अक्सर हम किसी काम के लिए एक ही दुकान तय कर लेते हैं..जैसे बाइक ठीक करानी है तो कोशिश यही होती है कि उसी मैकेनिक के पास जाएं..जिसके पास हम जाते रहे हैं। यदि आप दूसरे मैकेनिक के पास जाते हैं तो उसका सबसे पहला जुमला रहता है कि अरे..साहब..इसके पहले किससे ठीक कराई थी..कबाड़ा कर दिया। सब कुछ बिगाड़ दिया। किसी हेयर सैलून को बदल कर बाल कटवाने पहुंचते हैं तो बोलता है कि अरे..कहां कटवाते थे..किसी इलेक्ट्रानिक सामान की रिपेयरिंग के लिए जाते हैं तो बोलता है कि भाई..सोच-समझ कर जाया करो..पूरी सेटिंग बिगाड़ दी है।
जीवन में हम इतनी औपचारिकताएं निभाते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं..झूठ भी जमकर बोलते हैं। बड़ी बातों के लिए भी और छोटी-छोटी बातों के लिए। गांधी जी सत्य और अहिंसा पर चलने को कहते थे जिन्हें हमने बिलकुल ही त्याग रखा है। मुझे तो आज तक कोई भी ऐसा शख्स नहीं मिला कि अगर कोई एक गाल पर थप्पड़ मारने को कहे..और वो दूसरा गाल कर दे कि यहां भी मार लो..बल्कि होता ये है कि यदि किसी ने एक थप्पड़ मारने की हिमाकत की तो हम कई थप्पड़ों से उसका जवाब देने की कोशिश करते हैं। हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं होती..मानसिक भी होती है और मानसिक हिंसा शारीरिक से ज्यादा खतरनाक होती है। किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए हम मन में प्लान तैयार कर लेते हैं और सामने वाले को नुकसान पहुंचाने के मिशन में जुट जाते हैं। सामने वाले को तब पता चलता है जब उसका नुकसान हो जाता है। चाहे नौकरी में प्रतिस्पर्धा हो या बिजनेस में..अपने साथ वाले को पनपने नहीं दे सकते। हम हमेशा घात लगाए रहते हैं कि वो नीचा कैसे देखे और जब किसी का नुकसान होता है तो इतना मजा आता है कि पूछो मत...मन इतना प्रसन्न होता है दूसरे को परेशान देखकर कि लगता है कि जश्न मना डालें। मोबाइल पर दूसरों की परेशानी का प्रसारण करने के लिए हम व्याकुल रहते हैं। नहीं भी हुआ..तो अफवाहें फैलाते हैं कि उसका तो काम तमाम होने वाला है..ज्यादा दिन नहीं रह पाएगा..अगर कोई तरक्की करता है तब भी हम बाज नहीं आते..अरे..क्या होता है..झूठ बोलकर पा लिया..जब पोल खुलेगी तो बर्बाद हो जाएगा..उसे तो काम नहीं आता है..केवल हम ही जानकार है।
जिससे काम होता है..उसकी झूठी तारीफ में इस कदर जुट जाते हैं कि सामने वाला भी शर्म से पानी-पानी हो जाए..और सोचने लगे कि हम इतने महान कबसे हो गए। जब कोई काम कर देता है तो उसकी तारीफ करते हैं कि वो तो बहुत बढ़िया आदमी है..जब काम न करे..तो उसे नाकारा..निकम्मा..झूठा..न जाने कितने सर्टिफिकेट देने के लिए तैयार रहते हैं।
यदि हमसे कोई मिलना चाहता है तो हम तभी मिलेंगे जब हम उससे मिलना चाहेंगे..नहीं तो बहाना बना देंगे कि कुछ काम है..फिर मिल लेंगे। यदि हमें किसी से बात करनी है तो तभी फोन उठाएंगे जब उससे बात करने का मन होगा..अगर गलती से फोन उठा भी लिया तो जल्द से जल्द पीछा छुड़ाने के लिए परेशान रहेंगे। हर रोज सुबह से लेकर रात तक न जाने कितनी बार झूठ बोलते हैं और हिंसा करते हैं। बहुत ही हैरानी होती है जब लोग गांधी जयंती पर समारोहों में उनके मार्ग पर चलने को कहते हैं..जबकि खुद कभी नहीं चलते। इतना बड़ा झूठ गांधी जयंती पर भी बोलकर हम साबित कर देते हैं कि हमसे बड़ा कोई झूठा नहीं। बाकी फिर.....
