Wednesday, October 14, 2015

सलाह देकर खुद फंस गया...

एक मित्र साहित्यकार हैं, कुछ दिनों से दिख नहीं रहे थे, सोशल मीडिया से भी गायब थे, मैंने फोन लगा ही दिया..भाई कहां हो, बोले..कुछ नहीं..कैसे अपना मुंह दिखाऊं, मैंने पूछा..अरे..ऐसा क्या हो गया..क्या गड़बड़ हो गई..जो मुंह दिखाने लायक नहीं रहे..क्या किसी लड़की-वड़की का चक्कर खुल गया..नहीं भाई..कई साहित्यकार पुरस्कार लौटा चुके हैं..उनकी बड़ी चर्चा हो रही है..टीवी पर बहस में हिस्सा ले रहे हैं..अखबारों में इंटरव्यू लिया जा रहा है..सोशल मीडिया पर उनकी प्रशंसा और आलोचना हो रही है..मौज ही मौज है..मुझे कोई पूछ ही नहीं रहा..मुझे तो पुरस्कार मिला ही नहीं। मैं किसी से कम बड़ा साहित्यकार नहीं..क्या केवल पुरस्कार मिलने या लौटाने से ही कोई बड़ा बन जाता है..

मैंने तो इतना लिखा है मुझे किसी ने पुरस्कार नहीं दिया..पुरस्कार पाने का मापदंड आखिर क्या है..पुस्तकें ज्यादा मात्रा में बिकना है या फिर मीडिया में ज्यादा चर्चा है..या फिर समाज का ज्यादा भला करना है। मेरे से पूछने लगे कि आप ही बताओ..आखिर सही मापदंड क्या है पुरस्कार पाने का..
मित्र साहित्यकार को शांत किया..और कहा कि आप हमारे पास आ ही जाओ..मापदंड भी बता दूंगा..घर आ गए..बड़े बेचैन थे..बताईए..क्या मापदंड है..मैंने पूछा सत्ताधारी पार्टी में आपकी अच्छी जान-पहचान है..बोले नहीं...मैंने कहा कि कोई बड़ा..बहुत बड़ा साहित्यकार आपको रिकमंड करता है..बोले नहीं..कुछ ऐसा लगा है जिससे देश में कोई विवाद खड़ा हुआ हो..बोले नहीं..तो फिर आपके पास क्या है..जो आप लिखते हो..वो तो मैं भी लिख दूंगा..लिखवा लूंगा..फिर मैने पूछा..अच्छा मैं जुगाड़ करवाता हूं..पैसा है आपके पास...बोले नहीं...फिर साहित्य खुद लिखो..खुद पढ़ो..अरे जुगाड़ नहीं तो पैसा ही खर्च कर दो..ऐसी तमाम संस्थाएं हैं जो आपके ही पैसे से आपको पुरस्कार दे देंगी..नहीं तो ऐसी संस्था आप ही खड़ी कर दो..आप ही चीफ गेस्ट..खुद भी पुरस्कार लो..दूसरों को भी बांटो...आप भी देखो..मैं भी देखता हूं कोई उन साहित्यकार को पुरस्कार दिलवा दो...

दूसरे दिन....

