Thursday, July 30, 2015

क्या आप सबसे दुखी इंसान हैं?

हर रोज सुबह से लेकर रात तक किसी न किसी वजह से हम दुखी हो जाते हैं, परेशान हो जाते हैं, मायूस हो जाते हैं, ज्यादातर ये वजह बहुत छोटी सी होती है, बड़ी वजह life में बहुत ही कम होती हैं। जैसे महिलाओं की बात करें, यदि दूध फट गया, नुकसान हो गया, अब चाय कैसे बनेगी?, नल में पानी चला गया, अब पानी का इंतजाम करना होगा, बिजली चली गई, बच्चे की ड्रेस पर press कैसे होगी?...उसके टेस्ट आ रहे हैं, पढ़ाई कम कर रहा है, books लानी है, बच्चे की cab नहीं आई, school के लिए late हो जाएगा। बच्चे का होमवर्क कराना है, आफिस भी जाना है, पति को भी जाना है, बच्चे को स्कूल भेजना है, तीनों-चारों में तालमेल बिठाना, ब्रेकफास्ट तैयार कैसे होगा, नहाना है, तैयार होना है, झंझट ही झंझट।

 एक काम बिगड़ा, देरी हुई, दुखी हो गए...आफिस के लिए लेट हो गए हैं, अब क्या होगा, बास नाराज होगा, क्या बहाना बनाएंगे, रोज रोज का रोना है, लौटते में सामान लेकर आना है, पर्चा जेब में पड़ा है, तबियत ठीक नहीं है, यहां तक कि पेट में गैस बन रही है, तो पूरा परिवार एक तरफ, बाएं से दाएं, कभी कुछ पी रहे हैं, कभी कुछ खा रहे हैं, जब बेचैनी बढ़ जाती है तो मेडिकल स्टोर की ओर रुख कर लेते हैं, डायबिटीज है, मीठा नहीं खा रहे हैं, दुखी हैं, जब ज्यादा दुखी होते हैं तो उलटा काम करते हैं, कोई देख तो नहीं रहा, मीठा खा लेते हैं, किसी को बताते नहीं, जब तबियत बिगड़ती है तो कोई और बहाना बना देते हैं, हम दुखी तो दिन में कई बार होते हैं, रात को नींद नहीं आ रही है, कल सुबह जो उलझनें बढ़ने वाली हैं, उनके निदान के लिए रात भी खराब कर रहे हैं, जब हम negative सोचते हैं, तो दुखी होते हैं, जितनी ज्यादा negativity होगी, उतने ही ज्यादा दुखी होंगे।


दुखी तो होते रहते हैं लेकिन हम उनकी वजहों का आकलन नहीं करते, कुछ वक्त अपने बारे सोचो, बेहतर life के लिए, बेहतर job के लिए, बेहतर family के लिए, बच्चे के बेहतर future के लिए, बेहतर health के लिए, बेहतर money के लिए, और फिर way of life को बेहतर करो, ये हमारे ऊपर है कि हम कब दुखी होना चाहते हैं और कब खुश होना चाहते हैं, कितना दुखी होना चाहते हैं और कितना खुश रहना चाहते हैं, यदि रुटीन को भी दुख भरा बना लिया तो life कष्ट में ही बिताएंगे और तरक्की नहीं कर पाएंगे, अपना दिन बिगाड़ेंगे, अपने परिवार का बिगाड़ेंगे, अपने दफ्तर का बिगाड़ेंगे, अपने बच्चे का बिगाड़ेंगे।
 life में सब कुछ अच्छा ही अच्छा नहीं होगा, जब तक संघर्ष करने में enjoy नहीं करेंगे, तो दुख ही दुख भोगेंगे। जब तक कड़वा नहीं चखेंगे, मीठे का स्वाद भी नहीं मिलेगा। इसलिए positive होकर चलें, focus बड़े goal  पर करें और फिजूल की वजहों को भूल जाएं, अपने कैरियर पर ध्यान दें, अपने परिवार पर ध्यान दें, अपनी कमाई पर ध्यान दें, अपनी सेहत पर ध्यान दें, बाकी ऊपर नीचे, कम ज्यादा चलता रहे, कोई फर्क नहीं पड़ता..बाकी फिर....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com
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Wednesday, July 29, 2015

फांसी याकूब को नहीं लगी है....?

फांसी याकूब को नहीं लगी, फांसी सियासत को लगी है, देश में सुप्रीम कोर्ट से बड़ा कौन है, देश में राष्ट्रपति से बड़ा कौन है, देश में राज्यपाल से बड़ा कौन है, देश में संविधान और कानून से बड़ा कौन है, इन सबसे बड़ी है सियासत, जो किसी के भी फैसले पर सवाल उठाती है, किसी की भी पैरवी करती है, संविधान के तहत जो भी चल रहा है, उसका विरोध करती है, फांसी के कुछ घंटे पहले तक ही नहीं, फांसी के बाद भी उस पर सवाल उठते हैं, याकूब की फांसी को लेकर जो कुछ भी हुआ, जिन लोगों ने भी किया, ठीक नहीं किया, उन्होंने संविधान और सुप्रीम कोर्ट पर सवाल नहीं उठाए, खुद पर सवाल उठाए हैं।


एक याकूब के लिए कुछ लोग इतने परेशान क्यों हो गए, जो मुंबई ब्लास्ट में मारे गए थे, उनके लिए क्यों परेशान नहीं हुए, एसपी शहीद बलजीत सिंह के लिए लोग इतने परेशान क्यों नहीं होते, दिल्ली में कितने बेसहारा बच्चे, बूढ़े, महिलाएं दो वक्त की रोटी के मोहताज हैं, उनके लिए क्यों परेशान नहीं होते, किसी बच्ची या महिला से रेप होता है, उनके लिए क्यों आवाज नहीं उठाते, याकूब के लिए टविटर, फेसबुक और टीवी चैनल के माइक के आगे क्यों खड़े हो जाते हैं, जिनकी सुबह जागते ही और रात सोने के पहले बयान दिए बिना चैन नहीं आता, खाना नहीं पचता, उन्हें भूख से तड़पते जानवर तो छोड़ इंसान नहीं दिखते। उन्हें याकूब क्यों दिखता है?
याकूब इसलिए दिखता है क्योंकि याकूब उनकी सियासत का मोहरा है, याकूब उन्हें नेता बनाता है, उनका स्वार्थ पूरा करता है, उनका पेट बड़ा करता है जिस पेट में स्वार्थ, सियासत, काली कमाई का टयूमर कई किलो का है, इसके बावजूद उस टयूमर से मन नहीं भर रहा है, उसे तब तक भरना चाहते हैं जब तक कि वो फट न जाए, हां ये बात अलग है कि जब फटता है तो बड़ा दर्द होता है। ऐसा ही अफजल के केस में हुआ था, बड़ी हाय तौबा मचाई गई, इससे कुछ ज्यादा याकूब के मामले में हुई, मैं भी रात भर जागता रहा, इस देश के कुछ लोगों की सियासत की नौटंकी देख रहा था, इस देश की सहनशीलता भी देख रहा था, इस देश के मीडिया को भी देख रहा था, सब अपने-अपने काम में जुटे थे, कोई इस बात का श्रेय लेना चाह रहा था कि वो लगातार कवरेज कर महान काम कर रहे हैं, कुछ इस बात से खुश थे, कि इस फांसी में आधी रात को भी पेंच फंसा दिया गया है।
ये हमारा ही देश है जहां इतने सालों बाद याकूब को फांसी की नौबत आई, वो तो इतने साल वैसे ही जेल में सड़ चुका था, उसके परिवार के लिए उसका होना न होना बराबर था, सुप्रीम कोर्ट में इतना विचार हो गया, राष्ट्रपति, राज्यपाल और सरकार ने इतना विचार कर लिया, फिर सवाल कहां से उठ गया, क्या जो सवाल उठा रहे हैं, वो इन सबसे बड़े हैं या फिर ये हमारे संविधान की सहनशीलता है कि जो संविधान का पालन करा रहे हैं, वो भी इन्हें सुनने को बाध्य हैं, बात याकूब की करते हैं तो गुस्सा आता है, वो भी तथाकथित पढ़े-लिखे लोग, समाज को सुधारने वाले ठेकेदार, बात कलाम की क्यों नहीं करते, कलाम की जितनी बात करना है करो, सवाल उठाने वाले थोड़ा सा कलाम से भी सीख लें, लेकिन क्यों सीखेंगे क्योंकि कलाम तो देना जानते थे, जो सवाल उठा रहे हैं वो केवल लेना जानते हैं, सवाल लोग उन्हीं से पूछे......... जो सवाल उठा रहे हैं, सबसे ज्यादा तो way of life इन्हीं का बिगड़ा हुआ है, जिन्होंने सवाल उठाए हैं, उनसे नम्र निवेदन है कि इंसानियत के नाते याकूब की कब्र पर दो फूल चढ़ा आएं लेकिन पता है उन्हें याकूब से लेना-देना नहीं, उसके परिवार से लेना-देना नहीं, उन्हें अपनी सियासत से लेना है जिसे फांसी पर चढ़ा दिया गया है। बाकी फिर.. इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com


Tuesday, July 28, 2015

क्या आप धैर्य नहीं रख पाते हैं?

