सुबह मीडिया पर बिहार चुनाव की सरगर्मी थी, किसी दल के लिए नरमी थी किसी के लिए गर्मी थी, एंकर,गेस्ट,एक्सपर्ट,डाटा की बिसात बिछ चुकी थी, तभी बड़ी ब्रेकिंग ने एंकर को दहला दिया,वोटिंग की शुरूआत में ही एक बंदर नीतीश के पोलिंग बूथ पर हमला बोल चुका था, वन विभाग तो नहीं, कैमरे जरूर बंदर को कैद करने में जुटे थे, बंदर के बवाल की ब्रेकिंग चलने लगी थी, बहस बदल चुकी थी कि इतना बड़ा चुनाव,नीतीश का पोलिंग बूथ, इस बेखौफ बंदर को देखिए, मतदाताओं को डरा रहा है, लोकतंत्र के पर्व में खलल डाल रहा है, कहां है चुनाव आयोग, कहां है सरकार, गेस्ट भी बंदर के एक्सपर्ट बन चुके थे, राष्ट्रपति भवन और केंद्रीय मंत्रियों के आवासों से लेकर मीडिया के वाहनों का बंदरों से नुकसान पर मुद्दा गर्माने लगा था, तस्वीरों में हर दो सेकंड में बंदर एक बार काट जा रहा था, एंकर बता रहा था कि यही है वो जालिम बंदर, जिसने इस बुजुर्ग महिला को नहीं बख्शा, कुल मिलाकर बंदर बड़ा ही मंझा हुआ राजनेता सा लगा..जिसने आम आदमी को काट कर एक शाम बंदर के नाम की जगह पूरा दिन अपने नाम कर लिया. रोजाना काटने में राजनीति नहीं थी, चुनाव के दिन चुनने से बंदर खुश हो रहा था, बुजुर्ग महिला रो रही थी, फिर भी राजनीति हो रही थी.
Wednesday, October 28, 2015
चुनाव कैसे लड़ा जा रहा है?
एक मित्र आजकल बहुत व्यस्त हैं.पहले सलाह लेने के लिए हमसे समय मांगते थे, अब हाथ ही नहीं आ रहे थे, कहने लगे, बिहार चुनाव में व्यस्त हैं, मैंने कहा..भाई, आप न तो नेता हैं, न मीडिया में हैं, फिर आप चुनाव में क्या गुल खिला रहे हैं, कहने लगे, भाई तुम अपने हो, इसलिए बता देता हूं, आजकल पांचों उंगलियां घी में हैं और सिर कड़ाही में है, असल चुनाव तो मैं ही लड़वा रहा हूं, शुरूआत लोकसभा चुनाव से की थी, देखा..कैसी बंपर जीत मिली, अबकी बार भी पक्की है लेकिन मैंने पार्टी बदल ली है,पहले किसी और को जिताया, अबकी बार किसी और को जिता रहा हूं, विपक्ष को जिताना आसान था, पक्ष को जिताना मुश्किल, लेकिन जिता दिया तो फिर बल्ले बल्ले है। मैंने कहा-पहेलियां मत बुझाओ, आपका काम क्या है, बोले..मूर्ख हो, मूर्ख रहोगे, असल चुनाव तो मैं लड़ा रहा हूं, जो मैदान में दिख रहा है, जो मीडिया में छाया हुआ है, जो सोशल मीडिया पर विवाद चल रहे हैं, ये किसने पैदा किए हैं, इसकी स्क्रिप्ट मैं ही लिख रहा हूं. चुनाव अब सामने से नहीं लड़ा जाता है, सब कुछ तकनीकी हथियारों से लड़ा जाता है, कंप्यूटर, लेपटाप और मोबाइल से..नहीं समझ आया तो आपके लिए एक बानगी पेश करता हूं, ये स्क्रिप्ट तैयार है, आज हमारे नेता इसे सभा में पढ़ेंगे, इस पर ये विवाद शुरू होगा..देखते जाईए..वाकई सुबह बताया, शाम को वही हुआ..विकास को कैसे हवा किया..पता चला, बीफ से लेकर शैतान, ब्रह्मपिशाच, थ्री इडियट, चुटकले, कहानी-किस्से, पुराने वीडियो से लेकर नए स्टिंग तक सब कुछ पर काम चलता रहता रहता है, हर चरण की अलग तैयारी है, किस मुद्दे को हवा देना है, किसको हवा करना है, टीम पूरी चौकस है, मैं नतमस्तक था उनके आगे, वाकई चुनाव लड़ कोई रहा है, लड़ा कोई रहा है और लड़खड़ा कोई रहा है.
Monday, October 19, 2015
बाबा रे बाबा
तो साहब, हम तैयार हो रहे थे बाबा जी से मिलने के लिए, ऐसे भविष्य दृष्टा, जो सब बता देते हैं, चुटकियों में बड़े-बड़ों की बड़ी से बड़ी समस्या को हल कर देते हैं.वाकई अखबार उठाया तो उनकी जय-जयकार की खबरें और विज्ञापन भरे पड़े थे, समझ में नहीं आ रहा था कि खबर विज्ञापन से उपजी है या फिर उनकी महिमा से विज्ञापन उपजा है, टीवी पर एंकर कह रही थी कि आप कहीं मत जाईए, ये कार्यक्रम इसी चैनल पर लगातार देखिए, वो ये भी बता रही थी कि चप्पे-चप्पे पर उनके रिपोर्टर और कैमरे तैनात हैं. तैयार तो हो गया, चलने के पहले फिर डांट पड़ी..एक तो इतने बड़े बाबा से मिलने जा रहे हो, ये तो ऊपर वाले की कृपा है और हमारा व्यवहार है जो पास मिल गया, खाली हाथ जाओगे, नाक कटवाओगे, ड्राईफ्रूटस और फ्रेश फ्रूटस ले चलो, जेब में आखिरी पांच सौ का नोट था, कभी खुद फ्रूटस नहीं खाए, लेकिन भूत और वर्तमान से डरा था, इसलिए भविष्य सुधारने के लिए पांच सौ का नोट कोई ज्यादा नहीं था, तैयार होकर पत्नी के साथ बाबा के कार्यक्रम के लिए निकला, देखा..बैनर पोस्टरों की भरमार है.एक तरफ बाबा बुला रहे हैं, दूसरी तरफ सांसद,मंत्री, उद्योगपति हाथ जोड़े मुस्करा रहे हैं. कार्यक्रम स्थल पहुंचा, जहां मेला था,भक्तों का रेला था, लग रहा था कि हर कोई उनका चेला था. बाबा छाए हुए थे, बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीन पर उनका महिमा मंडन था, कई सीएम और केंद्रीय मंत्री आ रहे थे, उनके समर्थक मौके पर ही राजनीति की बिसात बिछा रहे थे, मंच से बाबा के एक चेले बता रहे थे कि ये सब बाबाओं को पीछे छोड़ चुके हैं, विदेशों में भी उनकी धूम है, वो तो नोएडा से उनका खास लगाव है, इसलिए आए हैं, वर्ना, सलमान की तरह उनके पास भी सालों डेट खाली नहीं है..बाबा..मदेव,...मल बाबा,बाबा..साराम...धे मां सबको पीछे छोड़ चुके हैं. सोच रहा था, ऐसे दिव्य पुरुष से मुलाकात हो जाए, तो जीवन तर जाए..
