..आप अक्सर किसी के बारे में कोई भी टिप्पणी कर देते हो..अरे वो लड़की..मुझे मालूम है..करेक्टर की कितनी लूज है..अपने बास के बारे में बोलते हो..अरे..क्या बताएं..मजबूरी है..झेल रहा हूं..खूब कमा रहा है..ये ठीक नहीं कर रहा..वो ठीक नहीं कर रहा..ये अनर्गल प्रलाप आपका हमारा दिन भर चलता है..यहां तक कि पति-पत्नी एक-दूसरे के बारे में बोल देते हैं..पति एकदम निकम्मा है..दारूखोर है..लापरवाह है..कोई काम नहीं होता..पत्नी के बारे में आप बोलते हो..अरे..इसके बसका कुछ भी नहीं..एकदम निखट्ठू है..न जाने क्या-क्या..यहां तक कि बच्चों के बारे में..बच्चे माता-पिता के बारे में..ऊपर जल्दी चले जाएं तो हमारे पाप कटें..अब तो धरती पर बोझ हैं..खुद भी कष्ट भोग रहे हैं..हमें भी भोगना पड़ रहा है...अपने दोस्तों के बारे में भी दिन भर कुछ न कुछ राय देते रहते हैं..फलां बड़ा कामचोर है...देखो..कैसे दूसरों को उकसा रहा है..खुद बड़ा भोला बनता है..काम कुछ करता नहीं..साजिश-षड़यंत्र खूब करता है..देखो..लड़की को कैसे लाइन मार रहा है..उस छमकछल्लो को देखो..क्या ड्रेस पहनकर आई है...तमाम ऐसी टिप्पणियां करते हैं जो हम यहां लिख भी नहीं सकते..तमाम बुद्धिजीवी..पढ़े-लिखे..समाज के सभ्य और गणमान्य नागरिक..उनके जुबान पर जो गालियां सुशोभित होती हैं..आप भी जानते हो...मां-बहन तो मुंह में रहती हैं..जब चाहे उल्टियां कर दो..कुछ लोग तो गाली देकर कहते हैं..कि यार देखो वो गाली दे रहा है...

ये सब बातें जब तक रिकार्डिंग पर नहीं..तब तक कोई दिक्कत नहीं..सामान्य हैं..सब करते हैं..हर रोज करते हैं..सामने ही गाली देते हो..फिर नमस्कार करते हो..पैर भी छू ले तो हो..सामने वाला भी जानता है कि पैर क्यों छू रहा है..अगर काम नहीं हुआ तो मुंह पर ही गाली देगा...एक-दूसरे की जड़ें खोद रहे हो..लेकिन सबूत नहीं..एक छोटी सी गाली अगर रिकार्डिंग पर हो तो आप एक्सपोज हो जाओगे..बास के बारे में अनाप-शनाप बोल रहे हो तो बर्बाद हो जाओगे..लड़की की काया और उसके लाइफ स्टाइल पर कुछ अति सम्मानजनक बात कह रहे हो..तो वही लोग आपको सरेआम कूटेंगे..जो आपकी बात को चटखारे लेकर सुनते हैं..बोलेंगे..बताओ कितना कमीना है..ऐसी हरकत करता है।

तो दोस्तो..सोच लो..हथियार तो हर कोई लेकर घूम रहा है..मोबाइल हो या पेन ड्राइव हो..की रिंग हो..या फिर..पैन हो..कोई शर्ट के बटन में लगाए है..तो कोई..चश्मे में..कोई टेबल पर रखे है तो कोई डायरी में..कोई मोबाइल को तिरछा लिए..तस्वीर बना रहा है..आप भी करते हो..लेकिन दूसरा आपकी कब कहां तस्वीर खींच रहा है..कब कौन सी आवाज को कैद कर रहा है..इसलिए सोच लो..समझ लो..जो आप कर रहे हो..वही दूसरा भी कर रहा है...कब कौन फंसता है..कौन किसको बर्बाद करता है..ये आपको तय करना है..बाकी फिर....


Wednesday, March 11, 2015

जरा दूसरों का भी ख्याल करो

कल रात भर सो नहीं पाया..अपने कारण नहीं..दूसरों के कारण...कालोनी में अचानक आधी रात को शोरगुल शुरू हुआ...काफी देर तक सब्र करता रहा...नींद में उलट-पलट होता रहा..नींद डिस्टर्ब हो चुकी थी..शोरगुल थमने का नाम नहीं ले रहा था..दरवाजा खोलकर देखा कि पास के फ्लैट में बाहर किसी के शादी की रस्म चल रही है..आधी रात के बाद एक कुर्सी पर कपड़े उतार कर बैठा नौजवान..उसके इर्द-गिर्द महिलाएं और पुरुष..पता नहीं कौन सी रस्म हो रही थी...मेरी दिलचस्पी रस्म नहीं..बल्कि अपनी नींद डिस्टर्ब होने से थी..अगर नींद पूरी नहीं हो तो पूरा दिन बेकार जाता है..आलस आएगा..चिड़चिड़ापन रहेगा..सुबह घूमने का कार्यक्रम टालना पड़ेगा..ऐसे लगेगा कि आज का दिन बाकी दिनों की तरह नहीं..जो आपकी मजबूती है..उत्साह है..मन है..वो सब अधूरे-अधूरे से हैं..हम तो अपने तय वक्त के अनुसार चल रहे थे लेकिन दूसरों को इसकी परवाह नहीं..वो अपने तय वक्त के अनुसार चल रहे हैं...उन्हें इससे मतलब नहीं कि आस-पड़ोस में किसी बच्चे की कल परीक्षा है..कोई बीमार..दवा लेकर सो रहा होगा..किसी को सुबह दफ्तर के लिए जाना होगा...



हर परिवार के घर के अपने अनुशासन हैं...किसी को सुबह जल्दी उठना है तो किसी को रात को देर से सोना है..इसके बीच हम अपने रहन-सहन..भोजन..सोने..पढ़ाई...लिखाई तमाम हिसाब-किताब बिठाते हैं...सबका अपना-अपना राग है लेकिन जब हमारे घर का जश्न होता है तो हमें अपना जश्न दिखाई देता है..हमारे कालोनी में चला जश्न रात को दो बजे से ज्यादा देर तक चला.महिलाएं घूम-घूम कर जोर-जोर से गाना गाती रहीं..उन्हें जितना मजा आएगा..मुझे उतना भी गुस्सा...जब मैं डिस्टर्ब था..जाहिर है पूरी कालोनी रही होगी..किसी ने किसी से शिकायत भी नहीं की होगी लेकिन कालोनी के दर्जनों परिवारों के बच्चों..बड़ों..महिलाओं...बुजुर्गों की दिनचर्या पर आज बुरा असर पड़ेगा। वो महिलाएं तो आज दिन में सो रही होंगी..डिस्टर्ब होने वाले लोग अपने-अपने काम पर गए होंगे।

हर किसी को जश्न मनाने का हक है..जब हम जश्न मनाते हैं तो ढिंढोरा क्यों पीटते हैं...लाउडस्पीकर क्यों चलाते हैं..जोर-जोर से क्यों चिल्लाते हैं..जश्न हमारी खुशी है..तो दूसरों को क्यों बताने चाहते हैं...शादी हो..बच्चे का बर्थडे हो..कोई भी सेलिब्रेशन हो...कोई धार्मिक कार्यक्रम हो..दूसरों को क्यों शामिल करना चाहते हैं...क्या कहीं लिखा है कि आप जो भी करो..उसे दूसरों को बताओ..जताओ..या फिर जबर्दस्ती उसे भागीदार बनाओ...