हम और आप धैर्य नहीं रख पाते, हर चीज की जल्दी होती है, हर काम की जल्दी होती है, भले ही हमारे पास वक्त हो, लेकिन हम मान कर चलते हैं कि हमारे पास वक्त नहीं, लेकिन जब जरूरी काम होता है तो सब छोड़ कर उसके लिए वक्त निकल आता है, कोई भी काम हम शुरू करते हैं तो लगता है कि जल्दी पूरा हो जाए, अच्छे से हो जाए, कोई कमी न रह जाए, अगर बिगड़ जाता है तो दूसरे कहते हैं कि धैर्य रखना था, जल्दबाजी नहीं करनी थी, जबकि हम जानते हैं कि किसी के पास धैर्य नहीं, जो लोग थोड़ा भी धैर्य रख लेते हैं, उनके काम आसान हो जाते हैं, अच्छे से हो जाते हैं।

एक छोटा सा उदाहरण देता हूं, किसी को फोन किया, नहीं उठाया, दस तरह के सवाल तत्काल मन में आने लगते हैं कि बताओ, कुछ ज्यादा ही बिजी है, लगता है फोन नहीं उठाना चाह रहा है, जब तक उसका फोन आता है, तब तक हम न जाने क्या-क्या सोच लेते हैं, ऐसे ही मैसेज का है, हमने आपने मैसेज भेजा, सामने वाला का जवाब नहीं आया तो सबसे पहले दिमाग में आता है, बड़ा आदमी है, दिमाग खराब है, कुछ तो जवाब देता। ये हमारे साथ ही नहीं होता, हम दूसरों के साथ भी करते हैं, किसी काम में फंसे हैं, नहा रहे हैं, पूजा कर रहे हैं, आफिस की मीटिंग में हैं, रास्ते में हैं, गाड़ी ड्राइव कर रहे हैं, सो रहे हैं, कौन कब किस हालात में हैं, क्या जरूरी काम कर रहा है, लेकिन हमें अपने से लेना-देना है, क्योंकि हमारे पास धैर्य नहीं है।

लाइट चली गई, पानी चला गया, परेशान हो जाते हैं, अभी जानी थी, अच्छा खासा मैच चल रहा था, पसंदीदा सीरियल चल रहा था, ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी, कपड़ों पर प्रेस कैसे होगा, नहाऊंगा कैसे, अब क्या करू, परेशान हो गए, हर काम का वक्त होता है, उसमें जितना समय लगना है, उससे पहले पूरा करने की कोशिश करोगे, काम बिगड़ जाएगा, धंधा कर रहे हैं, आज कुछ ज्यादा कमाई हुई, कल उससे ज्यादा की अपेक्षा होती है, थोड़ा कम हुआ तो दिन भर में जो कमाया उसकी खुशी नहीं, जो नहीं आया, उसका गम मनाने लगते हैं, जितना जल्दी हो, जितना ज्यादा हो, बढ़ता ही जाए, कोई परेशानी न हो, समय बर्बाद न हो, मेहनत कम से कम हो, सब अच्छा ही अच्छा हो, जीवन में ये संभव नहीं। धैर्य रखो, जीवन में उतार-चढ़ाव होते हैं, काम बनता है बिगड़ता है, देरी होती है, लेकिन जुटे रहो, परेशान न हो, यही way of life है, जो जितनी जल्दी धैर्य खोता है वो खुद को शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से खुद को नुकसान पहुंचाता है, जो काम हो भी रहा है वो बिगड़ जाता है, धैर्य से बिगड़े हुए काम भी बन जाते हैं, मन शांत रहता है, न खुद को कष्ट पहुंचाते हैं और न ही दूसरों को, कहते हैं कम खाओ, कम खाओ, ऐसा ही life में धैर्य के साथ है, तो धैर्य रखिए, जितना वक्त जिस चीज में लगना है, लगेगा, जल्दबाजी में कोई धारणा नहीं बनाइए, आपके बारे में लोगों की धारण बिगड़ जाएगी..बाकी फिर........इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com


Monday, July 27, 2015

सपने वो हैं जो सोने न दें....

हम बड़े स्वार्थी हैं, हमेशा अपने फायदे का सोचते हैं, लेकिन अच्छा स्वार्थ है, तो ऐसा सोचने में कोई बुराई नहीं, जब कलाम थे, तब नहीं सोचा, पर अब सोच रहे हैं कि कलाम एक क्यों थे?, और कलाम क्यों नहीं? जितने कलाम होंगे, हमारा आपका उतना ही फायदा, अखबार बेचने से लेकर देश के महान वैज्ञानिक और राष्ट्रपति पद तक, कहते हैं कि राष्ट्रपति के बाद क्या, जीवन पूरा हो गया, लेकिन कलाम ने हमें जीवन दर्शन सिखाया कि जीवन तब तक पूरा नहीं होता, जब तक सांस है, और वो आखिरी सांस तक कुछ न कुछ सिखाते रहे, जाते-जाते सिखा गए।
84 साल की उम्र, इतने बड़े-बड़े पदों पर रह लिए, परिवार के नाम पर अकेले, लेकिन निजी परिवार की बजाए पूरे देश को परिवार बनाने वाले कलाम चाचा नेहरू के बाद पहले ऐसे शख्स थे जिनका मन भविष्य में रमता था, भविष्य यानि बच्चे, जिनसे देश आगे बढ़ना है, उनसे प्यार, उनसे दुलार और उन्हें हर दिन सीख देते रहना, जब आपका गोल सेट होता है, जब way of life तय है तो जीवन आसान हो जाता है, कलाम ने ये खुद सीखा और हम सबको सिखाया, राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने के बाद वो न रुके, न थमे, मानो आराम नाम का शब्द उनके शब्द कोष में नहीं था, एक सहज मुस्कान हर वक्त उनके चेहरे पर रहती थी, बिलकुल बच्चों जैसी मुस्कान, निश्छल, जिसमें कोई छल कपट नहीं, जिसमें कोई हमारा तुम्हारा नहीं, जिसमें कोई ऊंच-नीच नहीं, जिसमें हमेशा एक positivity नजर आती थी। ये मुस्कान ही लोगों को सुकून दे देती थी, कुछ करने का जज्बा जगा देती थी, खुद के लिए तो सब करते हैं लेकिन दूसरों के लिए जो करते हैं, वो हमें जीवन जीना सिखाते हैं, जितना हमने कलाम को देखा है, समझा है, पढ़ा है, उसमें कहीं नहीं लगा कि उन्होंने अपने लिए कुछ चाहा हो, कुछ मांगा हो, जो मिला, उसे गले लगा लिया, जो दे सकते थे, देते रहे।

वाकई बच्चों को क्या बड़ों को भी जितने कलाम मिलें उतने कम है, देश को ऐसे कई कलाम की जरूरत है, तमाम वैज्ञानिक हुए, तमाम नेता हुए, तमाम अधिकारी हुए, तमाम उद्योगपति हुए, जिनके पास देने के लिए बहुत कुछ था, लेकिन देने की इच्छा नहीं हुई, पैसा तो दूर की बात ज्ञान देने में तो कोई बुराई नहीं, कहते हैं कि विद्या वो धन है जितना बांटो, उतना और मिलता है, कलाम ने इसे साबित किया. जीवन भर सीखते रहे, सिखाते रहे और सिखाते-सिखाते चले गए, जीवन दर्शन यही है, अगर हम उनका एक अंश भी सीख लें तो way of life हमारा भी सुधर जाए, जो नींद में सपने आते हैं वो पूरे नहीं होते, सपने वो हैं जो नींद उड़ा दें, इसी पर अमल कर लें, तो उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी..बाकी फिर.....इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

जान है तो जहान है....

पंजाब में आंतकियों से मुठभेड़ में एसपी बलजीत सिंह शहीद हो गए. एक एसपी चला गया. कई जवान चले गए, कई नागरिक चले गए, मुख्यमंत्री ने कहा कि जब एलओसी पर घुसपैठ की सूचना थी तो सीमा पर सतर्कता क्यों नहीं बरती गई? आप ने कहा कि मोदी जी का सीना इतना चौड़ा हैं तो अब इस हमले का जवाब दें, राजनाथ भोपाल पहुंचे तो मीडिया ने सवाल किया आप पंजाब न जाकर भोपाल पहुंच गए, बोले-सब बात कर इंतजाम कर भोपाल में भी जवानों के लिए ही आया हूं. जितनी मुंह उतनी बातें,अपने-अपने तरीके से बयान, सफाई और दावे-प्रतिदावे।

बयान देना सरल है, सफाई देना सरल है, आलोचना करना सरल है लेकिन कठिन क्या है वो शहीद एसपी के घरवालों से पूछिए, जो मैदान में लोहा ले रहा है, उससे पूछिए, उनकी शहादत के किस्से सुनाए जाएंगे, मेडल भी दिए जाएंगे, आर्थिक सहयोग भी दिया जाएगा, लेकिन अब बलजीत सिंह लौटकर नहीं आएंगे।
परिवार जानता है कि उसे न तो रकम चाहिए, न मेडल चाहिए, न नौकरी चाहिए, उसे पापा चाहिए, पिता चाहिए, पति चाहिए।

इसके पहले मुंबई में हेमंत करकरे और उनके कई साथी शहीद हुए, बरसी पर हम याद कर लेते हैं और भूल जाते हैं, न जाने कितने हमले हुए, न जाने कितने ब्लास्ट हुए, न जाने कितने शहीद हुए और न जाने कब तक ये सिलसिला चलता रहेगा, न तो हम इस धरती से आतंकी मिटा पाए, न ही नक्सली, कितनी ही सरकारें आईं, चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी या फिर अन्य दलों की, चाहे केंद्र हो या राज्य, करोड़ों-अरबों हर साल इसी मद में खर्च हो रहे हैं और हर साल बजट बढ़ता जा रहा है, बढ़ता जाएगा, लेकिन हम इस नासूर की जड़ तक पता नहीं कब पहुंचेंगे, चाहे हम चांद पर जाएं या न जाएं , चाहे बुलेट ट्रेन चलाएं या न चलाएं , चाहे हम स्मार्ट सिटी बनाएं या न बनाएं, कम से कम बेगुनाहों की हत्या का सिलसिला तो रोक लें, अपने जवानों की शहादत रोक लें, कहते हैं कि जान है तो जहान हैं, ये हम सबके लिए है, चाहे वो संसद में बैठे नेता हों, या मंत्रालयों में बैठे अफसर या फिर वो जवान, जो जान पर खेल कर हमें बचाने के लिए खुद की जान देने में पीछे नहीं हटते। अब आप ही तय करें कि असल हीरो कौन हैं देश के, जो सिर्फ बयान देकर अपना फर्ज निभा ले रहे हैं या फिर शहीद और उनके परिवार....यही है way of life...बाकी फिर......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Sunday, July 26, 2015

क्या आप बेचैन हैं?