दूसरे दिन....
बाबा जी के एक खास भक्त से मुलाकात हो गई, वो भी बाबा जी जितने ही भाव खा रहे थे, उन्हें भी लोग चारों ओर से घेरे हुए थे, हम भी ठस लिए, भक्त बता रहे थे, बाबा जी के पंद्रह राज्यों में आश्रम बन चुके हैं, अमेरिका के बाद स्विटजरलैंड में भी भव्य आश्रम हैं. वहां केवल वीआईपी ही जा पाते हैं।बाबा योग के जरिए भोग सिखाते हैं, समुद्र के बीचोंबीच आध्यात्म में लीन होकर जो सुख मिलता है, वहां न स्त्री न पुरुष का बोध रहता है, जीवन में सुख, शांति और समृद्धि ऐसे ही आध्यात्म से उपजती है। हरिद्वार में पीठ बन रही है, किसी ने पूछा, बाबा जी का आशीर्वाद कांग्रेस को है या बीजेपी को, भक्त ने आंखें लाल की, बाबा जी समय के साथ चलते हैं, जो अच्छा करता है, उसी के साथ रहते हैं, उनके चरणों में कांग्रेस, बीजेपी क्या, सारे दल पड़े रहते हैं, देख नहीं रहे हो, कितने मंत्री, सीएम यहां डेरा डाले हैं, सबको आशीर्वाद की दरकार है, बाबा जी थोड़ी ही देर में स्पेशल प्लेन से लैंड करने वाले हैं, आप लोग बैठ जाईए, मेरा पूरा जोर इस बात पर था कि बाबा जी से मुलाकात हो जाए, अपना काम बन जाए, तभी अफरातफरी सी मच गई, बाबा हवा से धरती में लैंड कर गए थे, थोड़ी ही देर में वो एयर लिफ्ट के जरिए कमल के फूल के बीच मंच पर अवतरित हुए, बड़े-बड़े लोग पैरों में लोट रहे थे, थोड़ी ही देर में बाबा का चेहरा सामने आया, लगा कि बाबा को कहीं देखा है, फिर सोचा, हर बड़े आदमी के साथ हम यूं ही रिश्ता जोड़ने की फिराक में रहते हैं.
तीसरे दिन....
बाबा बोले, बम भोले, बम को छोड़िए, भोले को अपनाईए,मैं भी आप की तरह आम इंसान था, अचानक ज्ञान चक्षु खुले, हरिद्वार, ऋषिकेश की पहाड़ियों में ईश्वर की शरण में गया, ईश्वर ने प्रसन्न होकर कहा कि तुममें तो मौजूदा बाबाओं से ज्यादा कैपेसिटी है, कहां माया-मोह, घर-परिवार के चक्कर में फंसे हो, तुम्हें तो संसार की दशा-दिशा तय करनी है, जाओ, सबको सिखाओ, ज्ञान दो, तुम लोगों को ज्ञान दोगे, लोग तुम्हें धन-धान्य से भरपूर कर देंगे, जितना ज्ञान बांटोगे, उतना ही वैभव तुम्हारे पास आएगा, जब माया-मोह की इच्छा थी तो मेरे पास कुछ नहीं था, अब सब है, अकूत संपत्ति हिलोरें ले रही हैं, लोग मना करने पर भी दे जा रहे हैं, लोग ज्ञान अर्जित कर लेते हैं, लेकिन बांटते नहीं, जितना बांटोगे, उतना फायदे में रहोगे, नेताओं और मीडिया से सीखो, मेरे पास इनसे भी ज्यादा ज्ञान है, इसलिए ये हमसे ले जा रहे हैं.प्रवचन के बाद मर्सिडीज बैंज, आडी, लैंड क्रूजर जैसी गाड़ियों के साथ बाबा का काफिला निकला, पास में ही देश के बड़े उद्योगपति के बंगले पर बड़े आग्रह के बाद वो जा रहे थे, बड़ी मुश्किल के बाद एक खास भक्त के जरिए हम उनके कक्ष में दाखिल हो ही गए, चारों तरफ अभिनेताओं की तरह वो बाउंसरनुमा भक्तों से घिरे हुए थे, कई माडल सरीखी भक्त बालाएं उनके इर्द-गिर्द मंडरा रही थीं। सामने काजू-किसमिस, बादाम,काजू कतली, सेब, अनार जैसे मेवे-फल के थाल सजे हुए थे, भक्त चाहते थे कि बाबा केवल झूठा कर दें, उनकी लाइफ बन जाएगी. भक्त ने बाबा के कान में कुछ फूंका, बाबा ने चमकती आंखों से मुझे घूरा, हां मैं मुंडी हिलाई..
चौथे दिन....
बाबा ने खास भक्त को आंखों ही आंखों में इशारा किया और कक्ष में जो भक्त बीजेपी की तरह जमा थे, सब कांग्रेस की तरह खर्च हो गए. यहां तक कि खास भक्त भी बाहर, अब हम थे और बाबा थे, बाबा ने मेरी आंखों में झांका, मुस्कराए,बोले..बच्चा..मैं तेरा भूत, वर्तमान, भविष्य सब जानता हूं. एक पत्नी, एक बेटी और एक तू, 23 साल से पत्रकारिता करते हुए जीवन घिसट रहा है,शुरू से परेशान था, अब तक है, कुछ जुगाड़ के लिए आया है.मेरी शरण में जो आता है, उसका काम बन जाता है,तू तो बाबाओं से दूर रहने वाला स्वाभिमानी था, इसीलिए निरीह प्राणी था, दूसरों को सलाह दे-देकर खुद बर्बाद हो गया, तेरी सलाह से न जाने कितने बन गए, तू खुद नहीं बन पाया, मैंने अपने भीतर झांका, बन गया, तू भी झांक ले,तेरा जीवन सुधर जाएगा, बाबा की बोली कभी मीठी गोली, कभी बंदूक की गोली लग रही थी, बोले-अकेले आया हूं, अकेले ही जाऊंगा, ये सब तेरा है, तू नहीं होता तो मैं न होता, बाबा का आध्यात्म गले में हड्डी की तरह अटक रहा था, मैं उनकी बात से हड़बड़ाया, बाबा भी हड़बड़ाए, सुधार किया, तेरा मतलब, तेरे जैसे भक्तों से है.ज्यादा दिमाग पर जोर मत डाल, मैं पहली बार किसी के बाबा के चरणों में लोट चुका था, भूतो न भविष्यति..वाकई बाबाओं के बारे में मेरी सारी धारणाएं बदल चुकी थी, मुझे मानो साक्षात ब्रह्म के दर्शन हो रहे थे, आंखों से आंसू बह रहे थे, भक्त और ईश्वर का मिलन हो रहा था, बाबा ने मुझे उठाया, गले से लगाया, आंखों से आंसू पोंछे..मुस्कराए..जैसे ही बाबा से नजरें मिलाईं..बाबा ने एक आंख मारी, बच्चा..नहीं पहचाना..तूने ही तो कहा था..कि बाबा बन जा, देख..आज गाड़ी है, बंगला है, जमीन है जायदाद है, नेता,मीडिया, बिजनेस मैन सब चरणों में है, यहां तक कि तू भी..जो मेरा सलाहकार था, बच्चा..आजा..गले लग जा..आज से तू फिर मेरा सलाहकार हुआ, गुरू गुड़ ही रहा, चेला शक्कर हो गया. इति बाबा कथा समाप्तम.