लाउडस्पीकर..म्यूजिक सिस्टम..या फिर जोर-जोर से चिल्लाने का प्रावधान तो मुझे नहीं लगता कि किसी शास्त्र में लिखा है..अगर आपको खुशी मनाना है..अगर आपको धर्म लाभ लेना है तो लो..जिसकी इच्छा हो..उसे भी जरूर शामिल करो..लेकिन जबर्दस्ती नहीं...अगर ऐसा करोगे..जो आपको लाभ मिल रहा है..वो भी नहीं मिलेगा...बल्कि बद दुआएं जरूर मिलेंगी और लाभ कम हो जाएगा..जब हम ये सब करते हैं तो दूसरों की परेशानी भूल जाते हैं..जब दूसरे करते हैं तब हमें एहसास होता है..आप खुद देखते हैं कि कहीं जुलूस निकल रहा है..बारात में बीच रास्ते पर डांस हो रहा है..उसके शोरगुल से दूसरों को कितना कष्ट होता है..कोई बीमार एंबुलेंस में जा रहा है..उस पर क्या बीत रही होगी...इसलिए खुशी मनाओ..दूसरों को परेशान करके नहीं...बाकी फिर...


Tuesday, March 10, 2015

असली डेमोक्रेसी यानि मैं ब्रह्म हूं

उमा भारती..कभी साध्वी थीं..दूसरों को जीवन की राह दिखाती थी..धर्म-कर्म की बात करती थी..आज केंद्र में मंत्री हैं..झांसी की सांसद हैं..ट्रेन से जाना था..लेट हो रही थीं..तो उनके एसपीजी कमांडो ने आधा घंटे तक गोंडवाना एक्सप्रेस रोक ली.रुड़की का आईआईटी छात्र रो रहा है कि उसकी परीक्षा छूट गई..अब आप भी बताईए..एक साध्वी..एक केंद्रीय मंत्री..उसी इलाके की सांसद..अगर ट्रेन आधा घंटे रोक ली गई तो क्या हुआ..अगर आईआईटी छात्र का नुकसान हो गया तो क्या हुआ..कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है...रोज घंटों ट्रेन लेट होती हैं तो बवाल नहीं मचता..अगर उमाभारती के लिए रुक गई तो हंगामा काटा जा रहा है..लोकतंत्र है इसलिए आप केंद्रीय मंत्री पर भी सवाल उठा सकते हैं।


माननीय मार्कंडेय काटजू..सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं..प्रेस परिषद के मुखिया होकर मीडिया को दिशा-निर्देश देते रहे हैं..अगर वो कहते हैं कि महात्मा गांधी ब्रिटिश एजेंट की तरह काम कर रहे थे..अंग्रेजों की तरह फूट डालो राज करो की तरह गांधी जी ने काम किया..ये उनके विचार हैं...उन्होंने अपने ब्लाग में ये भी लिखा कि कुछ लोग उनसे सहमत नहीं होंगे..आपत्ति उठा सकते हैं..ये वही महात्मा गांधी हैं जिन्हें हम राष्ट्रपिता कहते हैं...अगर राष्ट्रपिता की कारगुजारी काटजू जी बता रहे हैं तो इसमें गलत क्या है..लोकतंत्र है।



राहुल गांधी ने कह दिया कि गांधी जी की हत्या में आरएसएस का हाथ था..आरएसएस कार्यकर्ता ने मानहानि की याचिका डाल दी..बांबे हाईकोर्ट ने नोटिस थमा दिया। अमित शाह ने चुनाव में कह दिया कि काला धन लाएंगे..सबके एकाऊंट में लाखों जमा हो जाएंगे..बाद में मीडिया ने पूछा कि एकाउंट में पैसा कब आएगा..बोले..वो तो चुनाव था..इसलिए बोल दिया...

लालू यादव की बेटी मीसा भारती ने सोशल मीडिया पर कुछ फोटो डाले और बताया कि वो हावर्ड यूनिवर्सिटी में नए दौर में भारत की राजनीति और महिलाओं की भूमिका पर लेक्चर देकर आई हैं..हावर्ड यूनिवर्सिटी को पता चला तो उसने इसे दावे को झूठा बताया..अब लालू यादव कह रहे हैं कि मीडिया वाला कुछ कन्फूजया गया था।

आप के संस्थापक सदस्य पिता-पुत्र भूषण और योगेंद्र यादव ने आप के लिए कितनी मेहनत की..ये अब आप के ही बाकी ईमानदार सदस्य बता रहे हैं..यहां तक कहा कि पार्टी को हराकर केजरीवाल का दिमाग ठिकाने लगाना है..अब आप के बाकी ईमानदार सदस्य उन्हें ठिकाने लगा रहे हैं।

ये तो कुछ ताजा उदाहरण हैं..इसी को लोकतंत्र कहते हैं..आप कोई भी हों..कुछ भी बोल सकते हैं..चाहे झूठ हो सच..किसी के बारे में कह सकते हैं। दरअसल लोकतंत्र का हमने जो मतलब निकाला है..उस का अर्थ है मैं ब्रम्ह हूं...मैं अपने लिए करता हूं..अपने लिए बना हूं..अपना ही सोचता हूं..बाकी को ठेंगे पर रखता हूं...कानून हम ही बनाते हैं तो बिगाड़ने का अधिकार मुझे ही है। जिस संस्था में काम करता हूं..अगर मेरे मन का नहीं हुआ..तो उसकी ऐसीतैसी कर सकता हूं.अगर संस्था मैंने बनाई है तो उसे नष्ट करने का अधिकार मुझे ही है...अगर कानून में किसी वक्त में फिट नहीं बैठ रहा तो उसे तोड़ने का अधिकार मुझे हैं...जो मैं कहता हूं वही सही है..जो मैं करता हूं वही उचित है...क्योंकि यही असली डेमोक्रेसी है..और उसका मतलब मैं ब्रह्म हूं...बाकी फिर.....


Monday, March 9, 2015

मन की selfie ली क्या?

मोदी जी ने सेल्फी क्या ली..भारत में सेल्फी की होड़ लग गई..संडे को मेट्रो में था..देखा कि दस में से आठ लोग मोबाइल पर चिपके हुए हैं। इनमें से एक खड़े-खड़े ही सेल्फी ले रहा था..लौट रहा था तो देखा कि एक मोहतरमा कभी मोबाइल को सीधा..कभी तिरछा..कभी आड़ा..कभी पास..कभी दूर..सेल्फी सेट करने में जुटी हुई हैं। किस्म-किस्म की सेल्फी..कोई चिढ़ाता हुआ..कोई मुस्कराता हुआ..कोई केवल अपनी आंखें ले रहा है..कोई केवल चेहरा..कोई आधे शरीर की सेल्फी बना रहा है..तो कोई पूरे परिवार के साथ..कोई पति-पत्नी के साथ..कोई बेटा-बेटी के साथ..कोई प्रेमी-प्रेमिका के साथ..अजब सेल्फी..गजब सेल्फी..कभी सोचा कि हम सेल्फी क्यों लेते हैं..और बाहर की सेल्फी ही क्यों लेते हैं..कभी भीतर की सेल्फी क्यों नहीं लेते?