हम छोटी सी छोटी बात पर बेचैन हो जाते हैं, अगर रात में लाइट चली गई, गर्मी से परेशान हैं तो चिड़चिड़ाहट, बेचैनी, सुबह पानी चला गया, कैसे नहाएंगे, बड़ी बेचैनी सी छा जाती है, घर में सफाई करने वाली बाई नहीं आई, आज तो काम करना पड़ेगा, दफ्तर में बास ने डांट दिया, मन बड़ा बेचैन हो जाता है, मन ही मन गुस्सा भी भड़कता रहता है, कई लोग अपना ब्लड प्रेशर तक बढ़ा लेते हैं, बच्चे के टेस्ट के नंबर आए, नंबर कम हो गए, बड़ी बेचैनी सी रहती है, बच्चे पर झुंझलाहट भी उतार देते हैं, नसीहत देने में जुट जाते हैं।


मकानमालिक ने किराया बढ़ाने को कह दिया, ये और बड़ी बेचैनी है, बिजली का बिल बढ़ता जा रहा है, मन परेशान है, बस का किराया बढ़ गया, बच्चे के स्कूल की फीस बढ़ गई, सब्जी देखो कितनी महंगी होती जा रही है, दूध हर दो-चार महीने में दो रुपए बढ़ जा रहा है, महंगाई सबसे ज्यादा बेचैन करती है। कैसे चलेगा खर्च, हैरानी इस बात की है कि न तो दूध आना कम होता है, न ही बच्चे की फीस देना बंद होती है और न ही सब्जी खरीदना। दाल खाते हैं तो सस्ती दाल खाना शुरू नहीं कर देते लेकिन बेचैन जरूर रहते हैं। रोमिंग पर हैं, मोबाइल बिल बढ़ता जा रहा है, सामने वाला आधा घंटे से हाल-चाल पूछ रहा है और इस बात से बेचैन हैं कि कब ये फोन बंद करे, हालचाल में ही पचास सौ रूपए का फटका लगा रहा है। हालचाल पूछ कर क्या कर लेगा?

मकान मालिक ने किराया बढ़ा दिया, एक-दो दिन झुंझलाहट होती है, फिर सोचना बंद कर देते हैं और इसे नियति मान लेते हैं, फिर सोचने लगते हैं, वेतन बढ़ नहीं रहा, खर्चे बढ़ते जा रहे हैं, किराया बढ़ रहा है, फीस बढ़ रही है, सब्जी, किराना महंगा हो रहा है, लेकिन तनख्वाह जस की तस है, दरअसल यही जीवन है, हम कभी चैन से नहीं रहते, चीजें महंगी होती है तो मन बेचैन होता है, वेतन बढ़ता है तो उस दिन तो खुशी होती है, लेकिन अगले दिन फिर मन बेचैन हो जाता है कि मेरे कम बढ़े, दूसरे के ज्यादा बढ़े, अपने से ज्यादा दूसरे को लेकर बेचैनी शुरू हो जाती है।

फिर सोचने लगते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ रहा है, दो हजार बढ़ भी गए तो तीन हजार की महंगाई बढ़ गई, life आगे बढ़ने के बजाए पीछे जा रही है, हर शख्स की अपनी-अपनी बेचैनी है, तरह-तरह की बेचैनी है, महिलाएं अपनी समस्याओं से बेचैन हैं, गैस सिलेंडर खत्म हो गया, इनवर्टर खराब हो गया, पानी नहीं आया, बिल ज्यादा आ रहा है, बच्चा बात नहीं मान रहा है, स्कूल से शिकायत मिल रही है, रिश्तेदार जान खा रहे हैं, खर्चा बढ़ता जा रहा है, पुरुष अलग तरह से परेशान हैं, महीने का बजट बिगड़ रहा है, लोन की किश्त भरनी है, दफ्तर में कामकाज पूरा नहीं हुआ है, बास नाराज चल रहा है, बच्चे स्कूल के मारे परेशान हैं, टेस्ट, परीक्षाएं सिर पर हैं, कोई किताब नहीं मिल रही, दोस्त से झगड़ा हो गया, मेरी कमीज उसकी कमीज से ज्यादा सफेद नहीं है, ये तो कुछ उदाहरण है, इससे ज्यादा तो हम और आप जानते हैं अपनी-अपनी बेचैनी।

दरअसल ये हमारे ऊपर निर्भर है कि हम कब चैन से रहना है कब बेचैन रहना है, कितनी छोटी बात पर रहना है कितनी बड़ी बात पर रहना है, जितना कम बेचैन रहेंगे, उतनी बेहतर life होगी, जब तक जीवन है, समस्याएं चलती रहेंगी चाहे आर्थिक हों, पारिवारिक हों, सामाजिक हों, दफ्तर की हों या फिर व्यक्तिगत हों, इसलिए बेहतर life के लिए कम से कम बेचैन रहें, life चैन से कट जाएगी। बाकी फिर......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Saturday, July 25, 2015

क्या आपके बुरे दिन चल रहे हैं?

क्या आपका बुरा वक्त चल रहा है, ज्यादातर लोगों का ज्यादातर वक्त बुरा चलता है। दरअसल जो हम चाहते हैं वो हमेशा होता नहीं है, जो सोचते हैं वो भी नहीं होता है, जो करते हैं उसमें में भी कामयाबी नहीं मिलती। मंदिर-मस्जिद, गुरूदारे, चर्च जाते हैं, वहां से भी राहत नहीं मिलती है तो फिर हम क्या करते हैं?


तब हम जाते हैं ज्योतिषी की शरण में, जैसे कोई डाक्टर के पास जाता है तो उसे पता है कि आप बीमार हो इसीलिए आए हो, वकील के पास जाते हो तो पता है कि कोई न कोई केस फंस गया है, मीडिया के पास जाते हो तो उसे पता है कि कुछ छपवाना है, या चैनल पर स्टोरी चलवानी है, तो इतना ज्योतिषी भी जानता है कि आप उसके पास क्यों पहुंचे हो, उसके पास पहुंचे हो तो एक नजर में देखकर बता देगा, कि आप परेशान हो, जो काम करना चाह रहे हो, बन नहीं पा रहा है, कारोबार में तरक्की नहीं मिल रही है, बच्चे का भविष्य नहीं बन रहा है, पत्नी से टकराहट बनी हुई है, नौकरी में दिक्कत हो रही है, इसके अलावा जिसे आप चाहते हो, उससे शादी नहीं हो पा रही है, हर उम्र में, हर शख्स में कोई न कोई परेशानी है, सब अलग-अलग कारणों से परेशान हैं।

ज्योतिषी बताता है कि आप पर किस ग्रह की टेढ़ी नजर है, साढ़े साती है या फिर ढैया है, और जो महान तांत्रिक हैं वो तो आपको ये भी बता देते हैं कि आपके life का सत्यानाश ऊपर से नहीं नीचे से ही है यानि आपके दुश्मन का किया हुआ है। ये तो सच है कि अगर समस्या है तो उसका हल भी है, प्रश्न है तो जवाब भी है, तो आपको निदान भी बताया जाता है। भले ही आप कर्जे में डूबे हों, लेकिन ज्योतिषी को 10-20 हजार देने में कोई बुराई नहीं, क्योंकि वो आपका भविष्य दुरस्त करने की कवायद करेगा। आपको ग्रहों के प्रकोप से बचाएगा, थोड़ा और कर्जा भले ही हो जाए, भविष्य ठीक होते हैं, धन की बौछार हो जाएगी।

कभी आपने सोचा कि यदि कोई अपरिचित ज्योतिषी आपके कर्म और भाग्य को जान सकता है तो आप क्यों नहीं, क्या वाकई आपको बिलकुल नहीं मालूम कि आप क्यों फेल हो रहे हो, क्यों आपके दिन खराब चल रहे हैं, क्यों आपकी पत्नी से नहीं बन रही है, क्यों आपका बच्चा बिगड़ गया है, क्यों आपकी प्रेमिका रूठ गई है,क्यों प्रेमी ने आपको छोड़ दिया है, इस क्यों पर कभी गौर किया, आपके अच्छे दिन आपको ही लाना है, यदि दिन भर में कुछ मिनट अपने काम, अपने व्यवहार, अपने परिवार, अपने बच्चे, अपनी पत्नी, अपनी नौकरी को लेकर चिंतन करें और देखें कि आखिर कुछ गलत है तो क्यों है, तो शायद ज्योतिषी से बेहतर निदान आपके पास होगा, यही बेहतर way of life होगा। बाकी फिर......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Friday, July 24, 2015

cheating is easy.....