हमारे साहित्यकार मित्र आज फिर बेचैन दिखे, कहने लगे..आप पुरस्कार मिलने के लिए तमाम क्वालिटी गिना रहे हो, जुगाड़ बता रहे हो लेकिन अब तो लगता है कि उन्हें पुरस्कार ठीक नहीं मिला..मैंने पूछा..भाई..कल तक तो आप इसलिए मायूस थे कि पुरस्कार लौटाने के लिए मन मचल रहा है..और पुरस्कार कैसे मिलेगा?..अब कह रहे हो कि ठीक नहीं मिला..ऐसा क्या हो गया? बोले..चर्चा साहित्यकारों की हो रही है..और रोटियां सेंक रहे हैं बाकी सब...आप तो हंसी-मजाक में मजे ले रहे हैं लेकिन इस मुद्दे पर नाबालिग भी धड़ल्ले से लिख रहे हैं..कह रहे हैं कि उन्हें मिलेगा तो लौटाएंगे नहीं..जब मिला था तब कहां थे..पहले क्यों ले लिया..अब क्यों लौटा रहे हो..अरे लौटाना है तो पैसे लौटाओ..कोई कह रहा है कि राशन कार्ड लौटाओगे तो मानेंगे..नहीं तो हम लौटा देंगे..कोई मजे ले रहा है.कोई धमका रहा है..कोई हम इतना गिरा दे रहा है कि हम कभी जीवन में उठने की भी न सोच पाएं..अब हमें इन साहित्यकारों पर गुस्सा आ रहा है कि भाई..या तो पहले लेना नहीं था..या फिर लौटाना नहीं था..कम से कम हम जैसे साहित्यकारों की तो सोचते..कुछ जीवन बेहतर होने की उम्मीद में थे कि अब गली-गली में बच्चे से लेकर बूढ़े... यहां तक कि साहित्य के मामले में अनपढ़ भी जमकर घूंसे-लात चला रहे हैं। कोई कह रहा है कि साहित्यकारों की मानसिकता की जांच होनी चाहिए..लोग हमारे राजनीतिक दलों के कनेक्शन तलाश रहे हैं..लग रहा है कि आफत मोल ले ली है। कोई समर्थन में लिख रहा है, कोई विरोध में..जिसको कुछ नहीं समझ आ रहा है वो दोनों को ही कोसने में जुटे हैं.और तो और.सुबह कुछ कह रहे हैं..शाम को कुछ कह रहे हैं. क्या साहित्य ही छोड़ दूं?..कुछ दूसरा काम-धंधा देखता हूं..मैंने कहा कि भाई..इतने से डर गए..कम से कम चर्चा में तो आए..एक-दो दिन रुक जाओ..नए मुद्दे की तलाश चल रही है..जैसे ही मिल जाएगा..आपको कोई पूछने वाला नहीं रहेगा..जो चाहे करना..बाकी भी जो मर्जी आए..कर ही रहे हैं......


तीसरा दिन.....


गजब हो गया, जिन साहित्यकार मित्र को साधु-संत बनने की सलाह दी थी, वो वाकई लापता हो गए हैं, उनकी पत्नी का फोन आया, क्या भाई साहब, आप भी उलटी-सीधी सलाह देते रहते हैं. ये कल बोले कि आपने कोई शानदार आईडिया बताया है, साहित्य में कुछ नहीं रखा है, बिना पूंजी के चोखा धंधा पता चला है, पूरा परिवार मजे करेगा, गेरूआ वस्त्र लेने जा रहा हूं, तबसे गायब हैं, अब आपको ही भुगतना होगा, हमारे परिवार को भी पालना होगा, अब मुझे समझ आया, मुफ्त की सलाह कितनी भारी पड़ सकती है, लेना एक, न देना दो, मैं तो ठलुआ था ही, सलाह देकर और मुसीबत मोल ले ली. उनकी पत्नी ने हमारे हिस्से की जी भरके गालियां निकाली, मैं भी सर झुकाए सुनता रहा, बोलीं, नेता ही बना देते, बीफ पर बयान दिलवाते,सोशल मीडिया पर दो-चार से शेयर करवाते, दो-चार से गालियां दिलवा देते, दुकान चल निकलती, गुमटी तो बन ही जाती, अब आप ही भुगतिए, खुद तो कुछ बन नहीं पाए, दूसरों की दुनिया में जहर घोल रहे हैं, आप पत्रकार थे, क्या उखाड़ लिया, समाज को सुधारने चले थे,खुद नहीं सुधर पाए, उनकी बात मन को कचोट रही है, खुद कुछ किया नहीं, सलाह दुनिया को बांट रहा हूं, तो दोस्तो, मेरे मित्र साहित्यकार गेरूआ वस्त्र में कहीं मिले तो मुझे जरूर खबर करना, बैठे-बिठाए मुसीबत मोल ले ली है, आप भी सोचना, सलाह देने के पहले खुद में झांक जरूर लेना.बाकी फिर....