क्या हम सेल्फी के जरिए अपनी खूबसूरती दिखाना चाहते हैं?..क्या अपनी स्मार्टनेस के कायल हैं? क्या हम अपनी मार्केटिंग करना चाहते हैं? क्या हम सेल्फी के जरिए दूसरों को इंप्रेस करना चाहते हैं?..फेसबुक पर अपने चहेतों की लाईक की दरकार है?...बड़ों की देखादेखी छोटे भी क्यों पीछे रहे...इधर मोबाइल..उधर मोबाइल..दनादन सेल्फी..उनसे पूछो कि सेल्फी क्यों ले रहे हो..तो बोलते हैं यूं ही..शौक है..फैशन है..पैशन है...जिसके मन में जो आया..बता रहा है..लेकिन असल में सेल्फी क्यों लेते हैं..ये समझ में नहीं आया..और तो और..कुछ लोग तो इसके चक्कर में जान से भी खिलवाड़ करने में नहीं चूक रहे..कोई चलती ट्रेन में बाहर लटककर खींच रहा है..तो कोई छत से लटककर...कोई बाईक पर सवार होकर...
यहां तक तो गनीमत है..कुछ बालाएं..बेजा सेल्फी ले रही हैं..कोई ऊपर से सेल्फी..कोई नीचे से सेल्फी..और ऊपर से कह रही हैं कि लाईक मी...शरीर का जो हिस्सा दूसरों के मन में वासना जगाता है..उसके एक-एक कोण को नापने की कोशिश चल रही है...यही नहीं उन्हें दनादन लाईक भी मिल रहे हैं...लाईक की पोटली लिए हम आखिर में गिनते हैं और खुश होते हैं कि कितनी कमाई हुई है।

अब सवाल ये है कि बाहर की सेल्फी तो हम रोज ले रहे हैं लेकिन कभी भीतर की सेल्फी ली..कभी मन की सेल्फी लेकर देखी है..दरअसल मन में झांकने की फुर्सत कहां है..बाहर से ही नहीं निपट पा रहे हैं तो भीतर देखने का वक्त कहां...जिस बेवकूफ को झांकना है वो झांके..हम तो बाहर से ही काम चला रहे हैं...भीतर की सेल्फी लेंगे तो खुद को ही बुरा लगेगा..बाहर वाले तो लाईक की जगह डिस लाईक ही करेंगे। जैसे मोदी जी ने कहा कि हमें स्वच्छता अभियान चलाना है...बाहर की सफाई करनी है..ऐसे ही हम भी बाहर ही बाहर जुटे हुए हैं..बाहर का ही नहीं समेट पा रहे हैं तो भीतर का क्या समेटेंगे। भीतर की सफाई होगी तभी तो हम अंदर की सेल्फी लेने की हिम्मत जुटा पाएंगे। भीतर का कचरा दिखता नहीं है इसलिए बिकता नहीं है..उसे भीतर ही पड़े रहने दो..अगर हमने झांक लिया तो दिक्कत हो जाएगी..हो सकता खुद से ही घिन आने लगे...इसलिए बाहर शानदार ड्रेसअप करो...क्रीम-पावडर लगाओ...कपड़े पहन कर सेल्फी लो..या फिर कपड़े उतार कर लो..दोनों ही बिकेंगे...लेकिन भीतर मत झांकना..अगर भीतर झांकोगे तो बहुत हिम्मत चाहिए..कड़वा घूंट निगलना पड़ेगा..देखोगे तो बहुत सारा कचरा निकलेगा..उसे साफ करने के लिए वक्त लगेगा..मेहनत करनी पड़ेगी...लेकिन सोचो..अगर ये कर लिया..तो कमाल हो जाएगा...जिस दिन मन की सेल्फी लेने की हिम्मत आ जाएगी..वो दिन आपके हमारे लिए कितना बड़ा होगा...मन की सेल्फी के लिए मोबाइल की जरूरत नहीं पड़ेगी..ये सेल्फी दूसरे के मन में लाईक होगी..गिनती भले ही नहीं कर पाओ..लेकिन महसूस जरूर होगा...वो सेल्फी अमिट होगी..स्क्रोल की तरह नीचे नहीं जाएगी..दूसरे के मन में अगर छप गई तो छपी ही रह जाएगी..जीवन भर.....बाकी फिर....


Sunday, March 8, 2015

न खाता न बही..हम जो कहें वही सही

तीन घटनाएं...जम्मू-कश्मीर में मसरत को छोड़ने का मामला हो..या फिर आप के केजरीवाल के रोने की घटना.और नागालैंड के दीमापुर में रेपिस्ट को फांसी पर लटकाना..आप दूसरों से अलग कहां हैं...पहले बात करते हैं जम्मू-कश्मीर की....तोगड़िया कह रहे हैं कि मुफ्ती को कान पकड़ कर सरकार से हटा देना चाहिए..बीजेपी कह रही है कि हमसे नहीं पूछा गया..हम इसकी निंदा करते हैं. हमें सरकार की चिंता नहीं..पीडीपी भी कह रही है कि हमें सत्ता का मोह नहीं....केंद्र के गृह मंत्रालय ने राज्य से रिपोर्ट मांगी है...सामना ने कहा है कि मसरत कांड पर तीखी टिप्पणी की है और नागालैंड की घटना को सही ठहराया है।



कुल मिलाकर ये है कि मुफ्ती को मुस्लिम वोट की चिंता...बीजेपी और शिवसेना को हिंदू वोट की...दोनों मिलकर सरकार चला रहे हैं..दोनों एक दूसरे के विरोधी है...दोनों ही सत्ता के लालची नहीं..ये आपको तय करना है कि लालची हैं या नहीं...दोनों ही बड़ी मासूमियत से कह रहे हैं कि उन्हें जनता की चिंता है..जनता से कोई पूछ नहीं रहा है कि कौन सही है..कौन गलत है..एक बार आपने वोट दे दिया है तो फिर उन्हें ही तय करना है कि खाता न बही..जो वो कहें वही सही...जनता बेचारी क्या करे..उसके पास प्लेटफार्म फेसबुक..टविटर का है तो वो उस पर कोस रहे हैं। ये बात अलग है कि कोई कितना भी कोसता रहे..किसी भी पार्टी पर फर्क पड़ने वाला नहीं..ये भी मान लीजिए कि बीजेपी-पीडपी के बीच ये रस्साकसी अगले विधानसभा चुनाव तक चलेगी..पीडीपी को जो करना होगा वो करेगी..बीजेपी को भी ये पता है..बीजेपी को जब तक विरोध करना होगा..विरोध करेगी..जिस दिन समर्थन वापस लेना होगा ले लेगी..नहीं लेना होगा तो मासूम बन कर विरोध जताती रहेगी..निंदा करेगी..बयान बाजी होगी..चेतावनी होगी..और फिर शांत हो जाएगी। ऐसे व्यवहार करेगी कि हम क्या करें...पीडीपी है कि मानती नहीं।

यही हाल आप का है..नया खुलासा हुआ है कि लोकसभा चुनाव में आप की हार के बाद हुई बैठक में केजरीवाल तीन बार रोए थे क्योंकि उन पर योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने हार का ठीकरा फोड़ दिया था..तब किसी ने नहीं बताया..अब क्यों बता रहे हैं...जब पार्टी ने दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस को साफ कर दिया तो योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को उनकी हैसियत बता दी गई..पहले वे दोनों केजरीवाल को बता रहे थे...यानि जिसका मौका आया..चौका मार दिया...अब बड़ी मासूमियत से बताया जा रहा है कि केजरीवाल की आंखों में आंसू तक आ गए..ऐसी हरकत की उनके विरोधियों ने...विरोधी क्या..अपनों ने ही की...योगेंद्र यादव भी मासूमियत से कह रहे हैं कि हमें पार्टी को आगे बढ़ाना है..विचारधारा में टकराव चलता रहता है..मयंक गांधी कह रहे हैं कि उन्हें हटाने की तैयारी है..पहले से बता कर शहीद होने से थोड़ा लाभ तो मिलेगा।


तीसरा मसला है नागालैंड के दीमापुर का...सामना ने कहा है कि दिल्ली के निर्भया कांड में भी ऐसा ही होना चाहिए था...जब सामना ये लिख रहा था तभी मुंबई में एक महिला सिपाही ने कहा कि उस पर एक पुलिस अफसर ने शारीरिक शोषण के लिए दबाव डाला..सामना बताए कि उस पुलिस अफसर का क्या करना चाहिए...एक टीवी चैनल ने इस घटना को 5000 किलर नाम दिया है..गिनती किसी ने अब तक की नहीं है..कोई दस हजार बता रहा है..कोई पांच हजार...कोई कह रहा है कि ठीक किया..कोई कह रहा है कि आईएसआईएस और नागालैंड की भीड़ में कोई फर्क नहीं..ये कोई नहीं देख रहा कि उसमें ज्यादातर स्कूल की बच्चियां थीं...यदि वो अपने मन से आईं थीं..तो वो आईएसआईएस की तरह कैसे हो गईं...अगर कोई उन्हें लाया था..तो वो कौन थे...जांच तो होती रहेगी..हजारों जांचें हुईं है..लेकिन ये कोई क्यों नहीं बता रहा कि आखिर ऐसी नौबत क्यों आईं..सही हो या गलत...