किसी के लिए जाल बिछाओगे, तो दूसरा आपके लिए भी जाल बिछाएगा, किसी के लिए गडढा खोदोगे तो दूसरा आपके लिए खाई खोदेगा. ये life का दस्तूर है। जैसा करोगे, वैसा भरोगे, प्यार दोगे, प्यार मिलेगा, सम्मान दोगे, सम्मान मिलेगा, मदद करोगे, मदद मिलेगी. ये भी life का दस्तूर है। अक्सर हम दूसरों के लिए साजिश रचते हैं और बड़े खुश होते हैं कि उसे मालूम नहीं है, उसके लिए गडढा खोदा जा चुका है और उसे दफन होना है. जैसा हम सोचते हैं वैसा ही दूसरा सोच रहा है। वो भी आपके लिए खाई खोद रहा है, और खुश हो रहा है कि उसके लिए खाई खोदी जा चुकी है, बस गिराना है और मिट्टी डाल देना है।

ये सौ फीसदी सच है और अगर आप थोड़ा सा मन में अपनी life के पिछले घटनाक्रमों पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और ये भी सच है कि जितनी क्रिया होती है व्यवहारिक रूप से उससे ज्यादा ही प्रतिक्रिया होती है। किसी को अगर हम नीचा दिखाते हैं तो मन में वो हरकत नश्तर की तरह चुभी रहती है और तभी निकलती है जब तक हम उसका माकूल जवाब नहीं दे देते। कोई भी हो, कहीं भी हो, किसी भी उम्र को हो, किसी भी जाति का हो, कोई भी स्टेटस का हो, किसी भी राज्य का हो, दूसरे देश का ही क्यों न हो, देश से लेकर व्यक्ति तक क्रिया की प्रतिक्रिया का नियम वही होता है। जैसे हम कहते हैं कि भारत ने पाकिस्तान को जवाब दे दिया, या फिर कांग्रेस ने बीजेपी पर पलटवार कर दिया। इसी मानसिकता से हर शख्स गुजरता है, जब जिसका दांव लगता है, पटखनी देने से पीछे नहीं हटता, और अगर पटखनी देने लायक नहीं होता, तो खुद को दूध-बादाम खिलाकर पहलवानी के लिए तैयार करता है और फिर उसे जवाब देता है।

कोई भी जाल बुन रहा है तो जाल बुनने में वक्त लगता है, सामने वाला भी नजर रखता है कि जाल बुन रहा है, वो भी अपना जाल बुनना शुरू कर देता है, जो जल्दी जाल बुन लेता है, दूसरे को उसमें फांस लेता है, जो फंस जाता है, वो उसके बाद उससे बड़े जाल की तैयारी करता है ताकि उससे दोगुना जवाब दिया जा सके। शह और मात के इस खेल में बर्बादी दोनों पक्षों की होती है, दरअसल जब आप negative चलते हो तो दूसरा भी negativeचलता है, इस negativity के खेल में हम भले ही कह लें कि एक हार गया और एक जीत गया, लेकिन जरा मन में विचार कीजिए, दरअसल किसी की जीत नहीं हुई है बल्कि दोनों हारते हैं। किसी को नुकसान पहुंचा कर हम अपना भला नहीं कर सकते। दूसरे का नुकसान देखकर भले ही कुछ देर के लिए हम खुश हो लें लेकिन हमारे हाथ आएगा कुछ नहीं, दूसरा जरूर खो देगा, जब आपके साथ यही होगा तो दूसरा थोड़ी देर के लिए खुश होगा, लेकिन नुकसान आपका होगा, जीत हार अगर sports की तरह है तो वो healthy competition  है। अगर नुकसान पहुंचाने का competition  है तो गांठ बांध लो, उससे ज्यादा नुकसान आप खुद का कर रहे हो, so best listen, best think and best do, यही सही way of life है। बाकी फिर.....

Thursday, July 23, 2015

best listen, best think, best do

हमें हर वक्त बुरा लगता है, हमारी कोई बात न माने, चाहे पत्नी हो या बच्चा, दफ्तर में कोई सहयोगी। हमें तब भी बुरा लगता है जब हमारा वरिष्ठ सहयोगी हमें डांटता है, नाराज होता है या फिर हमारे काम में कोई कमी निकालता है। हमें उस वक्त भी बुरा लगता है जब हमारी मांग पूरी नहीं होती, हमारी ख्वाहिश पूरी नहीं होती। यहां तक कि हम भगवान से भी गुस्सा हो जाते हैं। उनसे ऐसी-ऐसी ख्वाहिश पूरी करने को कहते हैं कि जैसे भगवान ने केवल आपका ही ठेका ले रखा है, रिश्वत के नाम पर पांच सौ..हजार तक का प्रसाद, पूजा और कथा तक का प्रलोभन मन ही मन दे आते हैं। जब ख्वाहिश पूरी नहीं होती तो कोसने लगते हैं, कहते हैं भगवान ने पूरा खेल बिगाड़ दिया। यदि कोई काम बन जाता है तो कहते हैं कि देखा, हमारे दिमाग का कमाल, हमारी मेहनत का फल, यदि काम बिगड़ जाए तो कहते हैं कि सब किस्मत का खेल है, वो तो भगवान ने नहीं सुनी, नहीं तो काम तो बन ही गया था, मैने तो अपनी कोशिश कर ही ली थी।


बुरा तब भी लगता है जब हमारा कोई साथी हमसे ज्यादा तरक्की कर जाता है और हम उसे चापलूस, सिफारिशी, संपर्कों वाला जैसा कह कर उसकी काबिलियत को कम करने की कोई कसर नहीं छोड़ते। हमें बुरा तब भी लगता है जब हमारे पड़ोसी हमसे ज्यादा अमीर हो जाते हैं, घर मालामाल हो जाता है, बच्चे अच्छे कपड़े पहनते हैं, बड़ी गाड़ी में घूमते हैं, तब हम अपने परिवार को समझाते हैं कि हम तो ईमानदार हैं, स्वाभिमानी है, पड़ोसी का क्या है, सब गलत तरीके से कमा रहा है, गलत तरीके से निकल जाएगा, हमें ऐसा पैसा नहीं चाहिए, हम तो दाल-रोटी में खुश हैं।

बुरा तो हमें तब-तब लगता है जब-जब हमारे मनमाफिक कोई काम नहीं होता है। मसलन, अगर बेटा-बेटी अच्छे नंबरों से पास नहीं हो पाया, किसी कंपटीशन में सिलेक्ट नहीं हो पाया, आपके आसपास के बच्चे उससे आगे निकल जाते हैं। बुरा तब भी लगता है जब पत्नी आपकी लाईफ स्टाइल को लेकर ताने मारती है, आपकी नौकरी को लेकर कहती है, या फिर आर्थिक तंगी का रोना रोती है।

बुरा तो तब भी लगता है, जो आप सोचते हैं वो धरातल पर नहीं उतरता, जो आप करते हो वो काम कामयाब नहीं होता, जो आप सुनते हो, वो कड़वा होता है,  life में जब-जब आगे बढ़ते हो, अच्छा लगता है, आपके हिसाब से सब काम होते हैं, अच्छा लगता है, लेकिन जब आप life में या तो उसी सीढ़ी पर रहते हो या फिर उससे नीचे उतर जाते है तो बुरा लगता है। गांधी जी के तीन बंदर याद हैं, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, बुरा मत बोलो।
इसलिए हमेशा best listen, best think, best do तभी होगी best life........बाकी फिर........इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com



Wednesday, July 22, 2015

कितनी कमियां हैं हममें?

बुरा मत मानिए, हममें ढेर सारी खामियां हैं। आपमें भी होंगी, कहिए मत किसी से,कम से कम मन में तो मान लीजिए, मानने से हमारा और आपका सबका भला ही होगा, न मानेंगे तो नुकसान जरूर होता रहेगा। महिलाएं हो या पुरुष, बच्चे हों या बूढ़ें, हम एक दूसरे की कमी निकालने में लगे रहते हैं और अपनी कमी को हमेशा शौक, आदत, मूड, छोटी सी बात कह कर टाल देते हैं, चाहे वो रोजमर्रा की life में हो या फिर office में या फिर friends के साथ। मसलन, office में हैं तो हम अपने पर कम दूसरों पर ज्यादा ध्यान देते हैं, किसी की गलती है तो उसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं जबकि खुद की बड़ी गलती को छोटी सी गलती बताकर रफा-दफा करने की कोशिश में जुट जाते हैं। अरे, हम तो काम कर रहे हैं इसलिए गलती तो होगी ही, लेकिन दूसरा क्या करता है केवल गलती ही तो करता है, उसे आता क्या है?