Sunday, October 18, 2015
सपने जो जगने नहीं देते हैं...
बड़ा ही दिलचस्प नजारा था, आज मन की सारी हसरतें पूरी हो रही थीं, सबसे पहले मोदी को गरियाया, फिर केजरीवाल को कोसा, उसके बाद लालू यादव की खिल्ली उड़ाई, मुलायम के पैंतरे बदलने पर मुस्कराया, उसके बाद लगा कि ये कुछ नहीं कर सकते हैं, क्यों न खुद ही हाथ आजमा लूं, सो..कुछ आजम से लिया, कुछ ओवेसी से लिया, हार्दिक पटेल से आरक्षण लिया, साक्षी, योगी आदित्यनाथ और साध्वियों से लिया,बीफ को ध्यान में रखा, सारा मसाला तैयार किया और दनादन हरकतें कर डालीं, टीवी-अखबार वालों को बुलाकर बयान दे डाले, फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट डालनी शुरू की..अचानक ही चर्चाओं में घिर गया, मीडिया वालों के फोन आने लगे, एक बाइट दे दीजिए, आज शाम गेस्ट बन जाईए, समझ में नहीं आ रहा था, कहां जाऊं, किसको दूं, किसको नहीं दूं, भरपूर भाव खा रहा था, बड़ा मजा आ रहा था, ओबी वैन बाहर खड़ी हुई थीं, पत्नी-बच्चे कह रहे थे, आपके पास वक्त नहीं है, पड़ोसी जल रहे थे, रिश्तेदारों के फोन नहीं उठा रहा था, अचानक ही लोकप्रियता से मेरा घमंड सातवें आसमान पर था, कोई अपने बच्चे के लिए नौकरी मांग रहा था, कोई ठेके के लिए सिफारिश की विनती कर रहा था, कोई गुलदस्ते और मिठाई के डिब्बे घर पर पटक जा रहा था, मन ही मन खुश था, ऊपर से गंभीर था, सोच रहा था कि केजरीवाल और हार्दिक पटेल के बाद अगला सीएम मैं ही बनने वाला हूं, बिना पूंजी के, कुछ ही समय में इससे बढ़िया बिजनेस कोई हो नहीं सकता था, सब कुछ बढ़िया चल रहा था, हर पल तरक्की की नई मंजिलें छू रहा था कि अचानक भूकंप सा आया, पलंग से नीचे गिरा, लगा कि किसी ने लात मारी है..देखा तो पत्नी खड़ी थी, जी भर के कोस रही थी. संडे है तो इसका ये मतलब नहीं. 12 घंटे से सो रहे थे, घर के सारे काम क्या तुम्हारा...करेगा? मेरे साथ ही मेरे सपने जमींदोज हो चुके थे..आगे क्या हुआ..कल बताऊंगा?
आगे क्या हुआ....
नींद से हड़बड़ा कर उठा तो खुद को कुंभकर्ण सा महसूस कर रहा था और पत्नी को साक्षात दुर्गा, वो जगत जननी की तरह सुबह-सुबह (करीब 10 बजे)मुझे झकझोर रही थी, कह रही थी, दुनिया कहां से कहां पहुंच गई, तुम सोते रह जाओगे, देश की तो छोड़ दो, कालानी का भी तुम्हें पता नहीं, रा एजेंट की तरह पत्नी बोले जा रही थी, अरे..नोएडा स्टेडियम में बहुत बड़े बाबा आ रहे हैं, तुम तो कुछ नहीं कर पाओगे, बाबा जी बहुत बड़े सिद्ध हैं, हजारों की भीड़ उमड़ने वाली है, पूरे शहर में पोस्टर लगे हैं, अखबारों और टीवी में खबरें चल रही हैं, बड़े-बड़े नेता उनकी शरण में पहुंच रहे हैं,सीएम शीश नवा रहे हैं, यूं ही वो देश नहीं चला रहे, बाबा ज्ञानी हैं, अंतर्यामी है, हमें हमारा धर्म बताते हैं, योगा सिखाते हैं,सेहत बनाते हैं, भविष्य में झांक लेते हैं. भूत बिगड़ गया, वर्तमान का सत्यानाश हो गया, कम से कम भविष्य ही सुधार देंगे।बाबा सब कुछ करने में समर्थ हैं, चुनाव के टिकट वो दिलवाते हैं, सरकारें बना देते हैं, गुरूओं के गुरू हैं, नाम है गुरू घंटाल, वो तो मैं हूं, जो कालोनी की खबर रखती हूं, पड़ोस के गुप्ता और गुप्ताईन जी की बाबा तक पहुंच हैं, वो पांच पास लेकर आए हैं, अगर मैं वक्त पर नहीं पहुंचती तो ये आखिरी पास भी गया था, उन्होंने कहा है कि वो आपको बाबा में अकेले में जुगाड़ कर मिलवा देंगे, मांग लेना, एक चुटकी में बड़ा सा बड़ा काम कर देंगे, ज्यादा स्वाभिमानी न बनना, लोट जाना चरणों में, गिड़गिड़ा लेना जमकर, खुद का बुरा मुंह न देखो तो मेरा और बेटी का ही देख लेना, कम से कम हम पर ही रहम खा लेना...मरता..क्या न करता..रात के सपने टूट चुके थे, वर्तमान के सच से सामना कर रहा था, बाबा के यहां जाने की तैयारी में जुट गया था...आगे क्या हुआ..कल बताऊंगा.