बीजेपी के सत्ता में आने में अहम रोल सोशल मीडिया का भी कहा जाता है..अब यही सरकार सोशल मीडिया पर फुटेज को रोकने की असफल कोशिश कर रही है...पहले बीबीसी पर निर्भया कांड के दोषी के इंटरव्यू को रोकने की कवायद..केंद्र जब तक रोक लगाती तब तक यू टयूब पर लोग मजे से उस इंटरव्यू को देख चुके थे..एक कापी से लाखों-करोड़ों कापी बना लो..ऐसा ही दीमापुर कांड में हो रहा है...वीडियो..एसएमएस पर रोक लगाई गई है..जो तीर निकलने से वो उसी वक्त निकल गए..जब ये कांड हुआ..एक मोबाइल की रिकार्डिंग कहां-कहां तक गई होगी..कोई माई का लाल पता नहीं लगा सकता...ढोल पीटना है तो पीटते रहो...बयान देना है तो देते रहो...न तो घटनाएं रुकने वाली हैं..न ही सोशल मीडिया पर कंट्रोल हो सकता है..न ही ईमानदारी आनी है...क्योंकि हमें अपनी सुविधा और स्वार्थ के हिसाब से चलना है..इसलिए हम जो कहें वहीं सही...बाकी फिर



Saturday, March 7, 2015

आटो मोड पर हैं हम

नागालैंड के दीमापुर में एक रेपिस्ट को दस हजार की भीड़ जेल से निकालती है...पूरे शहर में कपड़े उतारकर जुलूस निकालती है और पीट-पीट कर सरेआम चौराहे पर फांसी पर लटका देती है...अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये सही है..सरकार ने तीन पुलिस अफसरों को सस्पेंड कर दिया...जांच के आदेश दे दिए गए हैं...सांप्रदायिक हिंसा की आशंका बनी हुई है..केंद्र भी चिंतित है..तमाम अपडेट मीडिया में लगातार आ रहे हैं..और आते रहेंगे।



ये पहली घटना नहीं है..नागपुर में एक बदमाश मोहल्ले में आकर लड़कियों से छेड़खानी करता था...पुलिस-प्रशासन के तो नाक-कान-आंख बंद ही रहते हैं...मोहल्ले की महिलाओं ने एक दिन तय किया..जैसे ही बदमाश आया..लाठियों से पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी। मध्यप्रदेश के एक शहर में पुलिस ने ऐसे कुख्यात बदमाश को मार-मार कर अधमरा कर दिया..जो दर्जनों हत्या का आरोपी था..पुलिस कई सालों में नहीं खोज पाई थी..जनता ने खुद न्याय कर पुलिस को सौंप दिया।
ये वो घटनाएं हैं जो साबित करती हैं कि हम आटो मोड पर हैं..एक तो ये है कि जो हो रहा है..उसे सहते रहो..और तिल-तिल कर मर जाओ...या फिर उसका जवाब दो..तय आपको ही करना है कि क्या किया जाए..क्या नहीं..कोई न तो बताने आ रहा है और न ही रोकने आ रहा है। पुलिस दोनों में राजी है...अगर कोई रेप करता है तो कोई बात नहीं...करने के बाद अगर ज्यादा होगा तो जेल में डाल देंगे...पब्लिक अगर खुद बदला लेती है तो ले ले..कोई परेशानी नहीं...उसके बाद बदला लेने पर कार्रवाई कर देगी।

दीमापुर में रेपिस्ट को जेल से निकालने और मारने में करीब 10 हजार लोगों ने हिस्सा लिया और इनमें ज्यादातर वो स्कूली छात्राएं थीं जिनका हिंसा से कोई सरोकार नहीं। हम हमेशा कहते हैं कि गुस्सा नुकसान करता है..हिंसा ठीक नहीं..लेकिन आप इस घटना को क्या कहेंगे...लोगों की टिप्पणियां पढ़ रहा था सभी में उस रेपिस्ट के लिए गुस्सा झलक रहा था..दरअसल पूरा देश ही आटो मोड पर है...जो करना है आपको ही करना है..
जब दिल्ली में निर्भया कांड होता है तो हजारों की भीड़ विरोध में उमड़ उठती है. और जब भीड़ उमड़ती है तो सरकार-प्रशासन की आंख खुलती है..संसद में चिंतन होता है.नए कानून बनाने की कवायद होती है..दीमापुर में भी यही हुआ...सरकार कहती है कि जनता जनार्दन है...आपकी सरकार है..आपके लिए हैं..अगर जनता फैसला करती है तो दिक्कत क्या है..उसने फैसला ले लिया..निलंबित अफसर कह रहे हैं कि स्कूली छात्राएं ये सब कर रही थीं..यदि उस वक्त पुलिस कोई कदम उठाती तो कई की जानें जा सकती थीं...दरअसल उन पुलिस वालों में भी ऐसे लोग होंगे..जो ऐसा ही न्याय चाहते होंगे..हम इंसान पहले हैं..माता-पिता पहले हैं..उसके बाद हम कहीं के अफसर हैं या फिर कर्मचारी हैं..दिल्ली में एक लड़की से कैब का ड्राइवर अत्याचार करता है..स्कूल बस में ड्राइवर मासूमों के साथ खिलवाड़ करते हैं..तो फिर किसका खून नहीं खौलेगा..अगर किसी का खून फिर भी जमा रहता है तो वो जी ही क्यों रहा...

सरकार भी यही चाहती है..प्रशासन भी यही चाहता है..जब कोई शख्स शिकायत करने जाता है तो उसे ही डांट-फटकार कर भगा दिया जाता है..जब भीड़ जाकर बवाल करती है तो पुलिस अफसर उनकी डांट भी खाते हैं और उनसे हाथ भी जोड़ते हैं...ये हमारा ही देश है जहां एक रेपिस्ट को सबक सिखाने के लिए हजारों की भीड़ को उतरना पड़ता है...अगर रेपिस्ट गलत था तो भीड़ भी सही थी और अगर रेपिस्ट सही था तो भीड़ गलत थी...सरकार तय कर ले कि उसे किस साइड रहना है..कानून के ढकोसले तो आजादी के बाद से चले आ रहे हैं..मानने वाले मानते हैं और परेशान होते हैं जो नहीं मानते..उनसे भी सरकार को कोई परेशानी नहीं...दरअसल सरकार भी आटो मोड पर है और हम भी...बाकी फिर.....










हमाम में सब नंगे क्यों हैं ?