कोई लड़की किसी से बात कर रही है, घूम रही है तो उसके करेक्टर पर सवाल उठाने में जरा भी नहीं चूकते। देखो, कैसे कपड़े पहने हैं, देखो किसके साथ जा रही है, और जो हमें नहीं पता है, उसके बारे में अनाप-शनाप टिप्पणी करने में बिलकुल नहीं हिचकिचाते। यहां तक कि किसी साथी को किसी लड़की के साथ बाईक या कार में देख लिया तो मिलते ही पूछते हैं या फिर दूसरों को बताते हैं, अरे भाई न जाने किसके साथ घूम रहा है, भले ही उसकी wife हो या sister। सिगरेट पी रहे हैं, पान मसाला खा रहे हैं, जहां मन आए, शुरू हो गए, सामने वाले को पसंद है या नहीं, भले ही उसे धुएं से नुकसान पहुंच रहा हो, सड़क पर कचरा फैला रहे हैं, ट्रैफिक का rule तोड़ रहे हैं। अरे हम नेता हैं, अफसर हैं, पुलिसवाले हैं, मीडिया वाले हैं, हमसे कौन बोलेगा?
आप उधार लिए हैं, दूसरा मांग रहा है, ऊपर से आप उसे कोस रहे हैं, अरे मेरी हालत तो खराब है इसे अपने पैसों की पड़ी है। आपने उधार दिए हैं, दूसरा नहीं दे रहा है। अापको कहते हैं कि मेरा ही पैसा है, मैं ही उससे भीख मांग रहा हूं। नाते-रिश्तेदार आपके यहां हैं, आपको लग रहा है खर्च हो रहा है, कोई काम नहीं कर रहा है, नींद में खलल डाल रहा है, प्राइवेसी भंग हो रही है, आप दूसरों के यहां जाते हैं, आपका सत्कार नहीं होता, आपको लगता है कि कमी उसमें है आपमें नहीं।
पति को लगता है कि पत्नी में कमी है, पत्नी को लगता है कि पति में है। बच्चा सोचता है अजीब माता-पिता हैं अपनी-अपनी ही चलाते हैं मेरी सुनते ही नहीं, समझते ही नहीं। पड़ोसियों से नाराजगी है, मकान मालिक ठीक नहीं, या फिर किराएदार ठीक नहीं। यहां तक कि हम अपने दोस्तों को भी कोसते रहते हैं कि देखो, अब जरूरत पड़ी तो पूछ नहीं रहा, जब काम पड़ता है तो कैसे पीछे पड़ जाता है। कोई भी आपके यहां आया, उसके बैठने से लेकर खाने तक, बात करने के लहजे से लेकर हर भाव-भंगिमा की हम समीक्षा करने से पीछे नहीं हटते। जब चाहें किसी भी बात पर हम उसकी कमियां की लंबी लिस्ट पेश कर देते हैं लेकिन कभी सोचा कि हमारी कमियों की लिस्ट कितनी लंबी है?

कुल मिलाकर life में तमाम कमियां हम सब लेकर चल रहे हैं। कुछ दिखती हैं, कुछ हम महसूस करते हैं और कुछ के लिए जानबूझ कर अनजान बने रहते हैं। ये तो कुछ example हैं, सबकी अपनी-अपनी कमियां हैं, जिन्हें हम दूर करें, दूसरों की कमियों को बड़ा न मानें बल्कि अपनी कमियों पर ध्यान दें तो way of life जरूर बेहतर होगा। बाकी फिर...........
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Tuesday, July 21, 2015

गूगल हम क्यों नहीं बना पाए?

एक और कड़वा सच, जो हम सब जानते हैं, प्रधानमंत्री जी भी स्वीकार कर चुके हैं, सबको पता है लेकिन जीवन दर्शन लिखने के दौरान जो मैं कई दिनों से महसूस कर रहा था, सोचा आज आप सब के सामने भी रखूं. मैं भारतवासी हूं, हिंदी भाषी हूं, सोचता था कि यदि ब्लाग हिंदी में लिखूंगा तो भारत में ही लोग पढ़ेंगे, लेकिन ये आकलन पहले दिन से गलत साबित हो रहा है, मुझे खुद हैरानी है कि मेरे ब्लाग को ज्यादातर दो गुने से ज्यादा लोग अमेरिका में पढ़ रहे हैं। जाहिर है वो भी भारतवासी होंगे, हिंदी भाषी होंगे। ब्रिटेन, बेल्जियम, जर्मनी, जापान, यूक्रेन में भी लोग पढ़ रहे हैं लेकिन यूएसए में इतनी तादाद होगी, मैं सोच भी नहीं सकता था। जीवन दर्शन है भी इसी का नाम, कई बार हम जो सोचते हैं, देखते हैं, सुनते हैं, करते हैं, वो सही नहीं होता, इसलिए सुनो, गुनो और चुनो, तोल,मोल के बोल, जैसे मंथन हमने किए हैं।


अमेरिका में लोगों को जीवन दर्शन से क्या लेना-देना, जाहिर है कोई कहीं भी हो, किसी भी जाति का हो, किसी भी धर्म का हो, किसी भी देश का हो, सोच-विचार लगभग एक जैसा ही होता है। प्रधानमंत्री जी डिजिटिल इंडिया की शुरूआत पर खुद कह चुके हैं कि हमारे आईआईटी छात्र पूरे विश्व में धूम मचा रहे हैं, गूगल हो या फेसबुक या याहू, माइक्रोसाफ्ट हो या ऐप्पल और भी तमाम कंपनियां, जिनमें भारतवासियों का दिमाग लगा है लेकिन हम भारत में नहीं कर पाए।
 वो इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि एक तो उनकी यहां कद्र नहीं हुई, अनुशासन नहीं, भ्रष्टाचार में खुद को अनफिट पाना, या फिर न इज्जत न पैसा। ये तमाम पहलू हैं जहां हम बुरी तरह मात खाते हैं और तो और सोचते कम हैं, करने की कोशिश ज्यादा करते हैं, यहीं से जीवन का अनुशासन गड़बड़ा जाता है, way of life के ट्रैक से हम उतर जाते हैं। अमेरिका में जो भारतवासी हैं उन्हें न तो कामकाज से फुर्सत है और न ही उन्हें ज्यादा पढ़ने की जरूरत, फिर भी मेरे से जैसे आम आदमी का ब्लाग पढ़ने से लगता है कि उनकी नजर हर तरफ है, भारत पर भी है, आम आदमी पर भी है, तभी तो वो ज्यादा से ज्यादा जीवन दर्शन समेट पा रहे हैं और अपनी लाइफ बेहतर कर पा रहे हैं।
इसका मतलब ये नही कि आप जीवन दर्शन ही पढ़ें लेकिन जो भी अच्छा है उसे देखें, सुनें, गुनें और चुनें, अपनी बेहतर life के लिए, जहां से भी मिले, भारत ही नहीं पूरे विश्व पर नजर रखें, उसमें से सार निकालें और जीवन में आगे बढ़ते जाएं, हमने पहले भी कहा है कि एक छोटा सा बच्चा सीख दे देता है, मसलन बजरंगी भाई जान में एक नन्ही सी बच्ची को जब कोई मुसलमान बचाता है तो दिल के भीतर तक लोगों के उतर जाता है और कहते हैं कि पैसा वसूल हो गया। आज फेसबुक पर किसी ने एक मुस्लिम औरत को अपने बच्चों को भगवान स्वरूप बनाकर स्कूल ले जाती तस्वीर पोस्ट की, जरूरी नहीं कि कोई बड़ा आदमी कुछ कहे हम तभी माने, यदि आपका बच्चा भी कोई सीख देता है तो उसे दिल में उतार लेना चाहिए, बाकी फिर........इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Monday, July 20, 2015

ज्ञान मत बांटो...

ये बात आप हम से भी कह सकते हैं और हर कोई एक-दूसरे से कहता है या फिर सोचता है और महसूस करता है। मसलन, दफ्तर में जब सीनियर जूनियर को कुछ समझाता है, बताता है तो मन ही मन लगता है कि बड़े पद पर क्या है, कुछ ज्यादा ही ज्ञान बांट रहा है, लगता है कि इससे ज्यादा ज्ञानी ही नहीं, और मुझे तो कुछ आता ही नहीं, ऐसा ही उस सीनियर के साथ होता है जब उसका सीनियर उसे हिदायतें देता है और वो भी हाथ पीछे बांधकर मन मसोसकर सुनता है, कुछ लोग मन ही मन में कुढ़ते रहते हैं और मन ही मन बड़ाबड़ा कर अपनी भड़ास निकाल लेते हैं तो कुछ लोगों से रहा नहीं जाता, और सीनियर के जाते ही अपने समकक्ष के आगे मन की व्यथा उजागर कर देते हैं। यही हाल घर-परिवार और दोस्तों के साथ होता है जब कोई पिता अपने बेटे या बेटी को समझाता है कि बेटा ये करना गलत है, ऐसे बच्चों के साथ मत रहना, कुछ गलत कहना, कुछ गलत मत करना, तो बेटा या बेटी मन ही मन मुस्कराता है या फिर ज्यादा हिदायत से चिढ़ने लगता है और मन ही मन बड़बड़ाता है कि अब भी पिताश्री मुझे दूध पीता बच्चा समझ रहे हैं जबकि हमने तो वो दुनिया देख ली है जो पिता जी ने अपने पूरे वक्त में नहीं देखी होगी।

नेता हों या साधू-संत, वो भी देश को ज्ञान बांटने में पीछे नहीं है, थकते ही नहीं है, जहां देखो शुरू हो जाते हैं बल्कि दिन में कई-कई जगह ज्ञान बांटते हैं। ज्योतिषी भी आपके जीवन के भविष्य का ज्ञान बांट रहे हैं। अब थोड़ा सा सोचिए, ज्ञान किसके पास अचानक बढ़ जाता है, ज्ञान बांटने वाला आपसे मजबूत होगा और ज्ञान लेने वाला कमजोर, जो कमजोर होता है उसे मजबूत शख्स ज्ञान देने में जरा भी कोताही नहीं बरतता। आपसे जो कमजोर होगा, आप उसे ज्ञान बांटने लगते हो, इसे यूं ही समझ लीजिए कि आप यदि कामयाब होते जा रहे हैं, ऊंचे ओहदे पर हैं, निश्चिंत हैं तो आपके पास ज्ञान का भंडार कुछ ज्यादा ही होगा और जहां-तहां ज्ञान देने में कोई संकोच नहीं करेंगे।
 कोई शख्स इम्तिहान में फेल हो गया, व्यापार में फेल हो गया, किसी स्पर्धा में मात खा गया तो उसे वो भी ज्ञान देंगे, जो कभी आपसे लेते थे, मसलन ये आपकी गलती थी, आपको ऐसा नहीं करना था, आपने जल्दबाजी कर दी, आपको इस तरह नहीं इस तरह करना चाहिए था, आपने जगह गलत चुनी, आपने विषय गलत चुना,आपने तैयारी कम की, आपने मेहनत कम की, आप मेरे से ही पूछ लेते थे, आगे से आप ध्यान रखना, मैंने तो पहले ही कहा था कि आपको सफलता नहीं मिलेगी। कई बार तो हम ऐसे शख्स को भी ज्ञान देने में जुट जाते हैं जो हमारे सामने भी मौजूद नहीं है, उसके साथ तो ऐसा होना ही था, ज्यादा जानकार बन रहा था, बेवकूफ है, मुझे तो पता था कि उसका यही हश्र होना है, उसकी संगत ही ठीक नहीं है, अरे जानता ही कुछ नहीं है, होशियार समझता है, ऐसे-ऐसे ज्ञान कि लगता है कि हम ही सबसे बड़े ज्ञानी हैं, बाकी सब बेवकूफ, ये ध्यान रख लें कि छोटा बच्चे से लेकर भिखारी तक अपने हिसाब का ज्ञान रखता है, वो आपके लिहाज से फिट हो या नहीं, उसके हिसाब से जरूर फिट होता है।