Wednesday, October 14, 2015
सलाह देकर खुद फंस गया...
एक मित्र साहित्यकार हैं, कुछ दिनों से दिख नहीं रहे थे, सोशल मीडिया से भी गायब थे, मैंने फोन लगा ही दिया..भाई कहां हो, बोले..कुछ नहीं..कैसे अपना मुंह दिखाऊं, मैंने पूछा..अरे..ऐसा क्या हो गया..क्या गड़बड़ हो गई..जो मुंह दिखाने लायक नहीं रहे..क्या किसी लड़की-वड़की का चक्कर खुल गया..नहीं भाई..कई साहित्यकार पुरस्कार लौटा चुके हैं..उनकी बड़ी चर्चा हो रही है..टीवी पर बहस में हिस्सा ले रहे हैं..अखबारों में इंटरव्यू लिया जा रहा है..सोशल मीडिया पर उनकी प्रशंसा और आलोचना हो रही है..मौज ही मौज है..मुझे कोई पूछ ही नहीं रहा..मुझे तो पुरस्कार मिला ही नहीं। मैं किसी से कम बड़ा साहित्यकार नहीं..क्या केवल पुरस्कार मिलने या लौटाने से ही कोई बड़ा बन जाता है..
मैंने तो इतना लिखा है मुझे किसी ने पुरस्कार नहीं दिया..पुरस्कार पाने का मापदंड आखिर क्या है..पुस्तकें ज्यादा मात्रा में बिकना है या फिर मीडिया में ज्यादा चर्चा है..या फिर समाज का ज्यादा भला करना है। मेरे से पूछने लगे कि आप ही बताओ..आखिर सही मापदंड क्या है पुरस्कार पाने का..
मित्र साहित्यकार को शांत किया..और कहा कि आप हमारे पास आ ही जाओ..मापदंड भी बता दूंगा..घर आ गए..बड़े बेचैन थे..बताईए..क्या मापदंड है..मैंने पूछा सत्ताधारी पार्टी में आपकी अच्छी जान-पहचान है..बोले नहीं...मैंने कहा कि कोई बड़ा..बहुत बड़ा साहित्यकार आपको रिकमंड करता है..बोले नहीं..कुछ ऐसा लगा है जिससे देश में कोई विवाद खड़ा हुआ हो..बोले नहीं..तो फिर आपके पास क्या है..जो आप लिखते हो..वो तो मैं भी लिख दूंगा..लिखवा लूंगा..फिर मैने पूछा..अच्छा मैं जुगाड़ करवाता हूं..पैसा है आपके पास...बोले नहीं...फिर साहित्य खुद लिखो..खुद पढ़ो..अरे जुगाड़ नहीं तो पैसा ही खर्च कर दो..ऐसी तमाम संस्थाएं हैं जो आपके ही पैसे से आपको पुरस्कार दे देंगी..नहीं तो ऐसी संस्था आप ही खड़ी कर दो..आप ही चीफ गेस्ट..खुद भी पुरस्कार लो..दूसरों को भी बांटो...आप भी देखो..मैं भी देखता हूं कोई उन साहित्यकार को पुरस्कार दिलवा दो...
मैंने तो इतना लिखा है मुझे किसी ने पुरस्कार नहीं दिया..पुरस्कार पाने का मापदंड आखिर क्या है..पुस्तकें ज्यादा मात्रा में बिकना है या फिर मीडिया में ज्यादा चर्चा है..या फिर समाज का ज्यादा भला करना है। मेरे से पूछने लगे कि आप ही बताओ..आखिर सही मापदंड क्या है पुरस्कार पाने का..
मित्र साहित्यकार को शांत किया..और कहा कि आप हमारे पास आ ही जाओ..मापदंड भी बता दूंगा..घर आ गए..बड़े बेचैन थे..बताईए..क्या मापदंड है..मैंने पूछा सत्ताधारी पार्टी में आपकी अच्छी जान-पहचान है..बोले नहीं...मैंने कहा कि कोई बड़ा..बहुत बड़ा साहित्यकार आपको रिकमंड करता है..बोले नहीं..कुछ ऐसा लगा है जिससे देश में कोई विवाद खड़ा हुआ हो..बोले नहीं..तो फिर आपके पास क्या है..जो आप लिखते हो..वो तो मैं भी लिख दूंगा..लिखवा लूंगा..फिर मैने पूछा..अच्छा मैं जुगाड़ करवाता हूं..पैसा है आपके पास...बोले नहीं...फिर साहित्य खुद लिखो..खुद पढ़ो..अरे जुगाड़ नहीं तो पैसा ही खर्च कर दो..ऐसी तमाम संस्थाएं हैं जो आपके ही पैसे से आपको पुरस्कार दे देंगी..नहीं तो ऐसी संस्था आप ही खड़ी कर दो..आप ही चीफ गेस्ट..खुद भी पुरस्कार लो..दूसरों को भी बांटो...आप भी देखो..मैं भी देखता हूं कोई उन साहित्यकार को पुरस्कार दिलवा दो...
दूसरे दिन....
हमारे साहित्यकार मित्र आज फिर बेचैन दिखे, कहने लगे..आप पुरस्कार मिलने के लिए तमाम क्वालिटी गिना रहे हो, जुगाड़ बता रहे हो लेकिन अब तो लगता है कि उन्हें पुरस्कार ठीक नहीं मिला..मैंने पूछा..भाई..कल तक तो आप इसलिए मायूस थे कि पुरस्कार लौटाने के लिए मन मचल रहा है..और पुरस्कार कैसे मिलेगा?..अब कह रहे हो कि ठीक नहीं मिला..ऐसा क्या हो गया? बोले..चर्चा साहित्यकारों की हो रही है..और रोटियां सेंक रहे हैं बाकी सब...आप तो हंसी-मजाक में मजे ले रहे हैं लेकिन इस मुद्दे पर नाबालिग भी धड़ल्ले से लिख रहे हैं..कह रहे हैं कि उन्हें मिलेगा तो लौटाएंगे नहीं..जब मिला था तब कहां थे..पहले क्यों ले लिया..अब क्यों लौटा रहे हो..अरे लौटाना है तो पैसे लौटाओ..कोई कह रहा है कि राशन कार्ड लौटाओगे तो मानेंगे..नहीं तो हम लौटा देंगे..कोई मजे ले रहा है.कोई धमका रहा है..कोई हम इतना गिरा दे रहा है कि हम कभी जीवन में उठने की भी न सोच पाएं..अब हमें इन साहित्यकारों पर गुस्सा आ रहा है कि भाई..या तो पहले लेना नहीं था..या फिर लौटाना नहीं था..कम से कम हम जैसे साहित्यकारों की तो सोचते..कुछ जीवन बेहतर होने की उम्मीद में थे कि अब गली-गली में बच्चे से लेकर बूढ़े... यहां तक कि साहित्य के मामले में अनपढ़ भी जमकर घूंसे-लात चला रहे हैं। कोई कह रहा है कि साहित्यकारों की मानसिकता की जांच होनी चाहिए..लोग हमारे राजनीतिक दलों के कनेक्शन तलाश रहे हैं..लग रहा है कि आफत मोल ले ली है। कोई समर्थन में लिख रहा है, कोई विरोध में..जिसको कुछ नहीं समझ आ रहा है वो दोनों को ही कोसने में जुटे हैं.और तो और.सुबह कुछ कह रहे हैं..शाम को कुछ कह रहे हैं. क्या साहित्य ही छोड़ दूं?..कुछ दूसरा काम-धंधा देखता हूं..मैंने कहा कि भाई..इतने से डर गए..कम से कम चर्चा में तो आए..एक-दो दिन रुक जाओ..नए मुद्दे की तलाश चल रही है..जैसे ही मिल जाएगा..आपको कोई पूछने वाला नहीं रहेगा..जो चाहे करना..बाकी भी जो मर्जी आए..कर ही रहे हैं......