जब हम नहाने जाते हैं तो हम अपने सारे कपड़े उतारते हैं..कोई कितना बड़ा या छोटा इंसान हो...हमाम में सब नंगे होते हैं और एक से नजर आते हैं...जब कपड़े उतर जाते हैं तो अमीर-गरीब में फर्क नहीं रह जाता...लेकिन जैसे ही हम हमाम से बाहर निकलते हैं..तो बेहतरीन ड्रैस पहनते हैं...क्रीम-पावडर लगाते हैं..बालों को संवारते हैं..परफ्यूम छिड़कते हैं..जूते-सैंडिल पहनते हैं..सूटेड-बूटेड साहब बनकर दूसरे इंसानों से अलग दिखने की..अलग रहने की कोशिश करते हैं...





ऐसा ही कुछ जीवन में होता है..सामना अखबार छापता है कि मुफ्ती मोहम्मद सईद गीदड़ है...पाकिस्तान परस्त है...तो मुफ्ती जी मशरत आलम को छोड़ते हैं जिस पर घाटी में हिंसा फैलाने का आरोप है...एक तरफ शिवसेना.. बीजेपी कोकोसती है..तो दूसरी ओर बीजेपी मुफ्ती सईद के साथ सरकार चलाती है...बीजेपी की साध्वी किसी को हरामजादे बोलती है...और उनकी संतानों को पिल्ले कहती है..हिंदुओं से कहा जाता है कि चार बच्चे पैदा करो..तादाद बढ़ाओ..एक हिंदू संगठन को दे दो..एक को फौज में भेज दो..बाकी दो को अपने पास अपने परिवार के लिए रखो....भगवान ने एक मुंह सबको दिया है..उसका बेजा इस्तेमाल कैसे किया जाता है वो आप इन नेताओं से सीखिए...जो देश चलाने का ठेका लेते हैं..हम उन्हें ये ठेका देते हैं..वो कहते हैं कि सबका साथ लेंगे..सबका विकास करेंगे...एक को दिल्ली चलाने का ठेका मिला..तो ठेका मिलते ही उनकी पार्टी में घमासान शुरू हो गया...वो अपनों का साथ ही नहीं ले पाए..दूसरों को क्या लेंगे। कुल मिलाकर ये हैं कि जो जितनी अच्छी तरह से मुंह चलाएगा..उतनी ही अच्छी तरह से उसे हम अपने सिर-आंखों पर बिठाएंगे...जब वो हमारे सिर पर बैठ जाएंगे तो फिर हम अपना मुंह चलाएंगे कि सत्यानाश कर दिया..बेड़ा गर्क दिया...हमें नहीं मालूम था कि ये खाली मुंह चलाने वाला था..ये तो खुद का घर नहीं संभाल पा रहा..देश क्या संभालेगा..राज्य क्या संभालेगा..





दरअसल मार्केटिंग जुबान से ही होती है..पहले खुद को बेचने के लिए जुबान मीठी रखी जाती है..अगर बिक गई तो ठीक है..जब जुबान नहीं बिकती..तो जुबान पर छुरी रखी जाती है..तब तो बिकेगी ही..कम से कम मीडिया तो खरीद ही लेगी और अपने चैनल पर बेचेगी..मीडिया को पाजिटिव जुबान में मजा नहीं आता..निगेटिव में ज्यादा आता है..मीडिया दरअसल मार्केटिंग जुबान से ही होती है..पहले खुद को बेचने के लिए जुबान मीठी रखी जाती है..अगर बिक गई तो ठीक है..जब जुबान नहीं बिकती..तो जुबान पर छुरी रखी जाती है..तब तो बिकेगी ही..कम से कम मीडिया तो खरीद ही लेगी और अपने चैनल पर बेचेगी..मीडिया को पाजिटिव जुबान में मजा नहीं आता..निगेटिव में ज्यादा आता है..मीडिया भी क्या करे...लोग पसंद ही यही करते हैं..कोई अच्छा बोल रहा है तो कहेंगे..साला मुंहजोरी कर रहा है...बुरा बोलेगा..तो कहेंगे..इसके भाई-बहन नहीं..माता-पिता नहीं..इसकी जुबान तो देखो..काली क्यों नहीं पड़ रही...आप हो या बीजेपी..शिवसेना हो या कांग्रेस..सबने जनता की ठेकेदारी के अपने-अपने टेंडर पास करा रखे हैं..जनता ने ही पास करके दिए हैं..जब कोई दूसरा ठेकेदार उसमें सेंध लगाता है तो जुबान के चाकू-छुरे निकल आते हैं...तुम अपने एरिया में रहो..हम अपने एरिया में...हिंदुओं की ठेकदारी अलग..मुस्लिम की अलग..सिख और ईसाई की ठेकेदारी अलग...इस ठेकेदारी में पूंजी कुछ नहीं लगानी..इसलिए हर कोई हथियाने की कोशिश में जुटा रहता है..ठेकेदारी की फ्रेजाइजी भी बंटती है..छोटे-छोटे समाज के ठेकदार..यहां तक की गली-मुहल्ले तक ठेके बंटे हुए हैं..सब इतने चुपचाप बंट जाते हैं कि पता ही नहीं चलता...जब ठेकेदार हक जताता है तब जनता समझती है कि अरे..ये तो हमारा ठेकेदार है...

सबकी मंजिल एक ही है..सबको हमाम में जाकर नंगे होना है..और फिर कपड़े पहनकर साहब बनकर ठेकेदारी करनी है...अब ये आपको तय करना है कि आपको इनके ठेके पर जाना है या नहीं..बाकी फिर.....





Friday, March 6, 2015

आप तो ऐसे न थे

आप में ऐसे-ऐसे लोग जुड़े..जिनका राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं था..कोई किसी क्षेत्र का महारथी..कोई किसी क्षेत्र का विशेषज्ञ..कोई कलाकार..कोई फिल्मी हस्ती..आईआईटी..आईआईएम के लोग...अलग-अलग फील्ड से आए लोग जब इकट्ठे हुए तो ज्यादा बेहतर विचार-मंथन..प्लानिंग और उसे फील्ड पर ले जाने की रणनीति अमल में आने में मदद मिली जो किसी राजनीतिक दल से अच्छी होनी ही थी..चाहे मैनिफेस्टो हो..चाहे प्रचार का तरीका हो..चाहे सोशल मीडिया हो..हर मोर्चे पर एक कसी हुई रणनीति आप ने दिखाई।


जब ऐसे लोग एक पाजिटिव सोच लेकर चलते हैं..संगठित होते हैं तो उतना ही फायदा होता है जितना इनके टूटने और बिखरने पर नुकसान...कभी भी कोई प्लानिंग पचास सालों बाद की नहीं होती..दिल्ली चुनाव की प्लानिंग थी जिसमें केजरीवाल हीरो बन गए..बड़े नेता बन गए..लेकिन जिनका पर्दे के पीछे रोल था..उसमें उनकी भी मेहनत थी..जाहिर है चाहे मोदी हों या सोनिया या फिर केजरीवाल..अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता..एक टीम होती है जो एक दिशा में चलती है..एक साथ चलती है तो नतीजे में कामयाबी मिलनी है लेकिन जब बिखरती है तो सारी मेहनत बेकार साबित हो जाती है। आप का जो भी हो..हमें पहले अपना सोचना है...