तो ये दुनिया का दस्तूर है कि जब जिसे मौका मिले, ज्ञान बांटना शुरू कर दो, जब आपका मौका आता है तो आप भी यही करते हो। ये बात अलग है कि आपको ज्ञान किससे लेना है, कितना लेना है, क्या लेना है, ये आपको ही तय करना है, नहीं तो ज्ञान लेते रहेगो, और उस ज्ञान के बोझ तले दब कर बर्बाद हो जाओगे, जो आपके पास ज्ञान है, यदि उसका ही इस्तेमाल करो तो जीवन ज्यादा बेहतर बना पाओगे...बाकी फिर......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Sunday, July 19, 2015

जीवन की उधेड़बुन

LIFE में तरह-तरह की इच्छाएं आती रहती हैं, हम अपने लिए केवल अच्छा ही अच्छा सोचते हैं, हां, दूसरों के लिए बुरा सोचने में कोई कोताही नहीं बरतते। हमेशा मन में आता है कि ज्यादा मेहनत न करना पड़े, ज्यादा से ज्यादा कमाई हो जाए, जो ऐशो-आराम पा लेते हैं, उसे तो अपना मान ही लेते हैं, उससे आगे की चाहत होनी लगती है। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए जी-जान लगा देते हैं। उनकी पढ़ाई के लिए हर जतन करते हैं, रकम का जुगाड़ करते हैं। ये बात अलग है कि जब बच्चा पढ़ाई के लिए बाहर निकलता है तो उसके बाद बहुत कम बच्चे ही घर लौटकर आते हैं या फिर माता-पिता के साथ रहते हैं। पढ़ाई और उसके बाद नौकरी और उसके बाद शादी-ब्याह, इसके बाद उनकी खुद की चिंता शुरू हो जाती है। हम भी सोचते हैं कि भाई, हमने तो अपना काम कर दिया, अब बेटा-बेटी अपनी जाने, खुश रहे, हमारा साथ दे या फिर नहीं...



जिंदगी भर न केवल अपने बच्चों के लिए उधेड़बुन चलती रहती बल्कि अपने लिए भी..पढ़ाई के बाद सबसे पहले नौकरी की चिंता, नौकरी मिल गई तो वेतन बढ़ने की उधेड़बुन, इसके बाद दूसरी अच्छी नौकरी की चाहत, उसके बाद तीसरी नौकरी की चाहत, कैसे हर साल पैसा बढ़ते रहे, शुरूआत में सब चीज छोटी होती है, मसलन छोटा टीवी, छोटा फ्रिज, छोटा मकान, छोटी गाड़ी..जब सारी छोटी चीजें मिल जाती हैं तो फिर, उससे बड़ी चीज की चाहत, इसके लिए हम हर दिन कोशिश में जुटे रहते हैं और चिंता में रहते हैं।

जब बड़ी चीजें आ जाती हैं तो उससे अलग हटके जो नहीं है, उसे पाने को मन ललचाने लगता है, साथ में हम सोचते हैं कि हर वक्त हम जो चाहें, वही हो, हम जो पाना चाहते हैं, आसानी से पा लें, हम पाते हैं तो अच्छा लगता है लेकिन दूसरा पाता है तो कष्ट होता है। हम हमेशा चाहते हैं कि कम से कम मेहनत करें, ज्यादा से ज्यादा कमाई करें। जितने कम वक्त में जितना ज्यादा पा लें, यही उधेड़बुन रहती है। दूसरा कोई पाता है तो हम कोसते हैं, कहते हैं कि वो तो कमीना है, कुत्ता है, नालायक है, उसे कुछ नहीं आता है, या तो उसके संबंध हैं, पहचान है या फिर साजिश से करता है, या फिर उसका भाग्य है, जो मन में आता है, हम बकने लगते हैं, शायद दूसरे हमारे बारे में भी ऐसी ही प्रतिक्रियाएं देते होंगे। जब हम आगे बढ़ते हैं तो दूसरे वही कहते हैं जो हम दूसरों के लिए ऊपर कह चुके हैं। कुल मिलाकर जिंदगी की हकीकत यही है कि हम जो कर रहे हैं उसके हम लायक हैं जो दूसरे कर रहे हैं वो नालायक हैं। दूसरे भी कहते हैं कि हम लायक हैं, आप नालायक हैं...
कुल मिलाकर हर कोई उसी जद्दोजहद में हैं, कि हम सबसे मजे में रहें, हमारी सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा रहे, हमारे पास सबसे ज्यादा धन रहे, हमारे बच्चे सबसे लायक बनें, इसके ठीक उलट दूसरे हमसे नाकाबिल हैं, उनके पास ज्यादा धन नहीं होना चाहिए, उनकी कम प्रतिष्ठा होनी चाहिए, उनके बच्चे हमारे बच्चे से ज्यादा ऊपर नहीं जाना चाहिए...अगर हम नीचे रहते हैं और दूसरे ऊपर रहते हैं तो बड़ा कष्ट होता है, हम ऊपर रहते हैं, दूसरा नीचे रहता है तो बड़ा मजा आता है। दरअसल यही हमारा सबसे बड़ा भ्रम है जिसमें हम दूसरों के कष्ट को देखकर आनंदित होने लगते हैं जबकि कोई भी हो, अपने कष्ट खुद भोगता है, दूसरों को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी उधेड़बुन में जो खुद को देखता है,दूसरों को नहीं, वो अपने जीवन को ज्यादा बेहतर बना सकता है..बाकी फिर.......



Wednesday, July 15, 2015

अपनी सोचो, दूसरों की नहीं

कहते हैं कि हम बदलेंगे,युग बदलेगा, यदि व्यक्ति खुद अच्छा होगा, तो समाज अच्छा होगा, राज्य और देश अच्छा होगा, इसके लिए स्कूलों में शुरू से बच्चों को शिक्षा दी जाती है, माता-पिता भी अपने बच्चों को बताते हैं और जितने भी विचारक हैं, सुधारक हैं, राजनेता हैं, जो देश और समाज का ठेका लिए हुए हैं, वो भी जगह-जगह अपने व्याख्यान में ये संदेश देते रहते हैं कि पहले खुद सुधरो, फिर देश सुधरेगा लेकिन थोड़ा सा हम अपने भीतर झांकें, अपने आसपास झांकें, और दो मिनट सोचें कि साल-दर-साल हमें मिल रही शिक्षा या हमने जो शिक्षा दूसरों को दी है, क्या हम उसका पालन कर रहे हैं?


जवाब आएगा न में, ये कड़वी हकीकत है, चाहे घर-परिवार में हों, दफ्तर में हों, समाज में हों, हम खुद से ज्यादा दूसरों की सोचते हैं, बहुत कम लोग ऐसे मिलेंगे, जो खुद को बेहतर बनाने में या फिर जो उनसे जुड़़े हैं, उन्हें बेहतर बनाने में जुटे हों। शुरूआत करते हैं अपने परिवार से..जहां बेटा हो बेटी, भाई हो या बहन, माता हो या पिता..हम लिंग भेद तो करते ही हैं, हैसियत के हिसाब से भी रिश्ता निभाते हैं, मैंने खुद एक नहीं सैकड़ों जगह खुद अनुभव किया है कि यदि आपके पिता के पास बेहिसाब संपत्ति है तो आप उनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और यदि धेला नहीं हैं तो उनकी बीमारी या अक्षमता देखकर मन मसोसकर रह जाएंगे कि कब उनसे छुटकारा मिले। सोचिए, जिसने आपको जन्म दिया, उसके बारे में हम यदि ऐसा सोचते भी हैं, तो कितना निकृष्ट काम करते हैं। जो ऐसा सोचते हैं वो जरा ये भी सोच लें कि आप भी कभी बूढ़े होंगे, आपके साथ भी ऐसा होगा या हो सकता है। मैं केवल माता-पिता की बात नहीं करता, माता-पिता भी अपने उस बच्चे को ज्यादा मान-सम्मान देने लगते हैं जो कमाऊ पूत है, या फिर उसका स्टेटस ऊंचा है। विधायक, सांसद, मंत्री, अफसर है तो पिता भी बेचारा अपने बेटे के सामने लाचार सा महसूस करने लगता है।