जीवन में हम इतनी औपचारिकताएं निभाते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं..झूठ भी जमकर बोलते हैं। बड़ी बातों के लिए भी और छोटी-छोटी बातों के लिए। गांधी जी सत्य और अहिंसा पर चलने को कहते थे जिन्हें हमने बिलकुल ही त्याग रखा है। मुझे तो आज तक कोई भी ऐसा शख्स नहीं मिला कि अगर कोई एक गाल पर थप्पड़ मारने को कहे..और वो दूसरा गाल कर दे कि यहां भी मार लो..बल्कि होता ये है कि यदि किसी ने एक थप्पड़ मारने की हिमाकत की तो हम कई थप्पड़ों से उसका जवाब देने की कोशिश करते हैं। हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं होती..मानसिक भी होती है और मानसिक हिंसा शारीरिक से ज्यादा खतरनाक होती है। किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए हम मन में प्लान तैयार कर लेते हैं और सामने वाले को नुकसान पहुंचाने के मिशन में जुट जाते हैं। सामने वाले को तब पता चलता है जब उसका नुकसान हो जाता है। चाहे नौकरी में प्रतिस्पर्धा हो या बिजनेस में..अपने साथ वाले को पनपने नहीं दे सकते। हम हमेशा घात लगाए रहते हैं कि वो नीचा कैसे देखे और जब किसी का नुकसान होता है तो इतना मजा आता है कि पूछो मत...मन इतना प्रसन्न होता है दूसरे को परेशान देखकर कि लगता है कि जश्न मना डालें। मोबाइल पर दूसरों की परेशानी का प्रसारण करने के लिए हम व्याकुल रहते हैं। नहीं भी हुआ..तो अफवाहें फैलाते हैं कि उसका तो काम तमाम होने वाला है..ज्यादा दिन नहीं रह पाएगा..अगर कोई तरक्की करता है तब भी हम बाज नहीं आते..अरे..क्या होता है..झूठ बोलकर पा लिया..जब पोल खुलेगी तो बर्बाद हो जाएगा..उसे तो काम नहीं आता है..केवल हम ही जानकार है।
जिससे काम होता है..उसकी झूठी तारीफ में इस कदर जुट जाते हैं कि सामने वाला भी शर्म से पानी-पानी हो जाए..और सोचने लगे कि हम इतने महान कबसे हो गए। जब कोई काम कर देता है तो उसकी तारीफ करते हैं कि वो तो बहुत बढ़िया आदमी है..जब काम न करे..तो उसे नाकारा..निकम्मा..झूठा..न जाने कितने सर्टिफिकेट देने के लिए तैयार रहते हैं।
यदि हमसे कोई मिलना चाहता है तो हम तभी मिलेंगे जब हम उससे मिलना चाहेंगे..नहीं तो बहाना बना देंगे कि कुछ काम है..फिर मिल लेंगे। यदि हमें किसी से बात करनी है तो तभी फोन उठाएंगे जब उससे बात करने का मन होगा..अगर गलती से फोन उठा भी लिया तो जल्द से जल्द पीछा छुड़ाने के लिए परेशान रहेंगे। हर रोज सुबह से लेकर रात तक न जाने कितनी बार झूठ बोलते हैं और हिंसा करते हैं। बहुत ही हैरानी होती है जब लोग गांधी जयंती पर समारोहों में उनके मार्ग पर चलने को कहते हैं..जबकि खुद कभी नहीं चलते। इतना बड़ा झूठ गांधी जयंती पर भी बोलकर हम साबित कर देते हैं कि हमसे बड़ा कोई झूठा नहीं। बाकी फिर.....