कहते हैं कि सत्ता का नशा होता है..जब किसी को नई-नई कुर्सी मिलती है तो बड़ा विनम्र..सबको साथ लेकर चलने की कवायद..टीम वर्क से प्लानिंग..और महत्व मिलता है लेकिन जैसे-जैसे हमें अनुभव होता जाता है...हमारा कान्फीडेंस बढ़ता जाता है..तो हम ऐसे लोगों को सबसे पहले किनारे लगाते हैं..जिनसे हमें खतरा महूसस होता है या फिर लगता है कि वो हमारी बराबरी का है या फिर हमें चैलेंज कर सकता है..ये एक के साथ भी हो सकता है और कई लोगों के साथ..यानि जब आप कुर्सी पकड़ते हैं तो दो चिंताएं होती है..पहले कुर्सी को थामे रखने की और दूसरी उससे बड़ी कुर्सी हथियाने की...जब आप एक सीढ़ी चढ़ लेते हो तो दूसरी सीढ़ी की चिंता करते हो..और पहली सीढ़ी को अपनी मानकर उसे पीछे छोड़ देते हो...जो आप पा लेते हो..उस पर तो हक हो जाता है..लेकिन जो पाना है उसकी कोशिश में जुट जाते हो...ये हर कुर्सी के साथ होता है चाहे वो सरकार की हो..दफ्तर की हो..कंपनी की हो..सामाजिक हो..दिल मांगे मोर के लिए..उस दुश्मन की नली काटनी जरूरी है जो या तो उससे बड़ी कुर्सी पर विराजमान है या जिसके हमारी कुर्सी हथियाने का खतरा है.....



और फिर लोग कहते हैं कि आप तो ऐसे न थे..जब आप कोई बिजनेस शुरू करते हो..लोगों से सहयोग मांगते हो..दुआएं मांगते हैं..पैसा मांगते हो..जब आप अपनी प्रतिष्ठा बना लेते हो..पैसा बना लेते हो..तो गुरू बन जाते हो और अपने ही साथियों को ज्ञान देने लगते हो..कमजोरियां बताने लगते हो..ये तब तक होता है जब तक आपके पास सत्ता है..क्योंकि सत्ता है तो उसका नशा तो चढ़ेगा और जिस दिन कुर्सी नहीं रहेगी..नशा हिरन हो जाएगा..फिर उसी स्थिति में आ जाओगे जैसा कि कुर्सी पाने के पहले थे। उदाहरण के लिए आप कांग्रेस को देख सकते हो..जितने मंत्री थे..जितने बड़े-बड़े नेता थे..दस साल देश पर लगातार राज करने के बाद भी अब अपनी कमियां गिनाने लगे हैं..एक-दूसरे को कोसने लगे हैं...अब खामियां नजर आने लगी हैं पहले ज्ञान देने की स्थिति में थे...आज बीजेपी और आप के साथ यही स्थिति है..दोनों दूसरों को ज्ञान दे रहे हैं...ये हमें तय करना है कि टीम वर्क के साथ चलना है..या फिर अकेले को महत्व देना है..ज्यादा दिन ज्ञान देना है या ज्यादा दिन देना है..सत्ता का ज्यादा नशा चढ़ाओगे तो लड़खड़ा के गिरना ही है...जितना धीरे-धीरे नशा चढ़ाओगे..उतना लंबा चलोगे....बाकी फिर.......



Wednesday, March 4, 2015

तन की होली या मन की होली

हर साल हम होली खेलते हैं। हर बार नकली रंगों के जरिए जीवन में असली रंगों को भरने की कोशिश करते हैं..फिर अगले साल का इंतजार करते हैं लेकिन तन से मन में बदलने में कामयाब नहीं हो पाते हैं। हां..कभी-कभी नकली रंगों से अपनी त्वचा या शरीर को नुकसान जरूर पहुंचा लेते हैं। दरअसल तन तो बाहर दिखता है..लगता है कि हम होली खेल रहे हैं...एक-दूसरे को रंग लगा रहे हैं लेकिन ये मन से है या नहीं..ये आपको ही पता है। ये दिन शिकवे-शिकायत दूर करने का होता है..जिन्हें आप पसंद नहीं करते..या फिर जिनसे आपका मनमुटाव हो गया..बोलचाल बंद हो गई..होली के जरिेए सोचते हैं कि फिर से पुराने रंग में लौट आएं लेकिन क्या ऐसा होता है?


पहले ऐसा होता था पर अब जमाना बदल गया। होली क्या..कोई भी त्यौहार हो..बस औपचारिकता रह गया..हम भी कहते हैं कि अब तो बस बच्चों का त्यौहार है...लड़ेंगे..भिड़ेंगे...रूठेंगे और फिर थोड़ी ही देर में साथ खेलते दिखाई देंगे। ये बड़ों के साथ संभव नहीं...बड़ा और छोटा..ये भाव हम से पीछा नहीं छुड़ा पाता..हम किसी से खुद को बड़ा मानते हैं तो फिर हम झुकेंगे क्यों...अगर किसी को हम अपने से बड़ा मानते हैं तो सोचेंगे कि पहल वो करे..यानि दोनों तरह से कोई आगे नहीं आना चाहता इसलिए जरूरत पड़ेगी..मौके की नजाकत होगी तो हम औपचारिकता दिखाएंगे..जिसमें हम माहिर हैं...दिखावे के लिए सामने कोई मिल जाएगा..तो रंग-गुलाल लगाएंगे..गले मिलेंगे..मिठाई का टुकड़ा लेकर आगे बढ़ जाएंगे...ऐसी औपचारिकता हम होली में दिन भर निभाएंगे लेकिन मन से नहीं जुड़ पाएंगे। अगले दिन फिर हम उसी रंग में आ जाएंगे..जो होली के एक दिन पहले था...

यहां तक तो गनीमत है कि हम मन से नहीं जुड़ पाते..लेकिन उनका क्या करें जिन्होंने होली को मनमानी का जरिए बना लिया..बदला लेने का मौका मान लिया..होली आएगी तो किसी तथाकथित दोस्त को टारगेट करेंगे..उसे गडढे में पटकेंगे..उसके कपड़े फाड़ देंगे..और शरीर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे...इसके बाद बुरा न मानो होली है..कह कर चलते बनेंगे। इससे ज्यादा खतरनाक वो लोग हैं जिनके मन में साजिश के रंग हैं। होली का लाइसेंस लेकर महिलाओं के तन से खेलने की कोशिश करेंगे।

तो भाई जरा संभल कर...या तो होली खेलो मत..अगर खेलो तो खिलवाड़ मत करो..न तो होली के साथ.. न ही ही दूसरों के साथ..और ऐसे लोगों से संभल कर रहो..जो साजिश के रंग भरे हैं और आपको निशाना बनाने की तैयारी में हैं। वाकई होली मनाना है तो मन से मनाओ..तन से नहीं....बाकी फिर....






Tuesday, March 3, 2015

रेप के लिए लड़कियां जिम्मेदार हैं?

ये कहना है निर्भया कांड के आरोपी का..जिसका तिहाड़ जेल में बीबीसी के लिए इंटरव्यू लिया गया। सरकार अब ढोल पीट रही है। जेल में इंटरव्यू कैसे लिए गया..किसने इसकी अनुमति दी..इंटरव्यू पर रोक लगा दी गई है। न्यूज चैनलों से इस इंटरव्यू को न चलाने को कहा गया है..गृह मंत्रालय से लेकर देश के तमाम राजनेता अपने-अपने हिसाब से बयान दे रहे हैं..दिल्ली पुलिस अपने तरीके से जांच-पड़ताल में जुट गई है। निर्भया कांड के बहाने एक बार फिर बहस का दौर शुरू हो गया है।

ऐसी घिनौनी हरकत..वो भी दिल्ली में...वो भी सरेराह...सारा दिल्ली दहल गया..पूरा देश सकते में आ गया..विदेशों तक इस शर्मनाक वारदात की गूंज हो गई..सभी का ये कहना था कि जब राजधानी दिल्ली में ऐसा हो सकता है..तो पूरे देश का क्या हाल होगा...ये सच भी है कि दिल्ली हो मुंबई..हर खबर चर्चा का विषय बनती है..कानून बदलने की बात होती है..संसद में शोरगुल होता है..बड़े-बड़े विद्वान अपनी अपनी राय रखते हैं और फिर अगली वारदात के बाद पुरानी वारदात को भूल जाते हैं..निर्भया कांड को भी लोग भूल चुके थे..अब फिर वो दर्दनाक घटना ताजा हुई है। फिर वहीं बहस..आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है..और चंद दिनों बाद अगली बड़ी खबर के बाद ये भी शांत हो जाएगा।


