एक मित्र आजकल बहुत व्यस्त हैं.पहले सलाह लेने के लिए हमसे समय मांगते थे, अब हाथ ही नहीं आ रहे थे, कहने लगे, बिहार चुनाव में व्यस्त हैं, मैंने कहा..भाई, आप न तो नेता हैं, न मीडिया में हैं, फिर आप चुनाव में क्या गुल खिला रहे हैं, कहने लगे, भाई तुम अपने हो, इसलिए बता देता हूं, आजकल पांचों उंगलियां घी में हैं और सिर कड़ाही में है, असल चुनाव तो मैं ही लड़वा रहा हूं, शुरूआत लोकसभा चुनाव से की थी, देखा..कैसी बंपर जीत मिली, अबकी बार भी पक्की है लेकिन मैंने पार्टी बदल ली है,पहले किसी और को जिताया, अबकी बार किसी और को जिता रहा हूं, विपक्ष को जिताना आसान था, पक्ष को जिताना मुश्किल, लेकिन जिता दिया तो फिर बल्ले बल्ले है। मैंने कहा-पहेलियां मत बुझाओ, आपका काम क्या है, बोले..मूर्ख हो, मूर्ख रहोगे, असल चुनाव तो मैं लड़ा रहा हूं, जो मैदान में दिख रहा है, जो मीडिया में छाया हुआ है, जो सोशल मीडिया पर विवाद चल रहे हैं, ये किसने पैदा किए हैं, इसकी स्क्रिप्ट मैं ही लिख रहा हूं. चुनाव अब सामने से नहीं लड़ा जाता है, सब कुछ तकनीकी हथियारों से लड़ा जाता है, कंप्यूटर, लेपटाप और मोबाइल से..नहीं समझ आया तो आपके लिए एक बानगी पेश करता हूं, ये स्क्रिप्ट तैयार है, आज हमारे नेता इसे सभा में पढ़ेंगे, इस पर ये विवाद शुरू होगा..देखते जाईए..वाकई सुबह बताया, शाम को वही हुआ..विकास को कैसे हवा किया..पता चला, बीफ से लेकर शैतान, ब्रह्मपिशाच, थ्री इडियट, चुटकले, कहानी-किस्से, पुराने वीडियो से लेकर नए स्टिंग तक सब कुछ पर काम चलता रहता रहता है, हर चरण की अलग तैयारी है, किस मुद्दे को हवा देना है, किसको हवा करना है, टीम पूरी चौकस है, मैं नतमस्तक था उनके आगे, वाकई चुनाव लड़ कोई रहा है, लड़ा कोई रहा है और लड़खड़ा कोई रहा है.