प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि यदि सवा सौ करोड़ देशवासी ठान लें तो देश साफ हो जाएगा। बिलकुल सही कहा है कि उन्होंने..... दरअसल सफाई अभियान क्या, किसी भी क्षेत्र में यदि देशवासी ठान लें तो देश की कायापलट हो जाए और सरकारी अधिकारी-कर्मचारी ठान लें तो सरकार का कायापलट हो जाए।
जब कोई ट्रैफिक पुलिस चौराहे पर खड़ा होने की बजाए इधर-उधर टहलता है और लोग ट्रैफिक नियम खुलेआम तोड़ते जाते हैं..तो देश कैसे सुधर पाएगा..जब ट्रैफिक पुलिस वाला ट्रैफिक नियम तोड़ने पर रिश्वत मांगेगा तो देश कैसे सुधर पाएगा..जब हम किसी भी दफ्तर में किसी भी काम के लिए जाते हैं तो बिना रिश्वत के कोई सुनवाई नहीं होती। आपके कागज भले ही सही हों या फिर आपका काम सही हो..लेकिन बिना लेन-देन के आप टहलते रहें..कोई सुनने वाला नहीं।
ऐसे ही सफाई का मामला है। हम अपने घर में रहते हैं तो या तो खुद सफाई करते हैं या फिर करवाते हैं लेकिन गंदगी पसंद नहीं करते लेकिन जब घर से बाहर निकलते हैं तो सब भूल जाते हैं..और जहां मन होता है..फेंकना शुरू कर देते हैं। विदेशों में ऐसा नहीं होता..वहां गंदगी फैलाने पर तत्काल जुर्माना लग जाता है। फाइन इतना तगड़ा होता है कि अगली बार से वो भूल ही नहीं सकता। दरअसल सवा सौ करोड़ लोग जो भी ठान लेंगे..वह हो जाएगा। सवा सौ करोड़ देशवासी तो छोड़ दीजिए..सरकार के ही लोग सुध जाएं तो देश सुधर जाएगा। जब ईमानदारी की कसमें खानें वाले अरविंद केजरीवाल के मंत्री एक-एक कर बेनकाब होते हैं तो देश कैसे सुधर जाएगा..जब बिहार ने नीतीश कुमार के मंत्री स्टिंग आपरेशन में फंस जाएं तो देश कैसे सुधर पाएगा।
सवाल ये है कि हम खुद से अपेक्षा नहीं करते..दूसरों से करते हैं..हम चाहते हैं कि सामने वाला ईमानदार बने और खुद कमाई की होड़ में अंधे हुए जाते हैं। दूसरों की मिसाल पर हम खूब वाह-वाह करते हैं और जब अपनी बारी आती है तो चुप्पी साध जाते हैं या फिर बगलें झांकने लगते हैं। खुद करते हैं तो बड़ा कष्ट होता है और दूसरा करता है तो उसे जी भर के कोसते हैं। कहते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे..यही सवाल ईमानदारी का है...कि हम क्यों शुरूआत करें..हम तो कर देंगे लेकिन हमें पता है कि सामने वाला नहीं करेगा..मतलब हमारा ही नुकसान होगा..जब तक ये सोच बनी रहेगी..कितने ही अभियान चला लें..जब तक मन साफ नहीं होगा..देश साफ नहीं हो पाएगा...बाकी फिर.....
जब कोई ट्रैफिक पुलिस चौराहे पर खड़ा होने की बजाए इधर-उधर टहलता है और लोग ट्रैफिक नियम खुलेआम तोड़ते जाते हैं..तो देश कैसे सुधर पाएगा..जब ट्रैफिक पुलिस वाला ट्रैफिक नियम तोड़ने पर रिश्वत मांगेगा तो देश कैसे सुधर पाएगा..जब हम किसी भी दफ्तर में किसी भी काम के लिए जाते हैं तो बिना रिश्वत के कोई सुनवाई नहीं होती। आपके कागज भले ही सही हों या फिर आपका काम सही हो..लेकिन बिना लेन-देन के आप टहलते रहें..कोई सुनने वाला नहीं।
ऐसे ही सफाई का मामला है। हम अपने घर में रहते हैं तो या तो खुद सफाई करते हैं या फिर करवाते हैं लेकिन गंदगी पसंद नहीं करते लेकिन जब घर से बाहर निकलते हैं तो सब भूल जाते हैं..और जहां मन होता है..फेंकना शुरू कर देते हैं। विदेशों में ऐसा नहीं होता..वहां गंदगी फैलाने पर तत्काल जुर्माना लग जाता है। फाइन इतना तगड़ा होता है कि अगली बार से वो भूल ही नहीं सकता। दरअसल सवा सौ करोड़ लोग जो भी ठान लेंगे..वह हो जाएगा। सवा सौ करोड़ देशवासी तो छोड़ दीजिए..सरकार के ही लोग सुध जाएं तो देश सुधर जाएगा। जब ईमानदारी की कसमें खानें वाले अरविंद केजरीवाल के मंत्री एक-एक कर बेनकाब होते हैं तो देश कैसे सुधर जाएगा..जब बिहार ने नीतीश कुमार के मंत्री स्टिंग आपरेशन में फंस जाएं तो देश कैसे सुधर पाएगा।
सवाल ये है कि हम खुद से अपेक्षा नहीं करते..दूसरों से करते हैं..हम चाहते हैं कि सामने वाला ईमानदार बने और खुद कमाई की होड़ में अंधे हुए जाते हैं। दूसरों की मिसाल पर हम खूब वाह-वाह करते हैं और जब अपनी बारी आती है तो चुप्पी साध जाते हैं या फिर बगलें झांकने लगते हैं। खुद करते हैं तो बड़ा कष्ट होता है और दूसरा करता है तो उसे जी भर के कोसते हैं। कहते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे..यही सवाल ईमानदारी का है...कि हम क्यों शुरूआत करें..हम तो कर देंगे लेकिन हमें पता है कि सामने वाला नहीं करेगा..मतलब हमारा ही नुकसान होगा..जब तक ये सोच बनी रहेगी..कितने ही अभियान चला लें..जब तक मन साफ नहीं होगा..देश साफ नहीं हो पाएगा...बाकी फिर.....