आरोपी का इंटरव्यू तो नहीं चलेगा...चलना भी नहीं चाहिए..लेकिन एक लाइन जो अखबारों में छपी है..मन को अंदर तक हिला गई..एक दरिंदा कितने अच्छी तरह से खौफनाक हरकत को बाजिव ठहरा सकता है..इसका ज्वलंत उदाहरण है..और ये कोई नई बात नहीं...पुरुष हो महिला..जब कोई गलती करता है..तो उसे हालात वश..भूल से और न जाने-जाने कितने बहानों से सही सिद्ध करने की कोशिश करता है। जब आप किसी गंदगी को हटा नहीं पाते..तो उसमें ही चलने का अभ्यास कर लेते हो...ऐसे कई इलाके हैं जहां से आपको गुजरने में नाक पर रूमाल रखना पड़ता है..लेकिन हजारों लोग मजे से वहां रहते हैं और चौबीस घंटे सांस लेते हैं। यही हाल पुरुष के वहशीपन का है..बड़े ही निर्लज्ज तरीके से लोग खुद को सही और लड़कियों को दोषी ठहराते हैं...अगर लड़कियां कोई ड्रेस पहने हैं तो उस पर फब्तियां कसना तो हमारी फितरत में हैं..आलोचना करने में सेकंड का समय नहीं लगता। एक तरफ हम लड़कियों को बराबरी का दर्जा देने की बात करते हैं...बेटी बचाओ अभियान चलाते हैं...सेना में भर्ती की बात करते हैं..हवाई जहाज चलाने की वकालत करते हैं लेकिन वहशीपन का कोई इलाज नहीं करते..और कर भी नहीं सकते। जब कोई घटना हमारे साथ होती है तो हम आरोपी को जिम्मेदार ठहराते हैं और जब किसी और के साथ होती है तो लड़की को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। लड़की देर रात क्यों निकलती है..क्या जरूरत थी रात के नौ बजे निकलने की..क्या जरूरत थी ऐसी ड्रेस पहनने की..क्या जरूरत थी ऐसे संस्थान में काम करने की..यही नहीं..माता-पिता भी निशाने पर आ जाते हैं..कैसे मां-बाप हैं जो लड़की को ऐसा घूमने देते हैं..क्या उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं...लेकिन ये कभी नहीं सोचते कि इन दरिंदों का क्या किया जाए..जो वहशीपन का हम अपने भीतर लेकर चल रहे हैं..ये कैसे रुकेगा..जो मानसिक दिवालियापन हमारे दिल और दिमाग में पल रहा है..उससे छुटकारा कैसे मिलेगा।

बीबीसी ने तो सनसनीखेज एक्सक्लूसिव इंटरव्यू कर लिया...उसने जो किया सो किया..तिहाड़ जेल में परमीशन किसने दी..क्यों दी...भारत के किसी पत्रकार की बजाए विदेशी पत्रकार को तिहाड़ जेल में इंटरव्यू की अनुमति से ही जाहिर होता है कि अफसर किस मानसिकता में पल रहे हैं...अपना फायदा..अपनी सुविधा के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं...यही मानसिकता उस आरोपी की थी..जिसने निर्भया के साथ इस घटना को अंजाम दिया और बड़े घमंड के साथ कह रहा है कि ये घटना नहीं होती..अगर लड़की ऐसा नहीं करती..यानि समाज को संदेश देने का ठेका भी तिहाड़ जेल के जरिए पूरे विश्व को देने की हिमाकत कर रहा है।
हमारे आसपास भी यही घटता रहता है..किसी लड़की के साथ कोई घटना होती है तो पुलिस पहला सवाल ये पूछती है कि इतनी देर रात वो घर से निकली क्यों?...अकेली क्यों थी...ऐसी ड्रेस में क्यों थी?..पुरुष इतनी देर रात क्यों निकला..ये आज तक किसी ने नहीं पूछा...हम कहते हैं कि जमाना आगे बढ़ गया है..पुरुष महिला बराबर का दर्जा पा चुके हैं..बल्कि महिलाएं आगे निकल चुकी हैं..तो ये केवल पुरुष का दंभ है..श्रेय लेने के लिए हैं...सरकारी अभियान और राजनीति चमकाने के लिए..नहीं तो दिल्ली तो बहुत दूर है..उन ग्रामीणों इलाकों में जाकर देखिए..जहां आज भी महिलाओं के साथ कैसे-कैसे अत्याचार हो रहे हैं और पंचायतें महिलाओं को ही सजा देने का फरमान बड़ी निर्लज्जता के साथ दे रही हैं।

हमारे घर की महिलाएं भी कितनी ही आगे बढ़ जाएं..लेकिन निठल्ले बैठे पुरुष उन्हें अब भी संदेश देते हैं...सलाह देते हैं. सुरक्षा की चिंता करते हैं...कवर करने की कोशिश करते हैं..समस्या का हल ऐसे तो नहीं निकलेगा?....बाकी फिर......








Monday, March 2, 2015

इतना download मत करो

कंप्यूटर हो या मोबाइल..जितनी कैपेसिटी है..उसे जितनी तेजी से फुल कर लोगे..हैंग करने लगेगा..स्लो चलेगा और जब कोई महत्वपूर्ण जानकारी डाउनलोड करनी होगी तो कुछ डिलीट मारना होगा। बिलकुल कंप्यूटर की तरह हमारे दिमाग की भी क्षमता है। उसे जितनी तेजी से भरोगे..दिमाग की कैपेसिटी फुल हो जाएगी..ओवरलोड कर लोगे तो पता है कि हादसा होने की पूरी आशंका रहेगी। जो कंप्यूटर या मोबाइल एक्सपर्ट होते हैं..वो वक्त-वक्त पर उसे अपडेट करते रहते हैं। वायरस को हटाते रहते हैं..नीट एंड क्लीन रखते हैं तो कंप्यूटर और मोबाइल उतनी तेजी से काम करता है..व्यवस्थित होता है जो जानकारी चाहिए..आपको वक्त नहीं लगता..आपको पता है कि कौन सा ऐप कहां है..उसमें क्या है..क्या वीडियो है..क्या आडियो है क्या टेक्स्ट है। अगर उनके नाम लिखे हैं तो आप एक क्लिक मारते हैं और सामग्री हाजिर होती है। यदि कचरा भरा हुआ है तो उसे तलाशने में ही वक्त बर्बाद कर देते हैं..और होते हुए भी वो जानकारी कई बार हमें नहीं मिलती।


दिमागी कंप्यूटर का यही फलसफा है..उसकी एक कैपेसिटी है। जब बच्चा पैदा होता है तो दिमाग का कंप्यूटर लगभग खाली रहता है..नया दिमाग होता है..फुल स्पेस होता है..कोई वायरस नहीं होता..जैसे-जैसे वक्त बीतता है..जो देखता है..जो सुनता है..जो पढ़ता है..जो सोचता है..जो करता है...उसके दिमाग में फीड होना शुरू होते हैं। कहानी एक जीबी से शुरू होती है..और जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं...सैकड़ों जीबी तक मेमोरी बढ़ती जाती है। एक सीमा तक मेमोरी फुल होती है और फिर दिमाग उससे ज्यादा मेमोरी लेने की हालत में नहीं रहता। हर किसी की अलग-अलग क्षमता होती है..जो व्यवस्थित चलता है..कचरा साफ करता जाता है...फाइलें अलग-अलग बनाता है..केवल काम की सामग्री रखता है..वो अपनी क्षमता बढ़ा लेता है और जो लापरवाह रहता है..जो भी मिल रहा है..दिमाग में भरता जाता है..वायरस को दूर नहीं करता..उसकी मेमोरी जल्दी फुल हो जाती है..और कभी ज्यादा लोड न लेने के कारण दिमाग फेल हो जाता है..उसके बाद न तो आप सही सोच पाते हैं..सही कर पाते हैं..बेचैन रहने लगते हो..यदि वायरस की बीमारी लग गई तो उसका इलाज कराते हो..कई बार बीमारी ठीक हो जाती है लेकिन एक सीमा के बाद इलाज भी संभव नहीं।