यही हाल दफ्तर का है, बड़ा साहब है तो लोग चरणों में लोट जाएंगे, एक-एक भाव भंगिमा की तारीफ के पुल बांध देंगे, कोशिश रहती है कि अपने साहब को देश का सबसे महान व्यक्ति ही करार दें ताकि दूसरा हमसे आगे न निकल जाए। दरअसल जब हम किसी के सामने बौने नजर आते हैं, अपनी हैसियत कम आंकते हैं, अपने महत्व को घटता देखते हैं, तो हम तत्काल दूसरों की सोचने लगते हैं। हम चाहते हैं कि अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए दूसरों का मखौल उड़ाएं, उसे घटिया से घटिया साबित करें ताकि अपना उल्लू सीधा कर सकें।
अक्सर हम किसी भी शख्स के बारे में, किसी संस्थान के बारे में, किसी समूह के बारे में, किसी परिवार के बारे में बात करते हैं तो मतलब के हिसाब से विचार बनाते हैं, मसलन आप उससे जुड़े हैं तो आपके लिए बहुत ही भला शख्स है, बहुत ही भला संस्थान है, जब आपके विरोधी हैं तो उसे जी भरकर कोसते हैं।
मैं बार-बार आपसे ये बातें इसलिए शेयर कर रहा हूं कि हम सब जानते हैं, समझते हैं, लेकिन अपनी तरफ कम देखते हैं, दूसरों के बारे में ज्यादा सोचते हैं, जब हम खुद के बारे में सोचते हैं तो हम अपना भला करते हैं, दूसरा क्या सोचता है, क्या करता है, वो उसके लिए हैं, आपको उससे कुछ नहीं मिलेगा, अच्छा होगा तो उसका होगा, बुरा होगा तो उसका होगा, यहां तक कि आपका भाई आईएएस बन जाए, मंत्री बन जाए, करोड़पति बन जाए, वो उसका है, यदि वो गुंडा बन जाए तो वो उसका है, यदि आप अच्छे इंसान हैं, आपकी प्रतिष्ठा है तो आपकी है, इसलिए अपनी ही सोचो, अपना
way of life बेहतर बनाओ, दूसरों की टांग में टांग फंसाओगे तो खुद को नुकसान पहुंचाओगे..बाकी फिर.......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com


Tuesday, July 14, 2015

क्या आप सबसे सुखी इंसान हैं?

क्या आप दाल-रोटी-सब्जी रोज खा रहे हैं? क्या आप खट्टा-मीठा-तीखा खा पाते हैं? क्या आप साफ-सुथरा पानी पी रहे हैं? क्या आप सात-आठ घंटे की नींद ले रहे हैं? क्या आप का रहन-सहन, खाना-पीना, सोना नियमित हैं? क्या आप कोई दवाई नहीं खाते हैं? क्या आपके परिवार में सभी ऐसी ही LIFE जी रहे हैं, क्या आप अपने बच्चे की फीस और पढ़ाई के लिए दिक्कत का सामना नहीं कर रहे हैं?, क्या जब आप सोते हैं तो तनाव, ब्लड प्रेशर, नींद की गोली तो नहीं खाते हैं? क्या आप उधार तो नहीं ले रखे हैं? क्या आपको किसी से डर तो नहीं लगता है? क्या आपके मन में कोई साजिश-षडयंत्र तो नहीं चल रहा है?


यदि इनमें से कुछ भी नहीं है तो आप शायद इस धरती पर सबसे सुखी इंसान हैं और आपका परिवार भी। पुराने जमाने में कहते हैं कि दाल-रोटी खाओ और प्रभु के गुन गाओ, यदि सेहत हैं, चिंता नहीं है, आर्थिक तंगी नहीं है तो  आपकी LIFE मालामाल है। वाकई, करोड़ों हो, गाड़ी हो बंगला हो, नौकर हों लेकिन डायबिटीज है, ब्लड प्रेशर है, थकान हैं, तनाव है तो जीना बेकार है। जितना कमाओ कम है, करोड़ों कम हैं और हजारों ज्यादा है। यदि सुकून से दो वक्त की रोटी आप अपने परिवार के साथ खा रहे हैं, भले ही छोटे स्कूल में बच्चा पढ़ रहा है, दवाओं का सहारा नहीं ले रहे हैं और भरपूर नींद ले रहे हैं तो आपने जीवन सही से जी लिया..कितने बड़े सेलिब्रिटी बन जाओ, दिन-रात मेहनत कर लो, सेहत बिगाड़ लो, परिवार को तनाव दे दो, खुद भी ले लो, और फिर इस धरा से चले जाओ, बाकी सब यहीं रह जाएगा, आपके किसी काम न आया, न आएगा।
नौकरी जरूरी है, पढ़ाई जरूरी है, मेहनत जरूरी है, लेकिन प्रकृति ने जो नियम बनाए हैं, जो अनुशासन बनाया है, उन्हें भी निभाना जरूरी है, उसके खिलाफ जाओगे तो संतुलन बिगड़ जाएगा, अर्थ आ जाएगा, भाव चला जाएगा। कितना खाओगे, कितना पहनोगे, कितना रुतबा दिखाओगे, सब कर तो लोगे लेकिन जीवन को खो कर, अपने परिवार को भी खोकर..तमाम लोग हैं जो रोज सैकड़ों रुपए की तो रोज दवाएं खा जाते हैं, और कहते हैं कि इनका भी खर्च निकालना है, अरे ये सोचा क्या कि..दवा खानी क्यों पड़ रही है, इसका जिम्मेदार कौन है, आप कहेंगे, नौकरी, किस्मत, भाग्य.... नहीं...हम खुद हैं, सब हमारे हाथ में हैं, कम से कम अपने जीवन और सेहत के बारे में तो हम खुद तय कर सकते हैं उसके लिए बहुत रकम या स्टेटस की जरूरत नहीं। आर्थिक हो या सामाजिक, हम खुद अपने लिए मापदंड तय करते हैं और जब वो स्टेटस पा लेते हैं तो खुद ही उससे ऊंचा मापदंड तय कर लेते हैं और इसी आपाधापी में सारे संतुलन बिगड़ते चले जाते हैं, एक वक्त वो आता है कि जब सारे मापदंड गड़बड़ाने लगते हैं और जीवन बिखरता हुआ दिखाई देता है। कहते हैं कि जितनी रस्सी तने, उतनी ही तानो, नहीं तो टूट जाएगी, जीवन के साथ भी ऐसा ही है, ये आपको तय करना है कि आपको रस्सी को कितना तानना है....बाकी फिर........इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Monday, July 13, 2015

कुत्ता, गधा, साला...

एक मित्र अपनी प्रतिक्रिया किसी बात पर दे रहे थे तो उनके मुंह से तीन शब्द निकले..कुत्ता, गधा, साला...लगा कि इन तीन शब्दों पर लिखा जाए, क्यों हम इन्हें अपने गुस्से का शिकार बना रहे हैं...अक्सर हम एक-दूसरे को कुत्तों और गधों की उपाधि देते हैं। नाराज होने पर किसी को भी कुत्ता, गधा, साला बोलते हैं। आप को लग रहा होगा कि आज मैं ये क्या विषय लेकर बैठ गया, लेकिन थोड़ा गंभीर होकर सोचें तो मुझे ये तीन शब्द गाली से ज्यादा अपने लगते हैं। अपने से मतलब, आजकल आदमी जितना घातक है उतना कुत्ता नहीं, कुत्ता जब काटता है तो पता भी चलता है कि वो आपको काटने दौड़ रहा है लेकिन आदमी जब काटता है तो आपको पता ही नहीं चलता लेकिन कुत्ता जब वफादारी निभाता है तो उससे बेहतर साथी कोई और नहीं, एक नहीं हजारों किस्से ऐसे हैं जिनमें कुत्तों ने अपने मालिक या परिवार की जान बचाई. भले ही खुद की जान देनी पड़ी हो। कुत्ता यदि इतना ही घातक है तो लाखों लोग उसे क्यों पालते हैं और अपने परिवार के सदस्य की तरह क्यों रखते हैं, यहां तक कि उसे कुत्ता बोलने पर नाराज हो जाते हैं।

गधा शब्द बेवकूफी का पर्याय है लेकिन उसकी सहनशीलता के गुण को कोई नहीं देखता, जो अपने मालिक के सारे बोझ को खुद पर लादता जाता है और चूं भी नहीं बोलता। जब कोई गधे की तरह आपके लिए काम करता है चाहे वो इंसान हो तो आप उसकी तारीफ करते हैं कि हमारा ये कर्मचारी, हमारा ये नौकर, हमारा ये साथी देखो गधे की तरह काम करता है और उफ नहीं करता लेकिन जब ऐसा ही कोई गधा दूसरे के लिए गधे की तरह जुटा रहता है तो आप उसकी आलोचना करने लगते हैं और उसे ऐसे गधे की उपाधि देते हैं जो बेवकूफ है।

जहां तक साले की बात है तो ये प्राणी आपकी पत्नी का भाई है यानि अर्धांगिनी, यदि उसके बारे में इस तरह आप हल्के-फुल्के अंदाज में हंसी-मजाक करते हैं तब तक तो गनीमत है लेकिन जब गुस्से में साले को गाली की तरह बोलते हो तो जितने भी साले हैं उन पर क्या गुजरती होगी, यही नहीं आपमें से भी ज्यादातर किसी न किसी के साले होंगे और आपके बारे में यदि ऐसा बोला जाएगा तो कितने खंजर दिल में लगेंगे, आप खुद महसूस कर सकते हैं।