गजब हो गया, जिन साहित्यकार मित्र को साधु-संत बनने की सलाह दी थी, वो वाकई लापता हो गए हैं, उनकी पत्नी का फोन आया, क्या भाई साहब, आप भी उलटी-सीधी सलाह देते रहते हैं. ये कल बोले कि आपने कोई शानदार आईडिया बताया है, साहित्य में कुछ नहीं रखा है, बिना पूंजी के चोखा धंधा पता चला है, पूरा परिवार मजे करेगा, गेरूआ वस्त्र लेने जा रहा हूं, तबसे गायब हैं, अब आपको ही भुगतना होगा, हमारे परिवार को भी पालना होगा, अब मुझे समझ आया, मुफ्त की सलाह कितनी भारी पड़ सकती है, लेना एक, न देना दो, मैं तो ठलुआ था ही, सलाह देकर और मुसीबत मोल ले ली. उनकी पत्नी ने हमारे हिस्से की जी भरके गालियां निकाली, मैं भी सर झुकाए सुनता रहा, बोलीं, नेता ही बना देते, बीफ पर बयान दिलवाते,सोशल मीडिया पर दो-चार से शेयर करवाते, दो-चार से गालियां दिलवा देते, दुकान चल निकलती, गुमटी तो बन ही जाती, अब आप ही भुगतिए, खुद तो कुछ बन नहीं पाए, दूसरों की दुनिया में जहर घोल रहे हैं, आप पत्रकार थे, क्या उखाड़ लिया, समाज को सुधारने चले थे,खुद नहीं सुधर पाए, उनकी बात मन को कचोट रही है, खुद कुछ किया नहीं, सलाह दुनिया को बांट रहा हूं, तो दोस्तो, मेरे मित्र साहित्यकार गेरूआ वस्त्र में कहीं मिले तो मुझे जरूर खबर करना, बैठे-बिठाए मुसीबत मोल ले ली है, आप भी सोचना, सलाह देने के पहले खुद में झांक जरूर लेना.बाकी फिर....
तीसरा दिन.....
गजब हो गया, जिन साहित्यकार मित्र को साधु-संत बनने की सलाह दी थी, वो वाकई लापता हो गए हैं, उनकी पत्नी का फोन आया, क्या भाई साहब, आप भी उलटी-सीधी सलाह देते रहते हैं. ये कल बोले कि आपने कोई शानदार आईडिया बताया है, साहित्य में कुछ नहीं रखा है, बिना पूंजी के चोखा धंधा पता चला है, पूरा परिवार मजे करेगा, गेरूआ वस्त्र लेने जा रहा हूं, तबसे गायब हैं, अब आपको ही भुगतना होगा, हमारे परिवार को भी पालना होगा, अब मुझे समझ आया, मुफ्त की सलाह कितनी भारी पड़ सकती है, लेना एक, न देना दो, मैं तो ठलुआ था ही, सलाह देकर और मुसीबत मोल ले ली. उनकी पत्नी ने हमारे हिस्से की जी भरके गालियां निकाली, मैं भी सर झुकाए सुनता रहा, बोलीं, नेता ही बना देते, बीफ पर बयान दिलवाते,सोशल मीडिया पर दो-चार से शेयर करवाते, दो-चार से गालियां दिलवा देते, दुकान चल निकलती, गुमटी तो बन ही जाती, अब आप ही भुगतिए, खुद तो कुछ बन नहीं पाए, दूसरों की दुनिया में जहर घोल रहे हैं, आप पत्रकार थे, क्या उखाड़ लिया, समाज को सुधारने चले थे,खुद नहीं सुधर पाए, उनकी बात मन को कचोट रही है, खुद कुछ किया नहीं, सलाह दुनिया को बांट रहा हूं, तो दोस्तो, मेरे मित्र साहित्यकार गेरूआ वस्त्र में कहीं मिले तो मुझे जरूर खबर करना, बैठे-बिठाए मुसीबत मोल ले ली है, आप भी सोचना, सलाह देने के पहले खुद में झांक जरूर लेना.बाकी फिर....
Tuesday, October 13, 2015
कालिख पोतो या पुतवाओ, दोनों में फायदा है..
एक मित्र से चर्चा हो रही थी, बड़े परेशान थे, परेशान इसलिए थे कि दूसरों से पब्लिसिटी में पिछड़ रहे थे, बोले, कुछ उपाय बताओ, क्या किया जा सकता है, मैंने उन्हें सलाह दी कि कालिख पुतवा लो, बोले..अरे..ये क्या कह रहे हो, ये कोई बात हुई, जब उन्हें इसके फायदे बताए तो बात जंच गई, लेकिन फिर मायूस हो गए, कालिख तो पुतवा लूंगा.पर पोतेगा कौन.