आपने देखा होगा कि कई 80-90 साल के भी लोग हैं जिन्होंने दिमाग का प्रापर इस्तेमाल किया तो वो अब भी सेहतमंद दिखाई देंगे..उनकी सोच आपसे ज्यादा बेहतर होगी..उनकी काम करने की क्षमता बिलकुल दुरस्त होगी। कुछ लोग ऐसे भी देखे होंगे जिनकी उम्र केवल 25 से 30 साल ही है लेकिन शरीर बोल गया है..सोच मंद हो गई है..दिमाग में नए विचार आना बंद हो गए हैं और जिंदा लाश के तरह खुद को ढो रहे हैं..उन्हें देखकर हैरानी होती है कि अभी से जब उनकी ये हालत है जो जिंदगी के आखिरी पढ़ाव तक वो कैसे जिएंगे..जिएंगे भी तो मर-मर कर। ये वो लोग हैं जो जल्द से जल्द सब कुछ पा लेना चाहते हैं..सब कुछ कर लेना चाहते हैं..सब कुछ सोच लेना चाहते हैं..धैर्य नाम की चीज नहीं..तेजी इतनी की..गिर-गिर कर भी नहीं मान रहे। बीमार हैं..फिर भी दिमाग में डाउनलोड करते चले जा रहे हैं..और उसे कचरे के ढेर में तब्दील कर रहे हैं..किताब भी पढ़ रहे हैं..टीवी भी देख रहे हैं..सिनेमा भी देख रहे हैं..हर किसी को सुन भी रहे हैं..और उसे बीच में ही छोड़कर आगे बढ़ते चले जा रहे हैं।

पहले दिमाग की हालत समझो..उसकी क्षमता देखो.अगर ज्यादा करना है तो उसे खुराक दो..उसकी क्षमता बढ़ाओ..जो उपयोगी है उसे ही दिमाग में डाउनलोड करो..कचरे को हटाते जाओ...जानकारी को व्यवस्थित करते जाओ..दिमाग की बैटरी को चार्ज करते रहो...तो स्वाभाविक है कि ज्यादा वक्त तक चलेगा...अच्छा चलेगा......बाकी फिर.......





Sunday, March 1, 2015

how can win exam

दसवीं कक्षा की बात है..उस वक्त सीबीएसई कोई नहीं जानता था..यूपी या एमपी बोर्ड हुआ करता था..मुझे भी यूपी बोर्ड की परीक्षा देनी थी। कस्बे के एक स्कूल में..जो हाईस्कूल तक ही था..गांव-देहात का माहौल था..एक साथी था..जो दिन-रात पढ़ाई करता था..नाम था धर्मदास..स्कूल के सारे साथियों को पूरा भरोसा था कि ये क्लास में अव्वल आएगा..और फर्स्ट डिवीजन पास होगा..उस वक्त 60% में फर्स्ट डिवीजन होती थी..जो बहुत मायने रखती थी। धर्मदास का और कोई काम नहीं था..कोई एक्टिविटी नहीं थी..गांव से आकर किराए के कमरे में पढा़ई कर रहा था। अकेला..खाना बनाने के अलावा और कोई काम नहीं..10 से 12 घंटे की पढ़ाई..सभी को उस पर आस थी..लेकिन जब रिजल्ट आया तो बहुत ही चौंकाने वाला..धर्मदास फेल हो गया। उसकी कोई गलती नहीं थी..पढ़ाई तो उसने बहुत की थी लेकिन क्या कमी रही कि वो फेल हो गया?

दरअसल हम मेहनत कितनी ही कर लें..अगर प्लानिंग से नहीं है..अनुशासन से नहीं है..फोकस नहीं है..तो उस मेहनत का फल नहीं मिलता। आईआईटी और आईआईएम या फिर आईएएस में सिलेक्ट होने वाले बच्चों की बातें गौर से सुनें तो साफ जाहिर है कि केवल वक्त देना ही काफी नहीं...हमें क्या पढ़ना है..कैसे पढ़ना है..उसकी पूरी प्लानिंग बनाकर चलते हैं तो कामयाबी जरूर मिलती है..केवल प्लानिंग नहीं..उस पर अमल भी जरूरी है और उसके लिए चाहिए अनुशासन...किस वक्त क्या करना है...उसका समय तय होना चाहिए..अनुशासन ही है जो हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है और फिर हम पूरे उत्साह से आगे बढ़ते हैं। हम अक्सर देखते हैं कि कई बच्चे दिन-रात किताब लिए पढ़ते रहते हैं..आंखें भले ही किताब पर हो..मगर मन तो चंचल होता है वो पलक झपकते न जाने कहां तक पहुंच जाता है..आप खुद ये जानते हैं...भले ही आप कुछ भी कर रहे हों..लेकिन मन अगर उस जगह नहीं है..उस काम में तल्लीन नहीं है तो घंटे भर की पढ़ाई के बाद भी कुछ हासिल नहीं होगा..हम खुद पर भी ये लागू कर देख सकते हैं..कई बार आप से कोई चीज नीचे गिर जाती है..आप कोई चीज रखकर कुछ ही देर बाद भूल जाते हैं..कोई तिथि..कोई काम आप से मिस हो जाता है..क्योंकि हमारा मन कहीं और होता है। अगर हम पहले दिन से पढ़ाई नियमित रूप से करते हैं..फोकस होकर करते हैं..तो परीक्षा के वक्त आप पढ़ें या न पढ़े..कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं।

ईमानदारी से एक घंटे की पढ़ाई...चार-पांच घंटे किताब लेकर बैठने से ज्यादा अच्छी है। जब हम फोकस होकर कोई काम करते हैं तो वो जल्दी होता है..और बेहतर होता है...शारीरिक शक्ति और मानसिक शक्ति अगर हमारी प्रबल है तो निश्चित ही सफलता मिलती है। जो बच्चे ज्यादा कामयाब होते हैं..वो केवल पढ़ाई ही नहीं करते..मनोरंजन भी करते हैं..खेलते भी हैं..और फिर भी सबसे आगे रहते हैं। यूपी बोर्ड में हमारे शहर के एक छात्र ने पूरे प्रदेश में टाप किया..और आप जानकर हैरान होंगे कि शहर में एक ही टाकीज थी जिसमें हर फिल्म के पहले शो में फिल्म देखने का उसका नियम फिक्स था...ये बात सारे छात्रों को मालूम थी और जब वो पूरे प्रदेश में नंबर बन आया तो लोग हैरान रह गए। ईमानदारी और अनुशासन से फोकस होकर जब हम कोई काम करते हैं तो परीक्षा जीतने से कोई नहीं रोक सकता। जिस तरह लड़ाई में जंग लड़ने जाते हैं तो सारे हथियार रखते हैं..सारी संभावनाएं और आशंकाएं टटोलते हैं..चारों तरफ नजर चौकन्नी रखते हैं..और फिर आगे बढ़ते हैं..उसी तरह जब हम पूरी तरह तैयार रहते हैं..मंजे हुए रहते हैं...तो हर परीक्षा को पार कर लेते हैं। बाकी फिर....