जीवन में शब्द हों या अर्थ, या फिर विचार हों, हम वक्त-वक्त पर अपनी तरह उनका अर्थ निकालते हैं, भाव दर्शाते हैं, अपनी सुविधा के हिसाब से उन्हें जाहिर करते हैं, मतलब के लिहाज से बात करते हैं, जब मतलब निकल जाता है तो उसी शब्द का अर्थ
बदल लेते हैं। ये मानकर चलिए, कोई भी हो, कितना ही बड़ा शख्स हो, यदि वो कहता है कि वो पूरी तरह से ईमानदार है तो वो सबसे बड़ा झूठ बोल रहा है, और झूठ से जुड़ा है स्वार्थ, क्योंकि स्वार्थ से जुड़ा है उसका फायदा, तो ये way of life है यानि जीवन दर्शन है जिसे लोग अपनी ही तरह जीना चाहते हैं, उसे किसी से मतलब नहीं, अपनी ही तरह से शब्दों के अर्थ निकाल लेते हैं और अपने फायदे में जुट जाते हैं। जैसा हम शब्दों के साथ करते हैं, ऐसा ही हम अपने जीवन में कई बार एक-दूसरे के साथ कर जाते हैं, या तो गलत समझ कर, या फिर अपने छोटे से फायदे के लिए..दोनों ही स्थिति ठीक नहीं, क्योंकि गलती आपकी कमजोरी दर्शाती है और छोटा सा फायदा उससे बड़ी कमजोरी, क्योंकि खुद को बुलंद नहीं कर पाए तो आपने झूठ का सहारा ले लिया। अगर अपना सम्मान बरकरार रखना है तो अपनी कमजोरी दूर करनी होगी। इसके पहले भी मैं लिख चुका हूं कि सुनो, गुनो और चुनो या फिर तोल-मोल के बोल, ये अगर हम अपने जीवन में अपना लें तो जीवन को बेहतर बनाने की ओर आगे बढ़ेंगे। बाकी फिर.......इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com




क्या है जीवन दर्शन?

जीवन दर्शन शब्द सुनकर लोगों को एक नजर में लगता है कि बड़ा भारी शब्द है, आजकल की चकाचौंध, भागदौड़, वक्त की कमी, कामकाज का तनाव, परिवार की जिम्मेदारियां, बच्चों के भविष्य, सेहत की चिंता, साजिश, राजनीति, झूठ-फरेब से ही नहीं उबर पा रहे हैं, जीवन के दर्शन में कौन झांके, तो दोस्तो, हम आपको बता दें कि हम कोई कोई गहरे पानी पैठ की बात नहीं कर रहे, हम इन्हीं सब विषयों की चर्चा कर रहे हैं, जो हम रोज देखते हैं, करते हैं और सुनते हैं, भोगते हैं, महसूस करते हैं। अपने आसपास जो भी घटित हो रहा है, जो हम सोच रहे हैं, जिनसे रूबरू हो रहे हैं, जिनसे हमारा और हमारे परिवार, समाज का और देश का लेना-देना है,जिसमें हमारी सीधी भागीदारी है।


दरअसल हम जो करते हैं, उसमें सोचने का वक्त कम है, सब कुछ इंस्टेंट है, जो तात्कालिक रूप से मन में आया, दिल ने चाहा कर दिया, उसके नतीजे के बारे में सोचते ही नहीं, लेकिन जब कोई घटना हो जाती है, कोई फैसला हम लेते हैं तो अच्छा या बुरा होता है, यदि थोड़ा सा सोच लें, थोड़ा अपने मन में झांक लें, थोड़ा करने के लिए उसके नतीजे तक पहुंच जाएं तो हमारा जीवन बेहतर हो सकता है,  हम कितने बड़े आदमी है, हम कितने उम्रदराज हैं, हम अगर किसी की मानेंगे तो हम छोटे हो जाएंगे, ये सब सोचा तो हम अपने जीवन में माइनस करते हैं, कभी-कभी आपके बच्चे की सलाह आपके फैसले से बेहतर हो सकती है, आपके माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चे, दोस्त, दफ्तर के साथी..कोई भी आपके चुनाव को और बेहतर कर सकता है, आपको सही रास्ते पर ले जा सकता है, ये आपको तय करना है कि कब कौन सी बात को केवल सुनकर छोड़ देना है, कब उसे धारण कर लेना है और कब उसकी बात को मान लेना है। करना हमेशा अपने ही दिमाग से है, भावुकता में नहीं बहना है, उत्तेजित नहीं होना है, घमंड नहीं करना है, धरातल पर रहना है और ऐसा करके हम न केवल अपने जीवन को नई ऊंचाईयों पर ले जा सकते हैं बल्कि सुख, शांति का अनुभव कर सकते हैं।

एक बात हमेशा मन में ठान लें कि केवल पैसा समृद्धि का आधार नहीं, सबसे पहले सेहत और शांति आपके जीवन के पहले मापदंड होना चाहिए। यदि आप दाल-रोटी खा रहे हैं तो उस खाते वक्त  मन में सुकून होना जरूरी है न कि फाइव स्टार होटल में तनाव लेकर भोजन करना। बड़े बंगले में जो सुकून नहीं वो एक कमरे में भी हो सकता है जबकि माहौल खुशनुमा हो, सदभाव का हो, शांति का हो, गलत तरीके से आप कहीं से कहीं पहुंच सकते हैं, लेकिन तनाव और भय के साथ, उससे न तो आप अपने को सुकून दे पाएंगे न ही अपने परिवार को...और जब आप धड़ाम से गिरेंगे तो आपके पास की चांडाल-चौकड़ी ऐसे गायब होगी कि पता ही नहीं चलेगा और आप अकेले अंधेरे में खो जाएंगे। जो हमारे साथ रोज घटित होता है, जो हम दिन भर सोचते हैं, करते हैं, उसे बेहतर कैसे करेंगे, यही जीवन दर्शन है...आज जीवन दर्शन पर इसलिए लिखा कि देश-विदेश के कई साथियों ने जिक्र किया कि आप लिखते बड़ा सरल हैं, वैसा ही जो हमारे आसपास है जबकि जीवन दर्शन से कुछ ऐसा लगता है कि ये केवल उन लोगों के लिए जो केवल चिंतन-मनन करते हैं, आध्यात्म में रमते हैं, हर कोई का इससे क्या लेना-देना, इसलिए आज जीवन दर्शन को स्पष्ट करना जरूरी समझा, हमारे और आपके लिए ये अच्छी बात है कि गूगल के पहले पेज पर जीवन-दर्शन बना हुआ है और लगातार लोग इसे पसंद कर रहे हैं क्योंकि इससे हम सबको लेना-देना है..बाकी फिर............इन्हें भी जरूर पढ़िए....bhootsotroyworld.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com

Saturday, July 11, 2015

रहिए B+

हमेशा पाजिटिव रहो, निगेटिव रहोगे तो दूसरों को भी नुकसान पहुंचाओगे और खुद को भी, अपना काम करते रहो, मेहनत करते रहो, अगर आपको कोई नुकसान पहुंचा रहा है,खलनायक की भूमिका निभा रहा है तो कभी उसको बुराई से मत मारो, अपनी अच्छाई से मारो। पानी के आधे भरे गिलास को दो तरह से लोग देखते हैं. कुछ उसे आधा गिलास भरा बोलते हैं तो कुछ आधा गिलास खाली बोलते हैं। ये अपनी-अपनी सोच का फर्क है और उसी सोच से आपके हमारे काम में फर्क दिखाई देता है।
जो पाजिटिव सोचते है, उनमें हमेशा एक उत्साह बना रहता है, पाजिटिव होने से हर वक्त मानसिक और शारीरिक ऊर्जा बनती रहती है जबकि निगेटिव होने पर आप में जो काम करने का माद्दा है, वो नष्ट होना शुरू हो जाता है और जो आपकी क्षमता है वो घटकर माइनस तक पहुंच जाती है जिससे शारीरिक और मानसिक कमजोरी सामने वाले को ही नजर नहीं आती, कई विकृतियां भी हम अपने लिए पैदा कर लेते हैं। जीवन दर्शन यही है।
वक्त बदलता रहता है, कामकाज बदलता रहता है, जगह बदलती रहती है, खट्टे मीठे अनुभव होते रहते हैं, सुख-दुख लगा रहता है, हार-जीत चलती रहती है, लेकिन अपने पाजिटिव लक्ष्य को कभी नहीं भूलना चाहिए, मेहनत को रुकना नहीं चाहिए, नए विचार खत्म नहीं होना चाहिए और ये सब तभी मुमकिन हैं जब हम एक काम खत्म होने से पहले ही दूसरा शुरू कर दें। अपनी सोच को लगातार सक्रिय रखें, उत्साह को कम न होने दें।

लंबे वक्त से कुछ लिख नहीं पाया था। कठिन मेहनत और समय न मिलने से जैसे ही थोड़ी फुर्सत मिली तो सोचा अपने साथियों से रूबरू हुआ जाए, कहीं भूल न गए हों, क्योंकि यात्रा में पड़ाव आते रहते हैं. जिस तरह पानी नहीं ठहरता, वैसे ही जीवन एक जगह नहीं चलता, उसे लगातार बहते रहना हैं और अपनी मंजिल तक पहुंचना है। जीवन है और उसका एक दर्शन है, ये सबके लिए अलग-अलग है, सबका अपना अपना तरीका है, अपनी-अपनी क्षमता है, कुछ लोग वक्त और उम्र के साथ कम कर लेते हैं तो कुछ लोग उसे बढ़ा भी लेते हैं। कुछ लोग हमेशा स्थिर रहते हैं। हमारा जैसा दर्शन होगा, वैसा ही जीवन होगा, चाहे वो योग हो या भोग हो,
राजनीतिक हो या अध्ययन, अध्यापन का, ग्लैमर हो और गुमनाम अंधेरी गलियां, आप समझ ही गए होंगे कि मैं किस तरफ इशारा कर रहा हूं, उस दर्शन से ही लोग अपने जीने का सलीका तय करते हैं, अपना नाम करते हैं या फिर बदनाम होते हैं। तो हमेशा दूसरों को मत देखिए, खुद को देखिए.रहिए  B+
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