.मैंने कहा इसकी चिंता मत करो, आजकल पोतने वालों की कमी नहीं है, एक बड़ी कंपनी इस फील्ड में उतर चुकी है, बड़े पैमाने पर भर्तियां चल रही हैं, करोड़ों का प्रोजेक्ट है, इस प्रोजेक्ट में कई उद्योगपति, राजनेता और मीडिया के दिग्गज शामिल हो रहे हैं। मित्र फिर मायूस हुए..अरे यार..इतना बड़ा प्रोजेक्ट है तो फीस भी ज्यादा लेगा..मैंने कहा चिंता मत करो, शख्सियत के हिसाब से रेट तय होता है, आपकी शख्सियत ज्यादा बड़ी नहीं, इसलिए आपका एक-दो लाख में काम हो जाएगा, लेकिन जब आप पोपुलर हो जाओगे तो आपको फिर कालिख पोतने की फीस बढ़ जाएगी। कंपनी ने जो ढांचा तैयार किया है..उसके मुताबिक कालिख कौन सी पुतवाओगे, तारकोल, कलर या फिर कीचड़, उसके हिसाब से भी पैसा लगेगा, मीडिया की मौजूदगी में पुतवाओगे तो फीस और भी ज्यादा लगेगी।
आप जितने का पैकेज लोगे, उसी हिसाब से कालिख का स्टंडर्ड होगा, उसी हिसाब से मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार होगा, उसी हिसाब से आपको कोसने वाले नारे लिखे जाएंगे..उसी हिसाब से जगह तय होगी, सफेद ड्रेस पर कालिख के ज्यादा रेट होगे..ब्लैक एंड व्हाइट पर तो ही पूरी दुनिया चल रही है। ये आपकी और कंपनी के बीच गोपनीय होगा, आधा पैसा पहले लगेगा, आधा पैसा कालिख पुतवाने के बाद, मित्र को बात जंच गई है, फिर बोले, ये कंपनी कौन है, मैंने कहा कि अब आप इस जुगाड़ में होगे कि पुतवाने में ज्यादा खर्च है तो पोतने का काम ही मिल जाए..जाहिर है कालिख पुतवाने के लिए हिम्मत चाहिए..पैसा चाहिए..इसीलिए पुतवाने से ज्यादा पोतने वाले घूम रहे हैं...इसमें फायदा ही फायदा है,मित्र को बात जंच गई है, उन्हें लग रहा है कि यदि ज्यादा बड़े आदमी बनना है तो कालिख पुतवाना होगी और यदि सेफ गेम खेलना है..परिवार पालना है तो कालिख पोतने वाली कंपनियों में नौकरी तलाशनी होगी। वैसे ये इंडस्ट्री ज्यादा ग्रोथ करने वाली है क्योंकि ये बिजनेस अभी संगठित नहीं है, कुछ ही लोग इसमें उतरे हैं..अलग-अलग छोटे स्तर पर काम चला रहे हैं, यदि इसमें विदेशी निवेश हो जाए और भारत में ये उद्योग काफी आगे जा सकता है। .पेंट और कलर उद्योग को इससे बढ़ावा मिलेगा। बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा..अभी जो काम वो किसी के बहकावे में आकर में फ्री में कर देते है, उसकी बाजिब कीमत मिलने लगी। देखिए क्या होता है...बाकी फिर.....
.मैंने कहा इसकी चिंता मत करो, आजकल पोतने वालों की कमी नहीं है, एक बड़ी कंपनी इस फील्ड में उतर चुकी है, बड़े पैमाने पर भर्तियां चल रही हैं, करोड़ों का प्रोजेक्ट है, इस प्रोजेक्ट में कई उद्योगपति, राजनेता और मीडिया के दिग्गज शामिल हो रहे हैं। मित्र फिर मायूस हुए..अरे यार..इतना बड़ा प्रोजेक्ट है तो फीस भी ज्यादा लेगा..मैंने कहा चिंता मत करो, शख्सियत के हिसाब से रेट तय होता है, आपकी शख्सियत ज्यादा बड़ी नहीं, इसलिए आपका एक-दो लाख में काम हो जाएगा, लेकिन जब आप पोपुलर हो जाओगे तो आपको फिर कालिख पोतने की फीस बढ़ जाएगी। कंपनी ने जो ढांचा तैयार किया है..उसके मुताबिक कालिख कौन सी पुतवाओगे, तारकोल, कलर या फिर कीचड़, उसके हिसाब से भी पैसा लगेगा, मीडिया की मौजूदगी में पुतवाओगे तो फीस और भी ज्यादा लगेगी।
आप जितने का पैकेज लोगे, उसी हिसाब से कालिख का स्टंडर्ड होगा, उसी हिसाब से मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार होगा, उसी हिसाब से आपको कोसने वाले नारे लिखे जाएंगे..उसी हिसाब से जगह तय होगी, सफेद ड्रेस पर कालिख के ज्यादा रेट होगे..ब्लैक एंड व्हाइट पर तो ही पूरी दुनिया चल रही है। ये आपकी और कंपनी के बीच गोपनीय होगा, आधा पैसा पहले लगेगा, आधा पैसा कालिख पुतवाने के बाद, मित्र को बात जंच गई है, फिर बोले, ये कंपनी कौन है, मैंने कहा कि अब आप इस जुगाड़ में होगे कि पुतवाने में ज्यादा खर्च है तो पोतने का काम ही मिल जाए..जाहिर है कालिख पुतवाने के लिए हिम्मत चाहिए..पैसा चाहिए..इसीलिए पुतवाने से ज्यादा पोतने वाले घूम रहे हैं...इसमें फायदा ही फायदा है,मित्र को बात जंच गई है, उन्हें लग रहा है कि यदि ज्यादा बड़े आदमी बनना है तो कालिख पुतवाना होगी और यदि सेफ गेम खेलना है..परिवार पालना है तो कालिख पोतने वाली कंपनियों में नौकरी तलाशनी होगी। वैसे ये इंडस्ट्री ज्यादा ग्रोथ करने वाली है क्योंकि ये बिजनेस अभी संगठित नहीं है, कुछ ही लोग इसमें उतरे हैं..अलग-अलग छोटे स्तर पर काम चला रहे हैं, यदि इसमें विदेशी निवेश हो जाए और भारत में ये उद्योग काफी आगे जा सकता है। .पेंट और कलर उद्योग को इससे बढ़ावा मिलेगा। बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा..अभी जो काम वो किसी के बहकावे में आकर में फ्री में कर देते है, उसकी बाजिब कीमत मिलने लगी। देखिए क्या होता है...बाकी फिर.....
Sunday, October 11, 2015
फिर तो दिक्कत होगी ही नहीं....
प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि यदि सवा सौ करोड़ देशवासी ठान लें तो देश साफ हो जाएगा। बिलकुल सही कहा है कि उन्होंने..... दरअसल सफाई अभियान क्या, किसी भी क्षेत्र में यदि देशवासी ठान लें तो देश की कायापलट हो जाए और सरकारी अधिकारी-कर्मचारी ठान लें तो सरकार का कायापलट हो जाए।
जब कोई ट्रैफिक पुलिस चौराहे पर खड़ा होने की बजाए इधर-उधर टहलता है और लोग ट्रैफिक नियम खुलेआम तोड़ते जाते हैं..तो देश कैसे सुधर पाएगा..जब ट्रैफिक पुलिस वाला ट्रैफिक नियम तोड़ने पर रिश्वत मांगेगा तो देश कैसे सुधर पाएगा..जब हम किसी भी दफ्तर में किसी भी काम के लिए जाते हैं तो बिना रिश्वत के कोई सुनवाई नहीं होती। आपके कागज भले ही सही हों या फिर आपका काम सही हो..लेकिन बिना लेन-देन के आप टहलते रहें..कोई सुनने वाला नहीं।
ऐसे ही सफाई का मामला है। हम अपने घर में रहते हैं तो या तो खुद सफाई करते हैं या फिर करवाते हैं लेकिन गंदगी पसंद नहीं करते लेकिन जब घर से बाहर निकलते हैं तो सब भूल जाते हैं..और जहां मन होता है..फेंकना शुरू कर देते हैं। विदेशों में ऐसा नहीं होता..वहां गंदगी फैलाने पर तत्काल जुर्माना लग जाता है। फाइन इतना तगड़ा होता है कि अगली बार से वो भूल ही नहीं सकता। दरअसल सवा सौ करोड़ लोग जो भी ठान लेंगे..वह हो जाएगा। सवा सौ करोड़ देशवासी तो छोड़ दीजिए..सरकार के ही लोग सुध जाएं तो देश सुधर जाएगा। जब ईमानदारी की कसमें खानें वाले अरविंद केजरीवाल के मंत्री एक-एक कर बेनकाब होते हैं तो देश कैसे सुधर जाएगा..जब बिहार ने नीतीश कुमार के मंत्री स्टिंग आपरेशन में फंस जाएं तो देश कैसे सुधर पाएगा।
सवाल ये है कि हम खुद से अपेक्षा नहीं करते..दूसरों से करते हैं..हम चाहते हैं कि सामने वाला ईमानदार बने और खुद कमाई की होड़ में अंधे हुए जाते हैं। दूसरों की मिसाल पर हम खूब वाह-वाह करते हैं और जब अपनी बारी आती है तो चुप्पी साध जाते हैं या फिर बगलें झांकने लगते हैं। खुद करते हैं तो बड़ा कष्ट होता है और दूसरा करता है तो उसे जी भर के कोसते हैं। कहते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे..यही सवाल ईमानदारी का है...कि हम क्यों शुरूआत करें..हम तो कर देंगे लेकिन हमें पता है कि सामने वाला नहीं करेगा..मतलब हमारा ही नुकसान होगा..जब तक ये सोच बनी रहेगी..कितने ही अभियान चला लें..जब तक मन साफ नहीं होगा..देश साफ नहीं हो पाएगा...बाकी फिर.....
जब कोई ट्रैफिक पुलिस चौराहे पर खड़ा होने की बजाए इधर-उधर टहलता है और लोग ट्रैफिक नियम खुलेआम तोड़ते जाते हैं..तो देश कैसे सुधर पाएगा..जब ट्रैफिक पुलिस वाला ट्रैफिक नियम तोड़ने पर रिश्वत मांगेगा तो देश कैसे सुधर पाएगा..जब हम किसी भी दफ्तर में किसी भी काम के लिए जाते हैं तो बिना रिश्वत के कोई सुनवाई नहीं होती। आपके कागज भले ही सही हों या फिर आपका काम सही हो..लेकिन बिना लेन-देन के आप टहलते रहें..कोई सुनने वाला नहीं।
ऐसे ही सफाई का मामला है। हम अपने घर में रहते हैं तो या तो खुद सफाई करते हैं या फिर करवाते हैं लेकिन गंदगी पसंद नहीं करते लेकिन जब घर से बाहर निकलते हैं तो सब भूल जाते हैं..और जहां मन होता है..फेंकना शुरू कर देते हैं। विदेशों में ऐसा नहीं होता..वहां गंदगी फैलाने पर तत्काल जुर्माना लग जाता है। फाइन इतना तगड़ा होता है कि अगली बार से वो भूल ही नहीं सकता। दरअसल सवा सौ करोड़ लोग जो भी ठान लेंगे..वह हो जाएगा। सवा सौ करोड़ देशवासी तो छोड़ दीजिए..सरकार के ही लोग सुध जाएं तो देश सुधर जाएगा। जब ईमानदारी की कसमें खानें वाले अरविंद केजरीवाल के मंत्री एक-एक कर बेनकाब होते हैं तो देश कैसे सुधर जाएगा..जब बिहार ने नीतीश कुमार के मंत्री स्टिंग आपरेशन में फंस जाएं तो देश कैसे सुधर पाएगा।
सवाल ये है कि हम खुद से अपेक्षा नहीं करते..दूसरों से करते हैं..हम चाहते हैं कि सामने वाला ईमानदार बने और खुद कमाई की होड़ में अंधे हुए जाते हैं। दूसरों की मिसाल पर हम खूब वाह-वाह करते हैं और जब अपनी बारी आती है तो चुप्पी साध जाते हैं या फिर बगलें झांकने लगते हैं। खुद करते हैं तो बड़ा कष्ट होता है और दूसरा करता है तो उसे जी भर के कोसते हैं। कहते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे..यही सवाल ईमानदारी का है...कि हम क्यों शुरूआत करें..हम तो कर देंगे लेकिन हमें पता है कि सामने वाला नहीं करेगा..मतलब हमारा ही नुकसान होगा..जब तक ये सोच बनी रहेगी..कितने ही अभियान चला लें..जब तक मन साफ नहीं होगा..देश साफ नहीं हो पाएगा...बाकी फिर.....
Thursday, October 1, 2015
हमसे बड़ा कोई झूठा नहीं
अक्सर हम किसी काम के लिए एक ही दुकान तय कर लेते हैं..जैसे बाइक ठीक करानी है तो कोशिश यही होती है कि उसी मैकेनिक के पास जाएं..जिसके पास हम जाते रहे हैं। यदि आप दूसरे मैकेनिक के पास जाते हैं तो उसका सबसे पहला जुमला रहता है कि अरे..साहब..इसके पहले किससे ठीक कराई थी..कबाड़ा कर दिया। सब कुछ बिगाड़ दिया। किसी हेयर सैलून को बदल कर बाल कटवाने पहुंचते हैं तो बोलता है कि अरे..कहां कटवाते थे..किसी इलेक्ट्रानिक सामान की रिपेयरिंग के लिए जाते हैं तो बोलता है कि भाई..सोच-समझ कर जाया करो..पूरी सेटिंग बिगाड़ दी है।
जीवन में हम इतनी औपचारिकताएं निभाते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं..झूठ भी जमकर बोलते हैं। बड़ी बातों के लिए भी और छोटी-छोटी बातों के लिए। गांधी जी सत्य और अहिंसा पर चलने को कहते थे जिन्हें हमने बिलकुल ही त्याग रखा है। मुझे तो आज तक कोई भी ऐसा शख्स नहीं मिला कि अगर कोई एक गाल पर थप्पड़ मारने को कहे..और वो दूसरा गाल कर दे कि यहां भी मार लो..बल्कि होता ये है कि यदि किसी ने एक थप्पड़ मारने की हिमाकत की तो हम कई थप्पड़ों से उसका जवाब देने की कोशिश करते हैं। हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं होती..मानसिक भी होती है और मानसिक हिंसा शारीरिक से ज्यादा खतरनाक होती है। किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए हम मन में प्लान तैयार कर लेते हैं और सामने वाले को नुकसान पहुंचाने के मिशन में जुट जाते हैं। सामने वाले को तब पता चलता है जब उसका नुकसान हो जाता है। चाहे नौकरी में प्रतिस्पर्धा हो या बिजनेस में..अपने साथ वाले को पनपने नहीं दे सकते। हम हमेशा घात लगाए रहते हैं कि वो नीचा कैसे देखे और जब किसी का नुकसान होता है तो इतना मजा आता है कि पूछो मत...मन इतना प्रसन्न होता है दूसरे को परेशान देखकर कि लगता है कि जश्न मना डालें। मोबाइल पर दूसरों की परेशानी का प्रसारण करने के लिए हम व्याकुल रहते हैं। नहीं भी हुआ..तो अफवाहें फैलाते हैं कि उसका तो काम तमाम होने वाला है..ज्यादा दिन नहीं रह पाएगा..अगर कोई तरक्की करता है तब भी हम बाज नहीं आते..अरे..क्या होता है..झूठ बोलकर पा लिया..जब पोल खुलेगी तो बर्बाद हो जाएगा..उसे तो काम नहीं आता है..केवल हम ही जानकार है।
जिससे काम होता है..उसकी झूठी तारीफ में इस कदर जुट जाते हैं कि सामने वाला भी शर्म से पानी-पानी हो जाए..और सोचने लगे कि हम इतने महान कबसे हो गए। जब कोई काम कर देता है तो उसकी तारीफ करते हैं कि वो तो बहुत बढ़िया आदमी है..जब काम न करे..तो उसे नाकारा..निकम्मा..झूठा..न जाने कितने सर्टिफिकेट देने के लिए तैयार रहते हैं।
यदि हमसे कोई मिलना चाहता है तो हम तभी मिलेंगे जब हम उससे मिलना चाहेंगे..नहीं तो बहाना बना देंगे कि कुछ काम है..फिर मिल लेंगे। यदि हमें किसी से बात करनी है तो तभी फोन उठाएंगे जब उससे बात करने का मन होगा..अगर गलती से फोन उठा भी लिया तो जल्द से जल्द पीछा छुड़ाने के लिए परेशान रहेंगे। हर रोज सुबह से लेकर रात तक न जाने कितनी बार झूठ बोलते हैं और हिंसा करते हैं। बहुत ही हैरानी होती है जब लोग गांधी जयंती पर समारोहों में उनके मार्ग पर चलने को कहते हैं..जबकि खुद कभी नहीं चलते। इतना बड़ा झूठ गांधी जयंती पर भी बोलकर हम साबित कर देते हैं कि हमसे बड़ा कोई झूठा नहीं। बाकी फिर.....
जीवन में हम इतनी औपचारिकताएं निभाते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं..झूठ भी जमकर बोलते हैं। बड़ी बातों के लिए भी और छोटी-छोटी बातों के लिए। गांधी जी सत्य और अहिंसा पर चलने को कहते थे जिन्हें हमने बिलकुल ही त्याग रखा है। मुझे तो आज तक कोई भी ऐसा शख्स नहीं मिला कि अगर कोई एक गाल पर थप्पड़ मारने को कहे..और वो दूसरा गाल कर दे कि यहां भी मार लो..बल्कि होता ये है कि यदि किसी ने एक थप्पड़ मारने की हिमाकत की तो हम कई थप्पड़ों से उसका जवाब देने की कोशिश करते हैं। हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं होती..मानसिक भी होती है और मानसिक हिंसा शारीरिक से ज्यादा खतरनाक होती है। किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए हम मन में प्लान तैयार कर लेते हैं और सामने वाले को नुकसान पहुंचाने के मिशन में जुट जाते हैं। सामने वाले को तब पता चलता है जब उसका नुकसान हो जाता है। चाहे नौकरी में प्रतिस्पर्धा हो या बिजनेस में..अपने साथ वाले को पनपने नहीं दे सकते। हम हमेशा घात लगाए रहते हैं कि वो नीचा कैसे देखे और जब किसी का नुकसान होता है तो इतना मजा आता है कि पूछो मत...मन इतना प्रसन्न होता है दूसरे को परेशान देखकर कि लगता है कि जश्न मना डालें। मोबाइल पर दूसरों की परेशानी का प्रसारण करने के लिए हम व्याकुल रहते हैं। नहीं भी हुआ..तो अफवाहें फैलाते हैं कि उसका तो काम तमाम होने वाला है..ज्यादा दिन नहीं रह पाएगा..अगर कोई तरक्की करता है तब भी हम बाज नहीं आते..अरे..क्या होता है..झूठ बोलकर पा लिया..जब पोल खुलेगी तो बर्बाद हो जाएगा..उसे तो काम नहीं आता है..केवल हम ही जानकार है।
जिससे काम होता है..उसकी झूठी तारीफ में इस कदर जुट जाते हैं कि सामने वाला भी शर्म से पानी-पानी हो जाए..और सोचने लगे कि हम इतने महान कबसे हो गए। जब कोई काम कर देता है तो उसकी तारीफ करते हैं कि वो तो बहुत बढ़िया आदमी है..जब काम न करे..तो उसे नाकारा..निकम्मा..झूठा..न जाने कितने सर्टिफिकेट देने के लिए तैयार रहते हैं।
यदि हमसे कोई मिलना चाहता है तो हम तभी मिलेंगे जब हम उससे मिलना चाहेंगे..नहीं तो बहाना बना देंगे कि कुछ काम है..फिर मिल लेंगे। यदि हमें किसी से बात करनी है तो तभी फोन उठाएंगे जब उससे बात करने का मन होगा..अगर गलती से फोन उठा भी लिया तो जल्द से जल्द पीछा छुड़ाने के लिए परेशान रहेंगे। हर रोज सुबह से लेकर रात तक न जाने कितनी बार झूठ बोलते हैं और हिंसा करते हैं। बहुत ही हैरानी होती है जब लोग गांधी जयंती पर समारोहों में उनके मार्ग पर चलने को कहते हैं..जबकि खुद कभी नहीं चलते। इतना बड़ा झूठ गांधी जयंती पर भी बोलकर हम साबित कर देते हैं कि हमसे बड़ा कोई झूठा नहीं। बाकी फिर.....
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